शनिवार, 30 जनवरी 2016

DIKSHABHUMI NAGPUR

SUN,31 JAN
                                      दीक्छाभूमी नागपुर 
                   नागपुर के इतने नजदीक रहने पर भी कभी नागपुर घूमने नहीं जाना हुआ। जब भी नागपुर गए बस या तो स्टेशन से एयरपोर्ट या एयरपोर्ट से स्टेशन सिटी नहीं घूमे।इस बार एक मित्र के यहाँ शादी में नागपुर जाना हुआ ,फिर क्या निकल पड़े शादी में भी  सम्मिलित हो गए और साथ ही नागपुर की सैर भी करलीए। 
          बाबा साहेब आंबेडकर के बारे में इतना ही पता था की भारत का संबिधान बनाये है और अछूत जाती के लिये काम किये हैं ,बहुत जयादा कुछ नहीं मालूम था। पर जब यहाँ आएं तो पता चला की आंबेडकर जीने यहीं बुद्ध धर्म की दीक्छा ली है और जिस पेड़ के नीचे दीक्छा ली उसे बोधिबृक्ष नाम दिया गया। उस स्थान में भगवन बुद्ध का प्रतीमा और बुद्ध स्तुप बना है।एकदम साँची स्तुप की तरह। इसलिए इस जगह का नाम दीक्षाभूमि पड़ा। 
        नागपुर में सैकड़ों साल प्राचीन गणेश मंदिर भी देखने का मौका मिला। इसके आलावा नागपुर को भारत का जीरो पाईन्ट भी माना जाता है। यहाँ जीरो पाईंट का पिलर भी देखना हुआ। कभी नागपुर को सी पी  (सेंट्रल प्रोविन्स )बोला जाता था इसलिए ही नाम पड़ा होगा।अब तो बिदर्भ और महाराष्ट्र ही है.









  

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

MAKAR SANKRANTI FESTIVAL

FRI,15 JAN
                                 मकर संक्रांति का त्यौहार 
   वैसे तो हर साल 14 जनवरी को संक्रांति मनाया जाता है। इस दिन तिल गुड दान का विशेष महत् है ,और खिचड़ी खाने का रिवाज पीढ़ी दर पीढ़ी चला आरहा है। पर इस बार 15 जनवरी को पड़ा है। इस बार बचपन का संक्रांत का बरबस याद आगया।बात 50-55 साल पुरानादादी के ज़माने का है।   
       बचपन में दादा -दादी हम सब बच्चों को स्वर्णरेखा नदी ले जाते थे। वहाँ मेला लगता था। वहाँ के आदिवासियों का टुसु पर्ब संक्रांत के दिन होता है। सब नदी के किनारे जमा होते थे नए वस्त्र ,लाल साड़ी में सजे रहते थे और नाचते थे। हमलोग खुब मेला तो घुम लेते थे पर ठेले से कुछ खरीदने नहीं मिलता था और डांट पड़ता था मेला का चीज खाने नहीं मिलेगा ,घर चलो वहां दही ,चुडा और तिलकुट खाना और खिचड़ीखाना । आज भी टाटा क्या सारे बिहार में दही -चुडा तिलकुट खाने का रिवाज है और सब लोग बहुत चाव से खाते  है और मकर संक्रांति का त्यौहार मानते है।








सोमवार, 11 जनवरी 2016

MY 101ST BLOG

                  FINAL MESSAGE AFTER THIRTY YEARS OF FOREIGN TOUR
           
                                                                मेरा 101 वां ब्लॉग 
                     आज मेरा 101 वां ब्लॉग भी है और 30 सालों  का यात्रा का संस्मरण भी करीब -करीब पूरा होगया। 30 सालों का निचोड़ तो यही मिला की दुनिया बहुत ही सुन्दर है हर देश और प्रान्त के लोग बहुत ही अच्छे है। अलग -अलग जाति ,धर्म के लोगों से मिलना। अच्छे -अच्छे मित्र बनाना,हर टूर में बहुत ही अच्छे मित्र बने। कही रशियन बच्चों से दोस्ती हुआ तो कही ऑस्ट्रेलियन मित्र बनी ,कहीं अमेरीकन। किसी को भी जरा भी घमंड नहीं इतने अच्छे से बात करना घूमना और टूर समाप्त होने पर अफ़सोस जताना। 










