बुधवार, 20 सितंबर 2017

GOLU FESTIVAL IN SOUTH INDIA

                                        दक्षिण भारत का गुड्डिया पूजा 

                     नवरात्री ऐसा पर्व है की पुरे भारत में देवी का पूजा खूब धूम धाम से मनाया जाता है। भले नाम और रूप अलग हो पर देवी का ही पूजा करते है। जैसे बंगाल में दुर्गा पूजा का धूम होता है, तो गुजरात में गरवा और दूसरे जगहों में देवी के नौ रूप का नौ दिनों तक चलने वाला पर्व। वैसे ही दक्षिण भारत में गुड़िया पूजा करते है। 
          नवरात्री में दक्षिण भारत के लोग अपने घरों में लकड़ी के प्लेटफॉर्म में लकड़ी की गुड़िया सजा कर नौ दिनों तक पूजा करते है। लकड़ी का प्लेटफॉर्म भी खास होता हो जो की 3,5,7 ऑड नम्बर में होता है। सबसे ऊपर की पंक्ति में कलश रखा जाता है। फिर उसके बाद महाभारत,रामायण या कोई हिन्दू धार्मिक कहानी के थीम में उसके पद के क्रम में उस पात्र को सजाया  जाता है।इन्ही गुड्डियों को गोलू बोला जाता है। 
      प्रथम तीन दिन दुर्गा ,फिर तीन दिन लक्ष्मी और अंत तीन दिन सरस्वती जी की पूजा करते है। रोज अलग -अलग  दाल और अनाज उबाल कर अलग तरह प्रसाद बनाते है। जिसे संदल प्रसादम बोला जाता है। पड़ोसी ,मित्रगण वगैरा एक दूसरे के घरों में गोलू पूजा की सजावट देखने जाते है और संदल का प्रसाद पाते है। 
       हर साल नौ दिनों तक पूजा करने के बाद इन गोलूओं  को संभाल कर अगले साल के लिये रख दिया जाता है।हमलोगों का बचपन टेल्को कॉलोनी में बीता था तो हमारे बहुत सारे दक्षिण भारतीय मित्र और पड़ोसी भी थे. तो हमलोगो को गुड्डिया पूजा देखने और संदल का प्रसाद भी खाने का सौभाग्य मिला। दुर्गा पूजा के समय गोलू पूजा का भी इंतजार रहता था। 




मंगलवार, 19 सितंबर 2017

NAVRATRI

                                                                            
                                                                      शारदीय नवरात्री 

             वर्ष में दो बार नवरात्री होता है बासंती और शारदीय। शारदीय नवरात्री में धूम धाम से दुर्गापूजा मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है की माँ दुर्गा महिषासुर राक्षस का वध करने के बाद नौ दिनों के लिये अपने पुरे परिवार  के साथ मायका आती है। इसलिए नौ दिनों तक माँ के नौ रूपों की पूजा होती है।नवरात्री के पहले दिन घट  स्थापना की जाती है। उसके बाद लगातार नौ  दिनों तक माँ के नौ रूपों का पूजा किया जाता है।  
         माँ के नौ रूप ये है ,
    शैलपुत्री ,ब्रह्मचारणी ,चंद्रघंटा ,कुष्मांडा ,स्कंदमाता ,कात्यानी ,कालरात्रि ,महागौरी ,एवं सिद्धीरात्री।
 नवों दिन व्रत -उपवास किया जाता है।अष्टमी के दिन विशेष  हवन पूजन करते है और  नवें दिन नौ कन्याओं का पूजा कर उनको भोजन कराकर फिर उपवास तोडा जाता है।
     बाकी अपनी -अपनी श्रदा भक्ति के अनुसार लोग बाग पूजन और व्रत -उपवास कर के नवरात्री का त्यौहार मनाते है। 
                         




   
    

