बुधवार, 28 अगस्त 2019

SAPTA PURI

                        सप्तपुरी

               भारत का सात प्रमुख स्थल ,जहाँ अलग -अलग काल और समय में भगवान ने अवतार लिया था, वह सप्तपुरी कहलाता है। सातों भारत के प्रमुख नदियों के किनारे बसा है और आध्यात्म का केंद्र है।
                हरिद्वार ,मथुरा ,अयोध्या ,वाराणसी ,उज्जैन ,द्वारका एवं काँचीपुरम।
 1 . हरिद्वार -उत्तराखंड में गंगा किनारे बसा हरिद्वार भगवान हरि का द्वार (विष्णु -हरि ,शिव -हरि )माना जाता है।भारत के सात सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक हरिद्वार है। हरिद्वार को पौराणिक ग्रंथो में मायापुरी भी कहा गया है। मोक्छ की तलाश में लोग यहाँ आते है। कुम्भ मेला भी यहाँ लगता है।
2 .मथुरा -जमुना किनारे भगवन श्री कृष्ण की जन्म स्थली है। मथुरा के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है। कृष्ण जी बचपन में यहीं लीला करते व्यतीत किये है।
3 . अयोध्या -अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के तट पर स्थित है। भगवान श्री राम का जन्म यहीं हुआ था। रामायण काल पूर्ण होने के बाद भगवान राम सरयू नदी में प्रवेश कर के ब्रह्मलीन हुए थे।
4 . वाराणसी -गंगा किनारे शिव की नगरी काशी उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन और धार्मिक स्थल है। दो नदी वरणा और अस्सी मिलकर वाराणसी बना है।यहाँ बाबा विश्वनाथ जी का प्राचीन मंदिर है। इसके अलावा मणीकरणीका घाट ,दशाश्वमेघ घाट ,प्रसिद्ध  बनारस यूनीवर्सिटी भी यहीं है। यहाँ अंतिम संस्कार होने पर मुक्ति मिलता है।
5 . उज्जैन -महाकाल की नगरी उज्जैनीय शिप्रा तट पर बसा है। उज्जैन का प्राचीन नाम अवंतिका ,अवंती नामक राजा के नाम पर था।प्राचीन  काल में उज्जैन महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी थी। इसे कालीदास की नगरी भी बोला जाता था । यहाँ महर्षि संदीपनी जी का आश्रम है,जहाँ कृष्ण और सुदामा ने शिक्छा ग्रहण की थी। कृष्ण -सुदामा की मित्रता जग जाहिर है। उज्जैन को विश्व का सेण्टर(धुरी ) भी माना जाता है, कर्क रेखा यहीं से गुजरती है।उसी ज़माने से आध्यात्म और ज्योतिष विज्ञान का केंद्र था और जंतर -मंतर बना है। विश्व से विद्यार्थी पठन -पाठन के लिये आते थे। यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुम्भ मेला लगता है। भगवान के 12 ज्योतिर्लींग में से एक महाकाल इसी नगरी में है.
6 . द्वारका -अरब सागर और गोमती के तट पर द्वारका बसा हुआ है। ये नगरी कृष्ण जी द्वारा बसाई गई थी। द्वारका में ही सुदामा जी कृष्ण जी से सागर तट पर भेट किये थे जो की भेंट द्वारका नाम से जाना जाता है। । अभी जो द्वारका है वो कृष्ण जी के वंशजों द्वारा बनाया गया है। कृष्णकाल का द्वारका सागर  में विलीन हो गया है। महाभारत काल के बाद कृष्ण जी यहीं से स्वर्गारोहण किये थे। कृष्ण दीवानी मीरा भी यहीं आकर सागर में  विलीन हो गयी थी।
7 . काँचीपुरम -काँचीपुरम दक्छिन का काशी माना जाता है। चेन्नई से 45 मील की दूरी पर दक्षीण -पश्चिन में स्थित है यहाँ देवी कामाक्षी अम्मा का मंदिर 5 एकड़ में फैला हुआ  है। यहाँ देवी माँ शिवलींग बना कर पूजा करती थी।यहाँ ब्रह्मा जी ने देवी माँ का दर्शन किया था। कामाक्षी माँ के नाम पर इस नगर का नाम काँचीपुरम पड़ा।मान्यता है की  यहाँ मनोकामना पूर्ण होता है, इसलिए लोग -बाग  इस मंदिर में  विवाह करने आते है।
    ये हमारे सात प्रमुख नगर सप्तपुरी कहलाता है। हरिद्वार और उज्जैन में कुम्भ मेला लगता है ,कुम्भ स्न्नान का भी सौभाग्य मिला। गंगा आरती भी हरिद्वार में देखने मिला। 6 जगह तो देखना हुआ ,अयोध्या बाकी है। अब जल्द राम मंदिर बने तो अयोध्या भी दर्शन हो जायेगा। आगे प्रभु इच्छा।






