मंगलवार, 30 जनवरी 2018

MAHAMAYA TEMPLE RATANPUR

            महामाया मंदिर रतनपुर

              हमारे देश में देवी माँ के 51 सिद्धी पीठ है इन्हीं में से रतनपुर का महामाया देवी माँ का मंदिर है। कलिंग के महाराजा रत्नदेव ने सन 1050 में पहला पूजा और अभीषेक करे थे। तब से इस जगह का नाम रतनपुर पड़ा। मंदिर 11 वीं सदी में बन कर तैयार हो गया। सती माँ का कन्धा यहाँ गिरा था। इसलिए इस स्थल को माता का 51 शक्ति पीठ माना जाता है।
      16 स्तम्भों से घिरा मंदिर में माता का साढ़े तीन फ़ीट की भव्य मूर्ती है।  प्रतीमा के कंधे के  भाग में माता सरस्वती की प्रतीमा है जो विलुप्त मानी जाती है इसलिए सिर्फ सिर दिखता है। किले नुमा मंदिर में प्रवेश करते ही  ब्रह्मा ,विष्णु ,शिव ,गंगा ,जमुना और सरस्वती आदि देवी -देवताओं की मूर्ती बनी हुई है।वैसे साल भर भक्तों की भीड़ दर्शन के लिये यहाँ आती है। परन्तु नवरात्री में सब से ज्यादा भीड़ होती है।
     बिलासपुर से 25 किलोमीटर की दूरी में रतनपुर है। बिलासपुर से रतनपुर में प्रवेश करते ही बाबा कालभैरव नाथ जी का मंदिर भी है। इस मंदिर में भैरव नाथ की 9 फ़ीट ऊंची प्रतीमा  है। ये भी उसी काल में बना है। मान्यता है की पहले भैरव नाथ जी का दर्शन करने के पशचात ही देवी महामाया जी का दर्शन करना चाहिए। देवी दर्शन के बाद वापस लौटने पर सिद्धि विनायक मंदिर में गणेश जी का भी दर्शन करते है। ये मंदिर ज्यादा पुराना नहीं है पर भव्य बहुत ही सुन्दर नया ही बना हुआ है।
   वैसे तो बिलासपुर कोरबा बहुत बार आना जाना हुआ पर पता नहीं क्यों अभी तक इतना सुन्दर ,प्राचीन   प्रसिद्ध मंदिर नहीं देखने गए। भला हो किरण का जिसके कारण इस बार बिलासपुर जाने पर हमको सब मंदिर घुमा दी।इसे ही बोला जाता है की बिना भगवान के  बुलाये  दर्शन नहीं होता है।










मंगलवार, 23 जनवरी 2018

TURMERIC

                                      HALDI--हल्दी

          हल्दी हमारे रसोईं की शान के साथ -साथ चमत्कारी औषधीय गुणों से भर पुर है।आयुर्वेदिक दवाई में  प्रयोग तो होता ही है । हमारे पूजा पाठ हो या विवाह वगैर हल्दी का चलता ही नहीं।विवाह में तो हल्दी का रस्म का बहुत ही महत्त्व है।  हल्दी पूजा -पाठ हो  ,रीतिरिवाज हो या रसोई सब में लगने वाला गुणों का भंडार है।
      हल्दी का पौधा लगाना  भी बहुत ही आसान है ,और सेवा भी ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ता है। जून -जुलाई के महीने में सूखा हुआ हल्दी का गांठ क्यारी में लाईन से लगाना पड़ता है। फिर अगस्त सितम्बर तक हरा भरा पौधा तैयार हो जाता है और उसमें सफ़ेद फूल गुच्छे में होता है,जो की  भीना -भीना खुशबू वाला होता है। जनवरी फरवरी तक पौधा सूखने लगता है। यानी की पौधे के जड़ों में हल्दी का गांठ तैयार हो गया है।
             मार्च तक मट्टी खोद कर सारे हल्दी की गांठ को निकालना पड़ता है। फिर उसे अच्छी तरह धोने के बाद 15 -20 मिनट अच्छे से उबाल कर फिर उन गांठो को छान कर धुप में 8 -10 दिनों तक सुखना पड़ता है। जब सारे हल्दी के गांठ सुख जाते हैं तब पीस कर पाऊडर हल्दी मिलता है। अब साल भर इसे रसोई हो या किसी भी काम में उपयोग में ले सकते है।
          हमारा भी हल्दी अच्छी तरह तैयार हो गया है बस अब सुखा कर पीसना बाकी है। घर के गार्डन में कुछ होता है तो उसको देख कर ही दिल खुश हो जाता है।
 


