शनिवार, 28 सितंबर 2019

DAKSHIN BHARAT KA GOLUPUJA

             दक्षिण भारत का गोलुपूजा (गुड़िया पूजा )

  नवरात्री ऐसा पर्व है की पुरे भारत में देवी माँ का पूजा खूब धूम -धाम से मनाया जाता है। भले नाम और रूप अलग हो पर देवी का ही पूजा करते है। जैसे बंगाल में दुर्गा पूजा का धूम रहता है ,तो गुजरात में गरवा और दूसरे जगहों में नौ दिन चलने वाला नवरात्री का पर्व। वैसे ही दक्षिण भारत में गोलुपूजा (गुड़िया पूजा )करते है।
   नवरात्री में दक्षिण भारत के लोग अपने घरों में लकड़ी के प्लेटफॉर्म में लकड़ी की गुड़िया सजा कर नौ दिनों तक पूजा करते है। लकड़ी का प्लेटफॉर्म भी खास होता है ,जो की 3 -5 -7 ऑड नंबर में होता है। सबसे ऊपर की पंक्ति में कलश रखा जाता है। फिर उसके बाद महाभारत ,रामायण या कोई हिन्दू धार्मिक कहानी के थीम में उसके पद के क्रम में उस पात्र को सजाया जाता है। इन्ही गुड़ियों को गोलू बोला जाता है। हर साल नौव दिनों तक नवरात्र में पूजा करने के बाद इन गोलुओं को संभाल कर अगले साल के लिये रखा जाता है।हर दिन अलग -अलग अनाज को उबाल कर स्पेशल प्रसाद (संदल)बनाया जाता है,और पड़ोसियों ,मित्रो को बुलाया जाता है । सब एक दूसरे के घर दर्शन करने जाते है।
    हमलोगो का बचपन टेल्को कॉलोनी में बीता था ,वहाँ हमारे बहुत सारे दक्षिण भारतीय पड़ोसी और मित्र भी थे। हमलोगो को गुड़िया पूजा देखने और स्पेशल प्रसाद (संदल)भी खाने का सौभाग्य मिला। दुर्गापूजा के समय गोलुपूजा का भी इंतजार रहता था।





गुरुवार, 26 सितंबर 2019

SHARDIYA NAVRATRI

                       शारदीय नवरात्री

      वर्ष में दो बार नवरात्री होता है ,बासंती और शारदीय। क्वांर मास में शारदीय नवरात्री में धूम -धाम से दुर्गापूजा मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है की माँ दुर्गा महिषासुर राक्षस  का वध करने के बाद नौ दिनों के लिये अपने पुरे परिवार के साथ मायका आती है। इसलिए नौ दिनों तक माँ के नौ रूपों की पूजा होती है। नवरात्री के पहले दिन घट स्थापना की जाती है। उसके बाद लगातार नौ दिनों तक माँ के नौ रूपों की पूजा होती है।
     माँ के नौ रूप ये है --
               शैलपुत्री ,ब्रह्मचारणी ,चंद्रघंटा ,कुष्मांडा ,स्कंदमाता ,कात्यानी ,कालरात्रि ,महागौरी एवं सिद्धीरात्री

  नौ  दिन व्रत -उपवास किया जाता है। अष्टमी के दिन विशेष हवन -पूजन करते है। और नववें दिन कन्याओं का पूजा कर उनको भोजन कराकर फिर उपवास तोडा जाता है।अपनी -अपनी श्रद्धा -भक्ति के अनुसार लोग- बाग पूजन -व्रत -उपवास आदि करके नवरात्री का त्यौहार मानते है।









