सोमवार, 30 जनवरी 2017

FAIR FAIR AND FAIR

                                      मेला  मेला  मेला ---------और मेला 
                    
                                    इस साल जनवरी माह में मेला का बरसात लग गया था। जब से कुन्नूर से आये हैं बस हर 4- 6 दिन के बाद एक मेला जाने का अवसर मिलते जा रहा है
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             1- फूलों का मेला ,
             2-  स्वदेशी मेला , 
              3 -पुस्तक मेला ,
               4 -एग्रीकल्चर मेला। 

        सभी मेला एक से बढ़ कर एक था। जहाँ बहुत कुछ जानने और सिखने मिला। छत्तीसगढ़ सरकार का ये प्रयोजन सराहनीय है। स्वदेशी मेला में अपने देश की संस्क्रीती देखने मिलती  है। नहीं तो आज के दौर में इंगलिश नाच गाना के प्रति लोगों का रुझान बढ़ते जा रहा है। सरकारी प्रयास से कम से कम ये पीढ़ी कुछ तो जाने समझे।सभी आयोजन देख कर बहुत ही  अच्छा लगा।  हर मेला में उचित दाम में सामान भी मील जाता है। चाहे पुस्तक हो या पौधा या सजावटी सामान। मेला घूमना का घूमना और खरीदी का खरीदी। 




बुधवार, 25 जनवरी 2017

IT'S MY GARDEN

                                                    रंग -बिरंगी फूलों की बहार 

                            ठण्ड के मौसम में फूलों का बहार होना स्वाभाविक ही है। इस बार मौसम ने साथ दिया तो पुरे बाग में रंग बिरंगी फूलों से क्यारी सजा था। इतने दिन बाद रायपुर आने पर लगा था पता नहीं इस बार अरुण तो है नहीं गार्डन का बुरा हाल  होगा ,पर माली ने अच्छे से देख भाल कर के बाग सजाया था।
   गेंदा हो या  गुलाब ,सेवंती हो या डहलिया ,जिनीया हो या सूरजमुखी,पिटुनिया हर फूल से बाग सजा था। देख कर बहुत ही अच्छा लगा। जिनी -जॉनी अब बड़े हो गये है पौधों को नुकसान भी नहीं किये।








रविवार, 15 जनवरी 2017

FLOWER SHOW

                                                        फूलों का मेला 

                          रायपुर में इतना गर्मी पड़ने के बाद भी लोग बाग बहुत मेहनत और जतन से बाग सवारते है। फूलों के शौकीन को मौसम भी नहीं झुका सकता है। कल मेला घूम कर दिल बाग -बाग ही हो गया। एक से बढ़ कर एक फूल ,फल ,पौधा देखने मिला। कोई भी  किसी से कम नहीं था, बस देखते जाओ और बढ़ते जाओ ।3 -4 घंटा कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।  इसे ही बोला जाता है दिल गार्डन -गार्डन हो गया। 









SANKRANTI FESTIVAL

                                                           संक्रांति पर्ब 

                     हर साल 14 जनवरी को संक्रांति पर्ब  मनाया जाता है। अलग -अलग प्रान्त में अलग नाम से मनाते है, नए फसल का ही त्यौहार है.किसी प्रान्त में नये चावल का पोंगल बनाते हैं,तो कहीं खीचड़ी ,कहीं दही चूडा ,कहीं तिल -गुड़ का दान। कहीं पवित्र नदी में स्नान किया जाता है।कहीं बिहू , कहीं टुसु ,तो कहीं पोंगल।  बस चारो तरफ उत्सव और मेला का माहोल  रहता है।कहीं पतंग बाजी होता है।  
         14 जनवरी को जब सूर्य उत्तरायण में जाता है तब ही मकर संक्रांति मनाया जाता है। किसी साल पूस मास में तो किसी साल माघ मास में पड़ता है।इस बार माघ में पड़ा है। बस दान पुण्य करो पकवान बनाओ और त्यौहार मनाओ। सब तो ठीक ही चलता है। पर बच्चपन का दही चूड़ा ,तिलकुट नहीं मिलता है।

तिल का फूल और गुडिया 





  

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

THE BLUEST HEAVEN

                                                         THE BLUEST HEAVEN

             नीलगिरी को हैवन बोला जाये तो एकदम सही है। यहाँ का शांत एकांत स्वच्छ वातावरण घाटी, जंगल पहाड़ ,चाय बागान के अलावा हर 12 साल में खीलने वाला कुरंजी फूल जिसका रंग  नीला -बैगनी होने के कारन पुरे घाटी का रंग नीला हो जाता है। इसलिए नीलगिरी बोला जाता है। 
           कुन्नूर -ऊंटी के 2 -4 कीलोमीटर के रेडियस में एक से एक सुंदर झरना ,गार्डन ,बाग -बगीचा है। यहाँ का मौसम ऐसा है की साल भर टूरिस्टों का आना जाना होता रहता है। अब टूरिस्ट तो 2 -4 दीन रह कर घुम फिर कर वापस चले जातें हैं ,सब जगह एक बार में घुमना मुस्किल ही है। मेरा 3  -4 महीना एक ही बार में रहना होता है ,तो बहुत जगह कभर हो जाता है। कोई मेहमान आजाये तो फिर क्या कहना उनको घुमाने के बहाने हमारा फिर से घूमना हो जाता है। टूरिस्ट प्लेस होने के कारन मेहमान का आना जाना लगा रहता है।बस घूमते -घामते रहो, मजा ही मजा है।
                         इस बार दशहरा ,दिवाली ,क्रीसमस ,नया साल जन्मदिन राजेश का टी डाईजेस्ट भी लॉंच हुआ ,तीनो बाप बेटा इस अवसर में थे।  सब कून्नूर में ही मनाना हुआ। बच्चे भी खुश हमलोग भी खुश। भईया -भाभी भी नया साल मनाने आ गये तो   और मजा बहुत जगह उनको घुमाने के बहाने हमलोगों का भी घुमना हो गया। 
       साईं मंदिर ,पायकरा ,डोड्डाबेट्टा ,सिम्स पार्क ,टी फैक्टरी ,कटेरी पार्क,कोडांणाद ,जयललिता का टी स्टेट ,कार्तिक मंदिर और भी बहुत कुछ घुमने -देखने का मौका मिला। बच्चे तो आने ही नहीं दे रहे थे। पर 3 -4 महीना हो गया था ,अब गये थे तो आना तो पड़ेगा। खट्टी -मीठी यादें सजों कर आखीर रायपुर वापस आ ही गये।












