शनिवार, 9 सितंबर 2017

PHILATELY ( PART-2 )

                                         WONDER'S OF PHILATELY
                                      आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है 

                       सन 1840 में विश्व का पहला डाक टिकट ब्रिटेन में जारी हुआ। उस समय टिकटों के चारों ओर दानेदार छेद नहीं होते थे,उन्हें कैंची से काट कर अलग किया जाता था। एक विचित्र घटना के कारण टिकटों के चारों ओर दानेदार छेद किये जाने लगे जिससे टिकटों को बिना काटे एक दूसरे से अलग किया जा सके। 
                        लंदन के एक सराय के हॉल के एक टेबल पर एक पत्रकार दिन भर के संवाद ,रिपोर्ट वगैरा लिख कर लिफाफे में डाल डाक से भेजने की तैयारी कर रहे थे। उनके पास डाक टिकटों के ताव तो थे पर कैंची नहीं थी । सराय वाले के पास भी जब कैंची नहीं मिली तो उसने टिकटों को अलग करने का आसान तरीका सोच ही लिया। पिन से टिकटों के चारों ओर छेद कर आसानी से सभी टिकटों को बहुत जल्द अलग कर सका। वहीं बैठा एक वैज्ञानिक -अविष्कारक सब कुछ देख रहा था पत्रकार के इस काम से वैज्ञानिक के मन में विचार आया कि इस काम के लिये क्यों न एक मशीन बनाई जाए जिससे टिकटों के छपते समय ही साथ -साथ छेद भी होते जाये, जिससे सभी लोगों को आसानी हो और कैंची से काटने की आवश्यकता भी नहीं हो ,सभी टिकटें एक समान एक माप के अलग हो सकें।  
             वैज्ञानिक साहब ने अगले साल ही एक मशीन  बना कर लंदन के पोस्ट मास्टर जनरल को दिखाया। डाक विभाग को यह पसंद आया और वे इस मशीन को खरीद लिये। कई वर्षों के ट्रायल और सुधार के बाद सन 1854 में इसका व्यवहार होने लगा। बाद में दूसरे देशों में भी अलग -अलग तरह के मशीनों से अलग -अलग आकार के छेद वाले डाक टिकट बनाने लगे। किसी ने सच ही कहा है "आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है".है ना यह एक विचित्र घटना। 
                                                                                                                                   क्रमशः 



   

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