मंगलवार, 24 सितंबर 2019

MAHALAYA AMAVASYA

                        महालया अमावस्या

        वर्षा काल समाप्त होते ही शरद रितु आरम्भ होता है।इस दिन पितर पक्छ समाप्त हो कर देवी पक्छ की शुरुआत होती है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों के लिये तर्पण करते है। इसी दिन दुर्गा जी की अधूरी गढ़ी मूर्ती पर मूर्ती कार आंखे गढ़ते है। दुर्गा पूजा की विधिवत शुरुआत महालय से ही होती है। नवरात्र के पूर्व देवी का आहवान महालय से होता है।
    इस दिन तर्पण कर मंत्र से पूर्वजों को तृप्त करने के साथ ही विश्व के सभी लोगों की मंगल कामना भी की जाती है। विश्व मैत्री की भावना से संकल्प की सिद्धी के लिये माँ दुर्गा की प्रार्थना की जाती है। सारा विश्व एक ही आलय में सिमट जाता है ,इसलिए इस दिन को महालय कहा जाता है। महालय का अर्थ बड़ा घर अर्थात सारा विश्व है।
  महालय के दिन ही सभी देवताओं ने महिषासुर का वध करने के लिये माँ दुर्गा को शास्त्र प्रदान किया था। इसके बाद ही माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। महालय के दिन से ही चंडी पाठ शुरू होता है। महालय के दिन सुबह चार बजे से आकाशवाणी के सभी केंद्रों से महिषासुर मर्दनी कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है। सन  1931 में पहली वार आकाशवाणी के कोलकत्ता केंद्र से इसका प्रसारण वीरेंद्र कृष्ण भद्र की आवाज में प्रसारण हुआ था। तब से अबतक हर साल इसका प्रसारण होता है। इसमें सारा जग भक्तिमय व पूजामय हो जाता है ,यही महालय है।
  बचपन बंगालियों के बीच गुजरा उस समय महालय का अर्थ समझ नहीं आता था ,बस इतना पता था की पूजा के पहले महालय के दिन रेडियो में सुबह चार बजे बंगालियों का कुछ प्रोग्राम आता  है ,जो वे लोग बहुत चाव से सुनते है। अब जा कर समझ आया की बंगाली नहीं हर हिन्दुओं के लिये महालय होता है।








गुरुवार, 19 सितंबर 2019

SHAKTI PEETH

                            शक्ति पीठ   (51 )

            हिन्दू धर्म के अनुसार जहाँ -जहाँ सती देवी के शरीर का अंग और आभूषण गिरा वहां -वहां उस नाम से शक्ति पीठ बन गया। शक्ति पीठ की संख्या 51 है ,जो की पुरे भारत के अलावा पाकिस्तान ,नेपाल ,बांग्लादेश,श्री लंका आदि देशो में भी  है। शक्ति पीठ (ऊर्जा का स्थल ) वह जगह है जहाँ लम्बे समय तक लोगो ने ध्यान किया  ,और ऊर्जा पाई है। देवी सती से ओत -प्रोत ध्यान करने की अत्यंत पवित्र जगह शक्ति पीठ कहलाता है।
    अब सच क्या है ये तो पता नहीं पर किम्बदन्ती और पुराणों के अनुसार मान्यता ये है की भैरव (शिव जी )सती (देवी) के शव को कंधे में लेकर तांडव करते हुए पुरे धरती का चक्कर  लगा रहे थे और विष्णु जी अपने सुदर्शन चक्र से एक -एक अंग काटते जा रहे थे। जो अंग और आभूषण धरती के  जिस जगह गिरा उसी नाम से वो जगह शक्ति पीठ कहलाया।
   तीर्थ स्थल घूमते -घामते पता नहीं कैसे हम भी 10  -12 शक्ति पीठ का दर्शन कर डाले।
 1 . कलकत्ते की कली माँ -बंगाल
 2 ,दंतेश्वरी देवी-दंतेवाड़ा -छत्तीसगढ़
 3 . शारदा देवी -मैहर -मध्य्प्रदेश
 4 . चामुंडेश्वरी देवी -मैसूर
 5 . कामाख्या -आसाम
 6 . श्री शैलम -आंध्रप्रदेश
 7 . अम्बा जी -गुजरात
 ८.अमरकंटक -मध्यप्रदेश
 9 . उज्जैन -मध्यप्रदेश
 10.  पुष्कर -राजस्थान
 11 . प्रयागराज -उत्तरप्रदेश
 12 .बनारस -उतरप्रदेश
 13. कन्याकुमारी -तमिलनाडु
  इत्यादी जगहों में दर्शन का लाभ मिला। 51 जगह तो शयद ही कभी कोई जा पाता  होगा।जो मिला जितना  मिला सब प्रभु की कृपा और इच्छा से ही हो पाया। 









