तुलसी विवाह देवउठानी एकादशी
कार्तिक माह की एकादशी को तुलसी विवाह मनाने की प्रथा है। इस बार तुलसी विवाह 31 अक्टूबर को हुआ । मान्यता ये है की देवशयनी एकादशी को विष्णु जी समेत सारे देवता क्षीर सागर में जाकर सो जाते है फिर चार महीना सो कर कार्तिक एकादशी के दिन भगवान जागते है। इस दिन से ही कोई भी मांगलिक कार्य किया जाता है।
एक मान्यता ये भी है की तुलसी को श्राप मिला की काष्ठ की हो जाये और विष्णु जी को श्राप मिला था पत्थर के हो जायेंगे। पहले तुलसी का नाम वृन्दा था। विष्णु प्रिया तुलसी और शालीग्राम (विष्णु ) जी का विवाह एकादशी के दिन कराया जाता है इसलिए इस दिन को देव उठानी एकादशी बोलते है।
अब जो हो इसी बहाने घर -घर तुलसी का पौधा जरूर होता है।अब तो तुलसी का महत्व वैज्ञानिक भी कैंसर और बहुत सारे दवाईयों के लायक मानते है।तुलसी के पौधे से शुद्ध हवा भी घर आंगन का मौहाल पवित्र करता है। वृ न्द ा वन में किसी ज़माने में तुलसी ही तुलसी का वन था। तुलसी का नाम वृन्दा होने के कारण ,तुलसी वन का नाम वृन्दा वन पड़ा। हमारे पुर्वज कितना रिसर्च कर चुके थे इसी से पता चलता है की एक एक फल -फूल ,पेड़ -पौधा, सभी प्रकृति वस्तु को जानते और समझते थे।सभी का गुण और समाज में धर्म से जोड़ कर प्रचार प्रसार करे थे। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग -बाग जाने समझे और उपयोग करे, है ना अच्छी बात।
कार्तिक माह की एकादशी को तुलसी विवाह मनाने की प्रथा है। इस बार तुलसी विवाह 31 अक्टूबर को हुआ । मान्यता ये है की देवशयनी एकादशी को विष्णु जी समेत सारे देवता क्षीर सागर में जाकर सो जाते है फिर चार महीना सो कर कार्तिक एकादशी के दिन भगवान जागते है। इस दिन से ही कोई भी मांगलिक कार्य किया जाता है।
एक मान्यता ये भी है की तुलसी को श्राप मिला की काष्ठ की हो जाये और विष्णु जी को श्राप मिला था पत्थर के हो जायेंगे। पहले तुलसी का नाम वृन्दा था। विष्णु प्रिया तुलसी और शालीग्राम (विष्णु ) जी का विवाह एकादशी के दिन कराया जाता है इसलिए इस दिन को देव उठानी एकादशी बोलते है।
अब जो हो इसी बहाने घर -घर तुलसी का पौधा जरूर होता है।अब तो तुलसी का महत्व वैज्ञानिक भी कैंसर और बहुत सारे दवाईयों के लायक मानते है।तुलसी के पौधे से शुद्ध हवा भी घर आंगन का मौहाल पवित्र करता है। वृ न्द ा वन में किसी ज़माने में तुलसी ही तुलसी का वन था। तुलसी का नाम वृन्दा होने के कारण ,तुलसी वन का नाम वृन्दा वन पड़ा। हमारे पुर्वज कितना रिसर्च कर चुके थे इसी से पता चलता है की एक एक फल -फूल ,पेड़ -पौधा, सभी प्रकृति वस्तु को जानते और समझते थे।सभी का गुण और समाज में धर्म से जोड़ कर प्रचार प्रसार करे थे। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग -बाग जाने समझे और उपयोग करे, है ना अच्छी बात।