सोमवार, 18 सितंबर 2017

MAHALAYA AMAVASYA

                                                                    महालया अमावस्या 

                    वर्षा काल समाप्त होते ही शरद आरम्भ होता है। इस दिन पितृ पक्छ  समाप्त हो कर देवी पक्छ की शुरुआत होती है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों के लिये तर्पण करते हैं। इसी दिन माँ दुर्गा की अधूरी गढ़ी मूर्ती पर मूर्ती कार आंखे गढ़ते हैं। दुर्गा पूजा की विधिवत शुरुआत महालया से ही होती है। नवरात्र के पूर्व देवी का आवाहन महालया से होता  है। 
              इस दिन तर्पण कर  मंत्र से पूर्वजो को तृप्त करने के साथ ही,  विश्व के सभी लोगों की मंगल कामना भी की जाती है। विश्व मैत्री की भावना से संकल्प की सिद्धी के लिये माँ दुर्गा की प्रार्थना की जाती है। सारा विश्व एक ही आलय  में सिमट जाता है ,इसलिये इस दिन को महालय कहा जाता है। महालय का अर्थ बड़ा घर अर्थात सारा विश्व। 
  महालय के दिन ही सभी देवताओं ने महिषासुर का वध करने के लिये माँ दुर्गा को शस्त्र प्रदान किया था। इसके बाद ही माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। महालया के दिन से ही चंडीपाठ शुरू होता है। महालया के दिन सुबह चार बजे से आकाशवाणी के सभी केंद्रों से महिषासुर मर्दनी कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है। सन 1931 में पहली बार आकाशवाणी के कोलकत्ता केन्द्र से इसका प्रसारण वीरेंद्र कृष्ण भद्र की अमर आवाज में प्रसारण हुआ था ,तब से आज तक हर साल इसका प्रसारण होता ही है। इससे सारा जग भक्तिमय व पूजामय हो जाता है, यही महालय है।बचपन बंगालियों के बीच बीता उस समय महालय का अर्थ समझ नहीं आता था बस इतना पता था की पूजा के पहले महालया के दिन रेडियों  में  सुबह चार बजे बंगालियों का कुछ प्रोग्राम आता है जो वे लोग बहुत चाव से सुनते है।  अब समझ आया बंगाली नहीं हर हिन्दुओं के लिये होता है।





शनिवार, 16 सितंबर 2017

VISHWAKARMA JAYANTI

                                                                           विश्वकर्मा जयंती 

                विश्व रचयता  ब्रम्हा जी के पौत्र विशवकर्मा जी को दिव्य इन्जीनियर और ब्रह्माण्ड के मुख्य वास्तुकार के रूप में जाना जाता है।हर साल  १७ सितम्बर को विश्वकर्मा जयन्ती मनाया जाता है। इस दिन इन्जीनियर ,बुनकर ,शिल्पकार ,औद्योगिक घराना सब जगह सब लोग विश्वकर्मा जी का पूजा अर्चना करते है,और अपने -अपने औजारों का भी पूजा करते है। 
     पौराणिक कथाओं के अनुसार इन्होने भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका का निर्माण महाभारत काल  में किया था और उस युग के अंत के बाद द्वारका जल में विलीन  हो गयी थी। रामायण कल में लंका में सोने की लंका का निर्माण किया था और बाद में ये भी जल कर  जल में समां गयी। युधिष्ठिर की नगरी इंद्रप्रस्थ भी इनकी ही देन थी । यहाँ तक की इंद्र का इंद्रलोक और इंद्र का  ब्रज का भी निर्माण इनके ही द्वारा हुआ था। 
     इन्ही सब कारणों से विशवकर्मा जी पूजे जाते है ,और हर साल लोग बाग धूम धाम से इनकी जयन्ती 17 सितम्बर को मनाते है। हमलोग का बचपन टाटा में बीता तो हमलोग भी बहुत ही उत्साह से टाटा कंपनी जाते थे। पूरा शहर ही इस दिन का इंतजार करता था। कंपनी का गेट भी सबों के लिये खुला रहता था ,सब आओ घूमो हर डिपार्टमेंट का पूजा देखो प्रसाद पाओ। हमलोगो को इस दिन का इंतजार रहता था। ना तो आतंकवाद का डर था न कुछ अब तो फैक्ट्री के अंदर सिर्फ फैक्ट्री के एम्प्लॉय ही जा सकते है।




शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

STORY OF POSTCARD

                                                                                                                          पार्ट -7   
                                                         पोस्टकार्ड की कहानी  

              पोस्टकार्ड की कहानी भी बहुत पुरानी है। ऑस्ट्रिया में सबसे पहले 1869 में पोस्टकार्ड जारी किया गया। भारत में 1879 में एक पैसा मूल्य वाला कार्ड  छापा गया  । सस्ता साधन होने के कारण आम जनता में ये बहुत ही लोकप्रिय हुआ। 
         गांधी जयन्ती के अवसर पर 1951 में और 1969 में चरखा ,बापू ,कस्तूरबा वाला पोस्टकार्ड  भी  छपा था। 2-7-1979 को 50 पैसे का स्मारक टिकट और फर्स्ट डे कवर जारी किया गया ,समय -समय में मेघदूत कार्ड भी जारी किया गया। इसमें एक साईड लेख या सरकारी संदेश ,सलाह आदि छपते है बाकी आधा पता लिखने के लिये होता है।






                                                                                                                                        
                                             

गुरुवार, 14 सितंबर 2017

FLYING STAMPS

                                            उड़ने वाली डाक टिकटें                                            PART -6

                          वायुयान पूरी तरह से विकसीत होने के पहले गर्म हवा भरे बैलून द्वारा भी डाक भेजने का प्रयास हुआ जो कामयाब नहीं हो सका। द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद राकेटों द्वारा भी डाक भेजने की चेष्टा की गयी। विश्व का पहला हवाई डाक भारत में शुरू हुआ। 18-२-1911 को इलाहाबाद से नैनी तक अनेक पत्र और कार्ड वायुयान से भेजा गया। जब हवाई डाक नियमित रूप से होने लगा तो इसके लिये तरह -तरह के टिकट जारी हुए,जिसमे वायुयान का चित्र थे और अधिकतर टिकटें नीले बैक ग्राउंड वाले होते थे। किसी में पुराने डिजाईन के हवाई जहाज ,किसी में उड़ता पक्छी इत्यादी होता था।
       भारत में 6-1-1961 को और 1979 को हेलीकॉप्टर ,बोईंग ,पुस्मोथ विमान वाला टिकट छपा।
                                                                                                                                          क्रमशः


                                 





बुधवार, 13 सितंबर 2017

HAPPY BIRTHDAY TO MY BABA

                                                        बाबा का जन्मदिन 

                 बाबा पुरे परिवार में सबसे बड़े बुजुर्ग है। यहाँ तक की पुरे कॉलोनी में भी बाबा ही सबसे बड़े हैं। बस किसी को कोई भी प्रॉब्लम हो तो लोग बाबा से सलाह लेते है और उनकी राय  मानते है।   सब कोई बाबा का बहुत ही इज्जत करते है।  ये भी क्या इत्तफाक है की बाबा के जन्म दिन में ही हिन्दी दिवस मनाया जाता है। 
 बाबा लेखक है तो बाबा के लिये ये भी बहुत बड़ा सम्मान ही है। 
    बाबा का जन्मदिन मनाने हर बार सोचते है कि  इस बार टाटा जाकर धूम -धाम से सेलीब्रेट करे, पूरा परिवार भी इसी बहाने जमा हो जाता है। माँ -बाबा को भी अच्छा लगता है। पर जाना नहीं हो पाता है। तो हम सोचे की क्यों ना जन्मदिन का पूरा हफ्ता ही बाबा के बताये हुए फिलैटली की मजेदार और रोचक बाते ही अपने ब्लॉग में लिख डाले। हमलोग तो बाबा से सुनते ही है और बाबा का स्टाम्प का खजाना भी देखे है। बाबा का इन रोचक बातों का पूरा एक पुस्तक ही बन गया है ,पूरा ना सही उस मे से कुछ तो लिख और बता सकते है। शायद किसी और को भी पढ़ कर अच्छा लगे और वे मजा ले सके। 
             बस माँ - बाबा स्वस्थ रहें ,बाबा का आशीर्वाद मिलता रहे। हमलोग के लिये इतना ही काफी है। 
                                                 बाबा जन्म दिन की बहुत -बहुत बधाई 







