बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

ART MUSEUM OF MADRAS REGIMENTAL CENTRE

                       ART MUSEUM OF MADRAS REGIMENTAL CENTRE

                                      मद्रास रेजिमेंटल में  आर्ट म्यूजियम 

           अरुणाचल के गवर्नर 2019 अप्रैल को म्यूजियम का उद्धघाटन किए थे।मद्रास रेजिमेंट आजादी के पहले 1750  में  ब्रिटिश इंडियन आर्मी के समय का बना हुआ है।ये  म्यूजियम अपने ड्यूटी में मरे हुए सोल्जर के याद में उनके ग्लोरी को दर्शाता है।कुन्नूर के वेलिंगटन में नागेश बैरक्स काम्प्लेक्स के बगल में ये म्यूजियम बना हुआ है।वैसे बैरक्स में आम  लोग जा नहीं सकते है पर म्यूजियम में बैरक्स के अंदर का मॉडल बना हुआ है।1750  का अंग्रेजो द्वारा बना आज भी वैसा का वैसा है और डिटेल में समझाते है की अंदर कहाँ -कहाँ क्या क्या होता था और अब क्या होता है।   इस म्यूजियम में प्रथम विश्व युद्ध ,सेकेंड विश्व युद्ध से लेकर चाइना वॉर पाकिस्तान वॉर,सियाचीन ग्लेशियर , हर समय काल का विवरण से लेकर उस समय का अस्त्र -शस्त्र ,पेंटिंग ,पोट्रेट ,कल्चर ,संस्कृति  ,इतिहास सभी कुछ इस म्यूजियम में देखने मिल जायेगा। 
     मद्रास रेजिमेंट बनने के बारे में  म्यूजियम में आकर देख कर बहुत सारा नया बात भी पता चला।अंग्रेजो के जाने के बाद केरल ,तमिलनाडु ,कर्णाटक ,ट्रावन्कोर ,आंध्रा आदि पांचो स्टेट के राजाओंने ने मिलकर एग्रीमेंट बना कर मद्रास रेजिमेंट को दान और देखभाल आदि की जिमेदारी ली। आज भी त्रिवेंद्रम के मंदिर का सालभर का आधा चढ़ावा और  ट्रावनकोर के मंदिर के सालभर का पूरा चढ़ावे को इस रेजीमेंट के सोल्जर के बच्चों  के पढ़ाई ,उनके परिवार के देख भाल की जिम्मेदरी के लिये दान दिया जाता है।
    म्यूजियम देखने के बाद बहुत ही अच्छा एक्सपेरिएंस हुआ बहुत कुछ जानकारी मिला। अंदर एक ऐसा पुतलों का  श्रंखला बना हुआ है जो बहुत ही रोचक और मार्मिक दिल को छूलेंने वाला है। एक माँ अपने छोटे से बच्चे को गोद में ली हुई हैऔर उसे ऊपर देखने का इशारा करती है।  आगे दूसरा थोड़ा बड़ा बच्चा का पुतला है, उसके बाद बच्चा बड़ा होकर सोल्जर बनने का पुतला है ,उसके बाद उसके शहीद होने का पुतला है। माँ को पता है की बेटा बड़ा होकर यदि सैनिक बनेगा तो  शहीद भी होगा, फिर भी अपने बच्चे को सेना में भेजने को तैयार है, अपने देश की सेवा करने के लिये,माँ की कल्पना का दृश्य  वास्तव में सराहनीय है।





    


         

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

GOVERNMENT VEGETABLE MARKET COONOOR

             UZHAVAR SANTHAI (SANDAIS)

                                किसान बजार

         तमिलनाडु सरकार का वेजटेबल  मार्केटिंग स्कीम पुरे तमिलनाडु के हर प्रान्त में है।इसे किसान बजार (उजहवार सन्थाई) बोला जाता है। वैसे इसकी शुरुआत 1999 में मदुरई से शुरू हुआ था फिर 2011 तक करीब -करीब पुरे तमिलनाडु में किसान बजार हो गया।
    इस बजार में किसान डायरेक्ट अपना ताजा -ताजा मॉल लाता है कोई भी बिचोलीया नहीं होता है और सरकारी फिक्स रेट होता है। नहीं तो आम बाजार में किसान को तो कोई फायदा नहीं हो पाता है बिचोलीया ,होलसेलर ,चिल्हर मार्केट होते हुए आम पब्लिक को चार गुना रेट देना पड़ता है। ना तो किसान और ना तो आम पब्लिक को फायदा होता था।
    कुन्नूर मे भी किसान बाजार शहर के बिचो बीच घने जंगल के बीच में है। साफ -सुथरा ताजा -ताजा खेत का फल -सब्जी सरकारी उचित मूल्य में तौल भी एकदम सही मिलता है। किसान को भी फायदा और आम पब्लिक को भी फायदा।बाजार से लोवर कुन्नूर का दृश्य भी बहुत अच्छा दिखता है।रोज ही बाजार लगता है कोई साप्ताहिक बाजार भी नहीं है।जब मन हो सुबह मंडी से ताजा सब्जी -भाजी लाओ और बनाओ।





  



बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

#8TH#MARKET#WELLINGTON#COONOOR

                                        कुन्नूर  घाटी में हाट बजार

      बजार बहुत तरीके का होता है। हाट बजार ,संडे मार्केट ,मंगल बजार या फिर हर शहर में छोटा बड़ा वहाँ का बजार। कुन्नूर के वादी में एक बड़ा ही इंट्रेस्टींग बजार हर महीने के दूसरे रविवार को लगता है। बजार का नाम भी बड़ा ही इंट्रेस्टींग है ,8 TH मार्केट।हर महीने का  दूसरा रविवार को लगने वाला हाट बजार , भले ही 8 -9 -10 किसी भी दिन हो पर बजार का नाम 8 TH मार्केट है। कुन्नूर का  वेलिंग्टन एरिया मिलिट्री वालों का है और वहाँ मिलिट्री वालों की परिवार रहता है। उनका हमेशा तबादला भी होते रहता है.ज्यादा महँगा सामान तबादले के बाद ख़राब भी हो जाता है।  इसलिए वहाँ पर हर महीना ये बजार भरता है। बहुत ही सस्ता और अच्छा समान बिकता है। जिससे मिलिट्री वाले खरीदे और तबादला के बाद पछतावा भी नहीं रहे। कम कीमत होने के कारण आराम से अपने घर ,परिवार के जरुरत का समान वे खरीद लेते है।
        सस्ता इतना की कोई भी दाम सुन कर एकबार तो चौंकेगा ही। साड़ी 100 रूपया ,शर्ट 50 का ,कोट -स्वेटर ,पर्दा ,चादर ,कम्बल ,शॉल ,जूता -चपल ,गृह्स्ती का कोई भी सामान अंचार हर समान 50 से 100-200  के बीच में मिल जायेगा। मिलिट्री वालों के लिये सरकार रेट फिक्स रखी है।मिलिट्री वालों के अलावा  कुन्नूर के लोग भी  बजार से कुछ भी खरीद सकते  है। इतने महंगाई के ज़माने में सरकार की ये पहल हमारे सोल्जर के परिवार के लिये बहुत ही सराहनीय कदम है।
    बचपन में मनिहारी वाला गली -मुहल्ले में ठेले में कई तरह का समान बेचता था, और आवाज देता था हरेक मॉल 6 आना। और हमलोग उसका इंतजार करते थे की चूड़ी लेंगे बाली लेंगे या कुछ भी समान इतना सस्ता लगता था। कुन्नूर का 8TH मार्केट घूम और देख कर अपना बचपन याद आगया।
   जगह भी सुन्दर मौसम भी सुहाना घाटी के बीच वादी का इतना सुन्दर और सस्ता बजार वास्तव में देखने योग्य है।


    

