रविवार, 31 मार्च 2019

BELDIH KALIBARI JAMSHEDPUR

                      बेल्डीह कालीबाड़ी

        जमशेदपुर का काली मंदिर बहुत ही पावरफुल मंदिर माना जाता है। लोग साधना करने जाते तो है ही इसके अलावा यहाँ मनौती भी माँगते है और वो पूर्ण होता है। यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है। सन 1932 के नवम्बर माह को अमावस्या की रात में आचार्य जी के द्वारा पंचमुण्ड को जमीन में गाड़ कर उसके ऊपर कलश रख कर पुरे तांत्रिक विधि -विधान से रात भर तप साधना किया गया था।इसे पंचमुण्ड साधना कहा जाता है।
         2 दिसम्बर 1932 को देवी माँ काली की मूर्ती की स्थापना की गयी। इस मूर्ती की विशेषता यह है की यह एक ही पत्थर से निर्मित है। यहाँ तब ही से रोजाना हवन, पूजन  और अर्चना तो होता ही है पर अमावस्या की रात को विशेष उपासना होता है। सन 1933 से यहाँ नवरात्री में कलश पूजा और दुर्गापूजा भी शरू हुआ था। दुर्गापूजा में काली माँ का विशेष स्वर्ण आभूषणों का श्रंगार देखते ही बनता है। सन 2006 में मंदिर की प्लेटीनम जुबली बड़े ही धूम-धाम से मनाया गया था।
  हमलोग बचपन से आजतक दुर्गापूजा के आलावा जब भी मौका मिलता है तो मंदिर जरूर दर्शन करने जाते है।

शनिवार, 30 मार्च 2019

SHREE RAM MANDIR JAMSHEDPUR

                           श्री राम मंदिर

      जमशेदजी टाटा का जन्म एक पारसी पुरोहित के घराने में हुआ था। इसलिए बचपन से ही पवित्रता और उच्च आदर्शो के वातावरण में बड़े हुए थे। उनके जीवन में इसका बहुत प्रभाव पड़ा था। अपनी मृत्यु के पूर्व उन्होंने अपने बड़े पुत्र दोराब जी को एक पत्र लिखा था की उनके सपनो का इस्पात नगर हरा -भरा तो रखना ही साथ ही सभी धर्मो का प्रार्थना स्थल भी बनवाना।
    दोराबजी ने उनके जन्म दिवस 3 मार्च 1933 को एक बड़े समारोह के साथ श्री राम मंदिर के देवताओं की प्राण प्रतीष्ठा की इस मंदिर को बड़े ही अपूर्व ढंग से बनवाया गया। मंदिर इतना भव्य और बड़ा बना की एक हजार व्यक्ति एक साथ प्रार्थना कर सकते थे।
    मंदिर में रामचन्द्रजी ,माता सीता ,लक्छमण ,हनुमानजी के आलावा शिवजी ,माँ दुर्गा ,माँ अनपूर्णा ,गणपती आदि 12 देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा की गयी। सभा और मंदिर के कार्य में किसी तरह का भेदभाव नहीं रखा गया था। सभा में भारतीय ,यरोपियन ,अमेरीकन सभी धर्म के लोग उपस्थित थे।इस साल 100 साल पुरे होने पर बहुत ही भव्य प्रोग्राम रखा गया था।
  जमशेदपुर औद्योगिक शहर होने के कारण हर राज्य से बड़ी संख्या में विभिन्न जाति -धर्म के लोग बसे हुए है। इसलिए यह एक कॉस्मोपोलिटन टाउन बन गया है। सभी धर्म के लोगों को ध्यान में रखा गया और कोइ भेद -भाव नहीं रखा गया था। कोइ भी मंदिर आ जा सकता था। बचपन में हमलोग भी दादा -दादी के साथ बहुत बार जाते थे पर कभी उस नजर से नहीं देखते थे और ना तो मंदिर के बारे में इतना जानते थे की कब ,क्यों और कौन बनवाया। बस मंदिर जाना आना करते थे। ऐसा मंदिर हमारे जमशेदपुर में है।






