मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

TULASI VIVAH

                   तुलसी विवाह     देवउठानी एकादशी

       कार्तिक माह की एकादशी को तुलसी विवाह मनाने की प्रथा है। इस बार तुलसी विवाह 31 अक्टूबर को हुआ । मान्यता ये है की देवशयनी एकादशी को विष्णु जी समेत सारे देवता क्षीर सागर में जाकर सो जाते है फिर  चार महीना सो कर कार्तिक एकादशी के दिन भगवान जागते है। इस दिन से ही कोई भी  मांगलिक कार्य किया जाता है।
   एक मान्यता ये भी है की तुलसी को श्राप मिला की काष्ठ की हो जाये और विष्णु जी को श्राप मिला था पत्थर के हो जायेंगे। पहले तुलसी का नाम वृन्दा था। विष्णु प्रिया  तुलसी और शालीग्राम (विष्णु ) जी का विवाह एकादशी के दिन  कराया जाता है इसलिए इस दिन को देव उठानी एकादशी बोलते है।
     अब जो हो इसी बहाने घर -घर तुलसी का पौधा जरूर होता है।अब तो तुलसी का महत्व  वैज्ञानिक भी कैंसर और बहुत सारे दवाईयों के लायक मानते है।तुलसी के पौधे से शुद्ध हवा भी घर आंगन का मौहाल पवित्र करता है। वृ न्द ा वन में किसी ज़माने में तुलसी ही तुलसी का वन था। तुलसी का नाम वृन्दा होने के कारण ,तुलसी वन का नाम वृन्दा वन पड़ा। हमारे पुर्वज कितना रिसर्च कर चुके थे इसी से पता चलता है की  एक एक फल -फूल ,पेड़ -पौधा, सभी प्रकृति वस्तु को जानते और समझते थे।सभी का गुण और समाज में धर्म से जोड़ कर प्रचार प्रसार करे थे। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग -बाग जाने समझे और उपयोग करे, है ना अच्छी बात।







  

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

AKSHYA NAVMI AMLA POOJA

                           अक्षय नवमी
                                         आमला नवमी पूजा

              जैसा की नाम है आमला नवमी , कार्तिक नवमी के दिन आमला के पेड़ की पूजा की जाती है।माना जाता है कीआमला के पेड़ में  विष्णु जी और शिव जी का वास  है। इसलिए नवमी तिथि को आमला के पेड़ की पूजा की जाती है। और पेड़ के नीचे ब्राम्हण को भोजन करा कर भोजन करना चाहिए। इस दिन आमला दान करना चाहिए और खाना भी चाहिए।जिससे घर धन -धान्य से भरा रहेगा ,परिवार खुशहाल और निरोग्य रहेगा।
              हमारे साधु -संत कितने ज्यादा ज्ञानीऔर विज्ञानी  थे इसी से पता चलता है की आमला फल को भी धर्म से जोड़ दिए। अब जब हम साल भर पेड़ का सेवा करेंगे तब उसमें फल होगा और तब ही हम पूजा कर सकेंगे। उन्हें हजारों साल पहले से अमला का औषधीय गुणों का पता था। अब धर्म से जोड़ ने पर लोग बाग पूजा के बहाने पेड़ लगायेंगे और फल खाएंगे। लोग निरोग होंगे तो बीमारी से दूर रहेंगे ,पर्यावरण अच्छा रहेगा,है ना एक पंत दो काज।
   इस बार आमला नवमी 29 अक्टूबर को पड़ा है पूजा भी करो और परिवार के साथ पिकनिक भी मना लो। आज कल बाग बगीचे ,उद्यान हर जगह आमला का पेड़ लगाया जाता है। बस लोग बाग पूजा भी कर लेते है। सबों का मिलना जुलना भी हो जाता है.पूजा पाठ ,व्रत , त्योहार का त्योहार मित्रों का सामूहिक वन भोज सब का सब एक साथ हो जाता है।
.






शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

JAGADDHATRI PUJA

                                  जगद्धात्री पूजा

         रामकृष्ण परमहंस की पत्नी माँ शारदा देवी को पूर्ण जन्म में विश्वास था। उनका मानना था की देवी दुर्गा फिर से धरती में अवतरित होकर दुष्टों का नाश करेंगीऔर खुशियाँ देंगी।
     दुर्गा पूजा की तरह ही दुर्गा पूजा के बाद कार्तिक मास में जगद्धात्री पूजा बंगाल और ओडीशा में पुरे विधि विधान से की जाती है।देवी माँ का  जैसा नाम है जगद्धात्री  उसी से पता चलता है की जग की रक्छा  करने वाली देवी।।बात बहुत पुरानी है बंगाल के चन्दन नगर ,पुराने दिनों  में काफी सम्पन और समृद्ध  था। वहाँ के लोग  व्यापर  करते थे। एक व्यापारी इन्द्रनारायण  चौधरी सन 1750 में धूम -धाम से जगद्धात्री देवी की पूजाअपने आवास में की थी। तब से पुरे देश में ये पूजा मनाया जाने लगा।
     नई पीढ़ी को तो पता ही नहीं है की कार्तिक मास के अष्टमी ,नवमी और दशमी में ये पूजा किया जाता है।इस बार 27 से 30  अक्टूबर को जगद्धात्री पूजा मनाया जा रहा है । हमलोगों का बचपन बंगाल के बॉर्डर टाटानगर में बंगालियों के साथ गुजरा ,इसलिए बंगाली पूजा का पता रहता है और हमलोग भी सभी बंगाली त्योहार खुशी -खुशी मनाते थे। जगद्धात्री देवी का मूर्ती भी दुर्गा जी जैसा ही होता है और शेर की सवारी। शायद शारदा माँ के विश्वास के कारण  ही दुर्गा माँ का फिर से अवतार हुआ हो। अब जो हो इसी बहाने  पूजा का मौहाल बन जाता है लोग बाग इकठा होते है  .मिलकर सब तैयारी करते है। देश और समाज का कल्याण ही होता है।



  

बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

CHHATH PUJA

                                    आस्था का महा पर्व छठ

                   हमारे पूर्वज बहुत ही ज्ञानी और विज्ञानी थे। हजारों साल पहले से पृथ्वी ,ग्रह नछत्र ,जल सब के विषय का उन्हें ज्ञान था। उन्हें पता था कैसे पर्यावरण और स्वास्थ को संतुलित करना चाहिए। इसलिए धर्म से सभी व्रत त्योहार को जोड़ा गया था।
     यदि बात छठ पूजा का करे जो की आज है। वैसे चार दिन का बहुत ही कठीन पूजा है। इसमें साफ -सफाई और शुद्धता में जोर दिया गया है। जहाँ इस व्रत में व्रती महिला 36 घंटे का उपवास करती है। वहीं सामुहिक आयोजन करना पड़ता है हर वर्ग के लोग जलाशय ,तालाब ,नदियों की सफाई में जुट जाते है। पूजन सामग्री भी मौसम से जुड़ा फल वगैरा होता है। प्रसाद भी गुड़ और आटा(ठेकुआ ) से बनता है।
      इस व्रत की  सबसे बड़ी बात सूर्य उपासना का है। डूबता सूर्य और उगता सूर्य दोनों का ही पूजा होता है ,वो भी नदी ,जलाशय में अर्ध देकर। माना जाता है की सूर्य की बहन छठ देवी है इसलिए कार्तिक मास के छठवें दिन छठ पूजा सूर्य को अर्द्ध देकर किया जाता है।अपने संतान और परिवार की खुशीयाली के लिये महिलाएं व्रत रखती है और सूर्य को अर्द्ध देने के बाद ही पारण करती है।
     वैसे हमारे देश में जग प्रसिद्ध  सूर्य मंदिर कोणार्क में तो है ही इसके अलावा बिहार और बाकी बहुत शहरों में भी  सात घोड़े वाला सूर्य रथ वाला मंदिर है। अब सिर्फ बिहार में ही छठ व्रत नहीं होता है बल्कि सारे भारत में मनाया जाता। इसी बहाने जलाशयों की साफ सफाई भी हो जाती है। पर्यावरण ,स्वाथ्य और सामूहिक आयोजन सब हो जाता है।






शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

BHAI PHONTA (DOOJ)

