मंगलवार, 29 मई 2018

BAEL FRUIT

                                बेल फल   (बिल्वपत्र  )

           हिन्दू धर्म में बेल के पेड़ को भगवान शिव का रूप माना जाता है। बेल के पेड़ के जड़ में शिव का वास और इसके तीन पत्तों को जो की एकसाथ होता है त्रिदेव का स्वरुप माना जाता है। मंदिरो के आसपास तो लगाया ही जाता है इसके आलावा पुरे भारत में इसके जंगल मिल ही जायेगा।
    इसके पेड़ 15 -30 फ़ीट ऊँचा थोड़ा काँटे दार होता है। इसके फल बहुत ही उपयोगी होता है। पका फल का शर्वत और मुरब्बा बनता है। इसके अलावा फल ,तना, जड़ ,पत्ती इत्यादि का चूर्ण बना कर दवाई भी बनाया जाता है। सावन में नया पत्ती पेड़ में आता है और साथ ही छोटा मटर के दाने जैसा फल आना शुरू होता है। सावन मास में इसकी तीन पत्तियों को शिव लिंग में चढ़ाया जाता है। बचपन में दादा को देखते थे की सावन मास में   चन्दन घिस कर बेल के पत्तों में राम -राम लिखते थे। और फिर शिवलींग में चढ़ाते थे।काश उस ज़माने में मोबाईल होता तो दादा का फोटो ले पाते।दादा  कितना एकाग्र हो कर पूजा करते थे। अब तो पुरानी बाते बस याद बन कर ही रह गयी है।
           सावन से फल आते -आते मार्च -अप्रैल तक में पक कर खाने योग हो जाता है। ऐसे करके करीब साल भर लगता है फल तैयार होने में और फिर से नया पत्ती और फल आना शुरू हो जाता है साल भर यही क्रम चलता है। बाबा को बेल का शर्वत बहुत पसंद था ,तो पुरे गर्मी में बाबा खोज -खोज कर बेल जरूर लाते थे और माँ बाबा के लिये शर्वत जरूर बनाती थी, हम बच्चों को शर्वत जरा भी पसंद नहीं था। पर माँ जब शर्वत बनाने के लिये बेल को पटक कर फोड़ती थी तो हमलोग जब गुद्दा निकल जाता था तो बेल के खोल से गुद्दा निकाल  कर बहुत पसंद से खाते थे। बाबा मिर्जापुर से स्पेशल बेल का पेड़ मंगा कर लगाए थे। पेड़ खूब बड़ा भी होगया था और उसमे खूब फल भी आने लगा था। पर रिटायर होने के बाद कंपनी क्वाटर  छोड़ना पड़ा तो पेड़ भी छूट गया। अब जो जो उसमें आएगा वे फल पाएंगे।
       वैसे भारत के अलावा नेपाल ,श्रीलंका ,कंबोडिया ,थाईलैंड ,बांग्लादेश आदि देशों में भी बेल बहुत होता है और अलग -अलग देशों में अलग नामों से जाना जाता है। जैसे वुड एप्पल ,स्टोन एप्पल ,गोल्डन एप्पल। बेल का फल बहुत गुणकारी है ,अच्छा है धर्म से जुड़ा होने के कारन जंगल में हो या खेती करके उगाया जाये देख भाल हो ही जाता है।पहले सावन में बगीचा से बेलपत्र रोज सन्तु लाता था ,और  गर्मी में  बगीचा से सन्तु एक -एक बोरा बेल लाता था खूब बांटते भी थे और शर्वत भी पुरे गर्मी में बनता था। अब तो बाजार से ही लाना पड़ता है। अच्छा है हमारे देश में जितने प्रकार के पेड़ है सभी को धर्म से जोड़ा गया है ,जिससे पेड़ पौधा तो बचता ही है.और पर्यावरण भी बना  रहता है।









                               

मंगलवार, 22 मई 2018

AMARANTHUS

                                     अमारंथुस ( साग -भाजी )

