मंगलवार, 17 सितंबर 2013

COONOOR DIARY

                                       कुन्नूर    डायरी 
        
                          देखते ही देखते कुन्नूर में 4 -महीना हो गया ,पता ही नहीं चला। अब वापस जाने की घड़ी आगई है। अब आयें हैं तो जाना तो पड़ेगा ही। कुन्नूर से कितनी ही खट्टी -मीठी यादें लेकर जा रहें हैं।
                             बच्चों के साथ विंटेज कार रैली देखने मिला। राहुल का  क्लब और स्कूल का पियानो का प्रोग्राम देखना हुआ। हम सब ने मिलकर राखी ,जन्माष्टमी ,गणेश पूजा और बर्थडे अच्छी तरह मनायें। सोचें थे नवरात्री तक रुक कर आयुत पूजा,डांडिया और अर्वन्कादु का दुर्गापूजा मना कर दुर्गा पूजा का खीचड़ी का भोग खाकर वापस रायपुर जायेंगे। पर अब वापस जाना हो रहा है। 
                                  कुन्नूर में हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग फादर रहते हैं ,उनके पास एक बिल्ली का जोड़ा है। बिल्ली को बच्चा होने वाला था। रोज सुबह जैसे ही हमारा आंगन का दरवाजा खुलता बिल्ली बैठी मिलती। जब तक उसे दूध ब्रेड नहीं देते तबतक नहीं हटती। खाकर पैर में लोटपोट करती फिर आराम से सोती। हम सबों को बच्चे का इंतजार था ,आखिर वह घड़ी आही गई। बिल्ली को बच्चा हो गया। 
                                    कुन्नूर में इस बार बंदरों का भी उत्पात देखने मिला।इस साल पता नहीं कहाँ से बहुत ज्यादा ही बंदरो का झूण्ड आगया है। कभी टंकी का डक्कन खोल कर भाग जाता है ,कभी नल खोल देता है। मलाबार गिलहरी भी देखने मिला जो की आम गिलहरी से बहुत बड़ी बंदरो जैसी होती है ,पर वह परेशान नहीं करती है। अपने परिवार के साथ बड़े -बड़े पेड़ों में कुदती -फांदती रहती है। बड़ा मजा आता है। तरह -तरह की सुंदर -सुंदर रंग बिरंगी बर्ड भी दिखती है। जंगली फल फूल खाती रहती है। 
रोहन के साथ बागबानी का भी मजा लियें।कोचीन भी गये अपनी बचपन की फेब्रेट नाएर ऑंटी से भी मिले। वह भी बहुत खुस हुई। इंडिया का सब से बड़ा लूलू मॉल देखें।                                                                                                 हमलोग ऊंटी  भी बच्चों के साथ घूमें वहां बोटिंग कियें ,टॉय ट्रेन में घूमें  खूब मजा कियें। अब तो बस जाने की तैयारी शुरु हो गया है ,अब अगले साल फिर आना होगा।

