शनिवार, 28 नवंबर 2015

LAND OF PYRAMIDS (EGYPT)

SAT,28 NOV
                                                         पिरामिड के देश में 
            मिश्र की राजधानी कायरो नील नदी  के तट पर है। मिडिल ईस्ट का सबसे बड़ा और अफ्रीका का दूसरे नम्बर का सिटी है। स्कूल में नील नदी और पिरामिड के विषय में पढ़ाया जाता था, पढ़ लिये हो गया।पर कभी सोचे नहीं थे की मिश्र जायेंगे और वहाँ नील नदी की सैर करेंगे ,पिरामिड देखेंगे और मम्मी देखेगें। पर 1987 में इजिप्ट की राजधानी काइरो जाने का मौका मिल ही गया। 
   पिरामिड फराओं ,राजा  और रानीयों का मक़बरा है। 2630 bc में बनना शुरू हुआ था। पिरामिड बाहर से देख सकते हैं और रात को लाईट और म्यूजिक द्वारा पिरामिड से जुड़ा कहानी बताया जाता है जो की देख कर अच्छा लगता है और डिटेल में सब समझ आता है। वैसे म्यूजियम में मम्मी देखने मिला। 
  रात को नील नदी की सैर नौका (क्रूज )से भी करने मिला। शाम से देर रात तक सैर कराते है पूरा शहर रौशनी में डूबा रहता है और साथ ही नाच ,गाना -बजाना ,खाना -पीना भी चलता रहता  है। 
   इजिप्ट के  रेस्टुरेन्ट में एक मजेदार बात देखने मिला कोई भी साग -सब्जी मांगों तो साथ में पाँच रोटी फ्री ओभी प्लेट में नहीं डायरेक्ट टेबल में जिसे पीटा ब्रेड वहाँ बोलते हैं मोटा ,सॉफ्ट और टेस्टी 1 -2 से ज्यादा खा ही नहीं  सकेंगे। वहाँ का हुक्का 






 बार भी बड़ा अच्छा हमारे यहाँ जैसे टी शॉप वैसे ही हुक्का शॉप आओ चाय का चुस्की लो हुक्का पीयो और जाओ।
  इजिप्ट में सड़क का नाम भी रामसी एक ,रामसी दो पता नहीं रामजी के नाम पर क्यों था।रोड भी साफ सुन्दर चौड़ा  .पूरा शहर ही अच्छा। पर एक बात समझ नहीं आया की चारो तरफ बड़ा ऊँचा बिल्डिंग था पर सब के छत में टुटा सामान ,कूड़ा कचरा वहीं डम्प किया हुआ था।पर देश अच्छा ,खान-पान ,रहन -सहन  ,लोगों का बात -व्यवहार सब ही बहुत अच्छा था।


  

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

HINDUSTAN KA DIL

WED,25 NOV
                                           हिन्दुस्तान का दिल 
                 मध्य्प्रदेश टूरिजम  का नारा हिन्दुस्तान का दिल देखो। एकदम सही नारा है। हमलोग तीन परिवार हमेशा जब भी मौका मिलता है तो कही न कहीं घूमने निकल पड़ते है। कभी तीनो न सही दो भी घूमने जाते है। इसबार दिवाली के बाद हम दो परिवार मध्य्प्रदेश घूमने निकले। रायपुर से भोपाल तक रेल और फिर भोपाल से रोड से सभी दर्शनीय स्थल घूमकर फिर भोपाल से रेल से वापसी करना था। एक हफ्ता का प्रोग्राम था। सुने थे म प का रोड अच्छा नहीं है। पर जब हमारा सफर शुरु हुआ तो दिल खुश हो गया। रोड ,ट्रैफिक इंतजाम साफ सफाई ,रोड के दोनों तरफ ढाबा सब कुछ बहुत ही अच्छाथा। 
    हमलोग भोपाल से इंदौर होते हुये आगे बढ़ते गए ,मांडू ,ओम्कारेश्वर ,महेश्वर ,महाकालेश्वर साँची ,भोजपुर और भोपाल। सब जगह खूब घूमे मंदिर दर्शन किये ,वन विहार ,नौकाविहार ,रोडसाइड खाना पीना मजा करना सब हुआ। 
    साँची में अशोक द्वारा 2000 साल पहले साँची स्तूप बनवाया गया था उसे देख कर बड़ा अच्छा लगा। स्तूप का गेट काष्ठ का नकाशीदार था पर बाद मेंस्टोन का बना। बुद्ध विहार ,बुद्ध स्तूप ,बुद्ध प्रतिमा और वहाँ का महौल बहुत अच्छा था।
  संदीपनी आश्रम में साढ़े 6000 साल पहले का शिव लिंग देखने मिला ,भोजपुर में 1000 साल का शिव लिंग देखने मिला। महाकालेश्वर में भष्म आरती देखे। दो -दो ज्योतिर्लिंग का दर्शन हुआ। सब मिला कर हर बार के सामान ये टूर भी बहुत अच्छा रहा। 










