गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

NIAGRA FALLS (USA )

TUE,22 DEC
                                                               अमेरिका की सैर 
                        वैसे तो पहले भी एक दो बार अमेरिका जाना हुआ पर 1990 में छोटे सिटी में भी जाने का मौक्का मिला। छोटा क्या नाम का ही छोटा था,सब एक से बड़ कर एक चाहे बफ़ेलो हो या  अल्बनी ,जोन्स टाऊन वगैरा। विशव प्रसिद्ध नियग्रा फॉल भी देखने का अवसर मिला,पता नहीं था बफ़ेलो में जाने पर नियाग्रा फॉल देखने मिलेगा।  
  नियाग्रा फॉल का दिन में और रात में दोनों ही समय अदभुत  नजारा था। रेनकोट पहन कर लिफ्ट से नीचे उत्तर कर फिर फॉल का नजारा दिखाते हैं।वास्तव में ऎसे ही विश्व प्रसिद्ध नहीं है। फॉल का वेग ,लम्बाई ,चौड़ाई बस देखते ही बनता था।  एक बात बड़ा ही अच्छा लगा फॉल दो देशों के बीच से गुजरती 
है। एक तरफ कनाडा और दूसरे तरफ अमेरिका। दर्शक दोनों देशों से देख कर मजा ले सकते है। दोनों तरफ हाफ -हाफ और एक फुल पुल बना हुआ है ,जिसके पास दोनों देशों का वीज़ा है वह बड़े पुल से देखो और जिसके पास एक ही वीजा है वह एक साइड से फॉल का मजा ले सकता है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को भी इससे सीख लेना चाहिए। इतना सुन्दर हमारा कश्मीर है और हमलोग आपस में मेरा तेरा कर के कश्मीर को टूरिस्ट से वंचित कर दिए हैं। नहीं तो सारी दुनिया के लोग आकर यहाँ का भी नजारा का मजा ले सकते थे। आतंकबाद मार  काट पूरा घाटी को बर्वाद कर दिया है। 
  इस टूर में एक मजेदार बात और हुआ। हमलोग बोस्टन सिटी भी गए थे ,पर हमें मालुम नहीं था की हावर्ड यूनिवर्सिटी यहीं है। घूमते -घूमते हावर्ड पहुँच गए। यूनिवर्सिटी देख कर इतना अच्छा लगा बहुत बड़ा खुला कैम्पस ,चारो और पेड़ ,बच्चे पेड़ के नीचे ग्रुप में पढ़ रहे।  लाईन से  चारो ओर अलग -अलग डिपार्टमेंट का बिल्डींग ,लाईब्रेरी ,रेस्टुरेंट सब कुछ। एकदम पढ़ने का मोैहाल। हमलोग थक कर सीढ़ी में बैठे थे एक सरदारजी जल्दी -जल्दी आरहे थे हमलोगों को बैठे देख कर बोले आपको पता है आप कहाँ बैठे हैं वर्ल्ड का सबसे बड़ा लाइब्रेरी में। उनसे बात करने पर पता चला की यहाँ एडमिसन मुस्किल से मिलता है। सच मुच में पढ़ने वाले बच्चे ही यहाँ एडमिसन लेते हैं। सरदारजी न्यूऑर्क में प्रोफेसर थे कोई मिटींग में आये थे। उनसे राजेश के एड्मिसन के बारे में पूछे तो वे बताये की पहले न्यूऑर्क यूनीवर्सिटी में एडमिसन करवा दो फिर नेक्स्ट ईयर यहाँ ट्राई करना तो हो सकता है। हमलोग को भी जोशआ  गया। न्यूऑर्क कॉलेज जाकर वहाँ के टीचर से मिले सब पता कर के जब इंडिया वापस आएं तो राजेश को सब बात बताये और फिर उसे न्यूऑर्क पढ़ने के लिए भेजे। उसका एडमिसन होगया एक सेमेस्टर भी कर लिया पर दादी की बीमारी में मिलने आया और फिर आगे पढ़ने नहीं जा पाया। कोई बात नहीं जितना मिला उतना ही ठीक है। इंडिया भी किसे से पढ़ाई में कम नहीं है।






                                         
                                     

