पत्थरचट्टा
पत्थरचट्टा का पौधा पाषाणभेद ,अजूबा पत्ती ,खटुआ इत्यादी नमो से जाना जाता है।ये सदाबहार पौधा है जो की पूरे भारत में पाया जाता है। वैसे मेडागास्कर और ट्रॉपिकल अफ्रीका इसका मूल स्थान है। पौधा 3-4 फ़ीट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियां बड़ी -बड़ी अंडाकार आकर की लटकी हुई कान जैसी होती है। पौधा के अग्र भाग में लम्बी डंडी निकलती है और उसमे गुच्छे में अंगूर जैसा फूल उल्टा लटकता है।शुरू में कच्चे अंगूर जैसा छोटा और हरा फूल होता है। बाद में जब पूर्ण विकसीत हो जाता है तो गुलाबी पके अंगूर जैसा दिखता है। एक बार जब पूरा गुच्छा खिल जाता है तो महीनो फूल खिला रहता है।साल में एक बार ठण्ड के महीने में फूल खिलता है पर पूरा महीना फूल खिला ही रहता है। पौधा भी साल भर एकदम हरा भरा रहता है।
इसकी पत्ती की खासियत ये है की कहीं भी मट्टी में टूट कर गिर जाये वहीं फिर से एक नया पौधा तैयार हो जाता है। आर्युवेद में इसका बहुत महत्त्व है।किडनी स्टोन होने पर इसकी पत्तियों से इलाज किया जाता है। इसलिए इसका नाम पत्थरचट्टा है,किड़नी का स्टोन को चट कर जाता है। पत्तियां थोड़ी नमकीन और खट्टी होने के कारन खटुआ बोला जाता है। इसकी पत्तियों के किनारे से नया पौधा भी निकलते रहता है इसलिए इस पौधे को अजूबा पत्ती भी बोला जाता है।