  

सोमवार, 23 नवंबर 2015

BHOJPUR

TUE,24 NOV
                                       
                                                                       भोजपुर 
                    धार के परमार राजा भोज ने 11 सेंचुरी में भोजपुर बनाया और बसाया था। राजा भोज के नाम से ही भोजपुर पड़ा था और बाद में  भोपाल हुआ।बचपन से सुनते थे कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली। पर उस समय ध्यान नहीं दिए बस लगा ऎसे ही कोई कहावत होगा। पर भोजपुर का खँडहर देख कर समझ आया की हजार साल पुराना खँडहर जब इतना भव्य है तो उस समय राजा भोज का क्या बात होगा। 
      आजकल सुननेमें आता है नदियों को जोड़ना  चाहिए पर ये काम तो हजार साल पहले राजा भोज ने कर दिखाया था। 9 नदियों को जोड़  कर तालाब और नहर बनवाया था। जिसका उधारण भोपाल का ताल है। भोपाल में जो बड़ा ताल और दूसरा ताल तलईया है सब उसी कल का देन है। अच्छा 

 है अब भोपाल ताल का नाम भोज ताल और ताल के किनारे राजा का मूर्ती बनवा दिया गया है। ताल इतना बड़ा और विशाल है शीहोर और विदिशा तक बहती थी।
        भोजपुर में एक और चीज बहुत प्रभावित किया यहाँ का शिव मंदिर जो की राजा भोज के अकाल मृत्यु के कारन बन नहीं पाया। जो की विश्व का सबसे बड़ा और पुराना चार मंजिला मंदिर होता। मंदिर में 26 फ़ीट ऊँचा शिव लिंग है। हजार साल पहले बनना शुरू हुआ  था। मंदिर के चारों और पत्थर और चटानो में तरह -तरह के अक्रिती खूदा हुआ है। पूरा मंदिर का ड्रॉईंग और नक्शा ,प्लान सब चाटनो में खुदा है और सरकार के तरफ से सुरक्छित रखा गया है। यदि राजा जी का अकाल मृत्यु नहीं हुआ होता तो भव्य मंदिर बनता और पूजा हो पाता। येसब भोपाल एरिया में देख कर राजा का रईसी और सोच का पता चलता है।  कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली सच हो जाता।भोजपुर जाना सफल हुआ नहीं तो कुछ पता ही नहीं चलता।   । 

UJJAIN (HOLY MOKSHPURI )

MON,23 NOV
                                                               उज्जैन
      मध्यप्रदेश के क्षिप्रा नदी  के तट पर उज्जैन नगर बसा है। जिसे इंद्रपुर ,अमरावती या अवंती भी बोला जाता था। सम्राट विक्रमादित्य का यहाँ राजधानी था ,और कवि कालीदास ने अपनी कविता मेघदूत की रचना यहीं करी थी। हर 12 साल में यहाँ कुम्भ मेला भी लगता है। अगले साल अप्रैल -मई में एक मास कुम्भ मेला क्षिप्रा तट पर लगने वाला है जिसकी तैयारी जोरों से चल रही है। 

