सोमवार, 16 सितंबर 2019

CHAITANYA MAHA PRABHU

                                       चैतन्य महाप्रभु

        हर हिन्दू की दिली इच्छा होती है की एक बार वह पुरी जा कर भगवान जगन्नाथ का दर्शन करे। वैसे तो पुरी रथयात्रा के लिये प्रसिद्ध है ,पर लोग अपनी सुविधा अनुसार पुरी भगवान का दर्शन करने जाते है। सागर तट में घूमते है ,पुरी के आसपास घूम कर वापस लौट जाते है। पुरी की सैर यहीं समाप्त नहीं होती है। लोगो को पता भी नहीं है की पुरी में चैतन्य महाप्रभु का बहुत ही बड़ा एक आश्रम भी है।
  चैतन्य महाप्रभु का जन्म बंगाल के नवद्वीप में सम्वत 1542 फाल्गुन पूर्णिमा में हुआ था। वे 8-9 भाई -बहनो में सबसे छोटे थे। ज्योतिष ने कुंडली देख कर पहले ही बता दिया था की बालक महापुरुष होगा। पिता जगन्नाथ और माता शची देवी थी प्यार का नाम निमाई था वे गोरांग नाम से भी जाने जाते थे।
 बचपन से ही कृष्ण भक्त थे। दिन भर कृष्ण लीला ,भजन -पूजन में लगे रहते थे। गया जी में सन्यासी ईश्वरपुरी से कृष्ण दीक्छा ली। वृंदावन में जाकर कृष्ण के ध्यान में सदा रहते थे। अपने सुन्दर बाल कटवाकर सन्यासी बन गए। सन्यासी बनने के बाद पुरी में अपना समय जगन्नाथ जी के मंदिर में बिताने लगे। तब निमाई से चैतन्य कहलाने लगे। 24 साल की उम्र में सन्यास लिये और 48 साल की उम्र तक पुरी में भगवान की सेवा में अपना समय बिताये। 48 वें साल में रथयात्रा के दिन अपनी जीवन लीला यही समाप्त किये।
 पुरी का आश्रम गौर आश्रम के नाम से जाना जाता है। आश्रम काफी बड़ा है। आश्रम में चारो तरफ भगवान विष्णु के अलग -अलग रूप और लीला का मूर्ती बना हुआ है। अनेक देवी देवताओं का भी मूर्ती स्थापित है। देखते ही मन खुश हो जाता है।कृष्ण भक्त और उनके अनुयाई आश्रम में आते रहते है।  वैसे बंगाल के नवद्वीप में भी बहुत बड़ा आश्रम है। कृष्ण भक्त कलकत्ता जाने पर जरूर नवग्राम जा कर दर्शन करते है।


























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