शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

AKSHAYAVAT

                        अक्षयवट

                     इलाहाबाद में संगम किनारे अकबर के किले के अंदर पातालपुरी मंदिर में अक्षयवट स्थित है  . माना जाता है की ये वट का पेड 5000 साल पुराना है।कभी भी नाश ना होने के कारन अक्षयवट नाम पड़ा।  हमारे पुराणों में भी इसका उल्लेख है। 644 ईस्वी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहाँ आये थे उनके यात्रा वर्णनं में भी इसकी पुष्टि  मिलती है। ह्वेनसांग के जाने के बाद मुग़ल सम्राट अकबर ने यहाँ  किला बनवाया।
   माना जाता है की वनगमन के समय राम जी ,लक्षमण और माता सीता जी तीन दिन यहाँ विश्राम किये थे। ब्रम्हा जी ने वट वृछ के नीचे यज्ञ किये थे। ब्रह्मा जी द्वारा पातालपुरी में शूलटंकेश्वर शिवलिंग भी सस्थापित किया गया था। पातालपुरी में 43 देवी देवताओं की भी मुर्तीया है। ब्रह्मा जी द्वारा प्रथम यज्ञ यहाँ हुआ था इसलिए इस प्रदेश का नाम प्रयाग (प्रथम यज्ञ )पड़ा। बाद में अकबर ने इस जगह किला बनवाया और इसका नाम अल्लाहबाद और अंग्रेजों के ज़माने में इलाहाबाद पड़ा। अब जाकर मोदी जी के राज में प्रयागराज नाम पड़ा।अकबर के काल में अक्षयवट किला के अंदर हो गया। अकबर की महारानी जोधाबाई रोज शूलटंकेश्वर शिवलिंग में जल चढाती थी।
         अक्षयवट के पास कामरूप नाम का तालाब था लोग बाग मोक्छ प्राप्ति के लिये अक्षयवट से तालाब में छलांग लगाते थे। ह्वेनसांग के लेख में भी इसका जिक्र है की तालाब नरकंकाल से भरा पड़ा था।किला के अंदर पेड़ होने के बाद लोगों का जाना बंद हो गया था। मुगलों और अंग्रेजों ने बहुत बार पेड़ काटने की कोशिश की पर हर बार फिर पेड़ हरा भरा हो जाता था।किला के अंदर से सरस्वती नदी बहती थी जो अब विलीन हो गयी है।
           पिछले साल कुम्भ में  किला का संगम की ओर वाला गेट आम लोग बाग के लिये खोल दिया गया है। जिससे जो भी संगम आता है वो बड़े हनुमान का दर्शन करता तो है ही साथ ही पातालपुरी का मंदिर और अक्षयवट का दर्शन और परिक्रमा भी कर लेता है। अब किला मिलिट्री के अंडर में है और दोपहर को गेट बन्द रहता है। सुबह शाम दर्शन के लिये खोला जाता है।पिछले साल कुम्भ में भीड़ के कारन अक्षयवट का दर्शन नहीं हो पाया था। इस साल माघ महीने में इलाहाबाद जाना हुआ तब जाकर अक्षयवट और पातालपुरी के मंदिर का दर्शन हो पाया।





    
   

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

HANUMAN MANDIR

                         बड़े हनुमान जी

                     इलाहाबाद में संगम के निकट आराम की मुद्रा में हनुमान जी का विशाल मूर्ती वाला मंदिर है। प्रतिदिन सैकड़ों भक्त गण मंदिर दर्शन के लिये आते है। मूर्ती का सर उत्तर दिशा में और पैर  दक्षीण दिशा में है। माना  जाता है की राम जी वनवास के समय गंगा पार  करके यहीं से गुजरेंगे ,इसलिए हनुमान जी भगवान जी के इंतजार में यहाँ लेटे थे , इसलिए मंदिर का मूर्ती भी लेटे हुए है।
    एक मान्यता ये भी है की एक हनुमान भक्त व्यपारी हनुमान जी का एक बड़ा सा प्रतीमा नाव से लेकर गंगा जी में जा रहा था। व्यापारी रात्री में नौका में सो गया सुबह देखा की नाव तो गंगा जी में डूब गया है। बहुत कोशिश के बाद भी हनुमान जी को लेकर नहीं जा पाया। वह मूर्ती वहीं पर छोड़ कर चले गया।बहुत सालों बाद एक सन्यासी ने गंगा किनारे हनुमान जी का मूर्ती देखा ,बहुत कोशिश के बाद भी कोइ मूर्ती नहीं उठा पाया। तो उसी लेटे हुए मुद्रा में वहाँ मंदिर बना। मंदिर करीब 600 -700 बर्ष प्राचीन है। मुगलों ने भी बहुत कोशिश किया पर वहाँ से हनुमान जी की मूर्ती नहीं उठा पाए। अकबर का किला भी मंदिर के पास थोड़ा घुमा हुआ है।
   प्राचीन होने के अलावा लोगों की मनोकामना भी पूर्ण होती है इसलिए जो भी संगम स्न्नान को आता है वो बड़े हनुमान जी का दर्शन जरूर करता है। हर साल बरसात में बाढ़ आने पर मंदिर के प्रांगण में पानी भर जाता है। माना ये भी जाता है की हर साल बरसात में  जमुना जी का जल हनुमान जी का चरण स्पर्श कर के जाती है।अब सच जो हो। पर मंदिर छोटा ही सही मूर्ती विशाल है। पहले नीचे तक जाने दिया जाता था पर अब भीड़ को कंट्रोल करने के लिये नीचे के बदले ऊपर से ही दर्शन कर सकते है।