सोमवार, 16 सितंबर 2019

CHAITANYA MAHA PRABHU

                                       चैतन्य महाप्रभु

        हर हिन्दू की दिली इच्छा होती है की एक बार वह पुरी जा कर भगवान जगन्नाथ का दर्शन करे। वैसे तो पुरी रथयात्रा के लिये प्रसिद्ध है ,पर लोग अपनी सुविधा अनुसार पुरी भगवान का दर्शन करने जाते है। सागर तट में घूमते है ,पुरी के आसपास घूम कर वापस लौट जाते है। पुरी की सैर यहीं समाप्त नहीं होती है। लोगो को पता भी नहीं है की पुरी में चैतन्य महाप्रभु का बहुत ही बड़ा एक आश्रम भी है।
  चैतन्य महाप्रभु का जन्म बंगाल के नवद्वीप में सम्वत 1542 फाल्गुन पूर्णिमा में हुआ था। वे 8-9 भाई -बहनो में सबसे छोटे थे। ज्योतिष ने कुंडली देख कर पहले ही बता दिया था की बालक महापुरुष होगा। पिता जगन्नाथ और माता शची देवी थी प्यार का नाम निमाई था वे गोरांग नाम से भी जाने जाते थे।
 बचपन से ही कृष्ण भक्त थे। दिन भर कृष्ण लीला ,भजन -पूजन में लगे रहते थे। गया जी में सन्यासी ईश्वरपुरी से कृष्ण दीक्छा ली। वृंदावन में जाकर कृष्ण के ध्यान में सदा रहते थे। अपने सुन्दर बाल कटवाकर सन्यासी बन गए। सन्यासी बनने के बाद पुरी में अपना समय जगन्नाथ जी के मंदिर में बिताने लगे। तब निमाई से चैतन्य कहलाने लगे। 24 साल की उम्र में सन्यास लिये और 48 साल की उम्र तक पुरी में भगवान की सेवा में अपना समय बिताये। 48 वें साल में रथयात्रा के दिन अपनी जीवन लीला यही समाप्त किये।
 पुरी का आश्रम गौर आश्रम के नाम से जाना जाता है। आश्रम काफी बड़ा है। आश्रम में चारो तरफ भगवान विष्णु के अलग -अलग रूप और लीला का मूर्ती बना हुआ है। अनेक देवी देवताओं का भी मूर्ती स्थापित है। देखते ही मन खुश हो जाता है।कृष्ण भक्त और उनके अनुयाई आश्रम में आते रहते है।  वैसे बंगाल के नवद्वीप में भी बहुत बड़ा आश्रम है। कृष्ण भक्त कलकत्ता जाने पर जरूर नवग्राम जा कर दर्शन करते है।


























शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

HINDI DIVAS

                          हिंदी  दिवस

     गाँधी जी ने वर्ष 1918 में हिंदी साहित्य सम्मलेन में हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने को कहा था,और  इसे जन मानस की भाषा बोला। 14  सितम्बर  1949 को बहुत विचार विमर्श के बाद  हिंदी को ऑफिसियल भाषा की घोषणा की गयी।इसलिए 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाने लगा। गैर हिन्दी भाषी राज्यों में इसका विरोध भी हुआ।  26 जनवरी 1950 से इसे पूर्ण मान्यता से सरकारी कामकाज में लिखा जाने लगा।अंग्रेजी और चाइनीज़ के बाद  हिंदी चौथी बड़ी भाषा है जो की  250 मिलियन लोग बोलते है ,और हिंदी विश्व का चौथा भाषा के रूप में जाना जाता है।
   हिन्दी भाषा पर अंग्रेजी के शब्दों का प्रचलन बहुत ज्यादा हो गया है। अब तो हिन्दी अपने घर में ही दासी के रूप में रहती है। हम जब तक हिन्दी का उपयोग पूरी तरह नहीं करेंगे तब तक हिन्दी भाषा का विकास नहीं हो पायेगा। हिन्दी दिवस में जगह -जगह सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की और से कार्यक्रम भी रखा जाता है जिसमे जो हिन्दी का कार्य और विकास करता है उसे पुरस्कार दे कर सम्मानित भी किया जाता है।