                     
                       BYE  BYE  GOOD  BYE COONOOR  

                                        FLY   RAIPUR

जन्माष्टमी 

बोटिंग 
पियानो 

कोचीन ट्रेन 

पड़ोसी की बिल्ली 

बंदरो का उत्पात 


मलाबार गिलहरी 


बाईसन 
ऊटी 
                                                             

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

CHAITANYA MAHAPRABHU

                                    चैतन्य महाप्रभु  
              
                                  हर  हिन्दू  की दिली इक्छा होती है की एक बार वह पुरी जा कर भगवान जग्गरनाथ का दर्शन जरुर करे। वैसे तो पुरी रथयात्रा के लिये प्रसिद्ध है। परन्तु लोग अपनी सुविधा अनुसार पुरी जातें हैं और भगवान का दर्शन करते हैं ,सागर का मजा लेते हैं ,जिस के पास ज्यादा समय है वह भुवनेस्वर और साखी गोपाल भी जाते हैं। भुवनेस्वर में शंकर जी का बहुत ही पुराना लिंगराज का मंदिर है। कोणार्क में प्राचीन सूर्य मंदिर है। साखीगोपाल तो गवाह है की यहाँ भगवान स्वंय आये थे। पुरी में अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ उनकी मुर्ती स्थापित है। हर साल रथ यात्रा में भगवान अपनी मासीमाँ के घर स्वस्थ लाभ के लिये जाते हैं। दूज से एकादशी तक रहकर वापस मंदिर आते हैं।  
                                           पुरी आने पर बहुत लोग चिल्का लेख भी जाते हैं। चिल्का खारे पानी का झील है ,यहाँ बहुत सारी नदी आकर मिली है। झील में 3 -4 घंटे बोटिंग कर सकते हैं। यहाँ डोल्फीन। मछली और तरह -तरह की पक्षी देख सकते हैं। 
                                        पुरी की सैर यहीं समाप्त नहीं होती है। लोगों को पता नहीं है की पुरी में चैतन्य महाप्रभु का बहुत बड़ा आश्रम है। हम भी 3 -4 बार पुरी गयें पर पिछले साल ही आश्रम का पता चला। स्कूल में ऊनके बारे में पड़े थे। चैतन्य महाप्रभु का जन्म बंगाल के नवदीप में संवत 1542 फाल्गुन पुर्णीमा में हुआ। ८-9 भाई बहनों में सबसे छोटे थे ज्योतिषी ने कुण्डली देख कर पहले ही बतादीया था की बालक महापुरुष होगा। पिता जगर्नाथ और माता शची देवी थी। प्यार का नाम निमाई था ,गोअरांग नाम से भी जाने जाते थे। 
                            बचपन से ही कृष्ण भक्त थे। दिन भर कृष्ण लीला ,कृष्ण भजन में लगे रहते थे।गया जी में संन्यासी इश्वरपुरी से कृष्ण दीक्छा ली। वृन्दा वन में जाकर कृष्ण के ध्यान में सदा रहते थे। अपने सुंदर बाल कटवाकर सन्यासी बन गए। सन्यासी बनने के बाद पुरी में अपना समय जगर्नाथ जी के मंदिर में बिताने लगे। तब निमाई से चैतन्य कहलाने लगे। 24 साल की उम्र में सन्यास लिये और 48 साल तक पुरी में भगवान की सेवा में अपना समय बिताये। 48 साल में रथयात्रा के दिन जीवन लीला समाप्त हुआ। पुरी का आश्रम गौर आश्रम के नाम से जाना जाता है। जोकी बहुत ही बड़ा है। आश्रम में चारों ओर विष्णु जी का अलग -अलग रूप और लीला का मुर्ती है। जो बहुत ही सुंदर दिखता है। मन को छूलेता है।हम खुस किस्मत हैं जो हमें इतना अच्छा  संत का आश्रम जाने और देखने का अवसर मिला।
आश्रम 
चैतन्य महाप्रभु 
जगार्नाथ जी 
रासलीला 
पुरी मंदिर 
पुरी सुर्योदय 
चिल्का  लेख 
          

सोमवार, 26 अगस्त 2013

JUNGLE MAIN MANGALE

                                       जंगल में मंगल 
कुन्नूर चारो तरफ जंगल से घिरा है। यहाँ तरह -तरह के जंगली जानवर घुमते रहते है। पर सबों के घर में बहुत ही सुंदर गार्डन होता है। हमारे घर में भी छोटा सा नया गार्डन बनाया गया है। 
                                       हमारे बच्चों को घर के गार्डन में ही पिकनिक मनाने का मन हो गया। रविवार के दिन नाश्ता पार्टी करने का प्रोग्राम बना। कुन्नूर का मॉसम का कोई ठिकाना नहीं रहता है ,कभी खुब धूप हो जाता है तो कभी अचानक बारीस हो जाता है। कभी खूब बंदरों का झुण्ड आ जाता है। भगवान का शुक्रिया की संडे सुबह मॉसम बहुत ही अच्छा था।  
                                   बच्चों ने एक शर्त रख दी इस पार्टी का सारा इंतजाम हम करेंगे ,बड़ों को सिर्फ आकर बैठना होगा और आर्डर देना होगा। हमलोग को सुबहा 9 -10 का समय दिया। दोनों बच्चे टेबल ,चेयर ,पानी ,प्लेट और नाश्ता का सामान लगाकर रखा। हमलोगों ने पार्टी की। बच्चों ने बहुत मजा किया। मॉसम ने भी साथ दिया। पार्टी जैसे समाप्त हुआ वैसे ही बारिश भी हुआ और बंदरों का झुण्ड भी अगया। हमलोगों ने सन्डे अच्छी तरह मनाया।

