शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

SHRAWAN KUMAR

                                                        SHRAWAN KUMAR

                                                                   श्रवण कुमार 
      राजेश के कुन्नूर में रहने के कारण हमको बार -बार साऊथ जाने का मौका मिलता है। हर बार राजेश गाड़ी ड्राईवर दे देता है। हमलोग भी कभी केरल का त्रिशुर ,तो कभी गुरुवायूर ,पद्यनाभ स्वामी का मंदिर हो या तमिलनाडु का मदुरैई ,रामेशवरम हो या वेल्लूर का स्वर्ण मंदिर। पलनी का सुब्रमणियम स्वामी (कार्तिक जी )हो या कर्नाटका का देवी मंदिर बस हर बार कुछ न कुछ नया घूम ही लेते हैं। 
    रायपुर में राकेश के कारण देश विदेश। बस घूमते ही रहते हैं। दोनों जगह दो बेटा आज का श्रवण कुमार है।  पुराने ज़माने में श्रवण कुमार का नाम लिया जाता था जो अपने माँ बाप को काँवर से तीर्थ यात्रा करवाता था। इस ज़माने में जहाज ,रेल गाड़ी सब का साधन हो गया है। बस बच्चे लोग बुक कर दिये और हमलोग का घुमना हो जाता है नहीं तो इतना घूमना फिरना मुश्किल होता।आज के भाग दौड़ के लाईफ में इतना माँ बाप का ध्यान रखना खुशनसीबों को मिलता है। 
  इसलिए तो जुग -जुग जिओ श्रवण बेटा का आशीर्वाद देतें हैं। 









               
           

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

51 SHAKTI PEETH

                                                                51    SHAKTI PEETH


                                                                                  शक्ति पीठ 

     हिंदू धर्म के अनुसार जहाँ सती देवी के शरीर के अंग गिरे ,वहाँ वहाँ शक्ति पीठ बन गयी। ये तीर्थ पूरे भारत में फैले हुए हैं। शक्ती पीठ की संख्या 51 है,जो की  पाकिस्तान ,बंगला देश और नेपाल को मिलाकर है। 
                          हमको भी ५ शक्ति पीठ देखने का मौका मिला वो भी अनजाने में।

 1 . कलकत्ते की काली माँ -बंगाल 
 2 . दंतेश्वरी देवी -दंतेवाड़ा -देवी का दन्त गिरा -छत्तीसगढ़
 3 . मैहर  शारदा माँ -  माँ का हार गिरा -मध्यप्रदेश 
 4   चामुंडेश्वरी -देवी का मुंड गिरा -मैसूर 
  5 . कामाख्या -आसाम
         अब क्या सच है क्या किम्बदंति वो तो पता नहीं, पर मान्यता तो यही है की भैरव (शिव जी) शक्ति (देवी )को कन्धे में लेकर ताण्डव करते हुए पुरे धरती का चक्र लगा रहें थे और विष्णु जी सुदर्शन चक्र से देवी के एक -एक अंग को काटते जा रहे थे। जिस -जिस जगह धरती में जो अंग गिरा उसी नाम से  वो शक्ति पीठ कहलाया। 
अब हमतो घूमने निकले और 5 शक्ति पीठ का दर्शन हो गया। 


बुधवार, 24 अगस्त 2016

JYOTIRLINGA

                                                            JYOTIRLINGA

                                                               12 ज्योतिर्लिङ्ग

             भारत में 12 ज्योतिर्लिङ्ग है जो की चारों दिशा में शिव लिङ्ग के रूप में है। वैसे मान्यता तो ये है की सारे स्वयंभू है। रामायण महाभारत काल के पहले से देवों द्वारा स्थापित किया गया है।बारहों स्थानों में शिव जी का मंदिर है।
                                                                   हमारे   12 ज्योतिर्लिङ्ग  

