रविवार, 30 जुलाई 2017

HORSE STABLE

                                                                    घुड़शाल  की सैर 

                               राहुल को बचपन से घुड़सवारी का भी शौक है। बोला चलो दादी छावनी चलें आपको अपने फेवरेट घोड़े से मिलायुं। चाय बागान के बीच बड़ा सा घुड़शाल था। घोड़े के अस्तबल में 50 वों एक से बढ़  कर एक हष्टपुष्ट  मिलीट्री के ट्रेंड घोड़े कतार में बंधे  थे। राहुल अपना फेवरेट विजेता नाम का  घोडा से मिलवाया और उसके लिये गाजर लाया  था उसे खिलाया। हमको भी गाजर दिया खिलाने ,हम तो डरते -डरते दूर से ही गाजर खिलाये पर राहुल घोड़े को खूब सहलाया और उसे प्यार किया। देख कर बड़ा अच्छा लगा जानवर भी प्यार की भाषा समझते है। कुन्नूर में रहने का ये सब फायदा है यहाँ के मौहोल  और साधन के कारन बच्चे बचपन से सभी तरह के गेम ,घुड़सवारी ,गोल्फ,बिलीयर्ड ,टेनिस  वगैरा सीख लेते है और फालतू चीजों के लिये टाईम ही नहीं बचता है। स्कूल में पढ़ते तक आल राउंडर हो जाते है। फिर तो कॉलेज पढ़ने बहार जाना होता है तो बाकी चीजों का टाईम और मौका दोनों ही नहीं मिलता है। 








शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

NEELAKURINJI FLOWER

                                                          नीलाकुरिंजी  फूल 

                        नाम से ही लगता है की कोई नीला फूल होगा।कुरिंजी का फूल वेस्टन घाट के ढलान वाले ग्रास लैंड में हर 12 साल में खिलता है। इसका फूल ब्राईट ब्लू वेल शेप में  होता है जब फूल खिलता है तो पुरे घाटी का रंग नीला हो जाता है ,इसलिए कुन्नूर का नाम  नीलगिरी  पड़ा है। कुन्नूर ,कोडईकनाल ,मुन्नार आदि घाट वाले जगह में कुरिंजी  होता है। एक बार जिस घाट के पौधे में फूल हो तो फिर 12 साल बाद ही दुबारा खिलेगा। 
         2006  में कोडईकनाल में  दिखा था, 
         2012 में कुन्नूर में दिखा था ,अब 
         2018  में मुन्नार में उम्मीद किया जा रहा है।  
     कुन्नूर का कुरंजी तो हमलोगों को भी देखने मिला था। ऊंटी से भी आगे घाट में जा कर कुरिंजी का नजारा देख पाये थे। आज कल कुन्नूर के नर्सरी में १० रुपया में एक पौधा मिलता है। लॉन के किनारे लाईन से  लगाने पर बहुत ही सुन्दर दिखता है। हम भी लाईन से 10 पौधा लगा दिए है ,अब फूल जब होगा तब होगा। पौधा भी बड़ा सुंदर दिखता है, हल्का नीला हरा  लिये हुए।लॉन में हेज जैसा दिखता है। अभी तो बहुत ही छोटा पौधा है ,10 फ़ीट तक हाईट वाला झाड़ी नुमा पौधा जब तैयार होगा तो 12 साल बाद इसमें फूल देखने मिलेगा। अभी लॉन में पौधा का मजा ले रहे हैं ,फिर फूल का लेलेंगे।
 




        