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

HAMARI PYARE KAKI

                                काकी को विनम्र श्रधान्जली

                                   हमारी प्यारी छोटी काकी 
हम सब की प्यारी हमारी छोटी काकी थी। हम सब बच्चों को बहुत मानती थी। पर उनमे एक बुराई थी वह अपने हेल्थ का ध्यान नहीं रखती थी। उनको शुगर की बीमारी हो गई थी। जब बीमारी ज्यादा बड गया तब वह वेळुर इलाज कराने आयी ,पर तब तक बहुत देर हो चुका था डाक्टरों ने जबाब देदीया। हम उस समय कुन्नूर में थे ,उनसे हमारा फ़ोन में हमेशा बात होता था ,हम उनको बोले थे की बेलूर से टाटा वापस जाते समय कुन्नूर हम से मिलकर जाने। 
                             हमारी काकी का हिम्मत मानना पड़ेगा इतना बीमारी के हालत में भी हम से मिलने कुन्नूर आयी हमारे साथ घूमी ,हम सबों को बड़ा अच्छा लगा। काकी से वही अन्तिम भेंट थी। उसके बाद टाटा पहुँचते तक काफी हालत ख़राब हो गई। उनको अस्पताल लेजाते तक वो बेहोस हो गयी। हफ्ते तक इलाज चला पर वह हम सबो को छोड़ कर इस  दुनिया से चलीगयी। इतनी कम उम्र में उनका अंत हो गया।    
                      देखते ही देखते साल बीत गया लगता है कल की ही बात हो 2012 सितम्बर में कुन्नूर आयी थी और 13 ओक्टुबर 2012 में उनका स्वर्गवास हो गया। भगवान उनकी आत्मा को शांती प्रदान करे। आज काकी बहुत याद आरही थी। अब टाटा जाने से घर शुना शुना लगता है सब लोग हैं पर लगता है की अब काकी आकर बोलेगी बैठो ना लिली लो ना खाओना और लो। घर में सब कोई पुरा मान  सम्मान देते हैं फिर भी काकी की कमी बहुत खलती है।  मेरी प्यारी काकी। 
काकी को श्रदांजली 

कुन्नूर मेरे बच्चों के साथ 
काकी का परिवार बाराद्वारी 

बुधवार, 21 अगस्त 2013

RAKSHA BANDHAN

                                  राखी  का त्यौहार 
आज राखी है। हमको अपना छोटा भाई बहुत याद आरहा है। बहुत ही जल्द इस दुनिया से हम सब को छोड़ कर चला गया। घर में सब का प्यारा था।      भगवान ऊस  की आत्मा को शान्ती दे।
                                  भाईन सही भतीजा को भगवान सही सलामत रखे ,खूब आगे बडे ,खूब नाम कमाये। इस बार राखी में वह भी नही है। हम अपने बेटे और पोते को ही राखी बांधे। हमारा पोता को राखी बंधवाना बहुत पसन्द है।   ना तो मेरे बेटे की बहन है और ऩा तो मेरा पोता की बहन है हम ही दोनो को ही राखी बांधते हैं। और राखी मना लेते हैं। रायपुर में रहने पर बहुत लोग परिवार के रिश्तदार आजाते हैं तो अच्छा लगता है।
मेरा बेटा 
मेरा पोता  
मेरा भाई किशोर

