मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

SHRADHANJALI

                                         भाव -भीनी श्रद्धांजलि

                                                               हमसबों की बड़ी भाभी

                                                              श्रीमती अनसुईया देवी  गुप्ता
                                                        11 -2 -1934  ------1 -11 2017

          बड़ी भाभी  हमारे परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला थी. भाभी के जाने के बाद एक पीढ़ी का अन्त  हो गया। भरे पुरे परिवार को रोते छोड़ कर इस  लोक से परलोक चली गयी हम सबों की बड़ी भाभी। भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.और  परिवार वालों को हिम्मत दे।
                                 
                                        आदरणीय भाभी जी के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित







गुरुवार, 23 नवंबर 2017

SHRI RAM MANDIR RAIPUR

                                                     श्री राम मंदिर

            रायपुर में मंदिरों की कमी नहीं है। बहुत ही पुराना शहर होने के कारन जहाँ सैकड़ों साल पुराना दूधाधारी मंदिर है ,वहीं छत्तीसगढ़ राजधानी बनने के बाद बहुत सारा भव्य मंदिर भी रायपुर में बन रहा है। इन्हीं में एक राम मंदिर भी है जिसे बने एक साल हो गया है।
       अब अयोध्या में जब बनेगा तब बने रायपुर में तो बहुत ही विशाल ,भव्य ,खूबसूरत सूंदर सा राम मंदिर बन गया है। अधिकतर राम मंदिर में राम ,सीता और लक्ष्मण का खड़ा ही मूर्ती देखने मिला पर इस मंदिर में राम -सीता की जोड़ी बैठी मुद्रा में बहुत ही खुबसुरती से बनाया गया है।पूरा मंदिर और मंदिर का परिसर का सजावट ,कलाकारी और फूल -फुलवारी देखते ही बनता है। एकदम मन प्रसन्न हो जाये शांत ,स्वच्छ ,सुन्दर  ऐसा वातावरण मंदिर परिसर का है। घंटो मंदिर के गार्डन में घुमो बैठो समय का पता ही नहीं चलेगा।  शहर के भीड़ भाड़  से दूर और शहर के शहर में ही बना हुआ है ये मंदिर। कभी भी जाओ दर्शन करो सजावट देखो ,कोई बहार से मेहमान आयें तो उनको भी घुमा सकते है। जो देखेगा वही प्रसन्न हो कर जायेगा।







सोमवार, 20 नवंबर 2017

DUDHADHARI MATH

                                                 दूधाधारी मठ

                          पाँच सौ साल पहले सन 1610 में राजा रघुराव भोंसले ने दूधाधारी मठ का निर्माण किया था।यहाँ के महंत स्वामी बलभद्र दास हनुमान भक्त थे। वे रोज हनुमान जी का दुग्ध स्नान कर के उस दुग्ध का पान करते थे वे अन्नाहार नहीं लेते थे। इसलिए मठ का नाम दूधाधारी पड़ा। रामानन्दी संप्रदाय का मंदिर होने के कारन राम का मंदिर है। साथ ही महंत हनुमान भक्त थे इसलिए हनुमान और संकट मोचन का भी मंदिर इस प्रांगन में है। मराठा राजा के द्वारा मंदिर का निर्माण हुआ और ओड़ीसा के कारीगरों ने बनाया था इसलिए मंदिर का वास्तु शास्त्र ओड़ीसा शैली और अलंकरण मराठा शैली में तथा पेंटिंग भी मराठा शैली में है
      राम मंदिर होने के कारन मंदिर के दीवारों में पुरा रामायण का चित्रण पेंटिंग के जरिये किया गया था ,जो आज भी सुरक्छित है। मंदिर के प्रांगण में विष्णु जीऔर लक्ष्मी जी  का भी मंदिर है  जिसे बाला जी मंदिर बोला जाता है। यहाँ के राम मंदिर में राम -सीता जी के साथ चारों भाईयों का भी मूर्ती है।  मंदिर बहुत बड़े प्रांगण में होने के कारन गौशाला ,अतिथीशाला  ,सीता रसोईं बहुत कुछ है। उस ज़माने में बहुत दूर दूर से संत आते थे और यहाँ विश्राम करते थे फिर आगे की यात्रा में निकल जाते थे। इसलिए राजा लोग पुरे गावं को मंदिर के लिये दान कर देते थे और इतना बड़ा -बड़ा मठ बनाते थे। जिससे साधु संतों को खाने पीने और रात्रि विश्राम के लिये कुछ असुविधा ना हो। आज भी बहुत साधु संत  मठ में भ्रमण के दौरान भोजन और विश्राम इस मठ में करते है।
        मंदिर के प्रांगण में एक नीम का पेड़ भी काफी पुराना है और उसका आकर भी दतवन और जीभी जैसा है। मान्यता है की महंतनीम का  दतवन कर के यहीं फेकते थे इसलिए इस आकर में पेड़ हो गया। अब सच जो हो पुराना पेड़ किसी भी बहाने से सुरक्छित है यही बहुत बड़ी बात है। चालीस साल पहले इस मठ को  देखने के बाद अब जा कर फिर से देखने का हमको मौका मिला।दूधाधारी मठ देख कर बहुत ही अच्छा लगा एकदम साफ सुथरा स्वच्छ वातावरण था। किरण को बहुत -बहुत धन्यबाद जिसके कहने पर ही हमलोग फिर से मठ जा कर दर्शन कर पाए।










