बुधवार, 18 मार्च 2020

MOSAIC WATER PLANT

                             मोज़ेक   पौधा

                   मोज़ेक पौधा पानी में तैरने वाला पौधा है । इसकी पत्ती छोटे लाल हरे रंग की 3 इंच गोल गुच्छे में हीरे के आकर की मोजेक पैटर्न में बनी रहती है। पैटर्न का फैलाव करीब 12 इंच से 24 इंच होता है। टब में पौधा रखने पर टब की गहराई करीब 12 से 18 इंच गहरा होना चाहिए जिससे पौधा का फैलाव अच्छे तरह से होता है। पत्तियों के आकर -प्रकार के कारन ही इस पौधे का नाम मोज़ेक पौधा पड़ा। टब में पौधा देखने में बहुत ही सुन्दर दिखता  है। पर इसके डंठल में काई बहुत जल्दी और ज्यादा हो जाता है। इसलिए टब में 2 -4 छोटी मछली डाल देना चाहिए। मछली काई खाती रहती है जिससे पानी और पौधा दोनों साफ रहता है और मोज़ेक का पौधा अच्छी तरह फैल पता है।इस पौधे को धुप भरपूर चाहिए। गर्मियों में बहुत ही छोटा -छोटा पीले रंग का फूल भी होता है। ठण्ड में पौधा का ग्रोथ कम हो जाता है। वैसे माना जाता है की अमेरिका का गर्म इलाका में भी बहुत पाया जाता है।




  

             

           

सोमवार, 16 मार्च 2020

WATER CABBAGE

                            वाटर   कैबेज

              वाटर कैबेज पानी में तैरने वाला एक जलीय पौधा है।अफ्रीका में विक्टोरिया के पास नील नदी में खोजा गया था। इसलिए नील गोभी भी इस पौधा का नाम है।ग्रीक शब्द पिस्टोस ( पानी ) से इसका नाम पिस्टीया पड़ा। वाटर लेटुस भी इसका एक नाम है। थिक और सॉफ्ट पत्ते वाला बिना स्टेम का पौधा है। जड़ गुच्छे में पानी में रहता है जिससे पौधा पानी में तैरता रहता है।पौधा का एक गुच्छा पानी के टब में डालने पर अनेक गुच्छे में हो जाता है। समय समय में गुच्छों को अलग करने पर पौधा बढ़ते रहता है। बीच बीच मे पीला पत्ता तोड़ कर हटा देना चाहिए।



 

           



    

रविवार, 15 मार्च 2020

ZED PLANT

                              जेड  प्लांट

       जेड एक सदाबहार पौधा है। यह दक्षीण अफ्रीका का देशी पौधा है। जेड का पौधा छोटा होता है। इसकी डालियाँ मोटी और पत्तियां छोटी चिकनी गोल मांसल होती है। पत्ती का रंग गहरा हरा होता है। धुप में रखने पर पत्ती कुछ गुलाबी रंग लिये होता है। वैसे पौधे को तेज धुप और ज्यादा ठण्ड दोनों बर्दाश्त नहीं होता है। पानी भी कम ही डालना पड़ता है।सेमी शेड में रखना चाहिए।  बसंत रितु में इसमें छोटा तारा नुमा हल्का गुलाबी या सफ़ेद फूल खिलता है। जेड के पौधे को कटींग या जड़ दोनों तरीके से लगा सकते है। ज्यादा देखभाल भी नहीं करना पड़ता है। एक पौधे से अनेक पौधा आसानी से बनाया जाता है।




