FRI,2 OCT
                                                           मेरा प्रथम विदेश यात्रा 
                      बच्चों की छुटटी थी हमलोग बैंकॉक ,सिंगापुर ,हॉंगकॉंग और फिलीपींस घुमने निकल पड़े। बात सन 1984 का है। ऊस समय रायपुर बहुत ही छोटा शहर था नातो मॉल होता था और ना तो बड़ा -बड़ा बिल्डिंग। बैंकॉक पहुँच कर घुमने निकलें चारो तरफ चाकर मकर देखते ही रहगये। वैसे तो पूरे टूर में जोजो देखने की जगह था सब हमारा गाईड हमें घुमाया और हमलोग मजा भी किये। पर एक मजेदार घटना जब भी याद आता है आज भी हँसी आजाता है। बैंकॉक के मॉल में स्वचालित सीढ़ी देख कर डर गये एक कदम आगे बढ़ाते तो दो कदम अपने आप पीछे हो जाते जाएँ तो जाएँ कैसे। बच्चेां को तो मजा आरहा था बार बार ऊपर नीचे कर रहे थे पर  मेरा हिम्मत ही नहीं हो रहा थाएक अनजान लड़की देख रही थी वह आई मेरा हाथ पकड़ी और बढ़ गई कुछ समझे तबतक ऊपर पहुंच गए और डर भी खत्म हो गया। 
     25 साल बाद फिर बैंकॉक जाने का अवसर मिला इस बार तो और भी ज्यादा अचंभित होगये एकदम बदला बड़ा सुन्दर देश हो गया। इस बार एक चीज बड़ा अच्छा लगा एक तो एयरपोर्ट का नाम दूसरा वहाँ का सजावट। एकदम शुद्ध हिन्दी नाम सुवर्णभूमी एयरपोर्ट राजा के नाम पर था और दूसरा समुन्द्र मंथन का दृश्य पुरे एयरपोर्ट के अंदर बड़े बड़े मूर्तियों में उकेरा गया था। विदेश में अपने देश का संस्क्रिति देखने मिले तो खुश होना स्वभाविक है। 
  अब अगले ब्लॉग में कोई और देश ले चलेंगे। 
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क्रमशः







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