फिलैटली जगत का आश्चर्य
बाबा का जन्म दिन आ रहा है,तो बाबा के बारे में कुछ रोचक बात बताना अच्छा लग रहा है। बाबा का हॉबी में पढ़ना -लिखना ,बागवानी करना और डाक टिकट जमा करना है। बचपन से देख रहे है। बाबा 1951 से डाक टिकट जमा कर रहें है ,उनके पास करीब -करीब पाँच हजार टिकट है। बाबा टेल्को में जॉब करते समय अपने ऑफिस के टेबल में काँच के नीचे जब -जब टिकट मिलता था रखते थे और फिर वही हॉबी बन गया। उस समय तो हमलोग फिलैटली का नाम और मतलब जानते ही नहीं थे ,बस जानते थे डाक टिकट जमा किया जाता है।
अब जब -जब टाटा जाने पर बाबा बताते है की डाक टिकट संग्रह करना तथा उनका अध्य्यन कर बहुत सी जानकारियां प्राप्त करना एक कला है। जिसे विश्व के सभी देशों में फिलैटली कहा जाता है।यह एक यूनानी शब्द है जिसका अर्थ कर देने से बचना है।डाक टिकट कैसे लोग जमा करने सीखे और उनकी हॉबी हो गयी इसकी भी एक मजेदार कहानी है।
ब्रिटेन की एक गरीब महिला गरीबी के कारन अपने घर की रंगाई नहीं कर पाने के कारण डाक टिकटों को दीवारों पर चिपकाने लगी। पर इसके लिये ढेर सारे टिकटों की आवश्यकता थी। उसकी सहायता के लिये बहुत से लोग आगे आये और वे भी टिकट जमा करने लगे। उस ज़माने में ब्रिटिश साम्राज्य सभी महादेशों में फैला था इसलिए ब्रिटेन में बहुत देशों से तरह -तरह की रंग -बिरंगी टिकटें लिफाफों के साथ आती थी। महिला की सहायता में आये लोग कुछ अच्छे टिकटों को अपने पास भी रखने लगे और उस समय से ही ,शायद 1842 से डाक टिकट संग्रह का हॉबी शुरू हुआ।
विश्व का पहला टिकट 1840 में महारानी विक्टोरिया के शासन काल में ब्रिटेन में जरी हुआ जिनका डिजाईन उस समय के प्रसिद्ध कलाकार मिस्टर विलियम मलरेडी ने बनाया था। उन दिनों बहुत लोग इस नई चीज को पोस्टल स्टाम्प न बोलकर मलरेडी स्टाम्प कहते थे। ये तो एक कहानी हुआ, बाबा के पास ऐसा अलग -अलग स्टाम्प का अलग कहानी है।अगली बार एक और रोचक बात बताएँगे।
क्रमशः
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