                                     बाबा का जन्म दिवस

     14 सितम्बर को बाबा का जन्म दिवस है और बाबा एक हिन्दी लेखक भी है।झारखण्ड सरकार की ओर से 2016  में वयोवृद्ध हिन्दी लेखक का सम्मान  बाबा को दिया गया था। वैसे तो अलग -अलग अवसर में बाबा को और भी बहुत सम्मान से सम्मानित किया गया है। हमारे परिवार के लिये बहुत ही गर्व की बात है। उम्र के इस पड़ाव में भी उनका लिखना पढ़ना ऐसे ही चलता रहे ,और हमलोगो को बाबा का आशीर्वाद मिलता रहे। भगवान से यही कामना है।






  

बुधवार, 11 सितंबर 2019

ONAM

                              केरल  का  ओणम

         केरल दक्छिन भारत का एक बहुत ही हरा भरा प्रकृति से समृद्ध राज्य है। अधिकांश भाग में साल भर हरियाली रहती है। सभी ओर नारियल के पेड़ दिखते है। अनेक तरह के मसाले ,जड़ी -बूटी उगाये जाते है।रबड़ और कई तरह के केले यहाँ होते है। यहाँ के लोग मलयाली  होते है। मलयालियों का सबसे बड़ा त्यौहार ओणम अगस्त से सितम्बर के बीच में होता है।
    ओणम के अवसर में पुरे शहर और घर को सजाया जाता है। हर चौक -चौराहा ,होटल ,मॉल ,घर आदि जगहों में बड़ा -बड़ा सुन्दर-सुन्दर  फूलों की रंगोली  बनाते है। ओणम में तरह -तरह  का पकवान बनाया जाता है। केले ,गुड़ ,नारियल ,कई तरह की सब्जी ,कई तरह का चावल  इसमें प्रमुख रहता है। और कई तरह का पायसम (खीर) जरूर रहता है। पुरे पकवान को ओणम सद्यया बोला जाता है। जैसे अपने तरफ छपन भोग होता है वैसे ही ओणम सद्यया में भी 25वो  वैरायटी का पकवान होता है। इसे केले के पत्ते में परोसा जाता है।
 ओणम का त्यौहार पुरे केरल में हफ्तों चलता है। केरल के एल्लपी में स्नेक बोट रेस होता है। जिसे नेहरू जी ने शुरू करवाया था। जो दल  इस रेस में जीतता है उसे नेहरू ट्राफी दिया जाता है। त्रिशूर में हाँथियो को सजा कर पूजा करके पकवान खिलाया जाता है। पुरे केरल में ही जगह जगह बहरूपिया बनकर लोग -बाग घूमते हुए दिख जायेंगे।
  ओणम के बारे में एक कहानी ये भी प्रचलित है। केरल का राजा महाबली काफी लोकप्रिय था। एक बार राजा यज्ञ कर रहे थे। उनके यज्ञ को भंग करने भगवान विष्णु वामन रूप लेकर आये और राजा से पूरा राज्य दान में मांग लिये। राजा ने अपना राज्य दान में वामन रूप धरे ब्राह्मण को दे दिया। भगवान खुश होकर वरदान माँगने कहा। राजा ने कहा की वरदान देना ही है तो  साल में एकबार वे अपने प्रजा का हालचाल देख कर जायेंगे। तब से ही हर साल लोग -बाग अपने घरो को सजा कर पकवान बना कर राजा के स्वागत की तैयारी करते है। इस तरह ओणम का त्यौहार मनाया जाने लगा।
  दो -तीन बार केरल में ओणम का त्यौहार देखना हुआ। बोट रेस भी देखे ,तरह तरह का पायसम (खीर )भी खाने का मौका मिला, ओणम सद्यया (पकवान )भी खाये। इस बार केरल नहीं जा पाए। पर तमिलनाडु  केरल का पड़ोसी राज्य होने के कारण यहाँ भी ओणम मनाया जाता है। इसबार कुन्नूर में सद्यया का लुफ्त उठा कर ओणम का त्यौहार मनाए।  






     

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

JAGANNATH PURI

                      जगन्नाथ पुरी   (चौथा धाम  )

