गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

BANGAL KA PUJA

WED,21 OCT

                                                                  बंगाल का दुर्गा पूजा 
               वैसे तो नवरात्री का त्यौहार साल में दो बार बसंत में बासंती औरक्वार में शारदीय  नौ दिन देवी का अलग अलग रूप  में मनाया जाता है।पर बंगाल में क्वार में शारदीय नौ रात्री मेंदुर्गा  पूजा बहुत ही धूम -धाम से मनाया जाता है।दुर्गा जी को बेटी माना जाता है ,इसलिए बंगाल उनका मायका हुआ .अब जमशेदपुर बंगाल बॉर्डर के पास होने के कारन बंगालियों की संख्या भी यहाँ बहुत ही अधिक है। इसलिए यहाँ बंगाली रीत -रिवाज से पूजा मनाया जाता है।माँ के स्वागत के लिये बहुत ही सुन्दर और बड़ा पंडाल सब जगह बनाया जाता है।  
 मान्यता है की दुर्गा जी महिषासुर का बध कर  के अपने परिवार के साथ 9 दिन के लिये  मायका आतीहै। इसलिए बंगाली पंडालों में दुर्गा प्रतिमा के साथ कार्तिक ,गणेश ,लख्मी ,सरस्वती आदि का भी मूर्ती होता है ,वे देवी के बेटा बेटी माने जाते हैं और साथ में गणेश जी की पत्नी कोला बहू कोने में केले के  गाछ को साड़ी लपेट कर खड़ा किया जाता है। कार्तिक जी ज्येष्ठ हैं उनके सामने बहु कैसे रहेगी।
 दुर्गा पूजा अमावस्या के दिन घरो में घट रख कर शुरु हो जाता है ,पर पंडालों में प्रतिमा षष्ठी के दिन
घट रख कर शुरू किया जाता है। अष्टमी का दिन सबसे विशेष होता है। खासकर अष्टमी और नवमी का संधिकाल में  108 दीपक जला कर पूजा का विधान है. दशमी के दिन अपराजिता नीले रंग का फूल और उसके पत्ते से पूजा होता है।  मूर्ति विसर्जन होता है ,इस अवसर में महिलाएं दुर्गा प्रतिमा को सिन्दूर लगा कर विदाई देती है और एक दूसरे को सिन्दूर लगती है ,इसे सिन्दूर खेला बोला जाता है।देवी प्रतिमा के सामने एक बड़े से परात में जल रखा जाता है,और उसमें एक दर्पण ,दर्पण में माँ का चरण दिखना चाहिए। सब महिलाएं दर्पण में माँ का चरण स्पर्श करआशीर्वाद लेती हैं ,फिर माँ को मिठाई खिलाकर सिन्दूर लगती है।   जिस प्रकार बंगाल में बहीन बेटी को मछली भात खिला कर बिदा किया जाता है वैसे दुर्गा माँ को भी सुबह खिला कर सिन्दूर लगा कर बिदा किया जाता है।पूजा में खिचड़ी भोग का भी बहुत महत्त्व है ,और बंगाली छेने से बना हुआ मिठाई। 
 प्रतिमा विसर्जन के बाद नीलकंठ पछी उड़ाया जाता है ,मान्यता ये है कि वे कैलाश पर्वत पर पहुँच कर भगवान शिव को माँ के मायका से रवानगी की सूचना देता है।विसर्जन के बाद शांति जल लाया जाता है। और फिर एक दूसरे से मिलकर विजया दशमी का पर्व मानते हैं।













  

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