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

THUNBERGIA MYSORENSIS

                                          INDIAN  CLOCK  VINE

                          पता नहीं इस पौधे को घड़ी बेल क्यों बोला  जाता है। वैसे स्पेन इसका मूल स्थान है और ये ठंड़े जगह में  ही पाया जाता है। मैसूर से इसका नाम थुनबेर्गिए म्य्सोरेंसिस भी बोला जाता है। सिकिम ,नेपाल आदि ठंड़े जगह में बहुत होता है। वैसे ये सदा बहार बेल है। बरसात से ठंड तक इसमें बहुत फूल होता है। छोटा -छोटा गुच्छे में लटकता रहता है। थोड़ा पीला ,कथई . भूरा लाल रंग का फूल होता है। छोटी चिड़यों को अपनी ओर आकर्षीत करता है। चिड़ियाँ फूलों का रस बड़े मजे में पीती है। फूल के आकर के कारण डॉल शू भी बोला  जाता है। कुन्नूर का मौसम ठंडा होने के कारण यहाँ भी फलता फूलता है और इसका पौधा नर्सरी में आसानी से मिल जाता है। देखने में सुन्दर ओर सेवा भी नहीं थोड़ा पानी ,खाद और थोड़ा शेड ,बस फूल ही फूल। 



सोमवार, 24 जुलाई 2017

SAFARI AT BANDIPUR NATIONAL PARK

                        SAFARI AT BANDIPUR NATIONAL PARK

                                बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान

              हमारा राहुल बेटा वाईल्ड  लाईफ   फोटोग्राफी में एक्सपर्ट है  . जब भी मौका मिला जंगल घूमना और जानवरों का फोटो लेना उसके हॉबी में से एक है। बस क्या था वह बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान जा रहा था हमलोग भी साथ हो लिये। ऊंटी से मैसूर जाने के मार्ग में NH 67 में ही बांदीपुर रिजर्व फॉरेस्ट पड़ता है। एक समय में मैसूर राज्य के महाराजा का शिकारगाह हुआ करता था। 1973 में टाईगर रिजर्व घोषित  किया गया। वैसे तो कर्नाटक में है पर 874 वर्ग किलोमीटर के छेत्र में फैला हुआ है। कर्नाटक के नागरहोल ,तमिलनाडु के मधुमलाई और केरल के वयनाड मील कर पूरा अभ्यारण होता है। सब मिलाकर नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व फॉरेस्ट का हिस्सा बांदीपुर है।
            बांदीपुर में बहुत सारा रिजॉर्ट ,होटल ,रेस्टुरेंट है, रात भी रुक सकते हैं। कर्नाटक टूरिजम के तरफ से   सुबह शाम ट्रैकिंग तथा बस से जंगल के अंदर घुमाने ले जाते हैं। 300 रुपया  एक जन का लगता है। घने जंगल के अंदर बहुत जानवर तो दिखता ही है। पर यदि NH 67 से गुजरने पर ऊंटी घाट के बाद से ही बांदीपुर तक सभी जानवर रोड के दोनों और जंगल झाड़ी में दिखता है। मोर ,गौर ,हाँथी चीतल ,हिरण ,तरह -तरह का जीव जंतु ,चिड़ियाँ वगैरा। इसलिए रात को 8 बजे से सुबह 6 बजे तक वाहन का प्रवेश बर्जित है. जिससे कोई दुर्घटना न हो ना तो मनुष्य या ना  तो कोई  जानवर ही शिकार हो जाये।
       सुबह 9 बजे कुन्नूर से चल कर 12 बजे बांदीपुर पहुँच गये। 12 से 3 रिजॉर्ट में घूमे खाये पीये। फिर जंगल सफारी किये और 5 बजे चल कर रात 8 बजे वापस घर आ गये।जंगल घूमना का घूमना भी होगया जानवर भी देखलिए राहुल का फोटोग्राफी भी होगया और संडे का सदुपयोग भी हो गया।













 











रविवार, 23 जुलाई 2017

ARISTOLOCHIA

                                             DUCK FLOWER

                          नाम से ही लगता है की बत्तख जैसा कोई फूल है जो की चोंच हिला रहा है। वैसे तो बोलचाल की भाषा में डक फ्लावर बोला  जाता है। पर इसकी उत्पत्ती ब्राजील की है। और इसे  डचमैन सिगार भी इसके शेप के कारण बोला जाता है। जो हो फूल कथई नीला जैसा होता है और 30 डिग्री तापमान में भी गर्मी से बरसात तक गुच्छे में पुरे बेल में खिलता है। 