   

शनिवार, 4 नवंबर 2017

DEV DEEPAWALI

                                            देव दीपावली
                                                 कार्तिक पूर्णिमा
                                                        प्रकाश पर्व 

                      कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा तट पर उत्तरे देवलोक की छवि जैसी है काशी की देव दीपावली। बनारस के पंच गंगा घाट पर 1915 से  हजारों दीपक जला कर पूजा और आरती कर के देव दीपावली की शुरुआत की गई थी। 
     मान्यता ये है की भगवान विष्णु ने अपना पहला मत्स्य अवतार इसी दिन लिया था। और शिव जी भी इसी दिन त्रिपुर राक्छस का वध किये थे। इसलिए देव दीपावली पर्व मानने की प्रथा बनारस  में शुरू हो गई।  
       वैसे शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक व्रत -त्योहार का लाईन लगा रहता है। कार्तिक पूर्णिमा में गुरुनानक जयन्ती होने के कारण प्रभात फेरी और प्रकाश पर्व भी पुरे देश में मनाया जाता है। गंगा स्नान के अलावा सभी नदियों में भी मेला लगता है और लोग बाग स्नान और दान -पुन्न करते है।
  रायपुर के महादेव घाट में भी लाखों लोग सुबह से ही  स्नान और दान पुन्न करने नदी के  तट पर जमा होने लगते हैं।  हर साल मेला का भी आयोजन होता  है।इस साल हमलोग भी मेला देखने  शाम को महादेव घाट पहुँच गए। मेला घूम कर  वापस घर आने पर बहुत ही सुन्दर कार्तिक पूर्णिमा का चाँद का दर्शन हुआ।





मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

TULASI VIVAH

                   तुलसी विवाह     देवउठानी एकादशी

       कार्तिक माह की एकादशी को तुलसी विवाह मनाने की प्रथा है। इस बार तुलसी विवाह 31 अक्टूबर को हुआ । मान्यता ये है की देवशयनी एकादशी को विष्णु जी समेत सारे देवता क्षीर सागर में जाकर सो जाते है फिर  चार महीना सो कर कार्तिक एकादशी के दिन भगवान जागते है। इस दिन से ही कोई भी  मांगलिक कार्य किया जाता है।
   एक मान्यता ये भी है की तुलसी को श्राप मिला की काष्ठ की हो जाये और विष्णु जी को श्राप मिला था पत्थर के हो जायेंगे। पहले तुलसी का नाम वृन्दा था। विष्णु प्रिया  तुलसी और शालीग्राम (विष्णु ) जी का विवाह एकादशी के दिन  कराया जाता है इसलिए इस दिन को देव उठानी एकादशी बोलते है।
     अब जो हो इसी बहाने घर -घर तुलसी का पौधा जरूर होता है।अब तो तुलसी का महत्व  वैज्ञानिक भी कैंसर और बहुत सारे दवाईयों के लायक मानते है।तुलसी के पौधे से शुद्ध हवा भी घर आंगन का मौहाल पवित्र करता है। वृ न्द ा वन में किसी ज़माने में तुलसी ही तुलसी का वन था। तुलसी का नाम वृन्दा होने के कारण ,तुलसी वन का नाम वृन्दा वन पड़ा। हमारे पुर्वज कितना रिसर्च कर चुके थे इसी से पता चलता है की  एक एक फल -फूल ,पेड़ -पौधा, सभी प्रकृति वस्तु को जानते और समझते थे।सभी का गुण और समाज में धर्म से जोड़ कर प्रचार प्रसार करे थे। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग -बाग जाने समझे और उपयोग करे, है ना अच्छी बात।