1 . सोमनाथ -गुजरात में सोमदेव ( चन्द्रमाँ )द्वारा
2 मलिकार्जुन -श्रीशैलम में .नर्मदा किनारे आंध्र प्रदेश
3 . महाकालेश्वर -मध्यप्रदेश उज्जैन शिप्रातट
4 . ओमकालेश्वर -मध्य्प्रदेश
5 . वैद्यनाथ -झारखण्ड
6 . नागेश्वर  -द्वारका
7 . केदारनाथ -उत्तरांचल
8 . त्र्यम्बकेश्वर -महाराष्ट्र
9 . रामेश्वर -तमिलनाडु राम जी द्वारा समुन्दर
10 . भीमाशंकर -महाराष्ट्र
11 . विशेश्वर -बनारस उतरप्रदेश गंगा किनारे
12 . घृष्णेश्वर -महाराष्ट्र
     वैसे 12 में से 8 दर्शन हो गया है फिर भी 4 अभी बाकी है।
    मलिकार्जुन ,त्रयम्बकेशवर ,भीमाशंकर और घृष्णेष्वर
मजे की बात तो ये है की हमलोग मॉरिशस घूमने गये थे पता चला वहाँ  भी एक ज्योतिर्लिङ्ग है जिसे वे लोग 13 वाँ लिङ्ग मानते है और मॉरीशेश्वर बोलते है। पहाड़ के ऊपर खुब सुदर बड़ा सा मंदिर है और वहाँ बहुत ही धूम -धाम से शिवरात्री और सावन मानते है और कँवर लेकर जाते है देख कर बड़ा अच्छा लगा.विदेश में भी एक ज्योतिर्लिङ्ग हो गया।
  चीन गए थे वहाँ भी घूमते घामते एकदम अमरनाथ के जैसा वर्फ़ का शिवलींग देखने मिला पहाड़ के ऊपर गुफा के अंदर छोटे बड़े सैकड़ों वर्फ़ का  लिङ्ग  अपने आप बना था। वो भी देख पायें।
कभी भी कोई तीर्थ व्रत कुछ सोंच कर नहींनातो  प्रोग्राम बना कर देखने गए बस घुमते -घुमते पता ही नहीं चला की कब चार धाम हो गया। सप्तपुरी में अयोध्या छोड़ कर 6 पुरी हो गया और १२ ज्योतिर्लिङ्ग में 8 लिङ्ग हो गया।
इसे ही प्रभु की माया या इच्छा बोल सकते हैं।








 


                               
                                          

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

SAPTA PURI

                                                            SAPTA  PURI

                                                                  सप्तपुरी 

               भारत का सात प्रमुख स्थल ,जहाँ अलग -अलग काल और समय में भगवान ने अवतार लिया था।      वह सप्तपुरी कहलाता है। सातो भारत के प्रमुख नदियों किनारे बसा है और आध्यत्म का केंद्र भी है। 
               हरिद्वार ,मथुरा ,अयोध्या ,वाराणसी ,उज्जैन ,द्वारका और काँचीपुरम।
1 . हरिद्वार -उत्तराखंड में गंगा किनारे बसा हरिद्वार भगवान का द्वार(विष्णु- हरि ,शिव- हरि ) माना जाता है।
2 . मथुरा -जमुना किनारे भगवान कृष्णा की जन्मस्थली। बचपन यहीं लीला करते बिताये। 
3 . अयोध्या -सरयू किनारे भगवान राम का जन्म भूमि। 
4 . वाराणसी -गंगा किनारे शिव की नगरी   .वर्ना और अस्सी घाट मिलकर वाराणसी बना। यहाँ बाबा विश्वनाथ का प्राचीन मंदिर के अलावा मनीकरणीका घाट ,दशास्वमेद्य घाट ,प्रशिद्ध बनारस यूनिवर्सीटी भी है। यहाँ अंतिम संस्कार होने पर मुक्ति मिलता है। 
5 . उज्जैन -शिप्रा तट पर राजा विक्रमादित्य और अशोक के समय का प्राचीन नगर है। यहाँ संदीपनी जी का आश्रम है जहाँ कृष्ण और सुदामा ने शिक्छा ग्रहण किया था। दोनों की मित्रता जग चर्चित है। उज्जैन को विश्व का सेण्टर (धुरी )भी माना जाता है कर्क रेखा यहाँ से गुजरती है। उसी ज़माने से अध्यात्म और ज्योतिष विज्ञान का केंद्र था और जंतर मंतर बना है विश्व से बिद्यार्थी पठन पाठन के लिये आते थे। 
6 . द्वारका -अरब सागर और गोमती के तट प रद्वारका  बसा है।कृष्ण की नगरी थी महाभारत कल के सैकड़ों साल बादकृष्ण जी  यहीं से स्वर्गारोहण किये थे.
7 . काँचीपुरम -दखीन में कामाक्षी अम्मा मंदिर है 5 एकड़  में बना हुआ है देवी शिव लींग बना कर पूजा करती थी। यहाँ विवाह करने लोग आते हैं। मनोकामना पूर्ण होता है। कामाक्षी अम्मा के नाम पर कांचीपुरम पड़ा। 
  ये हमारे सात प्रमुख नगर सप्तपुरी कहलाता है।हरिद्वार और उज्जैन में कुम्भ मेला भी लगता है। कुम्भ स्नान करने का भी सौभाग्य मिला थागंगा आरती भी देखना हुआ। ।