       

सोमवार, 26 अगस्त 2019

SIDDHAGIRI SHIRDI SAI BABA TEMPLE IN YEDAPPALLI COONOOR

                            साईं बाबा मंदिर

          कुन्नूर से करीब 3 किलोमीटर की दूरी में एडाप्पल्ली ग्राम में  सिद्धगिरी पर्वत में शिरडी के साईं बाबा का एक भव्य मंदिर बना हुआ है। चारो और घाना जंगल ऊँचे -ऊँचे पेड़ हरियाली ही हरियाली एकदम ही मनोरम दृश्य बस देखते ही बनता है। एकदम शांत -एकांत वातावरण होने के कारण दिल को बहुत ही अच्छा लगता है।
     मेन मंदिर के बीचो बीच में 7 फ़ीट का मार्बल का साईं जी का मूर्ती है। मूर्ती के सामने छोटा सा स्वम्भू शिवलींग भी है। मंदिर के प्रांगण में कृष्ण जी का मेटल का बहुत ही सुंदर बंशी बजाते हुए एक मूर्ती है। इसके आलावा देवी माँ ,गणेश जी ,कार्तिक जी ,विष्णु जी ,पंचमुखी हनुमान जी आदि देवी -देवताओं  का भी मंदिर है। गुरुवार को विशेष पूजा तो होता ही है इसके अलावा हर दिन ही भक्तो का ताँता लगा ही रहता है।पहले भी 2 -3 वार मंदिर जाना हुआ ,पर  इस रविवार को फिर से मंदिर जा कर दर्शन करने का सौभाग्य मिला।रविवार का इससे अच्छा सदुपयोग और क्या हो सकता है।







     

                 

रविवार, 25 अगस्त 2019

COONOOR KA JANMASHTAMI

                          कुन्नूर का जन्माष्टमी

                  भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन भादो के अष्टमी को पुरे भारत और विदेश में धूम धाम से मनाया जाता है। दिन भर व्रत रख कर रात को भगवान का जन्म मनाने लोग बाग मंदिरो में जाते है। बम्बई में तो इस दिन दही हांडी का उत्सव जोर शोर से मनाया जाता ही है।इस बार कुन्नूर में जन्माष्टमी का त्यौहार पड़ा। यहाँ भी मंदिर को सजा कर रात को भगवान को झूले में झूला कर भगवान का जन्म मनाये। वैसे केरल के गुरुवायुर के कृष्ण मंदिर में जन्माष्टमी उत्सव बहुत धूम -धाम से मनाया जाता है।