शुक्रवार, 29 मार्च 2019

JAMSHEDPUR KA NAMKARAN

                 
                       
                           जमशेदपुर का नामकरण

       
        कहा जाता है की नाम में क्या रखा है ,पर नाम तो नाम ही है।  सैकड़ों साल पहले जब जमशेदपुर में लोहे का कारखाना नहीं बना था ,तब स्टेशन का नाम कालीमाटी और शहर का नाम साकची था। 1907 में स्टील प्लांट बना उसके बाद दो जनवरी 1919 में भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल वायसराय लार्ड चैम्सफोर्ड यहाँ आये थे। टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा के सम्मान में उनके सपनो का इस्पात नगर साकची का नाम जमशेदपुर और कालीमाटी रेलवे स्टेशन का नाम टाटानगर रख दिया।
      इस शहर का नाम साकची ,पहाड़ जिसकी तराई में शहर है उस पहाड़ का नाम दलमा पहाड़ ,और जिस नदी के तट पर शहर बसा है उसका नामकरण का कहानी भी बहुत मजेदार है जो की ज्यादातर लोंगो को पता ही नहीं है।
 दलमा पहाड़ --ऐसी मान्यता है की जब बादशाह अकबर छोटानागपुर -संथालपरगना (अब झारखण्ड राज्य )के आदिवासीयों को युद्ध में हराकर अपने साम्यराज में मिला ना सका तो उन्होंने अपने सेनापती राजा मान सिंह को इस छेत्र पर विजय पाने के लिये भेजा। जब वे भी असफल रहें तो वापस लौटने के पहले एक तरकीब से काम लिया। रात  में दलमा पहाड़ की चोटी पर एक विजय पताका फहरा दिया ,और अपनी पूरी फौज को रात के अँधेरे में दलमा के जंगल में छिपा दिया। सबेरे जब आदिवासीयों ने मान सिंह का पताका लहराते हुए देखा तो उनलोगों ने समझ लिया की मान सिंह की विजय हो गयी है। वे उनके सामने आत्मसमर्पण कर दिए । अपनी सेना दल का नाम अमर रखने के लिये उस पहाड़ का नाम दलमा रख दिया (सैन्य दल वालों का )आसपास के छेत्र में जहाँ उनकी फौज का दल इकट्ठा हुआ था उसका नाम दाल भूमि जिसका अपभ्रंश होकर धालभूम कहलाया और शेर जैसा काम किये इसलिए सिंघभूम जिला हो गया। ये तो बहुत पुरानी बात है। अब तो दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचरी होगया है। साल भर टूरिस्ट आते है। यहाँ हांथी बहुत ज्यादा है। पहाड़ के ऊपर शिव मंदिर भी है जहाँ शिव रात्री में बहुत लोग आते है। घूमते है पिकनिक मनाते है। वैसे अब तो गाड़ी ऊपर तक जाता है और वहां गेस्ट हॉउस भी है। ये तो दलमा की बात हुई ,अब जरा साकची की भी कहानी हो जाये।
    साकची -- पहले राजा महाराजा जब कहीं लड़ाई जीतते या कुछ अच्छा काम करते थे तो उसके बाद यज्ञ करते थे। राजा मान सिंह भी जब दलमा में विजय हासिल किये तो पहाड़ से लगभग 10 किलोमीटर दूर जुगसलाई गावँ में एक विजय यज्ञ  भी हुआ था। जिसमे साकची गावँ के लोग साक्छी (गवाह )बने थे इसलिए उस गावँ का नाम साक्छी रखा गया जिसका अपभ्रंश हो गया साकची। उस ज़माने में जो भी नाम रहा होगा अब तो यही नाम है और गावं से एक बड़ा शहर और जमशेदपुर का मेन  सेण्टर हो गया है।
स्वर्ण रेखा नदी --अब बात नदी की जिसके किनारे जमशेदपुर सिटी और कारखाना है। जमशेदपुर के पश्चिम में खरकाई नदी है जो जमशेदपुर के सोनारी मुहल्ले में स्वर्णरेखा नदी से मिलती है। उस स्थान को दो मुहानी कहते है। स्वर्णरेखा नदी रांची से निकल कर जमशेदपुर होते हुए ओडीसा के समुन्द्र में मिल जाती है। यह नदी एक सोने के खदान के ऊपर से बहती थी। इसलिए पुराने ज़माने में नदी  के बालू में  सोने के कण बड़ी मात्रा में पाया जाता था। दिन में सूर्य किरण बालू पर पड़ने से पूरा नदी एक सोने (स्वर्ण )की लकीर जैसी दिखती थी। इसलिए आदिकाल से ही इस नदी का नाम स्वर्णरेखा नदी कहलाया। खदान खाली हो गया इसलिए अब स्वर्ण कण नहीं मिलते है। दो मुहानी के पास की बस्ती के लोग बालू से सोना निकल कर यहाँ के सोनारों को बेच देते थे ,इसलिए दो मुहानी के पास की बस्ती को सोनारी कहा जाने लगा। अब तो गिने  चुने सोनार रह गए है बस्ती एक बड़ा मोहल्ला बन गया है सूंदर बड़ा -बड़ा बिल्डींग आ गया है। हमलोग बचपन में संक्रान्त ,टुसु पर्व और छठ पूजा में स्वर्णरेखा नदी किनारे बहुत जाते थे,और दुमोहनी में पिकनिक भी करते थे।  अब तो बाबा सोनारी में रहते है और नदी में 2-3 पुल भी बन गया है। नदी के किनारे लाइट से सजा रोड बन गया है जिसे मरीन ड्राईव बोला जाता है।सोनारी से साकची आना जाना भी होता है और पुल तथा नदी का दृश्य भी देख लेते है।मरीन ड्राईव से लगा जमशेदपुर का फेमस मैनेजमेंट कॉलेज X LR भी दीखता है जिसका मेन  एंट्रेंस जुबली पार्क से है।