    चारधाम का चौथा धाम जगन्नाथ पुरी पूर्व दिशा में है। ये भी सागर तट पर है। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण उनके भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा का काष्ठ प्रतीमा मंदिर में विराजमान है। हर साल तीनो भाई -बहन की प्रतीमा को आषाढ़ के दूज तिथि  में रथ में सुसज्जित कर के नगर भ्रमण कराया जाता है।जिसे रथ यात्रा बोला जाता है। जिसे देखने लाखों लोग आते है।नगर भ्रमण के बाद रथ को भगवान के मौसी के घर ले जाते है, जहाँ भगवान स्वास्थ लाभ करते है.दूज से एकादशी तक वहाँ रहकर फिर वापस रथ मंदिर मे लाया जाता है।  
       पुरी आने पर साखीगोपाल भी जरूर जाते है। मान्यता है की भगवान पुरी आये थे उसका साक्छी है साखीगोपाल का मंदिर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर भी जग प्रसिद्ध है ही ,इसके अलवा भुवनेश्वर का लिंगराज का मंदिर भी देखने योग्य है। यहाँ हर साल शिवरात्री का मेला लगता है।पुरी का चिल्का लेक भी बहुत ही विशाल और प्रसिद्ध है। यहाँ 3 -4 घंटा बोटिंग का भी मजा लिया जाता है.यहाँ डॉल्फिन भी पाया जाता है। सीपी से मोती भी निकाल कर दिखाया जाता है।
  पुरी में चैतन्य महाप्रभु का भी आश्रम है जो गौर आश्रम के नाम से जाना जाता है। वे बचपन से ही कृष्ण भक्त थे।  रथयात्रा के दिन उनका जीवन लीला यही समाप्त हुआ था। पुरे आश्रम में कृष्ण और विष्णु जी का लीला का मूर्ती बना हुआ है।ये आश्रम भी देखने योग्य है।



    
       
   

सोमवार, 9 सितंबर 2019

DWARKADHISH

                द्वारकाधीश  (तीसरा धाम  )

     पश्चिम में अरब सागर और गोमती के तट पर गुजरात में द्वारका तीसरा धाम है। भगवान कृष्ण द्वारा बनाया गया था। पर दो बार सागर में समा गया। ये तीसरी बार कृष्ण के वंशजों ने बनवाया था। द्वारका आने पर यहाँ स्टीमर से भेंट द्वारका भी जाते है यही कृष्ण -सुदामा की भेंट हुई थी। द्वारका दर्शन करने के बाद आगे बढ़ने पर नागेश्वर ज्योतिर्लींग और अरब सागर के तट पर ही सोमनाथ ज्योतिर्लींग का भी दर्शन हो जाता है।

                                          सोमनाथ ज्योतिर्लींग

    सोमनाथ अरब सागर के किनारे 12 ज्योतिर्लींग में से प्रथम लिंग माना जाता है। चंद्रदेव द्वारा ज्योतिर्लींग स्थापित किया गया था, इसलिए इसका नाम सोमनाथ पड़ा। 18 वीं सदी में अहिल्याबाई द्वारा सोने का मंदिर बनवाया गया था। मोहम्मद  गजनी ने अनेको बार आक्रमण कर मंदिर से सोना लूट कर ले गाया था। बाद में सरदार बल्लभ भाई पटेल ने मंदिर का फिर से जीर्णोद्वार करने का बीड़ा उठाया। सारा सोना तो लुटा जा चूका था। भक्त दिलीपलेखी और उनके परिवार वालों के सोना दान से  पुरे मंदिर में फिर से सोने के पत्तर से सजाया जा रहा है। अभी तक 104 किलो सोना से मंदिर सज चूका है। पर किसी ज़माने में 200 मन सोना लगा था। मंदिर के गुम्बज में ही 20 मन का कलश था। सोमनाथ अरब सागर और बंगाल की खड़ी के किनारे होने के कारण सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों समय मंदिर का दृश्य बहुत ही मनोरम हो जाता है।
 द्वारका आने पर तीसरा धाम और दो -दो ज्योतिर्लींग का भी दर्शन हो जाता है।




रविवार, 8 सितंबर 2019

RAMESWARAM

                    रामेश्वरम  ( दूसरा धाम  )