  

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

AKSHYA NAVMI AMLA POOJA

                           अक्षय नवमी
                                         आमला नवमी पूजा

              जैसा की नाम है आमला नवमी , कार्तिक नवमी के दिन आमला के पेड़ की पूजा की जाती है।माना जाता है कीआमला के पेड़ में  विष्णु जी और शिव जी का वास  है। इसलिए नवमी तिथि को आमला के पेड़ की पूजा की जाती है। और पेड़ के नीचे ब्राम्हण को भोजन करा कर भोजन करना चाहिए। इस दिन आमला दान करना चाहिए और खाना भी चाहिए।जिससे घर धन -धान्य से भरा रहेगा ,परिवार खुशहाल और निरोग्य रहेगा।
              हमारे साधु -संत कितने ज्यादा ज्ञानीऔर विज्ञानी  थे इसी से पता चलता है की आमला फल को भी धर्म से जोड़ दिए। अब जब हम साल भर पेड़ का सेवा करेंगे तब उसमें फल होगा और तब ही हम पूजा कर सकेंगे। उन्हें हजारों साल पहले से अमला का औषधीय गुणों का पता था। अब धर्म से जोड़ ने पर लोग बाग पूजा के बहाने पेड़ लगायेंगे और फल खाएंगे। लोग निरोग होंगे तो बीमारी से दूर रहेंगे ,पर्यावरण अच्छा रहेगा,है ना एक पंत दो काज।
   इस बार आमला नवमी 29 अक्टूबर को पड़ा है पूजा भी करो और परिवार के साथ पिकनिक भी मना लो। आज कल बाग बगीचे ,उद्यान हर जगह आमला का पेड़ लगाया जाता है। बस लोग बाग पूजा भी कर लेते है। सबों का मिलना जुलना भी हो जाता है.पूजा पाठ ,व्रत , त्योहार का त्योहार मित्रों का सामूहिक वन भोज सब का सब एक साथ हो जाता है।
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शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

JAGADDHATRI PUJA

                                  जगद्धात्री पूजा

         रामकृष्ण परमहंस की पत्नी माँ शारदा देवी को पूर्ण जन्म में विश्वास था। उनका मानना था की देवी दुर्गा फिर से धरती में अवतरित होकर दुष्टों का नाश करेंगीऔर खुशियाँ देंगी।
     दुर्गा पूजा की तरह ही दुर्गा पूजा के बाद कार्तिक मास में जगद्धात्री पूजा बंगाल और ओडीशा में पुरे विधि विधान से की जाती है।देवी माँ का  जैसा नाम है जगद्धात्री  उसी से पता चलता है की जग की रक्छा  करने वाली देवी।।बात बहुत पुरानी है बंगाल के चन्दन नगर ,पुराने दिनों  में काफी सम्पन और समृद्ध  था। वहाँ के लोग  व्यापर  करते थे। एक व्यापारी इन्द्रनारायण  चौधरी सन 1750 में धूम -धाम से जगद्धात्री देवी की पूजाअपने आवास में की थी। तब से पुरे देश में ये पूजा मनाया जाने लगा।
     नई पीढ़ी को तो पता ही नहीं है की कार्तिक मास के अष्टमी ,नवमी और दशमी में ये पूजा किया जाता है।इस बार 27 से 30  अक्टूबर को जगद्धात्री पूजा मनाया जा रहा है । हमलोगों का बचपन बंगाल के बॉर्डर टाटानगर में बंगालियों के साथ गुजरा ,इसलिए बंगाली पूजा का पता रहता है और हमलोग भी सभी बंगाली त्योहार खुशी -खुशी मनाते थे। जगद्धात्री देवी का मूर्ती भी दुर्गा जी जैसा ही होता है और शेर की सवारी। शायद शारदा माँ के विश्वास के कारण  ही दुर्गा माँ का फिर से अवतार हुआ हो। अब जो हो इसी बहाने  पूजा का मौहाल बन जाता है लोग बाग इकठा होते है  .मिलकर सब तैयारी करते है। देश और समाज का कल्याण ही होता है।