गुरुवार, 22 अगस्त 2019

NATIONAL WAFFLE DAY

                          नेशनल वफ़ल  दिवस 

           वफ़ल एक प्रकार का बेकरी का आइटम है इसे मिनी पैनकेक भी बोल सकते है। ये स्वीडन और नॉर्वे से ही निकला है। इसे लोहे के सांचे में बनाया जाता था। मार्च में वफल दिवस मनाया जाता था। दूध ,अंडा और मैदा के घोल को साँचा में डाल कर बनाया जाता था। बनाना भी आसान और बनता भी जल्दी है ,बच्चों के नास्ते में उपयोग किया जाता था। 2010 अगस्त से USA ने नेशनल वफल दिवस मनाना  सुरु किया। वे अपने सोल्जर को खुशी से देना सुरु किया। अब तो सारे दुनिया में वफल बनाया और खाया जाता है कॉफ़ी शॉप में भी मिलता है। वफल का मिक्स पॉवडर मिलता है और सैंडविच मेकर में साँचा भी रहता है कोइ भी आसानी से बना सकता है। हर कोइ अपने स्वाद अनुसार वफ़ल के ऊपर टॉपिंग कर के खाते है। कोइ मेपल सीरप डालता है कोइ चीज़ ,बटर ,क्रीम ,हनी ,चॉक्लेट इत्यादी कुछ भी डाल कर इसका मजा ले सकते है।





 














मंगलवार, 20 अगस्त 2019

WORLD SENIOR CITIZEN'S DAY

                 नेशनल सीनियर सिटीजन दिवस

         सीनियर सिटीजन मतलब बुजुर्ग वर्ग जो 60 साल से ऊपर के है। 1935 में अमेरिका के राष्ट्रपति ने सामाजिक सुरक्छा अधिनियम पर साइन किया था ,जिसके अनुसार नेशनल सीनियर सीटीजन डे 14 अगस्त  को मनाया जाता था। 1988 में रीगन ने 21 अगस्त को सीनियर सिटीजन दिवस मनाने का फैसला किया। इसका मुख्य उदेश्य अमेरिका के वरिष्ठ नागरिकों को सम्मान देना था।
  भारत में आज भी बड़े बुजुर्ग को सम्मान दिया जाता है। उनके राय से काम किया जाता है। विदेशों में बुजुर्गों को वृद्धाश्रम  में रखने का प्रचलन है ,उनकी संस्कृति हम से भिन्न है। बुजुर्ग वो है जो की परिवार को एक धागे में पिरो कर रखते है। वे परिवार के हर सदस्य को सही गलत का फर्क बताते है। अपने अनुभव से जिन्दगी जीने की नई सीख देते है। बुढ़ापे में उन्हें दवाई से ज्यादा अपनों के साथ की जरुरत होती है वे बस यही चाहते है की उनको सम्मान मिले।
  अब हमारे देश में भी बहुत सारा बृद्धाश्रम होगया है। कुछ बच्चों की मजबूरी भी है वे इतना पढ़ लिख लेते है और विदेशों में कमाने खाने चले जाते है तो माँ -बाप को बृद्धाश्रम में छोड़ देते है। हमलोग बहुत खुशनसीब है ,अपने परिवार के सभी बुजुर्गों का सम्मान करते है, और उनका आशीर्वाद भी मिलता है। और हमारे परिवार के सभी छोटे -बड़ों से हमें भी प्यार और सम्मान मिलता है।नहीं तो जमाना बहुत ही ख़राब है बड़े बच्चों के साथ और बच्चे बड़ों के साथ रहना ही नहीं चाहते है और फिर आश्रम का ही सहारा होता है।


  