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

EUROPEAN CONTINENT

SUN,20 DEC
                                                          यरोप  की सैर
               यरोप की सैर रोड से करने का अलग ही मजा है। जहाँ बाकी दुनिया में कहीं भी आने जाने के लिये पानी जहाज या हवाई जहाज ,रेल से बदल -बदल कर आना जाना पड़ता है। वहीं यरोप में रोज सुबह एक देश से निकलो रात दूसरे देश में पहुँच जाओ। हमलोग को भी 1987 में यरोप जाने का मौका मिला। 
     इस बार लन्दन से लन्दन तक पूरा यरोप रोड से सफर करने का मजा लिये। लन्दन से पानी जहाजमें इंग्लिश चैनल क्रॉस कर बेल्जियम पहुंचे  बस तैयार था।हमारा टूर शुरू हो गया।  सुबह बेल्जियम में होटल से निकल कर   घूमते -घूमते  रात दूसरे देश पहुँच गये। स्विजरलैंड में स्नो का मजा लेते हुए बढ़ते गए।
वेनिस में गोंडोला तो इटली में पिज्जा ,पॉप का वेटिकन सिटी,पीसा का झुकता  मीनार। हर रोज नया देश नया अनुवभ एक दम अलग मौसम सब कुछ नया।मोन्टोकार्लो में कैसीनो ,महल,कहीं चर्च,पेरिस का एफिल टावर हो या महल ,गार्डन सब बहुत ही खुबसूरत। हमारा लास्ट देश जर्मनी था। जर्मनी के  हैम्बर्गसिटी  में बर्गर का स्वाद लिये,फेयर भी देखने मिला । अब वापस लन्दन लौटना था। ट्रेन का टिकट ले तो लिये पर समझ नहीं आया लन्दन ट्रेन से कैसे पहुंचेंगे। उस समय इंग्लिश चैनेल जहाज से ही पार करना पड़ता था। अभी के जैसे पानी के अन्दर से पेरिस से लन्दन ट्रेन नहीं शुरू हुआ था। जब ट्रेन में बैठे तो फिर टीटी बताया रात को कौन तो स्टेशन में ट्रेन चेंज कर वहीं जहाज मिलेगी और जहाज में भी यही टिकट दिखाना होगा जो सुबह लन्दन पहुँच जाएगी। इतना अच्छा इंतजाम सेम रूट एक ही टिकट ट्रेन और जहाज एक ही प्लेटफॉर्म में एक से उतरो और दूसरे मे चढ़ जाओ। हमलोग को येसब साधन सीखना चाहिए।अच्छा है अब यूरोप में यूरो का चलन हो गया नहीं तो हमलोग को रोज मनी एक्सचेंज करना पड़ता था। अलग अलग कंट्री का डॉलर अलग।
अब लास्ट पड़ाव लन्दन में खुब घूमे।लन्दन पैलेस ,म्युजीयम ,म्युजीयम में कोहीनूर हीरा भी देखने मिला।लन्दन का चेंजिंग गार्ड ,  वैक्स म्यूजियम देखकर एकदम अचम्भित होना स्वभाविक था। पूरे यूरोप में चर्च बहुत ही सुन्दर सुन्दर देखने मिला। चर्च के अंदर का पेंटिंग बहुत ही उमदा था इतना पुराना आज भी रंग पक्का  का पक्का ,वैसे ही चटक जरा भी ख़राब नहीं हुआ था। लन्दन घूम कर वापस अपने देश लौट आये।आराम से 15 -20 दिन में यूरोप टूर हो गया।












               