मंगलवार, 12 सितंबर 2017

3 D SHADING STAMPS

                                                       PHILATELY                                                PART-5
                                                     3D शेडिंग स्टाम्प
                       कई देशों में 3 डाइमेन्सन और उभरे चित्रों वाले टिकट जारी किये गये। ये देश भूटान ,मलाया आदि है । इन टिकटों को लिफाफे पर लगाना सुविधाजनक नहीं था इसलिए ये डाक के काम में नहीं आ सके। बस संग्रहियों के पास दिखाने  के लिये रह गए है।
     संसार के सभी देशों के डाक टिकटों पर उस देश का नाम छपा होता है पर ब्रिटेन ही एक ऐसा देश है जिसके टिकटों पर देश का नाम नहीं होता है। ऐसा इसलिए की सबसे पहले सिर्फ ब्रिटेन में ही डाक टिकट जरी हुआ। तब दूसरे देशों के डाक टिकट नहीं होते थे इसलिए देश का नाम छापने की आवश्यक्ता नहीं थी। यही परंपरा अभी भी जारी है।
    एक और रोचक और मजेदार लिफाफे की कहानी है। ऑस्ट्रेलिया के आजीवन कैदियों को खास तरह के कागज दिए जाते थे अपने घर चिट्ठी भेजने के लिये।  .उस पर चिट्ठी लिख कर जेलर को देना पड़ता था. जिसे वे पढ़कर बंद कर एक छेद कर पोस्ट कर देते थे। डाक टिकट नहीं लगाए जाते थे ,पर चिट्ठी पाने वाले को डाक खर्च देना पड़ता था। छेद का अर्थ था कि आजीवन कैदी की चिट्ठी है। जिसे अच्छी तरह पढ़ और जाँच कर लिया गया है। कहीं कोई आपत्तिजनक बात लिखी नहीं हो।
       ऐसे ही फिलैटली जगत में बहुत तरह के अजीबोगरीब घटनाएं होती रहती है।
   जैसे -
1 -सर्बिया में सन 1904 में एक स्मारक टिकट जरी हुआ ,जिसमे जार्ज के चित्र होने थे पर उसमें एक छाया भी दिख रहा था। जोकि डिजाइन बनाने वाले फ्रांसीसी कलाकार की गलती से हुआ था। उसे भूत स्टाम्प का नाम दिया गया और बंद करवा दिया गया।
२-कनाडा में सन 1935 में एक सेंट वाले राजकुमारी एलिजाबेथ के चित्र वाले स्टाम्प में आंसुओं की बून्द का आभास देने वाला चिन्ह छप गया तो इसे  रोती राजकुमारी नाम दिया गया और फिर बंद कर दिया।
    इसी तरह अभी बाबा के खजाने में  एक से एक मजेदार दुर्लभ स्टाम्प की रोचक कहानी है जो की अब बस स्टाम्प और कहानी संग्राहलय में ही रह गयी है।
                                                                                                                          क्रमशः