शनिवार, 7 जनवरी 2017

KODANADU PANORAMIC VIEW

                                                                 KODANAD

                           कुन्नूर से 20 किलोमीटर की दूरी पर खुबसूरत चाय बागानों से घिरा कोटागिरी है। यहाँ एक तो अम्मा का खुबसूरत टी स्टेट है और दूसरा कोडानाड  व्यू पॉइन्ट है। एक तरफ जहाँ चाय बागान है तो दुसरी तरफ खाई और चट्टान, कब और कैसे ऐसा हुआ होगा पता नहीं। जरूर सैकड़ों साल पहले कभी भूकंप ,सुनामी कुछ तो जरूर हुआ होगा जिसके कारन कोडानाड ऐसा दिखता है। दृश्य तो बहुत ही सुंदर है और किसी जगह से तुलना भी नहीं कर सकते ,पर बरबस ऐसा लगता है की ये कुन्नूर का ग्रैंड कैनियन है। वॉच टावर से रंगास्वामी पीक भी दिखता है। दूर -दूर सिर्फ और सिर्फ चट्टान ही चट्टान। जहाँ जयललिता का चाय बागान बहुत ही सुंदर तरीके से सजा हुआ है। वैसे ही बहुत कीमती अच्छे प्रकार का चाय का उपज इस बागान में होता है ,कुन्नूर ऊंटी में ज्यादा तर ctc tea होता है तो जयललिता के बागान में ctc के अलावा व्हाइट टी ,वुलांग टी ,ग्रीन टी ,लॉन्ग टी आदी कीमती चाय का उपज होता है। कुन्नूर से दूर जरूर है पर देखने लायक जगह है।





             

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

KARTIKEYA TEMPLE

                                                 भगवान कार्तिक का  मंदिर 

                 हमारे घर के सामने चाय बगान, घना जंगल और पहाड़ के ऊपर कार्तिक का मंदिर बना हुआ है। धर्म के अलावा इसे एडवेंचर टूर ज्यादा बोल सकते है। रोज सुबह शाम दर्शन होते रहता है। 2 -3 बार पहले भी अलग -अलग अवसर में जाना हुआ है। अब इस बार भईया लोग थे तो उनलोगों को भी दिखाने निकल पड़े। 
             रास्ते भर चाय बागानों में पत्तीयों का कटाई -छटाई चल रहा था और वहाँ से नजारा भी अच्छा लग रहा था। बस हमलोग गाड़ी से उतर कर चाय बागानों में घुस गये उनके औजार लेकर पत्ती काटना शुरू कर दिए। भाभी को मजा आने लगा ,हमलोगों का हँस -हँस कर बुरा हाल हो रहा था आखीर घूमते घामते पहाड़ के ऊपर चढ़ ही गये। ऊपर सैकड़ों साल पुराना कार्तिक जी का मंदिर था। वहाँ से कून्नूर का नजारा भी अच्छा लग रहा था। यहाँ भी धूप खीला था तो सब अच्छा लगना ही था। फिर धीरे -धीरे दोपहर तक घूमते हुए वापस घरआ  गये





DOLPHIN'S NOSE AND LAMB'S ROCK

                                                 डॉल्फिन नोज एंड लैम्ब्स रॉक 

                कुन्नूर में ही हमारे घर से 8 किलोमीटर की दूरी में लैम्ब्स रॉक है। ये भी काफी फेमस पिकनिक प्लेस है। सिम्स पार्क आने वाले यहाँ भी जरूर जाते हैं। कैप्टन लैम्ब के नाम पर इस रॉक का नाम लैम्ब्स रॉक  पड़ा है ,  पर टूरिस्ट प्लेस होने के कारन पत्थर लैम्ब के जैसा दिखता है ऐसा बोला जाता है।  
        डॉल्फिन्स नोज --ये भी लैम्ब्स रॉक के रास्ते में थोड़े आगे पड़ता है। सिम्स पार्क से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से भी बहुत ही सुंदर नजारा देखने मिलता है। चट्टान डॉल्फिन के नोज जैसा दीखता है। सामने ही कोटागिरी साईड में कैथरीन फाल कल -कल बहते हुये बड़ा ही सुंदर नजारा दीखता है।
                              सिम्स पार्क से चाय बागानों और घुमाव दार घाट होते हुए जाना पड़ता है ,जो अपने आप में रोमांचक है.




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