   

गुरुवार, 28 मार्च 2019

GREEN CITY JAMSHEDPUR

                          हरित नगरी  जमशेदपुर

           जमशेदपुर को अस्तित्व में आये 2 जनवरी 2019 को एकसौ वर्ष हो गए। वैसे सन 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (अब टाटा स्टील )की स्थापना हुई थी। मुम्बई के जमशेदजी नसरवानजी टाटा के बड़े पुत्र दोराबजी टाटा की देख रेख में झारखण्ड से गुजरती रेल लाईन पार की एक छोटी सी रेलवे स्टेशन कालीमाटी  से लगभग 5 किलोमीटर दूर के जंगलों के बीच दलमा पहाड़ के दक्छिन के स्वर्णरेखा नदी के तट के एक गावं साकची में लोहे का कारखाना टाटा आयरन एंड स्टील की नीव राखी गयी। आज ये कारखाना एशिया का सबसे बड़ा स्टील फैक्ट्री है।
      कारखाना के चारों ओर जमशेदपुर शहर बसा है ,और शहर के बाहर भी पूर्व और पश्चिम की ओर और भी छोटी बड़ी बहुत सी फैक्ट्रीयां है ,पर ये शहर हरी -भरी है। कारखानों और शहर बनाने के लिये लाखों पेड़ काटे गए होंगे पर कंपनी की और से बहुत पेड़ लगाये गये थे। आज भी पेड़ -पौधे बड़ी संख्या में हर वर्ष लगाए जाते है। यहाँ के घरों के सामने थोड़ी खाली जगह बागवानी के लिये होती है जिसमे लोग पेड़ -पौधा लगाते है। यहाँ एक हार्टीकल्चर सोसाइटी भी है जिसके द्वारा हर वर्ष दिसम्बर में फ्लावर शो का आयोजन होता है वहां के स्टालों से उचित मूल्य में दर्शक पौधा खरीद कर अपने घरों और आसपास पौधा लगाते है। इसी वजह से यहाँ बहुत कारखाना होने पर भी चारो तरफ हरियाली नजर आएगी और वातावरण भी शुद्ध नजर आएगा। इसलिए इस शहर को हरित नगरी कहने में कोई अतिश्योक्ती नहीं होगी। इसका श्रेय कंपनी के संस्थापक श्री जमशेदजी टाटा को जाता है उन्होंने सन 1902 में कारखाना बनने के पहले ही अपने बड़े पुत्र दोराबजी को विदेश से एक पत्र लिखा था ---
     Be sure to lay wide streets planted with shady trees,every other of a quick growing variety,Be sure that there is plenty of space for lawns and gardens .Reserve large areas for football,hockey and parks.