 
  

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

VINDHYACHAL SIDHPEETH

                              विंध्याचल शक्तिपीठ

                विंध्याचल उतरप्रदेश के मिर्जापुर जिले मे गंगा किनारे बसा है। यहाँ माँ विंध्यवासिनी देवी का मंदिर है हमारे 51 शक्ति पीठ में से एक शक्तिपीठ यहीं है। माना जाता है की महिषासुर का वध करने माँ ने यहीं अवतार लिया था.बनारस से विंध्याचल की दूरी 63 किलोमीटर, इलाहाबाद से करीब 82 किलोमीटर और मिर्जापुर से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। 
            भारतीय मानक समय( IST )की रेखा विंध्याचल के रेलवे स्टेशन से होकर जाती है।




बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

SANKAT MOCHAN HANUMAN MANDIR VARANASI

                                   संकट मोचन
                                  हनुमान मंदिर

            बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के नजदीक 5 एकड़ में हनुमान मंदिर है। अब जंगल तो नहीं है पर पुराना पेड़ अभी भी वहाँ है। माना जाता है की गोस्वामी तुलसीदास जी को ध्यान करते समय में हनुमान जी का यहीं पर दर्शन हुआ था। और उन्होंने ने यहाँ पर जंगल के बीच में मट्टी का हनुमान जी स्थापित किये थे.1900 ईस्वी में पंडित मदन मोहन मालवीय जी द्वारा इसे मंदिर का रूप दिया गया। इसलिए आज भी हनुमान जी का मूर्ती मट्टी का ही है। मंदिर में हनुमान जी की मूर्ती के ठीक सामने राम जी ,सीता माता और लक्ष्मण जी का भी मूर्ती है।  दोनों मंदिर आमने सामने ऐसे एंगल में बना हुआ है की जैसे हनुमान जी अपने ईस्ट देव को ही नीहार रहे है।मंदिर के प्रांगण में हनुमान जी की वानर सेना भी है।
  प्राचीन मंदिर होने के कारन लोगों में श्रद्धा भी है और मंदिर में दर्शन से सबों का दुःख भी दूर हो जाता है।इसलिए मंदिर का नाम  संकट मोचन मंदिरपड़ा। बनारस वाले तो दर्शन करते ही है इसके अलावा जो भी काशी आता है वो भी संकट मोचन मंदिर दर्शन के लिये जरूर जाता है।  





   

सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

KAL BHAIRAV VARANASI

                                        काल भैरव
                                बनारस के कोतवाल 

             भगवान शिव की नगरी की व्यवस्था संचालन की जिम्मेदारी उनके गण सम्हालते है। जिनकी संख्या 64 है ,इनके मुखिया काल भैरव हैं। काल भैरव को भगवान शिव जी का अंश माना जाता है। बाबा विश्वनाथ जी ने भैरव जी को काशी का छेत्रपाल नियुक्त किया था। इसलिए इन्हें काशी का कोतवाल माना जाता है। इनका वाहन कुत्ता है इसलिए काशी के गलियों में घूमने वाले कुत्तों को काशी का पहरेदार माना जाता है। काशी में नए नियुक्त पुलिस अधिकारी सर्प्रथम काल भैरव का दर्शन करते है फिर डुयटी ज्वाइन करते है। माना जाता है की बाबा विश्वनाथ जी के दर्शन के बाद काल भैरव का दर्शन करने पर ही काशी आना सफल होता है। हमलोगो को भी पुलिस बाला बाबा के दर्शन के बाद काल भैरव का दर्शन करके आने बताया।
      काशी में ऐसा माना जाता हाई की  काल भैरव मंदिर में  भुत -प्रेत ,जादू -टोना मानने वाले अपनी समस्या लेकर आते है और उनका समस्या दर्शन के बाद पूर्ण हो जाता है।यहाँ धागा ,सुतली  वगैरा चढ़ा कर पहनाया जाता है।अब मान्यता तो मान्यता ही है ,जिसकी जैसी श्रद्धा उसकी वैसी भक्ति।



   

