मेला मेला मेला ---------और मेला
इस साल जनवरी माह में मेला का बरसात लग गया था। जब से कुन्नूर से आये हैं बस हर 4- 6 दिन के बाद एक मेला जाने का अवसर मिलते जा रहा है
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1- फूलों का मेला ,
2- स्वदेशी मेला ,
3 -पुस्तक मेला ,
4 -एग्रीकल्चर मेला।
सभी मेला एक से बढ़ कर एक था। जहाँ बहुत कुछ जानने और सिखने मिला। छत्तीसगढ़ सरकार का ये प्रयोजन सराहनीय है। स्वदेशी मेला में अपने देश की संस्क्रीती देखने मिलती है। नहीं तो आज के दौर में इंगलिश नाच गाना के प्रति लोगों का रुझान बढ़ते जा रहा है। सरकारी प्रयास से कम से कम ये पीढ़ी कुछ तो जाने समझे।सभी आयोजन देख कर बहुत ही अच्छा लगा। हर मेला में उचित दाम में सामान भी मील जाता है। चाहे पुस्तक हो या पौधा या सजावटी सामान। मेला घूमना का घूमना और खरीदी का खरीदी।
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