रविवार, 21 जनवरी 2018

DETH ANNIVERSARY

                                          पुण्यतिथी
                              बसंत पंचमी  (बाबू  -माँ )

                 क्या संजोग है ,बाबु जी 19 जनवरी 1980 में गुजरे थे और माँ 3 फरवरी 1995 में ,पर दोनों का अंतिम संस्कार बसंत पंचमी के ही दिन हुआ था। तारिख वार सब अलग था पर तिथि एक था। जब बाबू जी गुजरे थे तब 22 जनवरी को वसंत पंचमी था और इतने सालों बाद फिर 22 तारिख को ही वसंत पंचमी पड़ा  है।
   वैसे तो वसंत पंचमी में विद्यार्थी लोग सरस्वती पूजा करते है। चारों तरफ वसंत के आगमन की तैयारी होती है। पतझड़  शुरू हो जाता है ,आम में बौर आ जाता है। होलिका दहन की तैयारी शुरू हो जाती है।पर इस बार 22 जनवरी होने के कारण एकाएक माँ -बाबू से जुड़ी बातें याद होने लगी।
     वो जमाना और ये जमाना में कितना फर्क आगया है। एक वो दिन था ,और एक ये दिन. वो दिन को बहुत ही मिस करते है।
                                              माँ -बाबू के याद में उन दोनों को विनम्र श्रद्धांजली।


    

शनिवार, 20 जनवरी 2018

BANANA

                              केला
                     केला का पौधा पवित्र और पूज्य माना जाता है। केले में बृहष्पति का वास माना गया है। इसलिए पूजा किया जाता है। प्राचीन समय से ही पूजा पाठ में केले के पत्ते और फल का उपयोग किया जाता है। केले का पौधा लगाना भी आसान है।
     एक बार 2 रुपिया का छोटा सा पौधा लेकर लगा दिए वो भी शौकिया। 5 -6 महीने में पौधा तैयार हो गया। उसमे फूल आगया,देखते ही देखते फूल के एक -एक लेयर में एक -एक गुच्छा होते हुये पूरा एक बड़ा सा केला का कांदी बन कर तैयार हो गया। 3-4 महीने में पक कर पूरा गुच्छा खाने के लिये तैयार हो गया। देख कर ही दिल खुश हो गया। एक तो घर का केला उसपर पेड़ का पका फिर क्या कहना एक -एक लेयर काट ते जाओ खाओ और खिलाओ।
      एक पौधे में एक ही बार केले का गुच्छा होता है। फिर फल काट लेने के बाद पौधा काट देना पड़ता है। जड़ के अगल -बगल से 3 -4 छोटा -छोटा पौधा फिर निकल जाता है। लाईन से उसे निकाल कर फिर लगाने पर 4 -6 महीने में फिर नया पौधा बड़ा होकर फल देता है। बस यही क्रम चलते रहता है। हर साल एक बार में 6 -7 गुच्छा तो खाने मिल ही जाता है। ज्यादा सेवा भी नहीं करना पड़ता है। गरम वायु और नरम वातावरण, थोड़ा गोबर खाद  .




5 -6 साल से लगातर और बार बार केला का पौधा बढ़ाते जाते है और घर का केला खाते जाते है।

रविवार, 14 जनवरी 2018

SRI JAGANNATH MNDIR

                                 श्री जगन्नाथ मंदिर

             बहुत दिनों से पूरी जाने का मन था ,घूमना का घूमना और भगवान का दर्शन भी कर लेते। पर संजोग ही नहीं बैठ रहा था। वैसे तो पूरी बहुत बार जाना हुआ है। शायद इसलिए प्रोग्राम नहीं बन पा रहा था। फिर सोचे पूरी नहीं तो क्या रायपुर में इतना बड़ा सुन्दर जगन्नाथ जी का मंदिर है वहीं फिर से चलते है। पर बोला जाता है की जब तक भगवान का बुलावा नहीं होता है तब तक दर्शन भी नहीं होता है। रायपुर का भी मंदिर जाने का सोचते हुए महीना बीत गया तब जाकर कल अचानक प्रोग्राम बना और जा पाए।
      त्योहार वार में मंदिर जाने पर भीड़ के कारन दर्शन भी ठीक से नहीं हो पाता है। कल सादा दिन था अच्छे से पूरा मंदिर घूम -घूम कर दर्शन कर लिये। मन प्रसन हो गया।




























सोमवार, 8 जनवरी 2018

MARY GOLD FLOWER

                       गेंदा फूल का बहार

             गेंदा का फूल बहू उपयोगी है। जहाँ दो महीना गार्डन का शोभा बढ़ाता है ,वहीं पूजा में हो या सजावट करना हो फूल तो काम में लिया ही जाता है इसके आलावा औषधीय गुणों से भरपूर है। फूल पत्ता सभी दवाई बनाने के काम आता है।
     वैसे गेंदा का मूल स्थान मेक्सिको है वहीं से पुरे दुनिया में फैला है। आज कल हम जो गेंदा लगाते हैं वह अफ्रीकन और फ्रेंच गेंदा ही होता है। वैसे पुरे साल इसकी खेती होती है और फूल बाजार में उचित मूल्य में बिकता है। बरसात में बीज लगा कर फिर नवंबर में पौधा तैयार हो जाता है और दिसंबर -जनवरी में बाग -बगीचे में गेंदा का बहार देखते ही बनता है।हर क्लाइमेट इसे सूट करता है इसलिए पुरे देश -प्रदेश में वहाँ के मौसम अनुसार लगाया जाता हैऔर फूल का आनंद लिया जाता है , बस महीना अलग हो ता है.
  अब तो संक्रांत के बाद रायपुर में जहाँ गर्मी शुरू हुआ की फूल सुखना शुरू और बीज रखो अगले साल का इंतजार करो। अभी तो फूल का आनंद ले रहे है।






  

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

CHRYSANTHEMUM

                         बगिया में सेवंती की बहार

                 थंड के मौसम में बहुत प्रकार की रंग -बिरंगी फूलों की बहार बगीचे में होती है। इस बार सेवंती की बहार गार्डन मेंहै।   छोटी बड़ी रंग बिरंगी सेवंती का फूल क्यारी का शोभा बड़ा रही है। आखिर पाँच महीने का मेहनत रंग लाया। दिसम्बर और जनवरी में इसकी छटा देखते ही बनती फरवरी से जून तक रख कर भूल जाओ ,फिर जैसे ही जुलाई में बरसात शुरू हुआ की फिर से कटाई -छटाई कर के पौधा रोपना पड़ता है। पौधा को रोपना फिर सही खाद ,दवाई डालना उसके बाद उचित जगह में फिर से रोपना तब जाकर दो महीना फूल का मजा मिलता है।एक -एक पौधे में सैकड़ों फूल खिलता है। जब फूल सूख जाता है तो फिर ऊपर से कटींग कर कहीं उचित जगह में पाँच महीने के लिये संभाल कर रखना और उसका देख भाल करते रहना पड़ता है।
      वैसे सेवंती का मूल स्थान चीन है वहीं से एशिया और यरोप में फैला है। ग्रीक भाषा में क्रिसैंथेमम का अर्थ स्वर्ण पुष्प होता है। सेवंती के पौधे में भी कम पानी और ज्यादा धूप हो तब ही ज्यादा फूल खिलता है। शरद रितु में बगिया में बहार ला देता है।





बुधवार, 3 जनवरी 2018

NEW YEAR

                                                                       नव वर्ष

                     नया साल तो हर साल आता है, खुब धूम धाम से लोग बाग मनाते है।  हर साल होटल हो या क्लब हो या मॉल घुमो फिरो खाओ पिओ मजे करो और नए साल का स्वागत करो पुराने साल को विदा करो। पर इस साल मेरे लिये बहुत ही खास था।
       अचानक टाटा का प्रोग्राम बन गया। माँ बाबा का आशीर्वाद मिला इससे अच्छा गिफ्ट हमारे लिये क्या हो सकता है। इस उम्र में माँ -बाबा का हाँथ हमारे सर में हो और क्या चाहिए।खूब घूमे फिरे माँ के साथ समय बिताये। और यादगार पल हमेशा के लिये अपने दिल में  संजो कर वापस आगये।