                                                             महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग 
  क्षिप्रा नदी के तट पर दक्षिण मुखी शिव लिंग वाले महाकालेश्वर जी का मन्दिर है। दक्षिण मुखी होने के कारन तांत्रिक महत्त्व है इसलिए सुबह 4 से 6 बजे भस्म आरती होता है। पहले तो श्मशान से भस्म लाकर आरती होता था पर अब कंडे के राख से भस्म आरती होता है ,और उसके बाद ही दर्शन के लिये पट खोला जाता है। बड़े -बड़े टीवी स्क्रीन में आरती का अदभुत नजारा का दर्शन कर सकते हैं। हमलोग भी सुबह 4 बजे से 6 बजे वाली आरती का दर्शन लाभ किये उसके बाद मंदिर के अंदर जा कर महाकालेश्वर जी पर दूध से अभिषेक करे। 
           उज्जैन में गणेश जी ,नवग्रह ,मंगल ग्रह का मंदिर के आलावा यहाँ संदीपनी जी का आश्रम जहाँ कृष्ण ,बलराम और सुदामा ने गुरु जी से पढाई की थी वह भी देखने योग्य है। उस आश्रम में साढ़े 6 हजार साल पुराना शिव लिंग संदीपनी जी द्वारा स्थापित है जिसमे अभी भी  पूजा होता है।
                                                             ओम्कारेश्वर  ज्योतिर्लिंग 
                 उज्जैन आने पर ओम्कारेश्वर भी जाते है जो की ओम के आकर के नर्मदा नदी का तट पर है और ये भी 12 में से एक ज्योतिर्लिंग है।शिवलिंग के नीचे से  नर्मदा नदी बहती रहती है। नाव से उसपार जा कर दर्शन करते है। 
                                                         माहेश्वर 
       ओम्कारेश्वर से कुछ दूरी में ही माहेश्वर है जिसे महिष्मती भी कहते है। यहाँ कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है ,पर नर्मदा नदी के किनारे होल्कर रानी अहिल्या बाई का महल है जो की अब संग्राहलय है। अहिल्या बाई शिव भक्त थी और सिर्फ अपने प्रजा का ही सोचती थी। उनका शिव मन्दिर भी है जिसमे अभी भी पूजा होता है। माहेश्वर में बुनकरों द्वारा महेशवरी साड़ी बनता है और मिलता है।





                     

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

MANDU

FRI,20 NOV
                                                                            माण्डू 
                                            रानी रूपमती और बाजबहादुर की प्रेम नगरी 
              मालवा के  विन्ध्य पर्वतमाला में बसा माण्डू दुर्ग परमार राजाओं और सुल्तानों के समय से है। मांडू का महल 45 किलोमीटर लम्बी दीवार से घिरा हुआ है। 16 वीं सदी में बाजबहादुर अपनी प्रेमिका रानी रूपमती के लिये बनवाया था। दोनों कला और संगीत प्रेमी थे। रूपमती का नियम था की जब तक नर्मदा नदी का दर्शन नहीं कर लेती तब तक अन्न -जल ग्रहण नहीं करती थी ,इसे ध्यान में रख कार  महल का निर्माण किया गया था। रूपमती अपने महल के छत से नर्मदा का दर्शन करती थी। एक बार जंग में बाजबहादुर के मौत हो जाने के बाद महल में अँगूठी के हीरा खा कर रूपमती ने अपने प्राण त्याग दिया था।
     वैसे तो मांडू रूपमती और बाजबहादुर के प्रेम कहानी के लिये जाना जाता है। पर अलग -अलग समय में राजाओं और सुल्तानों द्वारा बहुत ही सुन्दर -सुन्दर महल ,बाग मस्जिद वगैरा बनवाया गया जो आज भी देखने योग्य है। जिसमें जहाज महल ,हिण्डोला महल , मस्जिद ,नहर ,स्नानागार वगैरा है। होशंगशाह का मक़बरा जो की उन्होंने  अपने बीबी ,बच्चों और अपना मक़बरा संगमरमर से बनवाया था। उसकी मीनार और गुम्बद बहुत ही नायब  दर्जे का बना है जिसे देख कर शाहजहाँ ने वास्तुकारों को भेज कर उनकी देख रेख में आगरा का ताजमहल बनवाया। 




बुधवार, 18 नवंबर 2015

KHAJRANA GANESH TEMPLE IN INDORE

THU,19 NOV
                                               खजराना गणेश मंदिर इंदौर 
                रानी अहिल्या बाई होलकर द्वारा 1875 में खजराना इंदौर में गणेश मंदिर बनवाया गया था। गणेश जी का प्रतिमा 8 मीटर ऊँचा है। चूना पत्थर ,ब्रिक्स और गुड मिला कर बना था। औरंगजेब के डरसे कुआँ में बहुत काल तक छुपाया गया था। रानी अहिल्या बाई के समय मंदिर बना कर स्थापित किया गया। 
                 बहुत ही भव्य और विशाल अति सुन्दर मंदिर है ,यहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामना केलिए आते है और दर्शन कर के धन्य होते है। 
  इंदौर  पहले छोटा सा गावँ हुआ करता था। होल्कर पीरियड मे रानी द्वारा इसे शहर का रूप दिया गया। जबतक इंदौर नहीं गए थे तब सुनते थे की यह मध्य प्रदेश का मिनी बॉम्बे है। पर जब वहां गए तो देखते ही रहगये। रोड हो या चौक चौराहा एक दम ब्यवस्थित। साफ सुथरा सब जगह सुन्दर। रोड इतना चौड़ा ,बस के लिये अलग लैन। सब देख कर बहुत ही अच्छा लगा। जितना सुने थे उससे कई गुना ज्यादा अच्छादिखा ,गणेश मंदिर और पुरा शहर देख कर ,घूमकर वहाँ कई तरह का स्पेशल पकवान भी खाने मिला सब मिला कर बहुत ही अच्छा लगा। 