शुक्रवार, 13 मार्च 2020

GERBERA FLOWER

                              जरबेरा   फूल

                  जरबेरा एक बहुवर्षीय तना रहित पौधा है। ये मूलता दक्षिण अफ्रीका और एशिया का पौधा है।जरबेरा का फूल कई रंगो में पाया जाता है। लाल ,गुलाबी ,ऑरेंज ,सफ़ेद रंगो में होता है। गुलदस्ता में कट फ्लॉवर के काम आता है। ठण्ड में पौधे को धुप चाहिए ,वहीं गर्मियों में थोड़ा छावों चाहिए। बरसात में घने पौधा को अलग कर क्यारी में लगाने पर  पूरा ठण्ड और गर्मी में खूब फूल खिलता है। एक बार फूल होने पर हफ्तों फूल खिला रहता है। फूल की सुंदरता के कारन इसे क्यारी और गमले दोनों में लगा सकते है। पानी भी ज्यादा नहीं डालना पड़ता है। पौधे में गोबर खाद और वर्मी कम्पोस्ट खाद डालना चाहिए। सुबह 10 -12 के बीच फूलों में परागण होता है ,और शाम को फूल सूखता है ,और झाड़ता है। बीज और जड़ दोनों से पौधा रोपण कर सकते है।






बुधवार, 11 मार्च 2020

GOLDEN PHILODENDRON

                       गोल्डन   फिलॉडेंड्रॉन

               गोल्डन फिलॉडेंड्रॉन पौधा का नाम  ग्रीक शब्द फिलो (लव )और डेंड्रॉन (ट्री )मिलकर फिलॉडेंड्रॉन  पड़ा।इस पौधा का मूल स्थान ब्राजील है.इसे इनडोर और आउटडोर दोनों जगह लगा सकते है। ये एक सजावटी पौधा है। इसकी हाइट करीब 3 फ़ीट है।ये बेल दार पौधा है इसलिए इसे हैंगिंग पॉट में भी लगा सकते है।करीब 400 आकर -प्रकार का होता है। पत्ती हरा सुनहरा रंग का होने के कारण इस वेरायटी का नाम  गोल्डन फिलॉडेंड्रॉन पड़ा।वैसे सीलोन का सदाबहार सजावटी पौधा भी माना और जाना जाता है। नर्सरी में सीलोन गोल्डन प्लांट के नाम से मिलता है।


  

                

रविवार, 1 मार्च 2020

MAHANT GHASIDAS SAMARAK SANGRAHALAY RAIPUR

                                    महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय

                 महंत घासीदास संग्राहलय एक पुरातात्विक संग्राहलय है। इसे 1875 में राजनांदगांव के राजा महंत घासीदास ने बनवाया था। 1953 में रानी ज्योति और उनके पुत्र दिग्विजय ने इस भवन का पुननिर्माण करवाया था। सन 1953  में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा०  राजेंद्र प्रसाद के कर कमलों द्वारा संग्राहलय भवन का लोकार्पण किया गया। इस संग्रहालय में प्राचीन हथियारों ,औजारों ,सिक्के ,मुर्तिया और नक्काशी आदि  प्रदर्शित किये गए है। छेत्रीय आदिवासी जनजाति परम्पराओं को प्रदर्शित करने वाली कई प्रादर्श यहाँ रखे गए है। छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले पशु -पक्छी ,जीव -जंतु को भी दर्शाया गया है।
      संग्राहलय में मध्यप्रदेश की भी प्राचीन मूर्तीया है ,क्योंकि छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से बाद में अलग हुआ था आज से करीब 40 -45 साल पहले एकबार संग्राहलय जाने का अवसर मिला था पर उस समय बहुत छोटा था। अब बाबा को घुमाने के बहाने फिर से जाने का मौका मिला ,देख कर बहुत ही अच्छा लगा बहुत ही बड़ा तीन फ्लोर का बना है. बड़े से कैम्प्स में बहुत आकर -प्रकार का मूर्ति देखने मिला। कैम्पस में ही एक किनारे छतीसगढ़ के पारम्परिक व्यंजनों का रेस्टोरेंट गढ़कलेवा है। जहाँ छत्तीसगढ़ी व्व्यंजन का लुत्फ़ उठा सकते है। कैम्पस में ही खुला मंच है जहाँ सांस्कृति प्रोग्राम का भी आयोजन होते रहता है।