 दुनिया घूमना बड़ा ही अच्छा लगा। विश्व प्रसिद्ध क्या नहीं देखना हुआ --
 1 -रशियन डांस ,ड्रामा ,सर्कस। 
 2 -ऑस्ट्रेलिया का बैले ,ओपेरा 
 3 -रियो का कार्निवल ,बारबेक्यू 
 4 यूनिवर्सिटी 
5 -नुक्कड़ नाटक ,फिल्म का शूटिंग 
 6 पोलैंड रेलवे  स्टेशन  का बड़ा मॉल 
    क्या नहीं और भी बहुत कुछ।
 फिर कभी देश -विदेश घुमना हुआ तो फिर कुछ अच्छा लगेगा तो फिर लिखेंगे। अब तो बस इतना ही .
  जाते -जाते अपने परिवार के सदस्य ,अपने मित्रों ,अपने रिश्तेदारों सबों को बहुत -बहुत धन्यबाद मेरा ब्लॉग देखने का।    


गुरुवार, 7 जनवरी 2016

THE LAND OF KANGAROOS AND OSTRICH (NEW ZEALAND AND AUSTRALIA)


                                               कंगारु ,ओस्ट्रीच और फ़ीज़ोर्ड के देश की सैर 
                                                          (न्यू जीलैंड से  ऑस्ट्रेलिया )
                      मुझे 2013 में न्यूजीलैंड से ऑस्ट्रेलिया क्रूज से सैर करने का मौका मिला। हम भारत से ऑकलैंड न्यूजीलैंड की राजधानी पहुंचे। 2 -3 दिन ऑकलैंड घूम कर फिर जहाज से हमारा 20 दिन का सफर शुरू हुआ। अब यही हमारा घर और जहाज के लोग हमारे मित्र तथा परिवार हो गये। हमारा सफर का पहला पड़ाव तरूँगा शहर में पड़ा। 
  तरूँगा -कीवी फल यहीं से निकला है ,चारो तरफ कीवी फार्म ,कीवी से वाईन बनाया जाता है ,टूरिस्ट को वाईन फैक्ट्री और फार्म दिखाते है। दिन भर घूम कर वापस क्रूज़ में आगये। दो दिन पानी में चलने के बाद तीसरे दिन ओकरा में पहुँचे 
  ओकरा -भी बहुत ही सुन्दर था यहाँ फ्रेंच कोलीनी होने के कारन फ्रेंच वाईन ,कीवी का केक बनता है। यहाँ समुन्दर के किनारे मीलों तक विनियर्ड है ,क्राईस्ट चर्च भी यहीं है। अब हमारा क्रूज़ फिर चल पड़ा। 
 डुनेडिन -ओटँगा हार्बर के किनारे बसा सुन्दर शहर था। यहाँ पीली आँखों वाली पेंगुएन ,यूनीवर्सिटी ,कड़वारीस फैक्ट्री वगैरा देखने मिला।यहाँ का रेलवे स्टेशन भी देखने योग्य है। डुनेडिन से हमारा जहाज अब न्यूजीलैंड से आगे ऑस्ट्रेलिया के ओर बड़ा तीन दिन और रात पानी में चलते रहे। 
   फीजोर्ड -हमारा जहाज धीरे -धीरे फीजोर्ड के बीच से गुजर रहा था। चारो तरफ ऊँचा -ऊँचा पहाड़ ,पहाड़ के बीच से पतला रास्ता से गुजरते हुए झरना देखते हुआ गुजर रहे थे। दिन भर डस्की साउंड ,डाउटफुल साउंड और माइलफोर्ड साउंड (फीजोर्ड का नाम )का नजारा देखना बड़ा अच्छा लग रहा था। तीन दिन पानी में चलने के बाद अब हमारा जहाज ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में पहुंचा।
   सिडनी -बहुत बड़ा खुबसूरत हार्बर शहर के बीच में है। यहाँ विश्व प्रसिद्ध ओपेरा हॉउस है। हमारा जहाज ओपेरा हाउस के बगल में दो दिन रुका। 1952 में ओपेरा हॉउस बना था ,इतना बड़ा है की डांस ,ड्रामा ,वेलेट और ओपेरा सब का अलग अलग हॉल बना है। सिडनी का फिश मार्केट भी बहुत ही जोरदार था एकदम अलग तरह का जिसे देखने टूरिस्ट जाते है।अब हम फिर आगे बड़े दूसरे दीं हम तस्मानिया के होबोर्ट में पहुंचे। 
