महालया अमावस्या
वर्षा काल समाप्त होते ही शरद आरम्भ होता है। इस दिन पितृ पक्छ समाप्त हो कर देवी पक्छ की शुरुआत होती है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों के लिये तर्पण करते हैं। इसी दिन माँ दुर्गा की अधूरी गढ़ी मूर्ती पर मूर्ती कार आंखे गढ़ते हैं। दुर्गा पूजा की विधिवत शुरुआत महालया से ही होती है। नवरात्र के पूर्व देवी का आवाहन महालया से होता है।
इस दिन तर्पण कर मंत्र से पूर्वजो को तृप्त करने के साथ ही, विश्व के सभी लोगों की मंगल कामना भी की जाती है। विश्व मैत्री की भावना से संकल्प की सिद्धी के लिये माँ दुर्गा की प्रार्थना की जाती है। सारा विश्व एक ही आलय में सिमट जाता है ,इसलिये इस दिन को महालय कहा जाता है। महालय का अर्थ बड़ा घर अर्थात सारा विश्व।
महालय के दिन ही सभी देवताओं ने महिषासुर का वध करने के लिये माँ दुर्गा को शस्त्र प्रदान किया था। इसके बाद ही माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। महालया के दिन से ही चंडीपाठ शुरू होता है। महालया के दिन सुबह चार बजे से आकाशवाणी के सभी केंद्रों से महिषासुर मर्दनी कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है। सन 1931 में पहली बार आकाशवाणी के कोलकत्ता केन्द्र से इसका प्रसारण वीरेंद्र कृष्ण भद्र की अमर आवाज में प्रसारण हुआ था ,तब से आज तक हर साल इसका प्रसारण होता ही है। इससे सारा जग भक्तिमय व पूजामय हो जाता है, यही महालय है।बचपन बंगालियों के बीच बीता उस समय महालय का अर्थ समझ नहीं आता था बस इतना पता था की पूजा के पहले महालया के दिन रेडियों में सुबह चार बजे बंगालियों का कुछ प्रोग्राम आता है जो वे लोग बहुत चाव से सुनते है। अब समझ आया बंगाली नहीं हर हिन्दुओं के लिये होता है।
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