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

SHARAD PURNIMA

                         कोजागरी  लक्ष्मी पूजा
                                शरद पूर्णिमा

                 अश्विन मास के शुक्ल पक्छ की पूर्णिमा को बंगाली समुदाय के लोग माँ लक्ष्मी की पूजा करते है। जिसे कोजागिरी लक्ष्मी पूजा कहा जाता है। मान्यता ये है की मथुरा के राजा को सपने में धर्म देव ने कोजागरी  लक्ष्मी पूजा करने का आदेश दिए थे। जिससे उन्हें धन -धान्य एवं सुख समृधी प्राप्त हो। उस समय राजा आर्थिक संकट में थे,राजा ने ये पूजा किया तब से ही ये पूजा होने लगा।
   बंगाली महिलाएं इस दिन व्रत रहती है ,और घर अच्छी तरह साफ -सफाई करके अल्पना बनाती  है। फिर शाम को पुरे विधि -विधान से पूजा अर्चना करती है। शंख बजाये जाते है और महिलाये उल्लू ध्वनी निकालती है। लक्ष्मी जी की सवारी उल्लू होने के कारण हर शुभ काम के समय बंगाल में महिलाएं उल्लू ध्वनि मुहं से करती है। फिर माँ का आवाहन गीत गाते हुए करती है। माँ से प्रार्थना किया जाता है की माँ आप के लिये सुगंधित धुप दीप जल रहा है ,आसन बिछा हुआ है ,माँ आओ मेरे घर में आसन ग्रहण करो। नाना प्रकार के व्यंजन का प्रसाद का भोग करो,माँ मेरे घर आओ ,इस दिन ग्यारह प्रकार का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
  पूजा के बाद पाठ कर आरती करने के बाद महिलाएं अपना व्रत तोड़ती है,और प्रसाद ग्रहण करती है।और  दूसरों को  भी प्रसाद देती है।बाकी सबलोग दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा करते है। सारे दुर्गा पूजा पंडाल में दुर्गा विसर्जन के बाद पूर्णिमा में लक्ष्मी पूजा और फिर अमावस्या के दिन काली पूजा करते है जब की सब जगह अमावस्या के दिन लक्ष्मी पूजा होता है।बचपन में हमलोग दुर्गा पूजा की तरह लक्ष्मी पूजा का भी इंतजार करते थे।      वैसे इस  पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजा के अलावा शरद पूर्णिमा मनाने का चलन है। मान्यता ये है की इस दिन अमृत बरसता है ,इसलिए ओस में खीर रखा जाता है और खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।चाहे जिस रूप में मनाये अश्विन मास का पूर्णिमा का इसलिए  इतना महत्व है।






   

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

COONOOR KA DURGAPUJA

                     कुन्नूर का दुर्गापूजा

      पुरे भारत में नवरात्री का पर्व मनाया जाता है। हर प्रान्त में अलग नाम और अलग तरीके से मनाते है पर मनाते जरूर है। बंगाल में दुर्गापूजा ,गुजरात में डांडिया ,दक्षीण भारत में गोलुपूजा,आयुध पूजा इत्यादी अलग नाम से देवी का पूजा करते है।
  इस बार कुन्नूर में होने के कारण यहाँ का दुर्गापूजा भी देखने मिला। कुन्नूर में दो जगह पूजा होता है। वह भी एकदम बंगाल के तरीके से देवी माँ के पुरे परिवार के साथ पूजा देखने मिला। बहुत ही शानदार तरीके से पूजा ,आरती वगैरा देखे, प्रसाद भी खाये। पर टाटा का पूजा का बहुत याद आया। टाटा में हर साल परिवार ,रिश्तेदार और मित्रों के साथ पूजा देखने का आदत था। खिचड़ी का भोग खाना आरती देखना ,सिन्दूर खेला,दुर्गा विसर्जन  इत्यादी नहीं मिला। अब इसका भी आदत डालना होगा।पर यहाँ बहुत ही शांत -एकांत वातावरण में पूजा देखना अच्छा ही था। 


मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

AYUDHA PUJA

                          आयुध पूजा

    दक्षिण भारत में नवरात्री के नवमी तिथिऔर दसवीं  को अस्त्र -शस्त्र का पूजा होता है। हमलोग जैसे विश्वकर्मा पूजा 17 सितम्बर को करते है वैसे ही यहाँ औजार ,कार ,सारे वाहनों का पूजा की जाती है।ऑफिस में सरस्वती  ,गणेश और देवी माँ की पूजा करते है। आयुध पूजा कुछ -कुछ विश्वकर्मा और कुछ दिवाली जैसा पूजा होता है। पूजा के बाद सारे वाहनों के सभी चक्कों के आगे नीम्बू रखा जाता है और उसके ऊपर से एक साथ वाहनों को गुजारा जाता है। जिसके पीछे कारण ये होता है की सारा अला -बला टल जाये। देखने में भी अच्छा लगता है। इस पूजा में उबला चना (संदल)का प्रसाद ,गन्ना ,लाई -बतासा इत्यादी चढ़ाया जाता है।






गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

BANGAL KA DURGA PUJA

                    बंगाल का दुर्गापूजा

              नवरात्री का त्यौहार साल में दो बार बसंत में बासंती और क्वांर में शारदीय। नौ दिन देवी का अलग -अलग रूप में मनाया जाता है। बंगाल में क्वांर में शारदीय नवरात्री में दुर्गापूजा बहुत ही धूम -धाम से मनाया जाता है। दुर्गा जी को बेटी माना जाता है। इसलिए बंगाल उनका मायका हुआ। जमशेदपुर बंगाल बार्डर के पास होने के कारण बंगालियों की संख्या भी यहाँ बहुत ही अधिक है। इसलिए यहाँ बंगाली रीत-रिवाज से पूजा मनाया जाता है। माँ के स्वागत के लिये बहुत ही सुन्दर और बड़ा पंडाल सब जगह बनाया जाता है।
    मान्यता ये है की दुर्गा जी महिषासुर का बध करके अपने पुरे परिवार के साथ 9 दिन के लिये मायका आती है। इसलिए बंगाली पंडालों में दुर्गा प्रतीमा के साथ कार्तिक ,गणेश ,लक्ष्मी और सरस्वती आदि की भी मूर्ती होती है। वे देवी के बेटा -बेटी माने जाते है। साथ ही गणेश जी की पत्नी भी होती है। कार्तिक जी जेष्ठ है इसलिए गणेश जी की पत्नी सबसे किनारे केले के गाँछ को साड़ी से लपेट कर घूँघट में रखा जाता है। इसलिए गणेश जी की पत्नी को कोला (केला)बहु कहा जाता है।जेष्ठ के सामने बहु कैसे रहेगी इसलिए घूँघट किया जाता है।
     दुर्गा पूजा अमावस्या के दिन घरों में घट रख कर शुरू किया जाता है। पर पूजा पंडालों में प्रतीमा षष्ठी के दिन स्थापित कर पूजा  शुरू किया जाता है। अष्टमी और नवमी के संधिकाल में 108 दीपक जला कर पूजा का विधान है। दशमी के दिन नीले रंग का फूल(अपराजिता ) और उसके पत्ते से पूजा होता है। दसवें  दिन मूर्ती विसर्जन के पहले देवी प्रतिमा के सामने एक बड़े परात में जल रखा जाता है ,और उसमे एक दर्पण रखा जाता है।महिलाएं  दर्पण में माँ का चरण का प्रतिबिम्ब को स्पर्श करके आशीर्वाद लेती  है। फिर माँ को मिठाई खिला कर सिन्दूर लगाती है। महिलाये आपस में फिर एक दूसरे को सिन्दूर लगाती है इसे सिन्दूर खेला बोला जाता है।
    जिस प्रकार बंगाल में बहन -बेटी को मछली -भात खिला कर बिदा किया जाता है ,वैसे ही माँ को भी मछली -भात खिला कर बिदा किया जाता है और प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। वैसे सप्तमी ,अष्टमी और नवमी तीनो दिन स्पेशल खिचड़ी का भोग लगता है और लोग खिचड़ी का प्रसाद प्राप्त करते हे। दुर्गापूजा में छेने से बनी मिठाई ,सन्देश ,मीहीदाना इत्यादी तो जरूर ही रहता है। प्रतिमा विसर्जन के बाद नीलकंठ पक्छी उड़ाया जाता है।मान्यता ये है की नीलकंठ पक्छी उड़ कर कैलाश पर्वत पहुँचकर भगवान शिव जी को माँ के मायका से रवानगी का सन्देश देते है। विसर्जन के बाद शांति जल लाया जाता है। फिर एक दूसरे से मिल कर विजया दशमी का पर्व मनाते है।