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

ROUND TRIP WITH KIDS

SAT ,19 DEC
                                                    बच्चों के साथ राउण्ड ट्रिप 
                   वैसे तो 1884 में पहली बार बच्चों के साथ एशिया के कुछ देश में घुमने गए थे। अब फिर 1989 में हम चारों को एक बार फिर से विदेश भ्र्रमण का अवसर मिला।इस बार हमलोगों ने राउंड ट्रिप का टिकट लिया। बच्चों के साथ घूमने का अपना ही मजा होता है। बोलते हैना दुनिया गोल है ,बस हमलोग भी निकल पड़े। सिंगापुर ,हांगकांग ,जापान होते हुये ,अमेरिका पहुँच गये ,फिर वहाँ से लन्दन होते हुये एम्स्टर्डम पहुँच गए। और फिर भारत। दुनिया का एक चकर हो गया।
 हमारा सफर बम्बई से सिंगापुर होकर शुरू हुआ। यहाँ किशोर के साथ रहने और घूमने का मौका मिला। आज तो बस याद ही रह गया। सिंगापुर में एक और नया चीज देखें ,एक कार  बहुत ही सुन्दर सजा हुआ जा रहा था ,पता चला ये तो अर्थी है। यहाँ जन्म ,शादी और मरण तीनो ही ऎसे ही धूम धाम से मानते है।  
         बच्चों को जापान में डिज्नीलैंड में बहुत ही मजा आया। उस समय अपने देश में येसब नहीं था। जापान में स्कूल के छोटे बच्चों को लाईनमें  आगे और पीछे टीचर बिच में बच्चे रस्सी से बांध कर रोड क्रॉस कराते दिखा बड़ा ही अजीब लगा बाद में अमेरिका में भी देखने मिला। 
वैसे अमेरिका के अलग -अलग शहर में भी खुब मजा किये देखे। पर न्यूआर्क का लिबर्टी ,लॉसएंजेलिस का डिज्नी ,हॉलीवूड का यूनीवर्सल स्टुडिओ ,मिशिगन में बोटिंग तो मियामी के समुन्द्र तट की सैर सब ही बहुत मजेदार था। वाशिंगटन में तो मोनोमेंट ,व्हाईटहाऊस ,म्यूजियम सब पैदल घूम -घूम कर हमलोग थक कर आपस में खुब हँसते और बोलते थे की अरे बाबा नाम ही है वॉशिंगटन dc (धीरे चलो ). अमेरिका मैं डॉल्फ़िन शो भी नया प्रोग्राम देखने मिला।अब तो हर देश में डॉल्फ़िन शो दिख जाता है।  
  लन्दन भी बड़ा अच्छा लगा वहाँ मेट्रो ट्रेन में घूमना अपना ही अनुभव था। बच्चोने आईस स्केट किया। ताजा ब्रेड सैंडविच (रोटी के अन्दर भर कर) खाया ,लन्दन ब्रिज में हॉट पोटैटो गरमा गरम बेक आलु मक्खन के साथ खाना सीखा ,और लन्दन का फिश न चिप्स का बात ही क्या। 
 अब लास्ट पड़ाव एम्स्टर्डम भी कुछ कम नहीं था ,ट्यूलिप फूल के लिये तो फेमस है ही वहाँ का पवन चक्की ,कैनाल और बोट में रात रुकना भी मजेदार था। 
 मजे की बात तो येभी था की बॉम्बे से जापान तक जितने बार प्लेन बदले हर बार सेम स्टाफ रहते थे बच्चों का दोस्ती भी हो गया था। यहाँ तक की डिज्नी में भी घूमते हुए मिले। एयरहोस्टेस बोली अब हमलोग वापस इंडिया जायेंगे और आपलोगों का आगे का सफर अब दूसरे एयरलाइन्स से होगा।
  सब मिलाकर हर बार की तरह ये भी यादगार टूर रहा। तब बच्चे छोटे थे उनके साथ घुमलीये ,अब बच्चे ही बाल बच्चे बाले होगये अब तो नाती पोता के साथ घूमना और मस्ती करना अच्छा लगता है।











बुधवार, 2 दिसंबर 2015

CITY OF CANALS AND BRIDGES ( VENICE )

WED,2 DEC
                                       कैनाल और ब्रिज का शहर ( वेनिस  )
               इटली का एक बहुत ही सुन्दर कैनाल और ब्रिज का शहर वेनिस है। यहाँ मेन लैंड से सिटी आने -जाने के लिये वाटर बस(वोट ) से आना पड़ता हैपूरा वेनिस 177 कैनाल और 408 ब्रिज से जुड़ा है। वर्ल्ड का सबसे नैरो स्ट्रीट यहीं है। रोड छोटी -छोटी नौका से पार कर के एक से दूसरे बिल्डींग में आजा सकते है। यहाँ 118 आईलैंड है। 
वेनिस को फ्लोटिंग सिटी भी बोला जाता है। 10वीं  -11वीं  सेंचुरी में जब वेनिस को बसाया गया था तब बालु के ऊपर लकड़ी का प्लेटफॉर्म बना कर तब उसके ऊपर बिल्डींग बना था। अब तो निचला दो -तीन फ्लोर डुबा हुआ है और धीरे -धीरे डूबता जायेगा। यहाँ जो छोटी नौका में घुमा जाता है उसे गोंडोला बोला जाता है। गोंडोला से पुरे शहर की शैर की जाती है। टूरिस्ट आये और गोंडोला की सैर नहीं करे ऐसा हो ही नहीं सकता। 
 वैसे यहाँ का मेन स्क्वैर ,चर्च भी बहुत अच्छा है। उस ज़माने में इतना सुन्दर मोजैक का काम ,पेंटिंग और सजावट देखने योग्य है। 
 इटली पिज्जा के लिये तो फेमस है और आज के ज़माने में लोग बहुत ही पसंद से खाते हैं। हमलोग 1987 में वेनिस में ही घूमते हुए रोटी जैसा देख कर पहली वार पिज्जा खाये थे।