         जैसा की नाम है अमारंथुस  खाओ और अमर रहो। हमारे देश के मौसम के अनुसार अलग -अलग प्रान्त में अनेक प्रकार का साग भाजी होता है। वहाँ के जलवायु के अनुसार ही वह बहुत ही उपयोगी होता है। छतीसगढ़ की बात करे तो यहाँ गर्मी बहुत होने के कारन भाजी भात बहुत उपयोगी होता है। ठंडा भी करता है और सारे विटामीन ,मिनरल से भर पुर भी होता है। सस्ता भी होने के कारन गरीब से गरीब लोग भी अपने भोजन में शामिल करते है।
      इस मौसम में लाल भाजी  ,चौलाई भाजी ,खेड़ा भाजी वगैरा बहुत मिलता है। इसके नरम पत्तों का साग तो बनाते ही है इसके अलावा इसके ठंठल को मुनगा  जैसा भी सब्जी बना कर खाया जाता है जोकि बहुत टेस्टी होता है।कुन्नूर में भी बहुत तरह का पत्ते वाला सब्जी मिलता है पर नाम भी नहीं मालूम रहता है बनाने का तरीका भी नहीं पता रहता है इसलिए खास -खास ही भाजी बन पता है ,राजेश यहाँ का खेड़ा और लाल साग बहुत मिस करता है। जब -जब रायपुर आता है तब जरूर बनवा  कर खाता है।
     बचपन में हमलोग लाल साग भात बहुत पसंद से खाते थे। पूरा भात लाल लाल हो जाता था। बाबा का आदत था मौसमी फल हो या सब्जी वही लाना और माँ टेस्टी -टेस्टी बनाती  थी और हम सब बहुत चाओ से खाते थे।छतीसगढ़ का खेड़ा तो बहुत ही प्रसिद्ध है और कहावत भी है की जैसे मथुरा का पेड़ा वैसे छतीसगढ़ का खेड़ा। खेड़ा तो गार्डन में लगाते है और सबलोग बहुत पसंद करते है। 






रविवार, 20 मई 2018

PURSLANE LEAVES

                                       कुल्फ़ा भाजी

              कुल्फा सारे विश्व में पाया जाने वाला हर्ब है। इंग्लैंड ,चीन ,अफ्रीका ,अमेरिका आदि देशों में सलाद के रूप में खाया जाता है।एशिया से ही सारे विश्व में फैला है।  कुल्फा जंगली घास की तरह गार्डन हो या कोई भी खाली जमीन हो अपने आप उगता रहता है और उसका बीज गिरते रहता है और पौधा फलते -फूलते रहता है।इसकी पत्ती छोटी -छोटी गोल -गोल होती है और डंठल गुलाबी लिये होता है। और इसमें बहुत ही छोटा -छोटा पीले रंग का फूल खिलता है।हमारे घर के गार्डन में भी होते रहता है ,पर अब खाते बनाते नहीं है। हमारी नौकरानी तोड़ कर ले जाती है। वे लोग बहुत चाव से खाते है।   भारत में भाजी बना कर साग भात खाया जाता है। कुल्फा भाजी बहुत ही पौष्टिक और सारे विटामीन तथा मिनरल से भर पुर है। विटामीन A ,C ,E के अलावा इसमें ओमेगा भी पाया जाता है। इसके बीज के पाउडर से दवाई भी बनती है। और बहुत से बीमारीयों में उपयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक दवाई में तो इसके पत्ते ,डंठल ,जड़ और बीज सभी काम में लिया जाता है।
       बचपन में हमलोग भी कुल्फा का साग भात खाते थे। इसका स्वाद थोड़ा खट्टा -नमकीन होता है ,इसलिए इसे लोनी भाजी या नोनिया साग भी बोला जाता है। वैसे अलग -अलग प्रान्त में अलग नाम से जाना जाता है ,जैसे घोल ,गोली ,कटु इत्यादी। कच्चा कम खाना चाहिए पका कर ही खाना चाहिए। आज कल लोग वैसे पालक ,मेथी वगैरह ही ज्यादा जानते और खाते है। पर आज भी लेवर क्लास लोकल भाजी भात खाते है जिससे उन्हें एनर्जी भी मिलता है, और सस्ता भी होता है।