सोमवार, 11 सितंबर 2017

STAMPS AS STORY TELLERS

                                                                                                                                PART -4
                                         कहानियाँ सुनाने वाली डाक टिकटें

          भारतीय डाक विभाग के सौजन्य से ऐसे टिकटों के चार सेट (8 टिकट )तारिख 17 -10 -2001 को जारी किया गया जिनमें पंचतंत्र की कहानियों के चित्र हैं जिन्हे देखते ही कहानी समझ जायेंगे।ये कहानियाँ बच्चपन में पढ़ी और सुनी हुई है और शिक्छाप्रद भी, एक पंत दो काज।
ये कहानियां है :-
1 -चार रुपये वाले 2 टिकटों पर दो  हंस और कछुए की कहानी चित्रित है, जो मित्र थे।
       वे  मित्र दूसरे तालाब के पास रहने का मन बनाये। एक छोटे डंडे के दोनों छोरों को दोनों हंसो ने चोंच से पकड़ा और कछुआ बीच में मुहँ से पकड़ा हंस उड़े और डंडा और कछुआ भी उनके साथ उड़ने लगे।लोग ये देख कर शोर करने लगे। गुस्से से कछुआ भी चिल्लाया। बस उसका मुहँ खुलते ही वह नीचे गिरा और मर गया। शिक्छा -अधिक गुस्सा ठीक नहीं।
2 -चार रुपये वाले 2 टिकटों पर मगर और बंदर की कहानी चित्रित है।
     एक दिन मगर ने मित्र बंदर को अपनी पीठ पर बैठा कर अपने घर दावत पर ले जाने लगा पर बीच नदी में पहुँचते ही वह डुबकी लगाया और बंदर डूबने लगा। पूछने पर मगर ने कहा कि उसका दिल अपनी पत्नी को खिलाने के लिये उसे मारेगा। बंदर चालाक था ,वह बोला की दिल तो पेड़ पर ही छोड़ आया है। यह सुनते ही मगर उसे वापस पेड़ के पास  ले गया। बस क्या था बंदर झटपट पेड़ पर चढ़ कर बोला कि दिल कहीं पेड़ पर रखने की चीज है।
शिक्छा - दुश्मन से हमेशा सावधान रहें।
3 -चार रूपये वाले 2 टिकटों पर शेर और खरगोश की कहानी चित्रित है।
          खरगोश ने अपनी जान बचने के लिये शेर से झूठ बोला कि कुएँ के पास वाला शेर मुझे खाना चाहता है। गुस्से में शेर अपनी परछाईं कुएँ के पानी में देख ,उसे दूसरा शेर समझ उससे लड़ने कुएँ में कूद पड़ा, और डूब कर मर गया, खरगोश की जान बची.
शिक्छा - ताकत से बुद्धि बड़ी। ।
4 -चार रूपये वाले 2 टिकटों पर सांप और कौए की कहानी चित्रित है।
  नदी किनारे के पेड़ पर बहुत कौएं रह्ते थे और नीचे बिल में सांप ,जो उनके अंडे बच्चे खा जाया करता था। वहाँ की राजकुमारी रोज नदी में नहाते समय अपने गहने नदी किनारे रख देती थी। एक दिन कौएं ने बदला लेने के लिये एक हार अपने चोंचमें  उठा करउड़ा और सांप के बिल में गिरा कर उड़ गया। सिपाही बिल को खोदने लगे। सांप और बच्चे बिल से बहार निकलते ही मार दिए गए। राजकुमारी का हर सिपाही ले गए। कौओं को सांप से छुटकारा मिला।
शिक्छा - जैसे को तैसा। 
                                                                                                                          क्रमशः








रविवार, 10 सितंबर 2017

THE STORY OF LETTER BOX

                                                                                                                                 PART -3

                                                            लेटर बॉक्स की कहानी 
                                                                      पत्र मंजुषा 