रविवार, 18 अगस्त 2019

TEA GARDEN

                         चाय बागान की सैर





           बहुत दिनों बाद रविवार को जरा मौसम खुला। धुप भी खिला -खिला था। बस क्या था दादी पोता चाय बागान की सैर पर चल पड़े। चाय बागान घूमते -घूमते बाबा का बताया हुआ चाय पत्ती  की कहानी याद आगया। वैसे तो कुन्नूर में जहाँ नजर दौड़ाओ चाय बागान ही दिखेगा पर रविवार को घूमते हुए कहानी याद होना अच्छा लगा।
       बात बहुत ही प्राचीन है, करीब हजारों साल पहले की बात है। एक साधु बाबा तपस्या में रात -दिन लीन थे ,अचानक उनको नींद आया और उनका पलक झपक गया और उनका तपस्या भंग हो गया उनको बहुत गुस्सा आया। उन्होंने अपने पलक को काट कर फेक दिया।कुछ महीने बाद वहाँ कुछ पौधा उगा। साधु ने पत्ते को श्राप दिया की जो कोई इस पत्ते का उपयोग करेगा उसे नींद नहीं आएगा।फिर क्या था साधु बाबा के शिष्य लोगों को जब भी जाप करते नींद आता था वे कुछ पत्ती तोड़ कर चबा लेते थे। उन्हें नींद नहीं आती थी।अब कहानी तो कहानी है पर आज भी लोग -बाग पढ़ते हुए या थकावट दूर करने के लिये चाय का सेवन करते है।
    वैसे भारत से जहाँ -जहाँ बुद्धिस्ट गए है,चीन ,जापान ,श्रीलंका  और अग्रेजों के राज्यों में पहाड़ों में चाय बागान देखने मिलता है।और अब तो पूरी दुनिया में ही लोग बाग चाय का इस्तेमाल करते है। 
    

शनिवार, 3 अगस्त 2019

FRIENDSHIP DAY , SISTER'S DAY

                     मित्रता  दिवस

   30 जुलाई 1958 को UNA ने  इंटरनेशनल फ्रैंडशिपडे की घोषणा की ,उसके बाद ही विश्व में मनाया जाने लगा। अलग -अलग देश में अलग -अलग दिन मनाया जाता है। भारत ,बांग्लादेश ,मलेशिया इत्यादी देशों में अगस्त के पहले रविवार को मित्रता दिवस मनाया जाता है।
  आज के एलेक्ट्रोनिक युग में मित्र बनाना और बिछुड़ना का कोई  बात ही नहीं है। साधन इतना है की जब मन चाहे मिलो बात करो दूरी कहीं लगता ही नहीं है। हमारे बचपन में फ़ोन ,मोबाईल इत्यादी का जमाना नहीं था। जब तक स्कूल -कॉलेज में पढ़ते थे तो सखी सहेली के साथ मस्ती ,मिलना ,जुलना होते रहता था। शादी हुआ की नहीं बस फिर कौन कहाँ ना मिलना ना जुलना ,धीरे -धीरे अपने -अपने परिवार तक ही सीमित हो जाते थे। नेट के ज़माने में अब कोई बात ही नहीं है।
           वैसे   2 -4  मित्र लाईफ में जरूर होना चाहिए।आजकल फ्रेंडशिप बैंड बाजार में मिल जाता है। बच्चे लोग रविवार के बदले सोमवार को स्कूल में बैंड लेजाकर अपने मित्रों को बांध देते है। हमलोग का तो बच्चपन का एक दो सहेली छोड़ कर कोई भी टच में नहीं है।

                                       सिस्टर दिवस

           हजारों दिवस की तरह ही बहन दिवस भी अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है।इसकी शुरुआत कब और कहाँ से शुरू हुई इसका ठीक से अभी पता नहीं चला है। ये भी विदेशियों की ही देन है। हमारे देश में तो भाई बहन सब एक ही घर में पुरे परिवार के साथ खेलते कूदते बड़े हो जाते है उन्हें अलग से विशेष कोई दिवस की जरुरत नहीं पड़ती है।बड़े होने पर तीज त्यौहार में मिलना जुलना हो ही जाता है।
   संजोग ही बोलेंगे बहन और मित्र दिवस दोनों एक ही दिन मनाया जाता है। बचपन की सहेली भी बहन जैसी हो जाती है और बहन भी सहेली जैसा रहती है।हम लक्की है की हमारी बहन है।हमलोग सहेली जैसा रहते है। अपना सुख दुःख बतियाते है और हँसी खुशी  से मिलते जुलते रहते है।