  

बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

CHHATH PUJA

                                    आस्था का महा पर्व छठ

                   हमारे पूर्वज बहुत ही ज्ञानी और विज्ञानी थे। हजारों साल पहले से पृथ्वी ,ग्रह नछत्र ,जल सब के विषय का उन्हें ज्ञान था। उन्हें पता था कैसे पर्यावरण और स्वास्थ को संतुलित करना चाहिए। इसलिए धर्म से सभी व्रत त्योहार को जोड़ा गया था।
     यदि बात छठ पूजा का करे जो की आज है। वैसे चार दिन का बहुत ही कठीन पूजा है। इसमें साफ -सफाई और शुद्धता में जोर दिया गया है। जहाँ इस व्रत में व्रती महिला 36 घंटे का उपवास करती है। वहीं सामुहिक आयोजन करना पड़ता है हर वर्ग के लोग जलाशय ,तालाब ,नदियों की सफाई में जुट जाते है। पूजन सामग्री भी मौसम से जुड़ा फल वगैरा होता है। प्रसाद भी गुड़ और आटा(ठेकुआ ) से बनता है।
      इस व्रत की  सबसे बड़ी बात सूर्य उपासना का है। डूबता सूर्य और उगता सूर्य दोनों का ही पूजा होता है ,वो भी नदी ,जलाशय में अर्ध देकर। माना जाता है की सूर्य की बहन छठ देवी है इसलिए कार्तिक मास के छठवें दिन छठ पूजा सूर्य को अर्द्ध देकर किया जाता है।अपने संतान और परिवार की खुशीयाली के लिये महिलाएं व्रत रखती है और सूर्य को अर्द्ध देने के बाद ही पारण करती है।
     वैसे हमारे देश में जग प्रसिद्ध  सूर्य मंदिर कोणार्क में तो है ही इसके अलावा बिहार और बाकी बहुत शहरों में भी  सात घोड़े वाला सूर्य रथ वाला मंदिर है। अब सिर्फ बिहार में ही छठ व्रत नहीं होता है बल्कि सारे भारत में मनाया जाता। इसी बहाने जलाशयों की साफ सफाई भी हो जाती है। पर्यावरण ,स्वाथ्य और सामूहिक आयोजन सब हो जाता है।






शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

BHAI PHONTA (DOOJ)