       हमारे पूर्वजों ने पुरे भारत को जोड़ने के लिये उस ज़माने से ही ये नियम बनाया हुआ है की गंगोत्री से गंगा जल लेकर केदारनाथ के ज्योतिर्लींग में जल चढ़ाना और फिर गंगोत्री का गंगा जल दक्छिन के ज्योतिर्लींग रामेश्वर में चढ़ाना।
  उत्तर के बाद दक्छिन में रामेश्वरम धाम में गंगाजल से ज्योतिर्लींग का पूजा अर्चना करते है। भगवान राम द्वारा श्रीलंका जाने के पूर्व यहाँ ज्योतिर्लींग की स्थापना कर पूजा किये थे। नल -नील द्वारा बड़े-बड़े मूंगा पत्थर को सागर में डाल कर सेतु बनाये थे। रामेश्वरम जाने पर सागर ,रामसेतु भी देखना हो जाता है और दूसरा धाम के साथ ज्योतिर्लींग का दर्शन भी हो जाता है। यहाँ आने पर रामेश्वर के अलावा साऊथ के तीर्थ स्थल मदुरई और कन्याकुमारी वगैरा का भी दर्शन हो जाता है।




  

शनिवार, 7 सितंबर 2019

KEDARNATH YATRA

               

         

                                                  चार धाम यात्रा
                                        केदारनाथ धाम  (पहला धाम )

       चारो दिशा में एक -एक धाम है। चारो दिशा का दर्शन करने के बाद चार धाम यात्रा पूर्ण होता है।
 उत्तर दिशा में हरिद्वार से ऊपर जाने पर जमुना जी का उद्गम स्थल यमनोत्री आता है। जमुना जी के गर्म जल में स्न्नान करके जमुनाजी का दर्शन करके फिर आगे ऊपर जाते जाने पर गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री आता है।गंगोत्री के बर्फीले जल से स्न्नान करके गंगा मंदिर का  दर्शन करके गंगाजल लेकर और ऊपर आगे बढ़ते जाने पर केदारनाथ धाम आता है. केदारनाथ  ज्योतिर्लींग भी है और ये पांडवो  के ज़माने का है।यहाँ गंगोत्री से लाया गंगाजल चढ़ाया जाता है। केदारनाथ से आगे बढ़ने पर बद्रीनाथ धाम आता है।इन चारों के दर्शन होने पर एक धाम पूर्ण होता है।  बद्रीनाथ दर्शन करके नीचे उतरते जाने पर रिषीकेश आता है। रिषीकेश में ही लक्षमण झूला है। रिषीकेश से आगे बढ़ने पर फिर हरिद्वार पहुँच जाते है।
 हरिद्वार से यमनोत्री ,गंगोत्री ,केदारनाथ ,बद्रीनाथ ,रिषीकेश होते हुए वापस हरिद्वार आने में कमसे कम हफ्ता तो लग ही जाता है यदि मौसम साथ दिया। पूरा हफ्ता भर रास्ते में सुन्दर -सुन्दर  जंगल ,पहाड़ ,झरना इत्यादी का नजारा देखते हुए बढ़ना पड़ता है।गंगोत्री से गंगा की धारा अलग -अलग जंगल पहाड़ से बहते हुए अलग नाम से आती है। मंदाकीनी ,अलकनंदा ,भागीरथी इत्यादी नदी का संगम देवप्रयाग में होता है और फिर यहाँ से गंगा की धारा बन जाती है। गंगा आगे जाकर रिषीकेश से होते हुए हरिद्वार पहुँचती है। हरिद्वार से आगे भिन्न -भिन्न नगरों से होते हुए कलकत्ते में सागर में समां जाती है जिसे गंगा सागर बोला जाता है और हर साल संक्रांत में गंगा सागर का मेला लगता है।
केदारनाथ दर्शन करने के बहाने उत्तराखंड घूमना हो जाता है।रास्ते में गंगा -जमुना का उदगम स्थल भी देखना हो जाता है। इतने जड़ी -बुटी के बीच से गंगा की तेज धारा बहती है ,इसलिए गंगा जल कभी भी ख़राब नहीं होती है और गंगा जल को इसलिए शुद्ध माना जाता है।