। 

बुधवार, 11 नवंबर 2015

MODULAR KITCHEN

THU,12 NOV                                                  घर आया आधुनिक रसोई 
                       इस दीवाली में आखिर मॉडलर किचेन हो ही गया। अब मॉडर्न युग है सब कुछ मॉडर्न ,इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक का जमाना तो जमाना के साथ चलना ही पड़ता है और जरूरी भी है। 2 -3 साल से छोटी बहु को बड़ा मन था अपने घर का भी किचेन मॉडलर करवाने का पर संजोग ही नहीं बैठता था अब जाकर इस दीवाली में बनकर तैयार हुआ। 
   हमलोग अपनी माँ ,नानी ,दादी के ज़माने के रसोईघर का भी मजा ले चुके हैं। गोबर लीपा लकड़ी और कोयला चूल्हा का बटलोही में बना दाल -चावल हो या माटी के हांडी का दूध दही ,अंगारों में सिका गरमा गरम रोटी ,जमीन में लाईन से पाटे में बैठ कर कांसे फूल के थाली ,कटोरी में खाना खाये हैं। 
  अब हमारे नाती -पोतों के ज़माने में झटपट 2 मिनिट मैगी ,पीजा ,बर्गर हो या ओवन में बना बाटी और बैगन का भरता।कोई झंझट नहीं न कंडा सुलगाने का चकर न धुआं। बस मजे ही  मजे। हमलोग खुश नशीब हैं इस युग  में पैदा होकर हर पीढ़ी का अनुभव मिला पर हमारे नाती -पोता तो  सोचेंगे कंडा और कोयला में कैसे रसोई बनता था और ओभी जमीन में बैठ कर  बनाना और खाना।
     घर में एक दो जन शौकीन होना बड़ा ही जरूरी है ,तो सबों को नया -नया ज़माने के हिसाब से सब चीज देखने और मजा करने मिल ही जाता है। बस संजोग होना चहिये तब  इच्छाभी  पूरा हो ही जाता है।



  

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

MY GARDEN

TUE,10 NOV                    

                                                                    बगीचा हमारा 
             मुझे दो ही शौक है ,एक पढ़ना -लिखना और दूसरा बागवानी। वैसे तो हमारा गार्डन बहुत बड़ा और सुन्दर है। पुराना होने के कारन फलदार पेड़ भी है ,सुंदर रंग -बिरंगे फूलों की क्यारी भी है। एक लिली पौंड भी है जिसमे नील कमल ,रंगबिरंगी मछलियाँ फवारा भी है।  रोज -रोज देखकर लगता है की थोड़ा कुछ बदलाव करना चाहिए। 
            संजोग ही नहीं हो रहा था। कभी मौसम ,कभी मूड ,कभी साधन। इस बार दीवाली पर ऐसा संजोग हुआ घर में रंगरोगन भी हुआ ,किचेन भी मॉडलर हो गया और गार्डन भी सज गया। सुबह शाम गार्डन में घूमना ,चिड़ियों को देखना बड़ा अच्छा लगता है।  फलदार पेड़ बड़ा होने के कारन सुबह -सुबह तोता भी खुब आती है और अमरुद खाती है। कबूतर अलग घुमती रहती है।किंगफिशर पौंड से मछली लेजाती है।
      दिन में जब मौका मिला  थोड़ा घुम ही लेते है। फुल ,फल ,पक्छी सब देख कर मन भी प्रसन हो जाता है और टाईम भी पास हो जाता है.बस हमारे जिनी और जॉनी से थोड़ा डर लगता है ज्यादा ऊधम नहीं करे बस नही तो सारा मेहनत बर्वाद।