CHAR DHAM YATRA                                (    पहला धाम )
                                                                       चार धाम यात्रा 
                           वैसे तो चारो दिशा में एक -एक  धाम है और चारों दिशा का  दर्शन करने के बाद चार धाम कहलाता है पर उत्तर में हरिद्वार से ऊपर जाने पर जमुना जी का उदगम स्थल यमनोत्री, फिर आगे ऊपर जाते जाओ तो  गंगा का उदगम स्थल गंगोत्री,फिर गंगा जल ले कर आगे बढ़ने पर केदारनाथ जो की ज्योतिर्लिङ्ग भी है।   और फिर बद्रीनाथ। चारो दर्शन करने के बाद उतरते जाने पर रिषीकेश में जा कर एक धाम पूरा होता है। 
      वैसे तो ऊपर यमनोत्री और केदारनाथ में सुबह से घोड़े में जाने दर्शन करके आते शाम हो जाता है चार घंटा घोड़े में ऊपर जाना दर्शन करके वापस आना हालत ख़राब हो जाता है पर रात्री विश्राम के बाद सुबह चार बजे फिर एकदम तरोताजा हो जाते है और अगले पड़ाव के लिये चल पड़ते हैं। हफ्ता भर लगजाता है हरिद्वार से दर्शन करके वापस रिषीकेश तक आने में। सुंदर जंगल, पहाड़ ,झरना ,गंगा नदी का अलग -अलग धारा  और अलग नाम मंदाकीनी ,अलकनंदा,भागीरथी। आगे जा के देवप्रयाग में सभी नदी का संगम होता है और फिर गंगा की धारा बन कर  आगे बढ़ते हुए रिषीकेश पहुँच जाती है.रिषीकेश से कलकत्ता पहुँच कर सागर में मिलती है। संक्रान्त में गंगा सागर का मेला इसी लिये लगता है।   अब तो सब नाम भी याद  नहीं।पर हर जगह मौसम भीसाथ दिया और दर्शन भी अच्छे से हो गया। 
     पुरे भारत को जोड़ने केलिए ये 
भी नियम बना था की गंगोत्री का जल लेकर केदारनाथ में शिव लिङ्ग में जल चढ़ाना और गंगोत्री का जल लेकर रामेश्वरम में जल चढ़ाया जाता है। आज भी रामेश्वरम में गंगा जल के बारे में पूछते हैं और जो नहीं ला पता है तो वहाँ भी मिलता है और पंडित जी बहुत विध से पूजा अर्चना करवाते हैं।
हमलोगों ने भी ऐसा किया। इसी बहाने चारों धाम भी हो गया।   


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