शनिवार, 16 जुलाई 2022

#AMARNATH#YATRA

                        अमरनाथ तीर्थ यात्रा 

                                     हिम शिवलींग 

           अमरनाथ गुफा श्रीनगर से करीब 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसी स्थान में भगवान शिव ने पार्वती जी को अमरत्व का रहस्य बताया था। हर साल जुलाई -ऑगस्त में यात्रा शुरू होकर राखी पूर्णिमा तक चलता है। हिम शिवलींग तब अपने पुरे आकर में होता है और फिर धीरे धीरे लुप्त हो जाता है। अमरनाथ गुफा जाने का दो मार्ग है। एक तो पहलगावं हो कर जो की लम्बा रास्ता है करीब 48 किलोमीटर पड़ता है। दूसरा बालटाल होकर जो की छोटा और थोड़ा कठिन घाट से होकर जाना पड़ताहै। बालटाल से गुफा की दूरी 14 किलोमीटर है.
     अमरनाथ यात्रा बालटाल  पहलगांव दोनों जगह से पैदल ,घोड़े ,पालकी या फिर हेलीकॉप्टर से जा सकते है. जिसका जैसा हिम्मत और श्रद्धा वो अपना सवारी वैसा चुनता है। हमलोग तीन परिवार हमेशा एक साथ ही तीर्थ करने जाते थे।करीब 15 साल हो गया हमलोग लद्दाख होकर अमरनाथ जा रहे थे. इसलिए हमें बालटाल होकर जाना पड़ा। बालटाल बेस कैंप हमलोग सुबह 6 बजे पहुंच गए थे।मौसम भी अच्छा था हमलोग घोडा से ऊपर जाना शुरू किये। ऊपर जा कर दर्शन करके वापस हमलोग शाम 6 बजे बालटाल बेस कैंप पहुंचे। करीब 12 घंटा का सफर था। नीचे से ऊपर जाने के रास्ते में जगह जगह खाने पीने का लंगर था कोइ भी तीर्थ यात्री रास्ते में घड़ी दो घड़ी रुक कर विश्राम और जलपान कर के आगे बढ़ता है। बेस कैंप में जगह जगह टेन्ट है जहाँ यात्री रात्री विश्राम करते है। अमरनाथ गुफा में एक जोड़ा सफ़ेद कबूतर जरूर दीखता है । चारो तरफ बर्फ ही बर्फ कोइ भी जीव जंतु वहां नहीं होता है पर इतने कड़ाके के ठन्ड में कबूतर का जोड़ा दिखना भी अचम्भे से कम नहीं है।हमलोग को भी कबूतर दर्शन का लाभ मिला। मान्यता है की जब भगवान पार्वती जी को कथा सुना रहे थे तब गुफा में कबूतर का जोड़ा भी था जो की अमर कथा सुन कर अमर हो गया।अब जो भी सच्चाई हो अपनी अपनी श्रद्धा है। मानो तो देव या पत्थर। 
     दर्शन के बाद बालटाल बेस कैंप में  हमलोग 8 बेड वाला टेंट लेकर रात्री विश्राम कर के सुबह श्रीनगर के लिये चल पड़े। यात्रा कठिन था पर इंट्रेस्टींग था.अभी पिछ्ले हफ्ते न्यूज़ में अमरनाथ में इतना बड़ा प्रकृति आपदा  देख कर दिल दहल गया। हमलोग कितने लकी है की आराम से पवित्र गुफा का दर्शन कर पाये।न्यूज़ में आपदा देख कर 15 साल पहले का अमरनाथ यात्रा का नजारा अपने आप मन में आता गया। नहीं तो ध्यान भी नहीं था की हमलोग इतने अच्छे से अमरनाथ यात्रा किये थे। हम सबों पर प्रभु की कृपा ही तो थी।