                              विश्व में सब से पहले ब्रिटेन में डाक टिकट जारी हुआ ,पर पहला लेटर बॉक्स फ्रांस के पेरिस शहर के मुख्य पोस्ट ऑफिस के बाहर सन 1850 में लेटर बॉक्स लगा। लेटर बॉक्स लगने के पहले अपनी चिट्ठियों को डाकघर ले जाकर डाक कर्मियों को देना पड़ता था। टिकट लगा कर चिट्ठियों को भेजना एक सस्ता साधन होने के कारण बहुत बड़ी संख्या में लोग पोस्ट ऑफिस आने लगे। इससे पोस्ट कर्मियों को दूसरे कार्य करने में बाधा  होने लगी। लोगों को भी असुविधा होती थी क्योंकि सिर्फ पोस्ट ऑफिस खुले रहने के समय ही चिट्ठी भेजी जा सकती थी। इन सभी असुविधाओं को दूर करने के लिये लेटर बॉक्स लगाए गए।
                     इसे पोस्ट ऑफिस के ठीक बाहर और फिर धीरे -धीरे शहर के दूसरे भागों में भी लगाए गए जिससे कोई भी अपनी सुविधानुसार अपनी चिट्टी भेज सके और पोस्ट ऑफिस में भी भीड़ न हो। पहला लेटर बॉक्स गुम्बजनुमा खम्बे से मिलते जुलते आकर का था इसलिए फ्रांस के लोग लेटर बॉक्स को पिलर (खम्बा )बॉक्स कहने लगे। है ना यह भी एक रोचक बात।
              सन 1855 में ग्रेट ब्रिटेन में भी इसी प्रकार के लेटर बॉक्स लगाए गये जिसे वहाँ के लोग  विक्टोरिया बॉक्स कहने लगे ब्रिटेन में लेटर बॉक्स लगाने के बाद धीरे -धीरे सभी देशों में लगाये गये। भारत में 1856 में लगे। सन 1879 में लाल रंग के स्तूपाकार लेटर बॉक्स को विश्व के सभी देशों में मान्यता मिली।
      पिछले 150 सालों में कई बार डिजाईन में परिवर्तन हुआ। बड़े शहरों में चार रंग के लेटर बॉक्स लगाए जाते हैं। हरा उसी शहर के लिए ,नीला महानगरों के लिये ,पीला राजधानी के लिये ,लाल लेटर बॉक्स दूसरी जगहों को भेजी जाने वाली चिट्ठी के लिये। अपने 150 वर्ष होने पर 18 -१०-2005 को भारतीय डाक विभाग ने चार स्मारिका डाक टिकट का सेट जारी किया।ये तो लेटर बॉक्स की कहानी हुई ,अभी बाबा का  खजाना में बहुत कुछ है।
                                                                                                                                       क्रमशः







  

शनिवार, 9 सितंबर 2017

PHILATELY ( PART-2 )

                                         WONDER'S OF PHILATELY
                                      आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है 

                       सन 1840 में विश्व का पहला डाक टिकट ब्रिटेन में जारी हुआ। उस समय टिकटों के चारों ओर दानेदार छेद नहीं होते थे,उन्हें कैंची से काट कर अलग किया जाता था। एक विचित्र घटना के कारण टिकटों के चारों ओर दानेदार छेद किये जाने लगे जिससे टिकटों को बिना काटे एक दूसरे से अलग किया जा सके। 
                        लंदन के एक सराय के हॉल के एक टेबल पर एक पत्रकार दिन भर के संवाद ,रिपोर्ट वगैरा लिख कर लिफाफे में डाल डाक से भेजने की तैयारी कर रहे थे। उनके पास डाक टिकटों के ताव तो थे पर कैंची नहीं थी । सराय वाले के पास भी जब कैंची नहीं मिली तो उसने टिकटों को अलग करने का आसान तरीका सोच ही लिया। पिन से टिकटों के चारों ओर छेद कर आसानी से सभी टिकटों को बहुत जल्द अलग कर सका। वहीं बैठा एक वैज्ञानिक -अविष्कारक सब कुछ देख रहा था पत्रकार के इस काम से वैज्ञानिक के मन में विचार आया कि इस काम के लिये क्यों न एक मशीन बनाई जाए जिससे टिकटों के छपते समय ही साथ -साथ छेद भी होते जाये, जिससे सभी लोगों को आसानी हो और कैंची से काटने की आवश्यकता भी नहीं हो ,सभी टिकटें एक समान एक माप के अलग हो सकें।  
             वैज्ञानिक साहब ने अगले साल ही एक मशीन  बना कर लंदन के पोस्ट मास्टर जनरल को दिखाया। डाक विभाग को यह पसंद आया और वे इस मशीन को खरीद लिये। कई वर्षों के ट्रायल और सुधार के बाद सन 1854 में इसका व्यवहार होने लगा। बाद में दूसरे देशों में भी अलग -अलग तरह के मशीनों से अलग -अलग आकार के छेद वाले डाक टिकट बनाने लगे। किसी ने सच ही कहा है "आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है".है ना यह एक विचित्र घटना। 
                                                                                                                                   क्रमशः 



