TUE,22 DEC
अमेरिका की सैर
वैसे तो पहले भी एक दो बार अमेरिका जाना हुआ पर 1990 में छोटे सिटी में भी जाने का मौक्का मिला। छोटा क्या नाम का ही छोटा था,सब एक से बड़ कर एक चाहे बफ़ेलो हो या अल्बनी ,जोन्स टाऊन वगैरा। विशव प्रसिद्ध नियग्रा फॉल भी देखने का अवसर मिला,पता नहीं था बफ़ेलो में जाने पर नियाग्रा फॉल देखने मिलेगा।
नियाग्रा फॉल का दिन में और रात में दोनों ही समय अदभुत नजारा था। रेनकोट पहन कर लिफ्ट से नीचे उत्तर कर फिर फॉल का नजारा दिखाते हैं।वास्तव में ऎसे ही विश्व प्रसिद्ध नहीं है। फॉल का वेग ,लम्बाई ,चौड़ाई बस देखते ही बनता था। एक बात बड़ा ही अच्छा लगा फॉल दो देशों के बीच से गुजरती
है। एक तरफ कनाडा और दूसरे तरफ अमेरिका। दर्शक दोनों देशों से देख कर मजा ले सकते है। दोनों तरफ हाफ -हाफ और एक फुल पुल बना हुआ है ,जिसके पास दोनों देशों का वीज़ा है वह बड़े पुल से देखो और जिसके पास एक ही वीजा है वह एक साइड से फॉल का मजा ले सकता है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को भी इससे सीख लेना चाहिए। इतना सुन्दर हमारा कश्मीर है और हमलोग आपस में मेरा तेरा कर के कश्मीर को टूरिस्ट से वंचित कर दिए हैं। नहीं तो सारी दुनिया के लोग आकर यहाँ का भी नजारा का मजा ले सकते थे। आतंकबाद मार काट पूरा घाटी को बर्वाद कर दिया है।
इस टूर में एक मजेदार बात और हुआ। हमलोग बोस्टन सिटी भी गए थे ,पर हमें मालुम नहीं था की हावर्ड यूनिवर्सिटी यहीं है। घूमते -घूमते हावर्ड पहुँच गए। यूनिवर्सिटी देख कर इतना अच्छा लगा बहुत बड़ा खुला कैम्पस ,चारो और पेड़ ,बच्चे पेड़ के नीचे ग्रुप में पढ़ रहे। लाईन से चारो ओर अलग -अलग डिपार्टमेंट का बिल्डींग ,लाईब्रेरी ,रेस्टुरेंट सब कुछ। एकदम पढ़ने का मोैहाल। हमलोग थक कर सीढ़ी में बैठे थे एक सरदारजी जल्दी -जल्दी आरहे थे हमलोगों को बैठे देख कर बोले आपको पता है आप कहाँ बैठे हैं वर्ल्ड का सबसे बड़ा लाइब्रेरी में। उनसे बात करने पर पता चला की यहाँ एडमिसन मुस्किल से मिलता है। सच मुच में पढ़ने वाले बच्चे ही यहाँ एडमिसन लेते हैं। सरदारजी न्यूऑर्क में प्रोफेसर थे कोई मिटींग में आये थे। उनसे राजेश के एड्मिसन के बारे में पूछे तो वे बताये की पहले न्यूऑर्क यूनीवर्सिटी में एडमिसन करवा दो फिर नेक्स्ट ईयर यहाँ ट्राई करना तो हो सकता है। हमलोग को भी जोशआ गया। न्यूऑर्क कॉलेज जाकर वहाँ के टीचर से मिले सब पता कर के जब इंडिया वापस आएं तो राजेश को सब बात बताये और फिर उसे न्यूऑर्क पढ़ने के लिए भेजे। उसका एडमिसन होगया एक सेमेस्टर भी कर लिया पर दादी की बीमारी में मिलने आया और फिर आगे पढ़ने नहीं जा पाया। कोई बात नहीं जितना मिला उतना ही ठीक है। इंडिया भी किसे से पढ़ाई में कम नहीं है।