  होबोर्ट -ऑस्ट्रेलिया का दूसरा सबसे पुराना शहर है हार्बर के चारो तरफ शीफ़ूड रेस्टुरेंट है ,विंटेज नाव और छोटी नौका भी देखने मिला। यहाँ जहाज बनता है और एक्सपोर्ट करते है ,ऊल ,मक्का भी बाहर जाता है। अब हम दूसरे दीं एक और खूबसूरत शहर ऐडलैड पहुंचे। 
  ऐडलैड -यहाँ की रानी के नाम पर पड़ा था। यहाँ का ओपेल ,चॉकलेट ,वाईन ,कंगारु प्रसिद्ध है दो दिन पानी मे चलने के बाद हम एस्पेरेंस पहुंचे।
  एस्पेरेंस-इसकी कहानी भी विचित्र है। पहले नाम भी नहीं सुने थे। usa का नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर ने 14 मई 1973 को स्काई लैब लांच किया था ,77 टन का स्काई लैब ऑरबिट से पृथ्वी में 1979 में गिरा। वह जगह ही एस्पेरेंस है। ऑस्ट्रेलिया ने 400 डॉलर का जुर्माना usa पर कर दिया। 30 साल बाद नासा ने जुर्माना भरा। समुन्दर किनारे म्यूजियम बना कर उसमे स्काई लैब को रखा है जिसे देश -विदेश से टुरिस्ट देखने आते है। सुन्दर छोटा कोस्टल टाउन है। यहाँ सफ़ेद गोल्ड ,लेदर गुड्स ,नारियल  होता है। अब हम एक और शहर
    अल्बानी -पहुँच गये ,यहाँ नेचुरल गहरे पानी का हार्बर है। साल भर टूरिस्ट आते हैं। यहाँ एक बड़ा सा पत्थर कुत्ते के शेप में है टूरिस्ट पत्थर के सामने खड़े हो कर फोटो खिचवाते है। अब हम फिर आगे बड़े ये हमारे सफर का अंतिम पड़ाव था
पर्थ -फ्रीमेन्टल -हमारे नए दोस्तों से बिदा होने का समय हो गया था। पर्थ में 2 -3 दिन घूमे ,विनयार्ड ,अंगुर का बाग ,चॉक्लेट फैक्ट्री देखे।
   20 -22 दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। दिन भर नए नए देश -सहर घूमना शाम को शिप में डांस ,ड्रामा ,सर्कस ,मूवी देखना और रात भर पानी में आगे ही आगे बढ़ते जाना,मजा ही मजा  .











   

रविवार, 3 जनवरी 2016

MY BROTHER

MON,4 JAN
                                                                     जन्म दिन बड़े  भईया का 
                                      आज भईया का जन्म दिन है आज से दो साल पहले की बात है ,एक -एक कर याद आरहा है। बहुत ही हँसी खुशी टाटा बेटा ,बहु ,नाती ,पोता सबों को लेकर घूमने गये। बच्चों को पता चला की बड़े मामा का आज तो जन्म दिन है। फिर क्या था केक लेकर आये और मामा से केक कटवाए। भईया भी खुशी -खुशी केक काटे। खुब टाटा घूमे मजा किये ,नाना नानी भी खुश की चलो बच्चे आगये मुलाकात हो गया। 
        एक वो दिन था और एक आज का दिन क्या से क्या हो गया। दो साल में भईया का दिन पर दिन स्वास्थ ख़राब होते गया। अब तो एकदम बिस्तर ही पकड़ लिये है। पता नहीं क्या होगा। भगवान से बस यही प्रार्थना कर सकते है की उनको जल्द ही स्वस्थ लाभ मिले।