शनिवार, 7 सितंबर 2019

KEDARNATH YATRA

               

         

                                                  चार धाम यात्रा
                                        केदारनाथ धाम  (पहला धाम )

       चारो दिशा में एक -एक धाम है। चारो दिशा का दर्शन करने के बाद चार धाम यात्रा पूर्ण होता है।
 उत्तर दिशा में हरिद्वार से ऊपर जाने पर जमुना जी का उद्गम स्थल यमनोत्री आता है। जमुना जी के गर्म जल में स्न्नान करके जमुनाजी का दर्शन करके फिर आगे ऊपर जाते जाने पर गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री आता है।गंगोत्री के बर्फीले जल से स्न्नान करके गंगा मंदिर का  दर्शन करके गंगाजल लेकर और ऊपर आगे बढ़ते जाने पर केदारनाथ धाम आता है. केदारनाथ  ज्योतिर्लींग भी है और ये पांडवो  के ज़माने का है।यहाँ गंगोत्री से लाया गंगाजल चढ़ाया जाता है। केदारनाथ से आगे बढ़ने पर बद्रीनाथ धाम आता है।इन चारों के दर्शन होने पर एक धाम पूर्ण होता है।  बद्रीनाथ दर्शन करके नीचे उतरते जाने पर रिषीकेश आता है। रिषीकेश में ही लक्षमण झूला है। रिषीकेश से आगे बढ़ने पर फिर हरिद्वार पहुँच जाते है।
 हरिद्वार से यमनोत्री ,गंगोत्री ,केदारनाथ ,बद्रीनाथ ,रिषीकेश होते हुए वापस हरिद्वार आने में कमसे कम हफ्ता तो लग ही जाता है यदि मौसम साथ दिया। पूरा हफ्ता भर रास्ते में सुन्दर -सुन्दर  जंगल ,पहाड़ ,झरना इत्यादी का नजारा देखते हुए बढ़ना पड़ता है।गंगोत्री से गंगा की धारा अलग -अलग जंगल पहाड़ से बहते हुए अलग नाम से आती है। मंदाकीनी ,अलकनंदा ,भागीरथी इत्यादी नदी का संगम देवप्रयाग में होता है और फिर यहाँ से गंगा की धारा बन जाती है। गंगा आगे जाकर रिषीकेश से होते हुए हरिद्वार पहुँचती है। हरिद्वार से आगे भिन्न -भिन्न नगरों से होते हुए कलकत्ते में सागर में समां जाती है जिसे गंगा सागर बोला जाता है और हर साल संक्रांत में गंगा सागर का मेला लगता है।
केदारनाथ दर्शन करने के बहाने उत्तराखंड घूमना हो जाता है।रास्ते में गंगा -जमुना का उदगम स्थल भी देखना हो जाता है। इतने जड़ी -बुटी के बीच से गंगा की तेज धारा बहती है ,इसलिए गंगा जल कभी भी ख़राब नहीं होती है और गंगा जल को इसलिए शुद्ध माना जाता है।




         

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