 6 जगह तो देखना हुआ अयोध्या बाकी है कभी मौका होगा तो वो भी देख ही लेंगे।   

सोमवार, 22 अगस्त 2016

JAGANNATH PURI

                                                       JAGANNAT PURI

                                                              जगन्नाथ पुरी 
                             

            चार धाम  का चौथा धाम जगन्नाथ  धाम पूर्व दिशा में हे।ये भी समुन्दर किनारे बना है। यहाँ आने पर साखीगोपाल ,भुवनेशवर का लींगराज का मंदिर और कोणार्क का प्रसिद्ध  सूर्य मंदिर भी देखना हो जाता है।
  मजे की बात तो ये है की जहाँ उत्तर  में बद्रीनाथ भगवान विष्णु का धाम और केदार नाथ  ज्योतिर्लिङ्ग है   . वहीं दक्सीन में रामेशवर  में भी ज्योतिर्लिङ्ग है। पशचिम में जहाँ कृष्ण का द्वारका है वहीं सोमनाथ में ज्योतिर्लिङ्ग है। और पूर्व  में कृष्ण का मंदिर। पता नहीं सैकड़ों साल पहले जगत गुरु शंकराचार्य ने चार पीठ और चार धाम का स्थापना किया और आज भी सारे हिन्दू जुड़े है और ख़ुशी से चार धाम की यात्रा करना अपना सौभाग्य समझते हैं
          पुरी आने पर चिल्का लेक भी जरूर जाना चाहिए बहुत सारी नदियाँ और झरने का पानीउसमे मिलता है। रंग बिरंगी मछली ,डॉल्फिन और जल पक्छी भी देखने मिलता है। पुरी में चैतन्य प्रभु जो की कृष्ण भक्त थे उनका भी आश्रम देखने योग्य है। ।
     इसी बहाने भारत भ्रमण भी हो जाता है और चारों दिशा के दुर्लभ  और दर्शनीय तीर्थ स्थली भी देखना हो जाता है।हमलोग खुशनसीब  हैं की हमें यात्रा का अवसर मिला और सबो का साथ जिससे  इतना कुछ घूम सके अब फिर  जब -जब मौका मिलेगा तो बाकी भी दर्शन हो जायेगा।







                                    

रविवार, 21 अगस्त 2016

DWARKADHISH

                                         DWARKA DHAM                                                      (   3 - DHAM  )
                     
                पशचिम में समुन्दर किनारे गुजरात मेंद्वारका  तीसरा धाम   है। भगवान  कृष्ण के द्वारा बनाया गया था।पर दो बार समुन्दर में समा चुका है और ये तीसरी बार फिर से उसी जगह में कृष्ण के वंशजों द्वारा बनवाया गया है।  द्वारका आने पर भेट द्वारका जहाँ कृष्ण सुदामा भेंट हुआ था वह भी देख सकते है । नागेशवर और सोमनाथ दो ज्योतिर्लिङ्ग का भी दर्शन हो जाता है।
          सोमनाथ अरब सागर के किनारे पर है। इसे 12 ज्योतिर्लिङ्ग का प्रथम लिङ्ग मन जाता है। चंद्रदेव द्वारा बनवाया गया था इस लिये सोमनाथ नाम  पड़ा है। महमूद गजनी ने अनेको बार आक्रमण कर मंदिर से सोना लूट कर ले गया था। 18 वीं सदी में अहिल्या बाई द्वारा बनवाया गया था। बाद में सरदार बल्लभभाई पटेल ने फिर से
बनवाने  का बीड़ा लिया। सारा सोना तो लुटा जा चुका था पर दिलीप लेखी भक्त और उनके परिवार वाले लगातार सोना दान कर रहे है और पुरे मंदिर में फिर से सोने के पत्र से सजाया जा रहा है। अभी तक 104 किलो सोना से मंदिर सज चुका है पर किसी ज़माने में 200 मन सोना लगा था। मंदिर के गुम्बज में ही 20 मन का कलश था।सोमनाथ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के किनारे होने के कारन सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों समय



भेटद्वारका 


नागेशवर 
मंदिर  का द्र्श्य बहुत ही मनमोहक हो जाता है। 

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

RAMESWARAM

                                                  RAMESWARAM                                                  (   दूसरा धाम   )