                                             भाई फोंटा (दूज )
                      कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भाई बहन के घर जाता है और बहनें भाई की लम्बी उम्र के लिये भाई का टीका करती है और खीर खिलाती है। जैसे दूध में  चावल और चीनी घुल मिल कर खीर बन जाता है वैसे ही भाई और बहन घुल मिल कर रहने का संकल्प करते है। इसलिए इस त्योहार को भाई दूज बोला जाता है। 
             वैसे मान्यता ये भी है की सूर्य के दो संतान थे यम और यमुना। यम तो यमलोक में रहते थे और मृत्यलोक सँभालते थे और पापियों को सजा देते थे।बहन  यमुना को ये सब देखा नहीं जाता था, इसलिए वे धरती में अवतरित हो गयी। एक बार की बात है की यमराज की मुलाकात बहन यमुना से धरती में हो गयी। उस दिन कार्तिक शुक्ल दूज था,यमुना ने भाई का टीका किया और  खीर खिलाया। यम ने खुश हो कर यमुना से कुछ माँगने कहा यमुना ने कहा की देना है तो ये वरदान दो की आज की तिथि में जो भी भाई अपनी बहन से मिले गा और दोनों बहन भाई एक साथ में जमुना में डुबकी लगाएगा,और भाई का टीका करेगा  उसे यमलोक जाना नहीं पड़ेगा। बस तब से ही ये प्रथा चले आ रहा है लोग भाई दूज का त्योहार मनाते है। पर जमुना में स्नान करने सब नहीं जा पाते है और ना तो नई पीढ़ी को पता है। 
  बचपन में दादी से सुने थे और देखे थे की दादी अपने भाई के साथ इलाहाबाद जा कर जमुना में डुबकी लगाई थी। और बचपन से ही देखते है इस दिन खीर और दलभरी पूरी माँ लोग बनाते थे और हमलोग भाईदूज का इंतजार करते थे की भाई को टीका लगाने पर पकवान तो खाने मिलता था ही और गिफ्ट भी मिलता था। पर हम इतने खुश नसीब नहीं थे इस लिये हमारे दोनों भाईयों को यमराज बहुत ही जल्दी ले गए। वे जहाँ भी हो उनकी आत्मा को भगवान शांति प्रदान करे।




बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

KALI PUJA

                                               काली पूजा

                              काली पूजा एक हिन्दू त्योहार है ,जो देवी काली को समर्पित है। दिवाली उत्सव के दौरान अमावस्या तिथि के दिन मध्य रात्री को काली पूजा का विधान है। वैसे तो दिवाली के दिन जहाँ सब जगह सब लोग लक्ष्मी पूजा करते है वहीं बंगाल ,ओडीशा और आसाम में काली पूजा किया जाता है।शरद पूर्णिमा के दिन इन जगहों में लक्ष्मी पूजा हो जाता है।
      जिस प्रकार बालगंगाधर तिलक जी ने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के रूप में गणेश पूजा धूम धाम से शुरू करवाए थें। उसी प्रकार नवद्वीप के राजा कृष्ण चंद्र ने 18 वीं सदी में काली पूजा कार्तिक अमावस्या के रात्री में शुरू करवाया था।
       मान्यता ये है की शम्भु -अशंभु नामक असुर ब्रम्हांड में एकदम उथल पुथल मचा दिया था। तब देवताओं ने दुर्गा जी की आराधना की तो काली जी की उत्पति हुई। काली जी के हाँथ में खड़ग था। वे असुरों का वध कर रक्त पीकर मुंड माल धारण करते जा रही थी। रास्ते में जो भी मिलता उसीका वध करते जा रही थी रुकने का नाम ही नहीं था। शिवजी ने उनको रोकने के लिये उनके रास्ते में लेट गए। काली जी का पैर जैसे ही शिवजी के छाती में पड़ा तो आश्चर्ज से वही रुक गयी और जीभ बहार निकला रह गया। बस तब से ही काली जी का इसी रूप में पूजा होना शुरू हो गया।
     काली पूजा तांत्रिक लोग तंत्र मन्त्र से अर्धरात्री में सिद्धी के लिये अमावस्या के काली रात को करते है और बलि  भी देते है। अब तो बलि  में एक बड़ा सा रखिया  कुम्हड़ा ही से बलि  किया जाता है, और प्रसाद भी सुबह दिया जाता है। टाटा और बंगाल में तो दुर्गा पूजा के बाद उसी पंडाल में शरद पूर्णिमा में लक्ष्मी पूजा और फिर कार्तिक अमावस्या को काली पूजा किया जाता है और उसके बाद ही पंडाल हटाया जाता है। टेल्को में तो 22 फ़ीट की काली जी की प्रतिमा बना कर हर साल पूजा करते है और फिर उसका विसर्जन किया जाता है। 1976 से 22 फ़ीट वाला काली पूजा टेल्को कॉलोनी में होता है। और बाकी सारे पूजा पंडाल में सामान्य मूर्ती का  पूजा होता है।