शनिवार वाडा
शनिवार वाडा पुणे के शनिवार पेठ में है। बाजीराव पेशवा ने इसे 18 वीं सदी में वनवाया था। मराठा पेशवाओं ने 1746 से 1818 तक यहाँ रहा।पेशवा परिवार की गद्दी यहीं थी ,दरवार यहाँ लगता था और पारीवारिक समारोह ,शादी आदि इसी वाडे में होती थी। शनिवार के दिन इसकी नीव रखी गयी थी और यहाँ शनिवार के दिन बाजार लगता था इसलिए इस वाडे का नाम शनिवार वाडा रखा गया था। 1828 में अंग्रेजों के अंडर में था तब भयानक आग वाडा में लगा। आग लगने का कारन आज तक पता नहीं चला। पूरा वाडा खाक हो गया था। सिर्फ बाहरी दीवार जो की पत्थर की थी वो और ग्रेनाइट का भाग ही बच गया था। 1919 में वाडा को स्मारक घोषीत किया गया।दीवाल तो अब भी किला जैसा बड़ा और मोटा है और गार्डन में कुछ पुराना पेड़ है। एक कमल के आकर का हजार जेट वाला फौवारा भी उस ज़माने का है।
लाल महल
1630 में शिवाजी के पिताजी ने बेटे शिवाजी और पत्नी जीजाराणी के लिये लाल महल बनवाया था। शिवाजी बहुत दिनों तक इस महल में रहे थे। पुराना लाल महल खंडहर हो गया था। अभी जो लाल महल है वो मूल का पुर्निर्माण करा हुआ पुणे शहर के केंद्र में है। महल में जीजाराणी की मूर्ती बनी हुई है और बहार में शिवाजी महाराज का कांस्य मूर्ती घोड़े में सवार है।
पूना का ऐतिहासीक जगह घूमना हो तो शनिवार पेठ आना चाहिए यहाँ से पैदल शनिवार वाडा देख कर लाल महल होते हुएआगे बढ़ते जाना चाहिए। सारा पुराना किला ,महल का खंडहर देखने मिल जायेगा। बाजार, ,गणेश मंदिर आदि सब यहीं है।