शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

SRI LANKA

                                                                  श्री लंका की सैर 
  उपसंहार :
                एक हफ्ता श्री लंका घूमना ,देखना ,समझना बहुत अच्छा लगा। नया -नया चीज देखना हाँथियों का आश्रम ,कछुए का पालन गृह,कैंडी का हाँथियों का परेड़  वगैरा। वैसे गये तो रामायण टूर करने,पर वो तो देखे ही साथ ही बहुत सा बुद्ध मंदिर देखने मिला। भगवान बुद्ध का जन्म भारत में हुआ पर श्री लंका के लोग बुद्धिस्ट होने के कारन पूरा देश ही बुधमय दिखा।यहाँ एक और बात का पता चला ,अभी तक तो यही जानते थे की बुध्दिस्ट लोग गेरुआ वस्त्र पहनते हैं पर यहाँ बहुत लोगों को सफ़ेद वस्त्र में देखे। हर बुद्ध मंदिर में पूजा अर्चना करते हुए चाहे बुजुर्ग हो या बच्चा ,स्त्री हो या पुरुष हर वर्ग के लोग सफ़ेद वस्त्र में ध्यान मंगन दिखे। गाईड से पूछने पर पता चला जो गृहस्त बुद्ध हैं वे सफ़ेद वस्त्र पहनते है और जो दीक्छा ले कर सन्यासी बन गए है वे गेरुआ पहनते है।  
        एक तो जनसँख्या कम ,दूसरा सारे लोग शिक्छित इसलिये देश भी साफ -सुथरा।चारों ओर  हरियाली ,पहाड़ ,समुन्दर  ,पुराना बड़ा -बड़ा पेड़, देश की सुंदरता बढाने के लिये काफी था।तमिल लोग सैकड़ों साल पहले भारत से श्री लंका गये थे पर अपना संस्क्रीती  बचा कर रखे है। इसलिए वहाँ एकदम तमिल पैटर्न का ही सारा मंदिर दिखा। यहाँ तक की हनुमान , सीता और राम मंदिर वगैरा भी उन्ही लोगों की देन दिखा।यहाँ बिभीषण का भी मंदिर है। क्योंकि राम जी का मदद किये थे। था तो रावण का देश पर कोलम्बो में कहीं भी रावण सम्बन्धी कोई भी जानकारी नहीं मिली। कोलम्बो से बहुत दूर सिगरीया -दामुला तरफ कोई पहाड़ में बहुत बड़ा चट्टान है सायेद वहाँ कुछ अवशेष हो पर हमारा वहां जाना नहीं हो सका।  
       यहाँ पर भी भारत जैसा आजादी की 70 साल का जशन धूम -धाम से मानने की तैयारी कर रहे थे।  
      पर जो हो श्री लंका जाना घूमना सीलोन टी का 150 साल का जशन देखना ,सब राजेश के बदौलत हुआ। नहीं तो प्रोग्राम ही बनाते थे जाना नहीं हो पाता था। 

                                                                                   ईति 

                         











                         

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें