शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

DAR ES SALAAM TO JANZIBAR (TANZANIA) BY BOAT

SAT,31 OCT
                                            दारेसलाम  से ज़ांज़ीबार नाव यात्रा 
     तंजानिया के दारेसलाम से ज़ांज़ीबार स्टीमर  द्वारा सफर करना हुआ सफर तो 2 -3 घंटे का ही था पर बड़ा अच्छा था। लौंग के लिये फेमस है पर यहाँ टूरिस्ट घुमने बहुत आते है। सीन सिनेरी देखते हैं और समुन्दर का मजा लेते हैं ,पर मुस्लिम देश होने के कारन महिलाओं को तैरना मना है। यहाँ के मुस्लिम काले अफ्रीकन जैसे होते हैं। 
      हमलोग टुरिस्ट जैसे हाँथ में पानी का बोतल लेकर सिटी घूम रहे थे। एक गुजराती दुकानदार हमलोगों को देख कर ईशारे से बुला कर पॉलीथिन बैग दिया और बोला बोतल उस में रखलो क्योंकि रोजा चल रहा है। हमलोग भी दुकान के अंदर खाते पीते हैं आपलोग भी खुले मेनही खाओ पीओ ,उन लोगों को अच्छा नहीं लगेगा। यहाँ गुजराती व्यपारी बहुत हैं और दोनों धर्म के लोग मिल कर एक दूसरे का रिस्पेक्ट करते हैं ,देख कर अच्छा लगा। 
    वे बोले शाम को आपलोग समुन्दर किनारे घुमना बम्बई के चौपाटी जैसा लगेगा। शाम को हमलोग क्या देखते हैं सचमुच एक दम चौपाटी जैसा तरह -तरह का स्टॉल लगा है सभी लोग परिवार के साथ घुम रहें है और खा पी रहे है। हमलोग भी कुछ खाने का सोच कर घूमने लगे ,एक गुजराती महिला हमे देखकर इशारे में बोली नहीं खाने रोजा वालों का खाना है। समझ मेंआगया  अपने लायक डिश खोज कर खाये। अच्छा हुआ उसने बता दिया।
    दूसरे दिन वापस दारेस्सलाम आगये पर यहाँ गरीबी बहुत है ,हाट बाजार भी ऐसेही है कोई रौनक नहीं था। तंजानिया मे भारतीय बहुत हैं खास कर गुजराती व्यापारी। गुजराती और पंजाबी होटल भी मिला और खाएं भी। यहाँ का समुन्दर तट और वहां का रेत बहुत अच्छा है एकदम सफ़ेद और बारीक। सब मिलाकर गरीब देश घूमने का भी अलग ही अनुभव हुआ। 



           

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

NAIROBI TO MOMBASA BY TRAIN (KENYA)

THU,29 OCT
                                               नैरोबी से मोम्बासा ट्रेन से 
   केन्या के नैरोबी से मोम्बासा का सफर ट्रेन से करने का मौका मिला। वैसे तो हवाई जहाज से कुछ ही घंटों में पहुँच सकते हैं ,पर ट्रेन से रात भर का टाईम लगता हैशाम को6 बजे चल कर सुबह 10 बजे तक पहुंचे। मोम्बासा में बहुत टूरिस्ट आते है समंदर किनारे होने के कारन धूप सेकने आराम करने। वैसे तो देश विदेश बहुत जगह का समुन्दर में घूमे और छुट्टी वितायें पर यहाँ आने का कारन कुछ और ही था। ट्रेन जंगल के बीच से गुजरती है ,और अफ्रीकन जानवरों को घूमते देख सकते है। 
  इस ट्रेन की एक बात कुछ खास ही लगा। 6 बजे शाम को हमारा ट्रेन चला शाम 7 बजे एक कर्मचारी घंटी बजाते हुये हर कूपे से गुजरा। डाईनिग में रात का भोजन खाने के लिये ,डाईनिग में जाने पर क्या देखते है पूरा रेस्टुरेन्ट जैसा 4 -5 कोर्समें  खाना परोसा जा रहा है।डिनर के बाद जब कूपे में पहुंचे तो देखते है बिस्तर तैयार है। एक बात और केन्या के ट्रेन में लॅडीस और जेंट्स यदि अकेले सफर कर रहें हो तो मिक्स नहीं अलग -अलग कूपे और पेअर को अलग कूपे मिलता है।
      सुबह 7 बजे फिर घंटी बजा नाश्ते के  लिये।दो घंटा आराम से नाश्ते का मजा लेते हुये बाहर का सीन का मजा तरह -तरह का जानवर जिराफ जीब्रा वगैरा देखते हुए कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। जैसे हमारे यहाँ गाय बकरी चरते रहती है  . 
    दोपहर को मोम्बासा सिटी आगये ,शाम का ट्रेन था। एक होटल गये एक -दो घंटे का टाईम था ,वहाँ क्या देखते हैं सारे लोकल लोग टीवी में हिन्दी गाने का मजा ले रहे है ,जब की समझते नहीं है। देख कर अछा लगा बम्बईया फिल्म का कमालशाम को ट्रेन से वापस नैरोबी आगये खाते पीते जानवर देखते। 






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सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

MAURITIUS MAIN SIVA

TUE,27 OCT
                                                     मॉरिशस  में शिव 
       बात बहुत पुरानी है ,हमलोग 1994 में दक्छिन अफ्रीका जा रहे थे। रायपुर से जब घर से निकले तो माँ (सास )बोली तुमलोग विदेश घुमने जा रहे हो रास्ते में कोई तीर्थ मिले तो दर्शन कर लेना। हाँ तो बोल दिए पर जब ट्रेन में बैठे बॉम्बे से फ्लाईट लेना था ,तो माँ के भोलेपन पर हमलोगों को बहुत हँसी आई। अब विदेश में कौन सा तीर्थ मिलेगा। 
 माँ -बाप दिल से ही आशीर्वाद देते हैं और वो जरूर पूरा होता है। संजोग देखिए अफ्रीका से सीधे नहीं आकर मॉरिशस होकर आने का प्रोग्राम बना कर आगे बड़ गये। मॉरिशस में 2 -3 दिन  घूम कर वापस एयरपोर्ट के लिये निकले। सुबह निकले थे और फ्लाईट  देर रात का था। टैक्सी वाले को बोले सिटी ,समुंदर किनारा,शूटिंग प्लेस सब तो घूम ही लिये हाँ और देर रात को एयरपोर्ट जाना है कुछ नया और हो तो घुमा कर रात को छोड़ देना। 
 सिटी के बाहर टी गार्डन ,गन्ना का फार्म घुमाने लगा ,अब क्या देखते है की बहुत सारे कांवरिया दल के दाल बहुत ही सुन्दर -सुन्दर फूलों से सजा काँवर लेकर जा रहे हैं। हमलोगों ने टैक्सी वाले से पूछा ये क्या है और कहाँ जारहें हैं उसने बताया आज शिवरात्री है ये दूर पहाड़ में जा रहें है वहाँ गंगा ताल से जल लेकर शिव जी में जल चढ़ायेंगे। 
 अरे ये क्या यहाँ शिवजी कहाँ से आगये और गंगाजी कहाँ मिल गई। पता चला यहाँ के लोग 13 वां ज्योतिर्लिंग मानते हैं। 11 भारत मैं ,1 नेपाल में और 13 वां यहाँ। अभी तक तो 12 ही जानते थे। टैक्सी वाला बोला आपके पास तो बहुत टाईम है आपको घुमा कर दर्शन करवा कर रात को आराम से पहुँचा सकते है। बस क्या था हमलोग चल पड़े। 
    ये तो पता था की अंग्रेजों के ज़माने में सैकडों साल पहले बिहार से जहाज भर -भर कर  मजदुर यहाँ लायागया था और वे लोग 3 -4 पीढ़ी से यहाँ पर हैं। पर चलो अच्छा ही हुआ शिव रात्री होने के कारण ये भी नजारा देखने और दर्शन करना भी होगया। शुद्ध हिन्दुस्तानी लंगर भी खाने मिला और लगा अपने देश में ही कोई उत्सव मना रहें है। पता चला हर साल बनारस से पंडित आकर पूजा कराते  हैं। उस पहाड़ में खुब बड़ा हनुमान जी का भी मूर्ती  और मंदिर देखने का मौका मिला।सब मिला कर बड़ा ही अच्छा लगा और माँ का बात भी रहगया। यहाँ आना सफल होगया ,घूमना का घूमना और एक तीर्थ का तीर्थ भी होगया। 









 वापसी में जब हमारा प्लेन मेडागास्कर के ऊपर से उड़ा तो वाह क्या सीन था ,दूर दूर तक जल ही जल..  

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

BANGAL KA PUJA

WED,21 OCT

                                                                  बंगाल का दुर्गा पूजा 
               वैसे तो नवरात्री का त्यौहार साल में दो बार बसंत में बासंती औरक्वार में शारदीय  नौ दिन देवी का अलग अलग रूप  में मनाया जाता है।पर बंगाल में क्वार में शारदीय नौ रात्री मेंदुर्गा  पूजा बहुत ही धूम -धाम से मनाया जाता है।दुर्गा जी को बेटी माना जाता है ,इसलिए बंगाल उनका मायका हुआ .अब जमशेदपुर बंगाल बॉर्डर के पास होने के कारन बंगालियों की संख्या भी यहाँ बहुत ही अधिक है। इसलिए यहाँ बंगाली रीत -रिवाज से पूजा मनाया जाता है।माँ के स्वागत के लिये बहुत ही सुन्दर और बड़ा पंडाल सब जगह बनाया जाता है।  
 मान्यता है की दुर्गा जी महिषासुर का बध कर  के अपने परिवार के साथ 9 दिन के लिये  मायका आतीहै। इसलिए बंगाली पंडालों में दुर्गा प्रतिमा के साथ कार्तिक ,गणेश ,लख्मी ,सरस्वती आदि का भी मूर्ती होता है ,वे देवी के बेटा बेटी माने जाते हैं और साथ में गणेश जी की पत्नी कोला बहू कोने में केले के  गाछ को साड़ी लपेट कर खड़ा किया जाता है। कार्तिक जी ज्येष्ठ हैं उनके सामने बहु कैसे रहेगी।
 दुर्गा पूजा अमावस्या के दिन घरो में घट रख कर शुरु हो जाता है ,पर पंडालों में प्रतिमा षष्ठी के दिन
घट रख कर शुरू किया जाता है। अष्टमी का दिन सबसे विशेष होता है। खासकर अष्टमी और नवमी का संधिकाल में  108 दीपक जला कर पूजा का विधान है. दशमी के दिन अपराजिता नीले रंग का फूल और उसके पत्ते से पूजा होता है।  मूर्ति विसर्जन होता है ,इस अवसर में महिलाएं दुर्गा प्रतिमा को सिन्दूर लगा कर विदाई देती है और एक दूसरे को सिन्दूर लगती है ,इसे सिन्दूर खेला बोला जाता है।देवी प्रतिमा के सामने एक बड़े से परात में जल रखा जाता है,और उसमें एक दर्पण ,दर्पण में माँ का चरण दिखना चाहिए। सब महिलाएं दर्पण में माँ का चरण स्पर्श करआशीर्वाद लेती हैं ,फिर माँ को मिठाई खिलाकर सिन्दूर लगती है।   जिस प्रकार बंगाल में बहीन बेटी को मछली भात खिला कर बिदा किया जाता है वैसे दुर्गा माँ को भी सुबह खिला कर सिन्दूर लगा कर बिदा किया जाता है।पूजा में खिचड़ी भोग का भी बहुत महत्त्व है ,और बंगाली छेने से बना हुआ मिठाई। 
 प्रतिमा विसर्जन के बाद नीलकंठ पछी उड़ाया जाता है ,मान्यता ये है कि वे कैलाश पर्वत पर पहुँच कर भगवान शिव को माँ के मायका से रवानगी की सूचना देता है।विसर्जन के बाद शांति जल लाया जाता है। और फिर एक दूसरे से मिलकर विजया दशमी का पर्व मानते हैं।













  

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

POLAND TOUR

TUE,20 OCT
                                                                         पोलैंड की सैर 
                    2011 में डेन्मार्क से हमारा सफर बस से रूस होते हुये पोलैंड पहुँच गया। कितना नदी, समुन्दर ,जंगल, पहाड़,गॉवों ,देश होते हुये आखिर पोलैंड की राजधानी वारसा पहुँच गये। अब वारसा से एक हफ्ता ट्रेन से पोलैंड का 4 -5 सिटी घुमना था। यहाँ भी वर्ल्ड वार1 -1918 और वर्ल्ड वॉर 2 -1939  में बहुत कुछ तबाह हो गया था जिसे फिर से बनाया गया।पहले से ज्यादा सुन्दर ,बड़ा अछा। रेलवे स्टेशन तो ऐसा जैसे कोई मॉल हो लगेगा ही नहीं स्टेशन है। बड़ेसे बड़ा मॉल इसके  सामने कुछ भी नहीं। 
  यहाँ के लोग बहुत ही सीधे और सज्जन तथा हेल्पिंग नेचर के हैं भाषा का थोड़ा प्रॉब्लम है पर नई पीढ़ी अब अंग्रेजी पढ़ना लिखना कर रही है। हमें एक हफ्ता पोलैंड में घूमना था इस लिये हमलोग एक दुकान में पोलैंड का सिम लेने पहुँचे दुकान दार नेटपैक दे नहीं पारहा था भाषा के कारण और हमलोग को ट्रेन पकड़ना था अब क्या करे समझ नहीं आरहा था और उसे समझा नहीं पा रहें थे। एक लड़की हमे देख रही थी वह समझ गयी और दुकानदार को समझाई तुरंत हमें सिम मिल गया वह मोबाईल में डालकर अपने मोबाईल से मिस कॉल कर दी और बोली ये मेरा नम्बर है आपको कहीं भी परेशानी हो मुझे कॉल करना। हमारा प्रॉब्लम सॉलभ हो गया। अनजान देश अनजान लड़की हो कर इतना हेल्प करना अपना नम्बर देना एसे लोग हैं। वारसा घुमने के बाद हमलोग क्राकोव पहुंचे। 
2 - क्रक्रोव चेक गणराज्य के बॉर्डर में पड़ता है। यहाँ जूइश लोगों का घर और 14 सेंचुरी का चर्च है। यहाँ इकोनॉमिक्स और साईंस का यूनीवर्सिटी है। बहुत ही बढ़िया सिटी थायहाँ घूमने के बाद फिर हम कटवाइस गए। 
3 -कटवाईस यह साऊथ वेस्ट में चेक के समीप क्राकोव के पास छोटा पर  खुब सुन्दर ।सिटी चर्च ,कैथेड्रेल ,थिएटर सभी कुछ यहाँ भी था। 
4 -पोजनान -अब हम पोजनान में आगये यह  भी वर्ल्ड वॉर 2 में बर्बाद हो गया था इसे भी फिर से बसाया गया। लेक ,ओल्ड टाऊन ,नेशनल पार्क यूनिवर्सिटी सब कुछ है। 
पोजनान घूमते हुए हम वापस वारसा आगये जहाँ से हमारा टूर ख़त्म हुआ। 
एक -एक महीना जगह -जगह घूमने के बाद सारे टूर मेंबर से बिदा होने पर बड़ा ख़राब भी लगता है  सब घर के मेम्बर जैसे हो जाते हैं। हर बार टूर में वेलकम तथा फेयरवेल पार्टी भी जरूर होता है। ऊसके बाद सब बिदा हो जाते हैं  अपने -अपने फ्लाईट पकड़ कर खट्टी -मीठी यादें लेकर अपने देश चल देते हैं।










 





सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

RUSSIA AND BELARUS

MON,19 OCT
                                                        रूस और बेलारूस की सैर 
         इस बार करीब 15 -20 दिन तक बस का सफर रहा। सेंटपीटर्सबर्ग से हमारा रूस का सफर शुरू हुआ। पहले इस शहर  का नामलेनिन के नाम पर  लेनिनग्राद था और रूस की राजधानी था। बाद में पीटर दी ग्रेट के नाम पर सेंटपीटर्सबर्ग पड़ा।स्वीडन के पास नेवा नदी के किनारे बसा है। यहाँ समर पैलेस और विंटर पैलेस है। पैलेस क्या सिर्फ सोना ही सोना पुरे महल में सोना का नक्काशी और कारीगरी देखते ही बनता है। हमारा देश कभी सोने की चिड़ियाँ कहलाता था जिसे लूटेरों ने लूट कर अपने देश ले गए पर रूस में सोना का महल हो कैथेड्रल हो म्यूजियम हो अभी भी सुरखचित है। बहुत ही सुन्दर शहर ,यहाँ का विश्व प्रसिद सर्कस ,कल्चरल प्रोग्राम सब ही बहुत अछा था। अब हम आगे रूस के दूसरे शहरो को देखने निकल पड़े।
मास्को -रूस की राजधानी मास्को अति सुन्दर ,यहाँ का लाल चौक (रेड स्क्वेर )अईसे  ही विश्व प्रशिद्ध नहीं है चौक के चारो और महल कैथेड्रल ,फवारे ,होटल ,रेस्टुरेन्ट सब है। मास्को में मेट्रो में घूमने और देखने का अलग ही अनुभव हुआ। पहले लन्दन का मेट्रो देख कर लगता था की वाह  कैसे बना होगा।
मास्को मेट्रो की कुछ रोचक बातें मेन पाँच  स्टेशन मयकावस्काया ,बेलारुस्क्या ,कोम्सोमोल्स्कय ,कुरस्कया और प्लोषड रेवोलूूटिस इत्यादी स्टेसनो जितना लिखा जाये काम होगा। सेकेण्ड वर्ल्ड वॉर के समय का बना हुआ है। ग्रेनाइट ,मार्वल मजाक से तो बना ही है इसके अलावा वर्ल्ड वार में मारे गए सैनिको के सामान में मुर्तिया ,उनके परिवार की महिलाओं के काम ,कशीदा कारी ,हर  प्रकार का चित्र तथा मूर्तियां उकेरा गया है जो कबीले तारीफ है।मास्को घूमते हुए हम रूस के दूसरे शहर स्मोलिंकस पहुंचे। 
स्मोलिंकस भी किसीसे काम नहीं निकला यहाँ पर जुईशों का 1524 में बनबाने ऑर्थोडॉक्स चर्च सोने का गुम्बज वाला देखने मिला। यहाँ मेडिकल की पढ़ाई करने विश्व से बच्चे आतें हैं भारत से भी काफी बच्चे पढ़ने आते हैं। 
अब हम रूस के पड़ोसी देश बेलारूस पहुंच गए। ये भी कुछ कम नहीं था। वर्ल्ड वॉर में पुरी तरह तबाह हो गया था इसे फिर से बनाया और बसाया गया जो की पहले से भी बहुत खुबसूरत बना ,बेलारूस के दूसरे शहरों को घुमते हुए हम ब्रेस्ट शहर जो की पोलैंड वार्डर के करीब है जहाँ हमारा टूर खत्म हुआ। 
हर जगह गार्डन ,महल ,चर्च और कैथेड्रल देख केर दिल खुश हो गया ये भी बहुत यादगार टूर रहा।