यूरोप का दिल जर्मनी
जर्मनी के शहरों में हफ्ता भर घूमने ,देखने ,समझने के बाद ऐसा लगा की यहाँ के लोग सरल ,सीधे -साधे ,हेल्पिंग नेचर ,कोई दिखावा नहीं।यहाँ एक चीज अच्छा लगा की लोग बाग जंक फ़ूड के बदले तजा बना भोजन और पानी पसंद करते है। BMWऔर मर्सडीज का देश हो कर भी लोग -वाग सायकल उपयोग ज्यादा करते है।
बच्चा हो या बूढ़ा या जवान ,लेडीज़ हो या जेंट्स ,गरीब हो या अमीर सब लोग सायकल की सवारी करते है।
25 % लोग कार ,50 %लोग पब्लिक ट्रंसपोर्ट और 25 %लोग सायकल की सवारी करते है।
पुरे देश में ही सायकल लेन अलग से बना हुआ है। यहाँ तक लोकल ट्रेन में भी इसकी सुविधा है। लोग अपने घरों से सायकल में निकल कर स्टेशन आते है वहां पार्क करे या ट्रेन में ले कर जाते है और फिर अपने स्टेशन में उतरे और सायकल से अपने गंतव्य में जाते है। शाम को फिर वापस स्टैंड से सायकल लिये और घर चले। कोई ना ट्रैफिक में फसने का प्रॉब्लम ना तो पॉलुशन का प्रॉब्लम और ना तो पेट्रोल ,डीजल के रेट से परेशान स्वास्थ भी अच्छा रहेगा । अच्छा रोड और लेन बना हो तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं होगा। हम लोगों को भी ये सब अपनाना चाहिए।हमारे यहाँ तो छोटे -छोटे बच्चे जिनके पास लाइसेंस भी नहीं पर स्कूटी के वगैर उनका चलता ही नहीं।
जर्मनी में एक शहर से दूसरे शहर और लोकल ट्रेन में भी खूब घूमना हुआ इसका भी एक्सपीरिएंस बहुत अच्छा था। जर्मनी में मर्सडीज का शो रूम देख कर अपने बचपन का एक घटना याद आगया। बात बहुत पुरानी है,पहले टेल्को ट्रक वगैरा जर्मन कोलोब्रेसन से बनता था। जब एग्रीमेंट समाप्त हो गया तब उनका मर्सडीज का लोगो भी डलना बंद हो गया और टाटा का T वाला लोगो चालू हो गया। टेल्को से टाटा मोटर्स भी नाम हो गया। सारे अंग्रेज और जर्मन इंजीनियर तथा ऑफीसर भी अपने देश वापस चले गए।
बाबा का कुछ अंग्रेज और जर्मन मित्र बन गये थे। बाबा और वे लोग अपने बच्चों से हमलोगों को पेन फ्रेंड बना दिए। हमलोग उस समय ना के बराबर ही लिखना पढ़ना जानते थे। हमलोग आडा तिरछा एक दो शब्द हिन्दी में लिखते थे औ रबाबा उसके नीचे इंग्लिश में एक लाईन लिख देते थे। ऐसे ही मित्र भी अपने बच्चो से लिखवा कर एक लाईन इंग्लिश में लिख देते थे।ये सिलसीला बहुत दिनों तक चलते रहा। पत्र आने पर कुछ स्टाम्प भी मिल जाता था। धीरे -धीरे हम सब अपने -अपने दुनिया में खो गए। पत्र भी कम होते -होते बंद भी हो गया। फ़ोन और नेट का जमाना तो था नहीं की टच में बने रहते।यहाँ आने पर भेंट भी हो जाता।पता ठिकाना तो कुछ था भी नहीं और सब भूल भी गए थे। पर जर्मनी में पुरानी बात सब याद आगई।
अब हमारा एक हफ्ता का जर्मनी टूर यहीं समाप्त हो गया, पर अभी हमारा 10 दिन का हैम्बर्ग से नॉर्वे का क्रूज का टूर शुरू होगा।
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