                                             भाई फोंटा (दूज )
                      कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भाई बहन के घर जाता है और बहनें भाई की लम्बी उम्र के लिये भाई का टीका करती है और खीर खिलाती है। जैसे दूध में  चावल और चीनी घुल मिल कर खीर बन जाता है वैसे ही भाई और बहन घुल मिल कर रहने का संकल्प करते है। इसलिए इस त्योहार को भाई दूज बोला जाता है। 
             वैसे मान्यता ये भी है की सूर्य के दो संतान थे यम और यमुना। यम तो यमलोक में रहते थे और मृत्यलोक सँभालते थे और पापियों को सजा देते थे।बहन  यमुना को ये सब देखा नहीं जाता था, इसलिए वे धरती में अवतरित हो गयी। एक बार की बात है की यमराज की मुलाकात बहन यमुना से धरती में हो गयी। उस दिन कार्तिक शुक्ल दूज था,यमुना ने भाई का टीका किया और  खीर खिलाया। यम ने खुश हो कर यमुना से कुछ माँगने कहा यमुना ने कहा की देना है तो ये वरदान दो की आज की तिथि में जो भी भाई अपनी बहन से मिले गा और दोनों बहन भाई एक साथ में जमुना में डुबकी लगाएगा,और भाई का टीका करेगा  उसे यमलोक जाना नहीं पड़ेगा। बस तब से ही ये प्रथा चले आ रहा है लोग भाई दूज का त्योहार मनाते है। पर जमुना में स्नान करने सब नहीं जा पाते है और ना तो नई पीढ़ी को पता है। 
  बचपन में दादी से सुने थे और देखे थे की दादी अपने भाई के साथ इलाहाबाद जा कर जमुना में डुबकी लगाई थी। और बचपन से ही देखते है इस दिन खीर और दलभरी पूरी माँ लोग बनाते थे और हमलोग भाईदूज का इंतजार करते थे की भाई को टीका लगाने पर पकवान तो खाने मिलता था ही और गिफ्ट भी मिलता था। पर हम इतने खुश नसीब नहीं थे इस लिये हमारे दोनों भाईयों को यमराज बहुत ही जल्दी ले गए। वे जहाँ भी हो उनकी आत्मा को भगवान शांति प्रदान करे।




बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

KALI PUJA

                                               काली पूजा

                              काली पूजा एक हिन्दू त्योहार है ,जो देवी काली को समर्पित है। दिवाली उत्सव के दौरान अमावस्या तिथि के दिन मध्य रात्री को काली पूजा का विधान है। वैसे तो दिवाली के दिन जहाँ सब जगह सब लोग लक्ष्मी पूजा करते है वहीं बंगाल ,ओडीशा और आसाम में काली पूजा किया जाता है।शरद पूर्णिमा के दिन इन जगहों में लक्ष्मी पूजा हो जाता है।
      जिस प्रकार बालगंगाधर तिलक जी ने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के रूप में गणेश पूजा धूम धाम से शुरू करवाए थें। उसी प्रकार नवद्वीप के राजा कृष्ण चंद्र ने 18 वीं सदी में काली पूजा कार्तिक अमावस्या के रात्री में शुरू करवाया था।
       मान्यता ये है की शम्भु -अशंभु नामक असुर ब्रम्हांड में एकदम उथल पुथल मचा दिया था। तब देवताओं ने दुर्गा जी की आराधना की तो काली जी की उत्पति हुई। काली जी के हाँथ में खड़ग था। वे असुरों का वध कर रक्त पीकर मुंड माल धारण करते जा रही थी। रास्ते में जो भी मिलता उसीका वध करते जा रही थी रुकने का नाम ही नहीं था। शिवजी ने उनको रोकने के लिये उनके रास्ते में लेट गए। काली जी का पैर जैसे ही शिवजी के छाती में पड़ा तो आश्चर्ज से वही रुक गयी और जीभ बहार निकला रह गया। बस तब से ही काली जी का इसी रूप में पूजा होना शुरू हो गया।
     काली पूजा तांत्रिक लोग तंत्र मन्त्र से अर्धरात्री में सिद्धी के लिये अमावस्या के काली रात को करते है और बलि  भी देते है। अब तो बलि  में एक बड़ा सा रखिया  कुम्हड़ा ही से बलि  किया जाता है, और प्रसाद भी सुबह दिया जाता है। टाटा और बंगाल में तो दुर्गा पूजा के बाद उसी पंडाल में शरद पूर्णिमा में लक्ष्मी पूजा और फिर कार्तिक अमावस्या को काली पूजा किया जाता है और उसके बाद ही पंडाल हटाया जाता है। टेल्को में तो 22 फ़ीट की काली जी की प्रतिमा बना कर हर साल पूजा करते है और फिर उसका विसर्जन किया जाता है। 1976 से 22 फ़ीट वाला काली पूजा टेल्को कॉलोनी में होता है। और बाकी सारे पूजा पंडाल में सामान्य मूर्ती का  पूजा होता है।








शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

NATIONAL DAK DIVAS

                                                               नेशनल डाक दिवस

              भारतीय डाक सेवा 10 ऑक्टूबर  को और अन्तर्राष्ट्रीय डाक सेवा 9 ऑक्टूबर  को मनाया जाता है। भारतीय डाक सेवा की स्थापना 1766 में लार्ड क्लाइव ने की थी। भारत में पहला पोस्ट ऑफिस कोलकत्ता में शुरू हुआ ,और 1852 में स्टाम्प टिकट शुरू हुआ। भारत में  डाक सेवा को 166 वर्ष से अधिक हो गया।
     आज के आधुनिक समय में डाक और डाकिया के महत्त्व को कौन जानता है। आज देश हो या विदेश तुरंत संपर्क कर सकते है। फ़ोन करे ,व्हाट्सअप करो और भूल जाओ। पहले पत्र लिखा जाता था। अपने पुरखों का पत्र सजों के रखा जाता था। महात्मा गाँधी ,नेहरू जी का इन्दिरा के नाम जेल से लिखा पत्र हो या किसी बड़े लेखक का पत्र आज की पीढ़ी को भी पढ़ने मिल ही जाता है।
      हम इस माने में बहुत ही खुश नसीब है हमारे दादा जी ने लन्दन से 1955 में हमें खत लिखा था वह खत आज भी हमारे पास सुरक्छित है। उस समय हम बहुत ही छोटे 3 -4 साल के रहें होंगे हमको लिखना पढ़ना तो आता नहीं था और ना तो पता ही था की कभी हमारे दादा हमें पत्र भी लिखे थे। वो तो बाबा का आदत है संभाल कर सुरक्छित रखने का। एक बार राजेश ,राकेश नाना के घर टाटा गए थे नाना ने पुराना अलबम दिखाने लगे। बच्चोने मेरे दादा का मेरे नाम लिखा पत्र देखा। उन्हें बहुत ही अच्छा लगा उसमे लिखा बात पढ़ कर उन्हें बहुत मजा आया.वे लोग पत्र लाकर हमें दिए। दादा ने लिखा था लीलिया भारी बदमाश है चिठी नहीं लिखती है। बस जब याद करो पत्र  देख और पढ़ कर मजा आ जाता है।
                   आज डाक दिवस में सारी पुरानी बात याद आगई ,काश आज दादा जी होते उनको दिखाते  उनको भी अच्छा लगता।मैसेज और मेल देख कर वो मजा नहीं आता है जो पुराने पत्र में। डाक दिवस में इसलिये ही बहेतरीन काम करने वाले कर्मचारियों को डाक विभाग की ओर से पुरस्कृत भी किया जाता है। 







गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

KOJAGIRI LAKSHMI PUJA

                                                       कोजागरी लक्छमी पूजा

     अश्विन मास के शुक्ल पक्छ की पूर्णिमा को बंगाली समुदाय के लोग माँ लक्छमी की पूजा करते है। जिसे कोजागरी लोक्खी पूजा कहा जाता है। मान्यता ये है की मथुरा के राजा को सपने में धर्म देव ने कोजागरी लक्छमी पूजा करने का आदेश दीये थे। जिससे धन धान्य व् सुख समृधि प्राप्त हो। उस समय राजा आर्थिक संकट में थे। तब से ही ये पूजा होने लगा।
    बंगाली महिलाएं इस दिन व्रत रहती है ,और घर अच्छी तरह साफ सफाई करके अल्पना बनती है। फिर शाम को पूरे  विधि- विधान से पूजा- अर्चना करती है। शंख  बजाये जाते है और महिलाये उल्लू ध्वनी निकालती है। लक्छमी जी की सवारी उल्लू होने के कारण हर शुभ काम के समय बंगाल में महिलाएं उल्लू ध्वनि मुँह से करती है। फिर माँ का आवाहन गीत गाते हुए करती है। माँ से प्रार्थना किया जाता है की माँ आप के लिए सुगंधित  धूप दीप जल रहा है, आसन बिछा हुआ है ,माँ आओ मेरे घर मेंआसान ग्रहण करो।  ,नाना प्रकार का व्यंजन का प्रसाद का भोग करो। माँ मेरे घर आओ इस दिन ग्यारह प्रकार का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
   पूजा के बाद पाठ कर ,आरती करने के बाद महिलाएं अपना व्रत तोड़ती है और प्रसाद ग्रहण करती है और  दूसरों को भी प्रसाद देती है। बाकी सब जगह दीवाली के दिन लक्छमी पूजा होता है पर बंगाल में ही इस दिन लक्ष्मी पूजा होता है। बाकी सबलोग दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा करते है। इस पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मानते है और खीर ओस में रखा जाता है और मान्यता है की इस दिन अमृत बरसता है। जो हो अश्विन मास के पूर्णिमा का महत्व तो है ही।