                    भरपूर सनलाइट ,कम  पानी और ज्यादा सेवा भी नहीं करना पड़ता है। तेजी से वेल बढ़ता जाता है। गुच्छों में फूल लटकता है देखकर दिल खुश हो जाये। बाबा फूलों के शौकीन है बस कभी भी कहीं से कोई नया पौधा मिला तो मेरे लिये भी रखते है और देते है। बाबा का एक मित्र बाबा को राँची से लाकर 10- 15 साल पहले डक फ्लॉवर का पौधा दिया था ,बाबा टाटा में लगाये वहाँ का मौसम शूट किया खूब फूल खिलता था वेल भी खूब तेजी से बड़ा। बरसात में छोटा -छोटा नया पौधा नीचे से निकला फिर क्या था बाबा हमको भी दिए। हम रायपुर में लगा दिए यहाँ भी खूब तेजी से पौधा बड़ा और फला -फुलाहमारे लिये नया टाईप का फूल था।
                         कुन्नूर में जहाँ जाओ यहाँ पर भी इसका पौधा देखने मिला फूल का साईज भी थोड़ा बड़ा ही था। यहाँ का मौसम भी इसे शूट किया। बस किया था नर्सरी से एक पौधा लाकर लगा दिए। अभी तो पौधा छोटा सा है पर जब अगली बार आएंगे तो फूलों का बहार देखने मिलेगा। 





शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

ORCHID

                                          ORCHID-----आर्किड 

                     आर्किड का पौधा 30000 हजार प्रकार का पुरे दुनिया में पाया जाता है। इसे भी दो तरह से लगाया जाता है। एक तो बड़े मोटे तने के पेड़ में लपेट देने पर इसके सफ़ेद जड़ धीरे से पौधे से नमी लेकर बढ़ते जाता है। दूसरे तरह का आर्किड गमले में लगा सकते है। इसे लगाने का गमला भी बहुत ही खास जाली दार होता है। गमले में नारियल हस्क ,कोयला का चुरा ,मॉस इत्यादी डाल कर ही पौधा रोपा जाता है। गमले में लगाने के पहले थोड़ा सा जड़ को छाँटना ठीक रहता है। 
         पौधा पेड़ में लगायें या गमले में बस इतना ध्यान रहे की रोशनी भरपूर मिले ,इसे लाईट ईटर भी  बोला  जाता है।  जब की पानी कम ही डालना पड़ता है। तभी भरपूर फूल खिलता है। एक बार फूल हुआ तो बस महीनों रहता है। रंग -बिरंगा खूबसुरत प्लास्टिक जैसा दिखता है।नर्सरी में पौधा आसानी से मिल जाता है बस केयर थोड़ा ज्यादा करना पड़ता है।  । 
          कुन्नूर में एक मित्र ने 5 -6 साल पहले एक छोटा सा आर्किड का पौधा दिया था। तब से खूब अच्छी तरह से बढ़ रहा है ,और फूल भी खिल रहा है। रायपुर में भी लाकर लगा दिए पर उतना अच्छे से नहीं बढ़ रहा है। वैसे सिंगापुर हो या आसाम दुनिया में  बहुत जगह में ग्रीन हॉउस बना कर इसका पौधा लगाते है और पूरी दुनिया में फूल भेजते है। टूरिस्ट भी देखने आते है और व्यापर भी हो जाता है। 
       बचपन में जब बाबा के साथ जंगल में पिकनिक जाते थे तो बाबा जंगली पेड़ वाला आर्किड खोज ही लेते थे और घर लाकर किसी पेड़ में तार से लपेट देते थे। और पौधा का सेवा करते थे। तब उसमे हल्का सफ़ेद वैगनी रंग का फूल होता था। फूल देख कर बहुत ताजुब भी होता था की कैसे एक छोटा सा पौधा एक दूसरे पेड़ के सहारे पनप जाता है। मेरा तो पीला फूल वाला आर्किड है पर दूसरे रंगो वाला और पौधा खोज रहे है मिले तो उसे लगाएंगे। कुन्नूर का मौसम भी आर्किड को शूट करता है। 





