WORLD COCONUT DAY
कलयुग का कल्पवृक्छ
नारियल
सत्युग में कामधेनू गाय की तरह एक कल्पवृक्छ भी था। जिससे जब चाहो जो भी मानगो मिल जाता था ,सभी आवश्यकता की पूर्ति करता था। आज के कलयुग में नारियल एक ऐसा पेड़ है जो मनुष्यों की सभी नहीं तो अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।इसके जड़ से शिखर तक सभी भाग अनेकों काम में आते हैं। इतना उपयोगी होने के कारण हमारे पूर्वज इसे कलुयग का कल्पतरु कहते थे।
यह एक साधारण फल नहीं है। फल ,मेवा ,सब्जी ,तेल ,दवाई ,पूजा जैसे अनेकों काम में उपयोग किया जाता है। इन्ही गुणों के कारण यह देवताओं का भी प्रिय फल है। कोई भी पूजा -अर्चना हो या शुभ काम हो नारियल के बिना नहीं होता है।
ऐसा माना जाता है की इसका मूल स्थान इंडोनेशिया में है और वहीं से सारे जगह में फैला है। भारत ,श्रीलंका ,थाईलैंड ,फिलीपीन्स ,ब्राजील वगैरा में भी बहुत होता है। इंडोनेशिया इसका मूल स्थान है इसलिए ASIAN पैसिफिक कोकोनट कम्युनिटी (APCC )का हेडक्वाटर जकार्ता इंडोनेशिया में है। और सारे नारियल उत्पादन करने वाले देश इस का मेंबर हैं। हर साल 2 सितम्बर को वर्ल्ड कोकोनट डे मनाया जाता है।
नारियल के फल का उपयोग तो सभी खाने के काम में लेते ही हैंऔर तेल का भी उपयोग जानते ही हैं। इसके अलावा फूल ,तना ,छिलका और जड़ से चटाई ,झाड़ू ,दवाई ,खाद बहुत रूप में उपयोग में लिया जाता है। इतना उपयोगी पेड़ को कल्पबृक्च कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है। प्रतिदीन भोजन में किसी भी तरह से उपयोग करना स्वास्थ के लिये लाभदायक है।
इस बार श्रीलंका के टूर में भी चार -पाँच प्रकार का अलग -अलग रंग साईज वाला पेड़ और फल देख़ने मिला। जो की जानते भी नहीं थे।लाल ,हरा ,पीला ,ऑरेंज रंग वाला पेड़ और फल और सब का उपयोग भी अलग होता है। रायपुर में 30 साल से नारियल का पेड़ लगा हुआ है। पहले हरा वाला था और दो साल हुआ ऑरेंज रंग का फल वाला पेड़ लगाए है। नर्सरी में हाई ब्रीड पौधा मिल जाता है जिसमे 2 -3 साल में फल भी होने लगता है। वैसे समुन्दर किनारे वाले स्थान में ज्यादा फल होता है।
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