   जमशेदजी टाटा अपने सपनो की नगरी को देख नहीं पाए। विदेश में ही उनका देहांत हो गया था ,पर उनका पुत्र दोराबजी टाटा अपने पिता का सपना पूरा किये। उस ज़माने में ही 1937 में खेल के लिए कीनन स्टेडियम से लेकर पार्क ,बाग -,बगीचा ,फूल -फुलवारी  पुरे शहर को सूंदर और स्वच्छ बनाये जो की आजतक मेन्टेन किया जाता है। ऐसा हमारा जमशेदपुर है। और हमें जमशेदपुर वाशी होने पर गर्व है।अभी बहुत कुछ बताना और लिखना बाकी ही है ये तो अभी शुरुआत ही है।









मंगलवार, 26 मार्च 2019

RUSSI MODI CENTRE FOR EXCELLENCE

                                   रूसी मोदी सेंटर फॉर एक्सेलेंस

                    रोम के स्तंभो एवं इजिप्ट के पीरामिड से संवारा गया सेंटर फॉर एक्सेलेंस जमशेदपुर का लैंड मार्क बन गया है। चाहे टाटा स्टील के अतिथी हों या स्कूली बच्चे या आम नागरिक सभी के देखने लायक है रूसी मोदी सेंटर।
     1933 में सेंटर बन गया था। यहाँ तीन बड़ी -बड़ी गैलेरी है। जहाँ टाटा स्टील एवं जमशेदपुर की प्रसिद्ध विरासत को बड़ी ही खूबसूरती के साथ दर्शाया गया है।टाटा जी का बचपन से लेकर पुरे परिवार का हर अवसर का चित्र भी लगा हुआ है।  यहाँ कंपनी का हाथ से लिखा हुआ ब्रिटिश काल का लाइसेंस से लेकर सारा दुर्लभ दस्ताबेज को बहुत ही संभाल कर रखा गया है।एक बहुत ही नायाब पेंटिंग भी है जिसे किसी भी एंगल से देखने पर उसमे जे र डी की छवि दिखती है। कैम्पस के अंदर हॉल भी है जहाँ सेमिनार ,वर्कशॉप आदि कार्यक्रम होते ही रहता है। कैम्पस में एक लाइब्रेरी भी है ,जिसमे मैनेजमेंट ,कंप्यूटर से लेकर विभिन्न छेत्रों से सम्बन्धित पुस्तके भी है। यहाँ 17 राष्ट्रीय संगठनों की स्थानीय इकाई को एक -एक ऑफिस दिया गया है। इनमे CII ,चार्टर्ड अकॉन्टेंड इत्यादी संगठनों के भी ऑफिस है।
       जुबली पार्क के गेट से लगा होने के कारण बरबस अपने ओर ध्यान खींच ही लेता है। हर बार टाटा जाने पर सोचते थे की एक बार जाकर देखना चाहिए पर जाना ही नहीं हुआ। इस बार टाटा जाने पर जब बाबा बोले की जमशेदपुर के बारे में लिखो तो फिर क्या था बाप -बेटी चल पड़े रुसी मोदी सेंटर देखने।देख कर लगा इतने दिनों से अभी तक क्यों नहीं देखे थे। सही में बिना संजोग के कुछ नहीं होता है।
  










सोमवार, 25 मार्च 2019

LOH NAGRI JAMSHEDPUR

                                  लौह नगरी जमशेदपुर

         विश्व भ्रमण करते -करते दुनिया के बारे में जाने अनजाने बहुत कुछ लिख डाले पर अपने जन्म भूमि के बारे में अभी तक कुछ भी नहीं लिखे। इस बार माँ का श्राद्ध में टाटा आने पर बाबा बोले की अब तुम जमशेदपुर के विषय में भी कुछ लिखो। हम सोचे की जमशेदपुर के बारे में क्या लिखे यहाँ तो ज्यादा कुछ है नहीं ,बस लोहा का कारखाना और एक जुबली पार्क। फिर भी सोचे चलो बाबा याद दिलाये है तो थोड़ा -बहुत कुछ लिख ही डाले। बस क्या था लिखना शुरू किये तो एक से बढ़ कर एक बचपन से लेकर अभी तक का वकया याद आने लगा और अंगुल चलना शुरू हुआ। शायद आपलोगों को भी जमशेदपुर की कहानी पसंद आजाये।

                                   जमशेदपुर की शान जुबली पार्क

                     तीन मार्च को हर साल जमशेदजी टाटा का जन्म दिन पुरे शहर में बहुत ही धूम -धाम से मनाया जाता है। टाटा स्टील के 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्छ में 1958 में टाटा कंपनी ने बड़ी धूम -धाम  गोल्डन जुबली मनाया और शहरवासियों को यह पार्क तोहफे में दिया। एक मार्च 1958 को नेहरू जी के कर कमलों से जुबली पार्क का उधघाटन किया गया था। हम खुश नसीब है की पार्क बनने से लेकर उधघाटन तक अपने बचपन  में हमें देखने का मौका मिला। आलेख लिखते हुए अपने बचपन की  सारी घटनाएं याद आते गयी।
        जुबली पार्क 40 एकड़ में फैला हुआ है। यहाँ 720 फ़ीट लंबा और 364 फ़ीट चौड़ा मुग़ल गार्डन में तीन टैरेस है। जिसमे 6 फ़ीट ऊंचाई से पानी गिरता है। चार लीली पोंड भी है। एक रोज गार्डन भी है ,जिसमे नाना आकर और प्रकार के एक से बढ़ कर एक प्रजाति के गुलाब है।बच्चों को ध्यान में रख कर निको ग्रुप का एक अम्यूसमेंट पार्क भी है। शाम के समय पार्क में रंगीन रौशनी ,फवारा और लेजर शो से लोगों का मन मोह लेता है।
         पार्क में टाटा के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा का एक आदमकद प्रतीमा भी है।हर साल तीन मार्च संस्थापक दिवस के अवसर पर तो जुबली पार्क को दुल्हन की तरह रौशनी से सजाया जाता है इसे देखने दूर -दूर से लोग बाग आते है ये पार्क जमशेदपुर की शान है। इन सब के आलावा पार्क में एक तितली पार्क ,जू ,जयंती सरोवर इत्यादी है। वैसे तो साल भर लोकल लोग और टूरिस्ट पार्क घूमने आते ही रहते है पर ठण्ड की बात ही कुछ और ही है चारो और किस्म -किस्म का सूंदर सूंदर फूल खिला रहता है। लोग यहाँ पिकनिक मनाने आते है।हमलोग भी जुबली पार्क में बचपन में बहुत पिकनिक किये है।
      हम बच्चे लोग गर्मियों में अल सुबह पार्क में दादा -दादी के साथ घूमने आते थे ,महुआ चुनते थे बहुत ही मजा आता था।अभी भी करीब -करीब मार्च में टाटा आना हो ही जाता है और तीन मार्च का प्रोग्राम देखने मिल ही जाता है। भैया भाभी के साथ रात को रौशनी देखने पार्क का एक चकर लगा ही लेते है। ये तो जुबली पार्क बनने से लेकर घूमने की बात हुई ,अभी जमशेदपुर की कहानी बहुत ही लम्बी बाकी ही है।
 
                                     



     

रविवार, 24 मार्च 2019

MAA KA SRADH

                                 माँ का श्राद्ध

                    देखते ही देखते दिन महीना और साल कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ,लगा की माँ को गए कल की ही तो बात है।जाने वाले की बस याद ही रह जाती है। माँ बस माँ ही होती है माँ की  जगह कोई नहीं ले सकता है।माँ की बरसी में हवन में पूरा परिवार से भी मिलना हो गया।  माँ की बरसी पर माँ के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित।

 
                                                                        ॐ  शांति