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

SHRI KASHI VISHWANATH TEMPLE

                काशी विश्वनाथ मंदिर
   
        शिव के त्रिशूल पर बसी काशी देवाधिदेव महादेव को अत्यंत प्रिय है। इसलिए धर्म ,कर्म और मोक्छ की नगरी मानी जाती है। हमारे सप्तपुरी में से एक पुरी और 12 ज्योतिर्लींग में से एक ज्योतिर्लींग काशी में ही है। कई हजार साल से काशी में ज्योतिर्लिंग है। बनारस ही 3000 साल पुरानी नगरी है। वर्त्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा 1780 में करवाया गया था।
  मुगलों के काल में मंदिर तोड़ कर बगल में ही मस्जिद बनवाया गया था। तब के पुरोहित लोगों ने गर्भ गृह को पीछे से तोड़ कर शिवलींग निकाल कर बगल के कुएं में छुपा दिया था। सैकड़ो साल बाद सन 1780 में  महारानी अहिल्या बाई होल्कर  के प्रयास से फिर मंदिर बना कर कुएं से शिवलिंग निकाल कर मंदिर में  स्थापित किया गया।महाराज रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने द्वारा मंदिर का गुम्बज  बनवाया गयाथा। मुगलों के तोड़ फोड़ में नन्दी को नुकसान नहीं हुआ था, पर मस्जिद बनने के कारन नन्दी का मुँह मंदिर के बदले मस्जिद की ओर हो गया।भारत सरकार की पहल से मंदिर और उसके चारो ओर फिर से काम चल रहा है। जिससे श्रद्धालुओं को आने जाने और मंदिर दर्शन में सुविधा हो।दो साल के अंदर पूरा काम हो जायेगा।  
     काशी बाबा विश्वनाथ मंदिर के लिये तो जाना ही जाता है। इसके आलावा बनारस का सिल्क भी विश्व प्रसिद्ध है. यहाँ का बनारसी साड़ी बहुत ही फेमस है। रेशम के आलावा इत्र के लिये भी जाना जाता है।





       

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

GANGA ARTI VARANASI

             विश्व प्रसिद्ध काशी की गंगा आरती

        वरुणा और असी नदी के तट में घाटों की नगरी बनारस बसी  है। 1991 में सत्येंद्र मिश्र के नेतृत्व में हरिद्वार के तर्ज में गंगा आरती की शुरुआत हुई थी। 100 से अधिक पक्के घाट पूरी नगरी को धनुष के आकार में प्रदान है। यहाँ के दशाश्वमेघ घाट की गंगा आरती देखते ही बनती है।माना  जाता है की राजा दिवोदास ने 10 अश्वमेघ यज्ञ यहाँ किये थे , इसलिए इस घाट का नाम दशाश्वमेघ घाट पड़ा ,यहाँ यज्ञ कुंड भी इसकी गवाही देती है।शाम का नजारा और भी आकर्षक होता है। जब दीपों की रौशनी में नहाये घाट में चंदन की खुशबु और हवन मंत्रों के उच्चारण के साथ विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती शुरू होती है।करीब घंटा भर आरती होती है। उस समय जैसे समय ठहर जाता है। शाम को नौका विहार का आनंद लेने के बाद सारे नौका को गंगा जी में रोक दिया जाता है। सब कोइ गंगा आरती का नजारा देखते है घंटा कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता है।
   नौका विहार में सभी घाटों का भी दर्शन हो जाता है। हरीशचंद्र घाट और मणिकर्णिका घाट में 24 घंटे लाशें जलती है।माना जाता है की शिव जी द्वारा अग्नि यहाँ प्रज्वलित किया गया था ,जो की आज तक जल रहा है। इसलिए यहाँ रात दिन किसी भी समय अंतिम संस्कार किया जाता है। यहाँ अंतिम संस्कार करने पर मुक्ति मिलता है ऐसा माना जाता है। यहाँ का तुलसी घाट में गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित्र मानस लिखा था। 3 -4 बार बनारस जाना हुआ पर इस बार जाके गंगा आरती का सौभाग्य प्राप्त हुआ।














    

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

SARNATH STUPA

                                 सारनाथ  स्तूप

                              धमेख स्तूप सारनाथ 

                 उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 13 किलोमीटर की दूरी में सारनाथ है। ऐसा माना जाता है की धमेख स्तूप ही वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था।जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन नाम दिया जाता है।  सारनाथ में सम्राट अशोक ने कई स्तूप बनवाये थे।धमेख स्तूप अशोक काल में बना था। स्तूप ठोस गोलाकार बुर्ज है। स्तूप का व्यास 93 फ़ीट,ऊंचाई 143 फ़ीट और घेरा करीब 11 मीटर है। मोहम्द गोरी ने सारनाथ के पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया था।स्तूप के आकर के कारन इसके अंदर खजाना है ये धारणा के कारन ही तोड़ फोड़ हुआ था। पर गुम्बंद नुमा बुर्ज (स्तूप )ध्यान करने के लिये बना था। इसके अंदर कुछ भी नहीं है।श्री लंका के अलावा सारी दुनिया के बुद्ध धर्म के अनुयाई सारनाथ दर्शन करने आते है। 
  सारनाथ में स्तूप के अलावा भगवान बुद्ध का मंदिर ,संग्रहालय  ,विहार इत्यादी भी है।