शनिवार, 4 अगस्त 2018

AMARNATH YATRA

                        अमरनाथ यात्रा


                    हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थलों  में से एक अमरनाथ भी है। श्रीनगर से सैकड़ों मीटर दूर पहाड़ में बर्फ से प्राकतिक रूप में हिम खंड निर्मित हो जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा से सावन पूर्णिमा तक एक महीना चन्द्रमा के घटने बढ़ने के साथ ही हिम खंड घटता बढ़ता है और शिवलींग का रूप ले लेता है। शिवलींग के अगल -बगल थोड़ा छोटा दो  और हिमखंड बनता है जिसे पार्वती और गणेश के रूप में जाना जाता है।
    मान्यता ये है की एकबार भगवान शिव ने देवी पार्वती को इसी गुफा में अमरत्व का कहानी सुनाया था। गुफा में दो सफ़ेद कबूतर भी थे और वे आवाज निकाल रहे थे ,माता पार्वती तो सो गयी थी और दोनों कबूतर कहानी सुन कर अमर हो गए।अब सच जो हो मजे की बात तो ये है की गुफा के चारो तरफ नरम कच्ची बर्फ रहता है और गुफा के अंदर का हिम लिंग ठोस होता है।
   वैसे तो अमरनाथ जाने का दो रास्ता है, एक पहलगावं होकर जिसमे ज्यादा दिन लगता है।  दूसरा  बालटाल हो कर  . बालटाल से थोड़ा ज्यादा चढ़ाई होने के कारन लोग बाग पहलगावं से घूमते हुए जाते है। हमलोग तीन परिवार हमेशा तीर्थयात्रा साथ ही करते है कठिन से कठिन रास्ता हो एक दूसरे को उत्साह बढ़ाते हुए बढ़ते जाते है। आज से करीब दस साल हुआ ,हमलोग लेह -लद्दाक घूमने गए थे वहां से कारगिल -द्रास होते हुए बालटाल पहुँच गए बालटाल से सुबह 6 बजे घोड़े से ऊपर कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए ऊपर पवित्र गुफा पहुंचे। अच्छे से दर्शन भी हुआ और सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा भी पवित्र गुफा में देखने मिला।  रास्ते भर लंगर का मजा लेकर शाम 6 बजे नीचे बालटाल बेस कैंप पहुँच गए। यहाँ रात्री विश्राम कर के सुबह सोनमर्ग होते हुए श्रीनगर पहुँच गए।
     प्रभु इच्छा से ही हमलोगो को पूरा हिम शिवलींग का दर्शन भी हुआ ,मौसम भी साथ दिया ,रास्ते में कोई कठीनाई भी नहीं हुआ। अब तो जब टीवी देखो तो कभी  मौसम के कारन कभी आतंक के कारन तीर्थयात्री को आगे का यात्रा के लिये रुकना पड़ता है।  अब तो देख कर ही डर लगता है और सोंचना पड़ता है की हमलोग इतना कठिन तीर्थ कैसे कर लिये। प्रभु की इच्छा के वगैर कुछ नहीं हो सकता है।
        आज फ्रेंडशिप डे पर अपना तीनो परिवार की दोस्ती को याद करके ,सारे तीर्थ को याद करे ,उनलोगो के कारन ही सब हो पाया।

                 

                             




शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

HONOLULU QUEEN

                        DRAGON  FRUIT
                            पिथाया  फल

            ड्रैगन फ्रूट कैकटी फैमिली का पौधा है। अमेरीका के प्रमुख फसलों में से एक है। वैसे विएतनाम ,थाईलैंड ,मलेशिया ,एशिया आदि देशों में भी होता है ,पर पता नहीं इस फल का नाम होनोलुलु क्वीन कैसे पड़ा। अब भारत में भी इसकी खेती होने लगी है ,और रायपुर जैसे छोटे शहर में भी मिलने लगा है,पर  थोड़ा महंगा जरूर है। अपने ओषधीय गुणों के कारन लोग बाग शौक से लगाते है और खाते है।
      वैसे पौधा बीज से लगा सकते है पर बहुत टाईम लग जाता है। इसके टहनी काट कर लगाना ज्यादा अच्छा होता है और जल्दी बढ़ता भी है। इसका फूल सफ़ेद होता है और रात को ही खिलता है। फूल से फल आने और फिर फल तैयार होने में कम से कम 40 से 50 दिन लग जाता है ,जैसे सीता फल। इसका फल वैसे लाल होता है और अंदर दानेदार बीज के साथ गुदा होता है।कहीं  कहीं  फल के अंदर सफ़ेदऔर कहीं लाल गुदा होता है   पर चीन में पीला फल होता है।
       पेड़ जब सफ़ेद फूलों से भरा होता है तो बहुत सूंदर तो दीखता ही है और जब लाल -लाल फल से पूरा पेड़ भरा होता है तो कम आकर्षक नहीं होता है पेड़ और फल के आकार -प्रकार के कारन ही इसका नाम ड्रैगन फ्रूट पड़ा है। इसमें सारे विटामीन होने के कारन बहुत सारे बीमारियों में उपयोग किया जाता है। अच्छा है अब रायपुर में भी मिलने लगा है, खाने में भी स्वादिष्ट  और बहु उपयोगी। बीज तो लगा दीयें हैं ,देखें कब तक पौधा उगता है ,अभी पौधा मिला नहीं है मिलेगा तो जरूर लगा देंगे। फल का फल और गार्डन का शोभा का शोभा।