   

WONDER'S OF PHILATELY WORLD

                                             फिलैटली  जगत का आश्चर्य 

                         बाबा का जन्म दिन आ रहा है,तो बाबा के बारे में कुछ रोचक बात बताना अच्छा लग रहा है। बाबा का हॉबी में  पढ़ना -लिखना ,बागवानी करना और डाक टिकट जमा करना है। बचपन से देख रहे है। बाबा 1951 से डाक टिकट जमा कर रहें  है ,उनके पास करीब -करीब पाँच हजार टिकट है। बाबा टेल्को में जॉब करते समय अपने ऑफिस के टेबल में काँच के नीचे जब -जब टिकट मिलता था रखते थे और फिर वही हॉबी बन गया। उस समय तो हमलोग फिलैटली  का नाम और मतलब जानते ही नहीं थे ,बस जानते थे डाक टिकट जमा किया जाता है। 
                अब जब -जब  टाटा जाने पर बाबा बताते है की डाक टिकट संग्रह करना तथा उनका अध्य्यन कर बहुत सी जानकारियां प्राप्त करना एक कला है। जिसे विश्व के सभी देशों में फिलैटली कहा जाता है।यह एक यूनानी शब्द है जिसका अर्थ कर देने से बचना है।डाक टिकट कैसे लोग जमा करने सीखे और उनकी हॉबी हो गयी इसकी भी एक मजेदार कहानी है।  
         ब्रिटेन की एक गरीब महिला गरीबी के कारन अपने घर की रंगाई नहीं कर पाने के कारण डाक टिकटों को दीवारों पर चिपकाने लगी। पर इसके लिये ढेर सारे टिकटों की आवश्यकता थी। उसकी सहायता के लिये बहुत से लोग आगे आये और वे भी टिकट जमा करने लगे। उस ज़माने में ब्रिटिश साम्राज्य सभी महादेशों में फैला था इसलिए ब्रिटेन में बहुत देशों से तरह -तरह की रंग -बिरंगी टिकटें लिफाफों के साथ आती थी। महिला की सहायता में आये लोग कुछ अच्छे टिकटों को अपने पास भी रखने लगे और उस समय से ही ,शायद 1842 से डाक टिकट संग्रह का हॉबी शुरू हुआ।  
                     विश्व का पहला टिकट 1840  में महारानी विक्टोरिया के शासन काल में ब्रिटेन में जरी हुआ जिनका डिजाईन उस समय के प्रसिद्ध कलाकार मिस्टर विलियम मलरेडी ने बनाया था। उन दिनों बहुत लोग इस नई चीज को पोस्टल स्टाम्प न बोलकर मलरेडी स्टाम्प कहते थे। ये तो एक कहानी हुआ, बाबा के पास ऐसा अलग -अलग स्टाम्प का अलग कहानी है।अगली बार एक और रोचक बात बताएँगे। 
                                                                                                                                      क्रमशः