गुरुवार, 17 मई 2018

MADAGASCAR PERIWINKLE

           VINCA ROSEA

                                 नयनतारा
              जैसा नाम से लगता है की मेडागास्कर का रोज है। पर ऐसा नहीं है। बचपन से ही बैगनी रंग का नयनतारा का फूल और पौधा देखे है जो की पूजा के काम में लिया जाता है। गर्म जलवाऊ में अच्छा फलता और फूलता है, एक बार लगा दो तो बारो महीना तीसों दिन फूल खिलता है। गार्डन का रौनक भी बढ़ाता है पूजा के काम तो आता ही है ,साथ मेंआयुर्वेदी दवाई बनाने के काम में भी  लिया जाता है।बहुत से बीमारियों के इलाज में इसके फूल और पत्ते उपयोग में लाया जाता है।
   देसी पौधा 2 -3 फीट का होता है। अब नर्सरी में हाई ब्रीड नयनतारा का भिन्न -भिन्न रंगों में छोटा पौधा उपलब्ध है।   इसके बारों महीना खिलने के कारन सदा सुहागन ,सदाफूले  आदि नमो से भी जाना जाता है।मेरे पास भी देसी के अलावा हाईब्रीड रंग बिरंगा फूल वाला पौधा है। लाल ,गुलाबी ,बैगनी ,सफ़ेद इत्यादी रंगो की बहार पुरे क्यारी में देखने मिलता है। वैसे गर्मी और बरसात में ज्यादा से ज्यादा खिलता है। ठण्ड में थोड़ा काम होता है। उस समय थोड़ा कटींग करदेने पर फिर से और भी अच्छे तरह से फूल खिलता है। जड़ के आसपास छोटा पौधा भी बारो महीना निकलते रहता है।उसे फिर से क्यारी में रोप देने पर फिर से नया पौधा और भी अच्छी तरह से खिलते ही रहता है।लगाना भी आसान और कुछ सेवा भी नहीं करना पड़ता है ,एक पौधा से अनेक पौधा भी तैयार हो जाता है। 







  
     

रविवार, 13 मई 2018

MOTHER'S DAY

                                   मातृ दिवस

     मदर्स -डे की शुरुआत 1860 में अमेरिका के वर्जीनिया में शुरू हुआ।  सिविल वार के बाद सैनिकों के परिवारों और पड़ोसियों को एक साथ मिलने और सारी मांओं को इकठा  हो कर भोजन बना कर एन्जॉय करने के लिये मनाया गया। 1914 में अमेरिका में नेशनल हॉलीडे घोसीत कर  मदर्स -डे मनाया जाने लगा। तब से ही सारे जगह अलग -अलग तरीके से मनाया जाने लगा। भारत में मई के दूसरे सप्ताह में मनाया जाता है। कोई गिफ्ट देकर कोई पार्टी करके अपने तरीके से मानते है।
     माँ तो बस माँ होती है सबों कोअपनी माँ दुनिया की बेस्ट माँ लगती है, और सभी माँ को अपना बच्चा सबसे अच्छा और प्यारा लगता है। एक बार राकेश टाटा गया और नानी को फूलों का गुलदस्ता भेंट किया। माँ इतना खुश हुई ,बोली की जिन्दगी में पहली बार कोई फूल भेंट किया है। और राकेश को थैंक्स बोल कर आशीर्वाद की। अब माँ तो है नहीं बस सब बाते यादें बन कर ही रह गई  है।
    1 जनवरी को जब माँ से मिल कर वापस आरहे थे तो पता नहीं ऐसा लग रहा था की अब माँ से भेंट नहीं हो पायेगा। माँ भी आशीर्वाद(रुपिया ) देते हुए बोली ले रख अब जब रहेंगे ही नहीं तो कौन देगा। राजेश से मिलने का बड़ा मन था। और अन्त समय में राजेश के हाँथो से पानी पी। अच्छा हुआ राजेश नानी से मिल लिया। उनकी अंतिम इच्छा भी पूरी हो गयी।
   माँ बस अब तुम तो हो नहीं तुम्हारी यादे ही रह गयी। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।






सोमवार, 7 मई 2018

ONE MONTH

                               एक महीना
              देखते ही देखते माँ को दुनिया छोड़े एक महीना बीत गया। एक पल ऐसा लगता है की कल की ही तो बात है, और एक बार ऐसा भी लगता है की अरे माँ तो अब हमारे बीच है ही नहीं तो मन बड़ा भारी हो जाता है।माँ का फोटो देख कर ऐसा लगता है की माँ हमलोगों के बीच ही ही और अब कुछ बोलेगी। बस माँ का हँसता चेहरा ही दिखता है।  ऐसे में बाबा को अकेले छोड़ कर आना भी बहुत मुश्किल लगा, पर आना तो पड़ेगा  ही।दोनों भाई के ना रहने पर भी कम से कम माँ तो थी। अब माँ के जाने के बाद बाबा एकदम अकेले हो गए है। सोच कर भी बड़ा डर लगने लगता है। अब कर भी क्या सकते है। प्रभु इच्छाआगे भी अच्छा ही होगा।