शनिवार, 17 अगस्त 2013

MY CHILDHOOD

                               मेरा बचपन  (   5.8.2013.)
आज  मेरा बर्थडे है। देखते ही देखते हम इतने बड़े होगए ,किसी की पत्नी ,माँ नानी दादी ,सास सब बन गये। लेकिन आज भी अपना बचपन नहीं भुला पायें बचपन बचपन ही होता है। 
                    आज बचपन  की सारी बातें एक -एक कर याद आरहा है। 
मेरे पिता जी चार भाई थे ,घर में हम  सब की लाडली थे।लडकी में हम सब से बड़े थी।  मेरा बचपन बहुत ही लाड प्यार में बीता। दादा -दादी ,माँ-बाबा ,चाचा -चाची सब के गोद में खेलते हुए बीता। 
                      कोई  प्यार से लिली पुकारता तो कोई विक्टोरिया। दादी लीलू बेटा कहती। मेरी माँ मेरा नाम सुनीता रखी। हमारे दादा बच्चों के जन्म दिन में एक बड़ा सा रस्गुला लाते थे ,हम लोग उसे ही काटते थे। तब केक काटने का रिबाज नहीं था। आज भी वह रस्गुला याद आता है। 
          बचपन के दिन बहुत मजे में गुजरा ,आज जन्म दिन के दिन पुरानी बातें बार -बार याद आरहा है। माँ के हाथ का स्वादिस्ट भोजन ,उनका प्यार ,दुलार। घर में काका चाचा सब के बच्चों को मिला कर हम पाँच भाई और बहन थे। हमें पता ही नहीं था की हम सग्गे नहीं चचेरे हैं। दादा दादी के गोदी में हम पांचों  का लालन -पालन हुआ। बचपन में हम सबों को दादा के ऑफिस से आने का इंतजार रहता था ,दादा आते समय हमलोगों के लिए रसमलाई लाते थे जब हमारा रिजल्ट निकलता था उस दिन शाम को एक हंडिया गोरंगो मिष्टान से रसगुला लेकर आते थे। हमारे बाबा हमेशा सिंघाड़ा और जलेबी लाते थे। 
              आज हमारा भरा पूरा परिवार है नाम है धन -दॉलत ,मान -सम्मान है। बहु बेटे ,पोते सबों ने मिल कर मेरा जन्म दिन मनाया।  
                     हम बहुत किस्मत वाले हैं ,आज बच्चों ने कार्ड फूल दिया ,बहु ने मेरी पसंद का केक बनाया ,बेटे ने चोकलेट दिया मजेंमे मेरा जन्म दिन मनाया गया।फिर भी माँ के हाथ का पकबान और बचपन के ओ दिन बार बार याद आ रहा है।  
                मेरे दादा 1955 में लन्दन से हमको कार्ड भेजे थे हम अभी तक सम्भाल क़र  रखे हैं। लन्दन से चाभी वाला कैट लायें थे अभी तक मेरे पास है
। दादा दादी के गोद में 
माँ 
बाबा 
दादा  दादी 
Hum
Rita,Bhaiya & Hum

Maa


With Kishore

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

KEDARNATH TEMPLE AFTER & BEFORE

                               चारधाम यात्रा 
             कुछ   दिनों  से लगातार टीवी में दुखान्त समाचार उत्तराखंड के हादसा के बारे में आरहा है .समाचार देख -देख कर बहुत दुःख हो रहा था ,मन ख़राब हो गया ,दिल दहल गया ,ऐसा नहीं होना चाहिये पर हो गया .हजारों लोगों की जान चली गयी ,हजारों लोग लापता हो गये ,हजारों लोगों का पता ही नहीं चल रहा है .ये कैसा आपदा आगया .सारा उत्तराखंड जल्मंग हो गया .केदारनाथ में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ .केदारनाथ मंदिर छोड़ कर चारो ओर तबाही -तबाही .
             आज से 7 साल पहले हमलोग तीन परिवार चारधाम यात्रा पर गये थे .हमसब कितने खुस किस्मत थे की आराम से हमारा यात्रा हो गया .यात्रा तो कठीन था पर हमारा ग्रुप एक दूसरे का हिम्मत बंधाता था .
                  चारधाम यात्रा हरिद्वार से यमनोत्री होते हुए शुरू होता है ,फिर गंगोत्री ,उसके बाद केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ जाते है उसके बाद 
ऋषी केश  होते हुए हरिद्वार में यात्रा समाप्त होता है . भगवन का धन्यवाद की हमलोग चारधाम यात्रा कुशल पूर्वक कर पाए .
                हजारो लोग जिनकी केदारनाथ में अकाल मृत्यु हो गई भगवान उनकी आत्मा को शांती प्रदान करे .




                                            

सोमवार, 17 जून 2013

MERE ANMOL RATAN

        
Rahul

Rahul With Prize

Rohan

Rohan With Art Work
Rahul n Rohan
           मेरे  तीन  अनमोल  रतन हैं 
मेरे तीनो पोता मेरे  लिए अनमोल हैं .
तीनो मेरा दोस्त भी  है .
राहुल तो नटखट है ,पर राघव और रोहन अभी छोटे हैं उनके साथ खेलने में मजा आता है .
रोहन के साथ ऊनो खेलने में मजा आता है .
राघव के साथ ओथेलो ,ऊनो और लुड़ो खेलने में मजा आता है .बच्चों के छुटीयों का इंतजार रहता है .
Rahul 



Raghav
Rohan
Raghav