अक्षयवट
इलाहाबाद में संगम किनारे अकबर के किले के अंदर पातालपुरी मंदिर में अक्षयवट स्थित है . माना जाता है की ये वट का पेड 5000 साल पुराना है।कभी भी नाश ना होने के कारन अक्षयवट नाम पड़ा। हमारे पुराणों में भी इसका उल्लेख है। 644 ईस्वी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहाँ आये थे उनके यात्रा वर्णनं में भी इसकी पुष्टि मिलती है। ह्वेनसांग के जाने के बाद मुग़ल सम्राट अकबर ने यहाँ किला बनवाया।
माना जाता है की वनगमन के समय राम जी ,लक्षमण और माता सीता जी तीन दिन यहाँ विश्राम किये थे। ब्रम्हा जी ने वट वृछ के नीचे यज्ञ किये थे। ब्रह्मा जी द्वारा पातालपुरी में शूलटंकेश्वर शिवलिंग भी सस्थापित किया गया था। पातालपुरी में 43 देवी देवताओं की भी मुर्तीया है। ब्रह्मा जी द्वारा प्रथम यज्ञ यहाँ हुआ था इसलिए इस प्रदेश का नाम प्रयाग (प्रथम यज्ञ )पड़ा। बाद में अकबर ने इस जगह किला बनवाया और इसका नाम अल्लाहबाद और अंग्रेजों के ज़माने में इलाहाबाद पड़ा। अब जाकर मोदी जी के राज में प्रयागराज नाम पड़ा।अकबर के काल में अक्षयवट किला के अंदर हो गया। अकबर की महारानी जोधाबाई रोज शूलटंकेश्वर शिवलिंग में जल चढाती थी।
अक्षयवट के पास कामरूप नाम का तालाब था लोग बाग मोक्छ प्राप्ति के लिये अक्षयवट से तालाब में छलांग लगाते थे। ह्वेनसांग के लेख में भी इसका जिक्र है की तालाब नरकंकाल से भरा पड़ा था।किला के अंदर पेड़ होने के बाद लोगों का जाना बंद हो गया था। मुगलों और अंग्रेजों ने बहुत बार पेड़ काटने की कोशिश की पर हर बार फिर पेड़ हरा भरा हो जाता था।किला के अंदर से सरस्वती नदी बहती थी जो अब विलीन हो गयी है।
पिछले साल कुम्भ में किला का संगम की ओर वाला गेट आम लोग बाग के लिये खोल दिया गया है। जिससे जो भी संगम आता है वो बड़े हनुमान का दर्शन करता तो है ही साथ ही पातालपुरी का मंदिर और अक्षयवट का दर्शन और परिक्रमा भी कर लेता है। अब किला मिलिट्री के अंडर में है और दोपहर को गेट बन्द रहता है। सुबह शाम दर्शन के लिये खोला जाता है।पिछले साल कुम्भ में भीड़ के कारन अक्षयवट का दर्शन नहीं हो पाया था। इस साल माघ महीने में इलाहाबाद जाना हुआ तब जाकर अक्षयवट और पातालपुरी के मंदिर का दर्शन हो पाया।
इलाहाबाद में संगम किनारे अकबर के किले के अंदर पातालपुरी मंदिर में अक्षयवट स्थित है . माना जाता है की ये वट का पेड 5000 साल पुराना है।कभी भी नाश ना होने के कारन अक्षयवट नाम पड़ा। हमारे पुराणों में भी इसका उल्लेख है। 644 ईस्वी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहाँ आये थे उनके यात्रा वर्णनं में भी इसकी पुष्टि मिलती है। ह्वेनसांग के जाने के बाद मुग़ल सम्राट अकबर ने यहाँ किला बनवाया।
माना जाता है की वनगमन के समय राम जी ,लक्षमण और माता सीता जी तीन दिन यहाँ विश्राम किये थे। ब्रम्हा जी ने वट वृछ के नीचे यज्ञ किये थे। ब्रह्मा जी द्वारा पातालपुरी में शूलटंकेश्वर शिवलिंग भी सस्थापित किया गया था। पातालपुरी में 43 देवी देवताओं की भी मुर्तीया है। ब्रह्मा जी द्वारा प्रथम यज्ञ यहाँ हुआ था इसलिए इस प्रदेश का नाम प्रयाग (प्रथम यज्ञ )पड़ा। बाद में अकबर ने इस जगह किला बनवाया और इसका नाम अल्लाहबाद और अंग्रेजों के ज़माने में इलाहाबाद पड़ा। अब जाकर मोदी जी के राज में प्रयागराज नाम पड़ा।अकबर के काल में अक्षयवट किला के अंदर हो गया। अकबर की महारानी जोधाबाई रोज शूलटंकेश्वर शिवलिंग में जल चढाती थी।
अक्षयवट के पास कामरूप नाम का तालाब था लोग बाग मोक्छ प्राप्ति के लिये अक्षयवट से तालाब में छलांग लगाते थे। ह्वेनसांग के लेख में भी इसका जिक्र है की तालाब नरकंकाल से भरा पड़ा था।किला के अंदर पेड़ होने के बाद लोगों का जाना बंद हो गया था। मुगलों और अंग्रेजों ने बहुत बार पेड़ काटने की कोशिश की पर हर बार फिर पेड़ हरा भरा हो जाता था।किला के अंदर से सरस्वती नदी बहती थी जो अब विलीन हो गयी है।
पिछले साल कुम्भ में किला का संगम की ओर वाला गेट आम लोग बाग के लिये खोल दिया गया है। जिससे जो भी संगम आता है वो बड़े हनुमान का दर्शन करता तो है ही साथ ही पातालपुरी का मंदिर और अक्षयवट का दर्शन और परिक्रमा भी कर लेता है। अब किला मिलिट्री के अंडर में है और दोपहर को गेट बन्द रहता है। सुबह शाम दर्शन के लिये खोला जाता है।पिछले साल कुम्भ में भीड़ के कारन अक्षयवट का दर्शन नहीं हो पाया था। इस साल माघ महीने में इलाहाबाद जाना हुआ तब जाकर अक्षयवट और पातालपुरी के मंदिर का दर्शन हो पाया।