बुधवार, 19 जुलाई 2017

LITHOPS SUCCULENTS

                                     LITHOPS  -------  LIVING  STONE
                               
                                                              लिथोप्स 

                        लिथोप्स भी सुकुलेंट परिवार का ही है। ये भी रेगिस्तान में ही अच्छी तरह खिलता है। सैकड़ों साल पहले साऊथ अफ्रीका में ही इसका पता चला था। लिथोप्स देखने में छोटा सा एक ईंच का ही होता है और बड़ा ही सूंदर रंग -बिरंगा पेबल जैसा लगता है। इसलिए इसे लिविंग स्टोन या पेबल प्लांट भी बोला  जाता है।
          बीज छिड़कने के बाद महीनो लगता है अंकुरित होने ,और जब अंकुरित हो जाता है तो छोटा छोटा जानवर के पैर के खुर जैसा दीखता है। इस पौधा का अधिकांस भाग जमीन के अंदर ही होता है और मटर जीतना ऊपर दिखता है। फूल भी निकलने में महीनो लग जाता है। पर जब फूल होता है तो कैक्टस के फूल जैसा ही छोटा- छोटा रंग -बिरंगा फूल होता है। 
                           बीज बोने के पहले गमले की तैयारी भी सिम्पल है गमले में रेत और कंकर डालना होता है और इस में पानी ना के बराबर डाला जाता है। तभी अच्छे से पौधा और फूल होता है। हल्का भूरा ,हरा। ब्राउन पेबल होता है। यदि धैर्य हो तभी इस पौधा को लगाना चाहिए और पौधा तैयार होने तथा फूल खिलने का इन्तजार करना चाहिए। सब्र का फल  मीठा ही होता है। साल से छै महीने के परिश्रम और इन्तजार के बाद ही लिथोप्स का मजा ले सकते है।
         हम भी बीज का इन्तजाम करे थे। रायपुर तो बहुत गर्म प्रदेश है यहाँ तेज धुप भी है पर हम सफल नहीं हो पाए। लगाने को लगाए सेवा भी किये पर महीनो इंतजार के बाद कुछ भी रिजल्ट नहीं मिला ,निराशा जरूर हुआ पर कोशिश जारी है। फिर बीज का इंतजाम हो जायेगा तो फिर लगा देंगे। इस बार गलती नहीं होने देगें देखते है कब तक लिथोप्स लगाने में सफ़ल होते हैं।
    इतने तरह के कैक्टस ,सुकुलेंट, आखिर हो रहा है तो इसको भी होना ही होगा। 








मंगलवार, 18 जुलाई 2017

SUCCULENT (CACTI )

                                                               SUCCULENT 

                                  कैकटी वर्ग का सजावटी पौधा सुकुलेंट  है। लैटिन शब्द सक्स याने जूसी से इसका नाम सुकुलेंट पड़ा। थीक  और फ्लेसी होने के कारण इसकी पत्तियाँ  जल संग्रह करती है। स्टेम हो या पत्ती हो या जड़ सभी माँसल होते है इसलिए ये जल्द मरता नहीं है। चाहे तापमान कम  हो या ज्यादा या वारिश ये अपना वजूद बनाये रहता है और फलता फूलता है। ये  भी सैकड़ों आकार प्रकार का होता है। सब एक से एक सुन्दर। 
    जेड  प्लांट ,एलोवेरा ,कलान्चो ,स्नेक प्लांट ,अचेवेरिया इतियादी प्रमुख है जो आसानी से मिल भी जाते है और ज्यादा सेवा के बिना भी घरों में लगाया जा सकता है। कुन्नूर का मौसम बहुत अच्छा होने के कारण यहाँ भी बहुत वैरायटी का मेरा कलेक्सन हो गया है।