बुधवार, 17 अगस्त 2016

TIRTH YATRA

                                                                 TIRTH YATRA

                                                                        तीर्थ यात्रा 

          तीर्थ यात्रा   हमारे पूर्वजों और साधु -संतों की देन है। तीर्थ के बहाने सारे देश को जोड़ा गया था। चार धाम ,बारह ज्योतिर्लिङ्ग और एकावन शक्ति पीठ। इसके दर्शन के लिये पुरे भारत का भ्र्मण करना पड़ता है। हमारा देश बहुत विशाल है। नार्थ से साउथ ,ईस्ट से वेस्ट चारों दिशा में गये बिना दर्शन नहीं हो सकता है। जब की हर राज्य का बोल -चाल खान पान ,रहन सहन एकदम अलग है। पर भगवान बिष्णु ,शिव जी हो या देवी माँ सभी लोग मानते और जानते थे और तीर्थ यात्रा करते थे। 
      पहले तीर्थ यात्रा बहुत ही कठीन था और बुजुर्ग लोग ही जाते थे पर समय के साथ साधन और  सहूलियत होने के कारन बहुत लोग हर उम्र के जाने लगें। हमलोग तीन परिवार का भी जाने का प्रोग्राम बना पर हिम्मत ही नहीं हो रहा था ,लग रहा था इतना कठीन रास्ता कैसे जापायेंग़े। पर बड़ी भाभी ने कहा साथ मिल रहा है जरूर जाओ जहाँ तक कार जाये जाओ पैदल नहीं चल पाओ तो सीन सिनेरी ही देखना पर  जरूर जाओ ऐसा मौका रोज नहीं मिलता है।उमा भी बोली चाची आपलोग जरूर जाओ तीर्थ कठीन होता है पर बहुत ही इन्टेरेस्टिन्ग भी है जाओ अच्छा लगेगा।
      ममता और किरण भी जोर देकर लेगई। रास्ते में एक दूसरे को हिम्मत भी दे रहें थे। कहीं धर्मशाला में रुकना पड़ा तो कहीं चार -चार घंटे घोड़े में खड़ी चढ़ाई में चले जा रहे थे। पर वास्तव में यदि चार धाम यात्रा नहीं करते तो भारत दर्शन नहीं हो पाता । गंगा -जमुना के उदगम में स्नान भी कर लिये। वहाँ का खुश नुमा मौहाल से सारा थकावट मिट गया
     आज से दस -बारह साल पहले इतने आराम से तीर्थ कर लिये अब तो हर साल मौसम ख़राब तो लैंडस्लाइडिंग ,बाढ़ पता नहीं क्या कुछ नहीं हो रहा है। हर साल टीवी में देख कर हमलोग तीनो परिवार बात भी करते है की कितने आराम से हमलोग इतना कुछ घूमलीए। फिर भी चार धाम तो होगया। पर बारह में तीन -चार ज्योतिर्लिङ्ग और एकावन शक्ती पीठ तो बचा ही है। 
       भगवन जब मौका देंगे तभी पूरा होगा। 10 -12 साल से भारत भ्रमण कर रहें है पर फिर भी बहुत कुछ बचा है। इतना तीर्थ करने का सारा श्रेय ममता ,किरण और उमा लोगों को जाता है। नहीं तो अकेले तो सोंच ही नहीं सकते हैं। उनलोगों के साथ और हिम्मत बंधाने के कारन ही हो पाया।


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