                                                          रामेश्वरम  धाम      

          उत्तर के बाद दक्खीन में रामेशवरम धाम में गंगा जल से शिवलींग का पूजा अर्चना करते है। ये एक धाम के अलावा ज्योतिर्लिङ्ग भी है। भगवान राम द्वारा स्थापित है। यहाँ आने पर  समुन्दर का भी दर्शन हो जाता है।और सॉउथ के कई तीर्थ स्थल जैसे मदुरई ,कन्याकुमारी वगैरा भी देखना हो जाता है।
             वैसे साऊथ में बहुत सारे तीर्थ स्थल है पर अभी रामेश्वरम  के बारे में ही बताते हैं। यहाँ आने केलिए रामसेतु से गुजरना तो पड़ता ही है पर समुन्दर में राम जी द्वारा सेतु बना थाउसे भी देखने का मौका मिला। , पहले तो समझ नहीं आता था की कैसे पत्थर से तैरता हुआ पुल  बना होगा।पर जब समुन्दर के बीच में बोट से गए और नाविक बड़ा -बड़ा तैरता हुआ मूंगा पत्थर दिखाया तब विशवास हुआ की सचमुच पुल बना होगा। पानी में उतर कर तरह -तरह का जलचर भी देखने मिला। 
     रामेश्वरम में मंदिर और सागर तो है ही उसके अलावा मंदिर के पास कलाम जी का घर भी है उनके भाई का परिवार रहता है। कलाम  जी तो अब नहीं रहें पर उनके भाई  एकदम उनके जैसा दिखते है और एकदम सादा  रहन सहन.वहीं एक दुकान है जिसमें  पूजा का सामग्री मिलता है और तीर्थ यात्री आते हाँ और सामान भी खरीद कर घर ले जाते है और उनके साथ फोटो भी खींचवाते है। हमलोग भी शंख वगैरा लिये और  उनके साथ फोटो खीचवायें।




                                                                                          

गुरुवार, 18 अगस्त 2016

CHAR DHAM YATRA

                                                             CHAR DHAM YATRA                                (    पहला धाम )
                         
                                                                       चार धाम यात्रा 

                           वैसे तो चारो दिशा में एक -एक  धाम है और चारों दिशा का  दर्शन करने के बाद चार धाम कहलाता है पर उत्तर में हरिद्वार से ऊपर जाने पर जमुना जी का उदगम स्थल यमनोत्री, फिर आगे ऊपर जाते जाओ तो  गंगा का उदगम स्थल गंगोत्री,फिर गंगा जल ले कर आगे बढ़ने पर केदारनाथ जो की ज्योतिर्लिङ्ग भी है।   और फिर बद्रीनाथ। चारो दर्शन करने के बाद उतरते जाने पर रिषीकेश में जा कर एक धाम पूरा होता है। 
      वैसे तो ऊपर यमनोत्री और केदारनाथ में सुबह से घोड़े में जाने दर्शन करके आते शाम हो जाता है चार घंटा घोड़े में ऊपर जाना दर्शन करके वापस आना हालत ख़राब हो जाता है पर रात्री विश्राम के बाद सुबह चार बजे फिर एकदम तरोताजा हो जाते है और अगले पड़ाव के लिये चल पड़ते हैं। हफ्ता भर लगजाता है हरिद्वार से दर्शन करके वापस रिषीकेश तक आने में। सुंदर जंगल, पहाड़ ,झरना ,गंगा नदी का अलग -अलग धारा  और अलग नाम मंदाकीनी ,अलकनंदा,भागीरथी। आगे जा के देवप्रयाग में सभी नदी का संगम होता है और फिर गंगा की धारा बन कर  आगे बढ़ते हुए रिषीकेश पहुँच जाती है.रिषीकेश से कलकत्ता पहुँच कर सागर में मिलती है। संक्रान्त में गंगा सागर का मेला इसी लिये लगता है।   अब तो सब नाम भी याद  नहीं।पर हर जगह मौसम भीसाथ दिया और दर्शन भी अच्छे से हो गया। 
     पुरे भारत को जोड़ने केलिए ये

भी नियम बना था की गंगोत्री का जल लेकर केदारनाथ में शिव लिङ्ग में जल चढ़ाना और गंगोत्री का जल लेकर रामेश्वरम में जल चढ़ाया जाता है। आज भी रामेश्वरम में गंगा जल के बारे में पूछते हैं और जो नहीं ला पता है तो वहाँ भी मिलता है और पंडित जी बहुत विध  से पूजा अर्चना करवाते हैं।
हमलोगों ने भी ऐसा किया। इसी बहाने चारों धाम भी हो गया।