मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

SRI SAILAM

      SRISAILAM MALIKARJUNA JYOTIRLINGA

            श्री शैलम -मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

       बहुत दिनों से आंध्रा प्रदेश के श्री शैलम ज्योतिर्लिंग जाने का सोच रहे थे।पर संजोग ही नहीं बन रहा था। हैदराबाद से आगे जाना ही नहीं हो पाता था ,बोलते है ना की प्रभु इच्छा के वगैर कुछ नहीं होता है। आखिर वो घड़ी आ ही गयी। हमलोग चार जन हमेशा तीर्थ यात्रा  साथ ही करते है प्रोग्राम बना कर हैदराबाद के लिये निकल पड़े। हैदराबाद से श्री शैलम की दूरी करीब 200 किलोमीटर है और वो भी  रोड मार्ग से ही जाना होता है। रोड भी एकदम अच्छा है, 4 -5 घंटे में हैदराबाद से श्री शैलम पर्वत पहुँच गए।
         हैदराबाद एयरपोर्ट से टैक्सी बुक था हम चारो रास्ते में जंगल ,पहाड़, रिजर्व फॉरेस्ट ,वाईल्ड लाईफ सेंचुरी कृष्णा नदी और डैम इत्यादी का नजारा देखते हुए आखिर में अपने मंजिल पहुँच ही गए। रास्ते में जगह -जगह टोल प्लाजा था ,जब जंगल का इलाका शुरू हुआ तो एक बात  बड़ा ही अच्छा लगा  की टोल प्लाजा में रसीद के साथ  एक बैग भी मिला।टैक्सी ड्राईवर से पूछने पर  पता चला की अब हम प्लास्टिक फ्री जोन से गुजरेंगे। रास्ते में कोई तीर्थ यात्री कचरा नहीं फैलाये इसलिए थैला दिया जाता है। जब पर्वत से मंदिर दर्शन कर वापस लौटेंगे तो अपने कचरे वाला थैला टोल प्लाजा में जमा करना होगा और रसीद देने पर 20 रुपया वापस मिलेगा। जरा सा सोच से कितना फयदा है। पूरा प्रदेश स्वच्छ साफ सुथरा ,टोल का टोल सफाई का सफाई।
     आंध्र प्रदेश के कृष्णा (करन्नुल ) जिले में कृष्णा नदी के किनारे श्री शैलम पर्वत पर श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लींग विराजमान है। इसे दक्छिन का कैलाश माना जाता है। हमारे 12 ज्योतिर्लींग में से एक ये भी है ,वहीं भ्रमराम्बा देवी के रूप में 51शक्ति पीठ में से एक शक्ति पीठ भी यहीं है। भारत का एकलौता ऐसा स्थान ये है जहाँ शिव और शक्ति दोनों ही विराजमान है।
     शिव पुराण के अनुसार शिव पार्वती से रूठ कर उनका पुत्र कार्तिकेय इसी पर्वत में आकर कठोर तपस्या करे थे। माता -पिता के मनाने पर भी वह वापस कैलाश पर्वत नहीं गए और दक्छिन में ही रह गए। पार्वती जी के कहने पर शिव जी यहाँ ज्योतिर्लींग की स्थापना करे ,तब से ही हर शिवरात्री में तथा अमावस्या और पूर्णिमा में विशेष पूजा अर्चना होता है। मजे की बात ये हुआ हमलोग भी जिस दिन वहाँ पहुँचे तो कार्तिक पूर्णिमा का ही दिन था। हमलोगो ने अच्छे से दर्शन भी किया। मंदिर प्रांगन में हमें गाईड भी मिल गई ,जो पुरे मंदिर के सभी छोटे -बड़े मंदिर के बारे में बताई और घुमाई। हमलोगों ने सब जगह दर्शन किया। वहाँ पता चला की मंदिर के नीचे से पाताल गंगा बहती है उसमे मंदिर के सोने के कलश का प्रतिबिम्ब दिखता है ,सब तीर्थ यात्री दर्शन कर रहे थे   . हमलोग ने भी जल में स्वर्ण कलश का प्रतिबिम्ब देखा।गाईड नहीं बताती तो शायद हमें पता भी नहीं होता और ना तो प्रतिबिम्ब ही देखते। 
     मंदिर में ही पता चला की सती का गर्दन यहीं गिरा था, इसलिए यहाँ भ्रमराम्बा देवी नाम से शक्ति पीठ है। उनका भी दर्शन हुआ। कार्तिक पूर्णिमा के कारण विशेष पूजा ,शयन आरती भी हमलोगों ने देखा। वैसे 2000 साल पुराना मंदिर है और अलग -अलग काल खंड में अलग अलग कहानी भी है जो की महाभारत और रामायण काल से जुडी हुई है। पर मंदिर का स्वर्ण कलश 500 साल पुराना है जो की उस समय के राजा ने बनवाया था।अब मान्यता और कहानी जो भी हो मंदिर बहुत ही भव्य सुन्दर देखने योग्य है। मंदिर का प्रांगण बहुत ही विशाल है। मंदिर का व्यवस्था भी बहुत अच्छा था।  वैसे तो हर मंदिर की तरह यहाँ भी दर्शन का अलग -अलग रेट और बड़ा -बड़ा लाईन था। पर सीनियर सिटीजन का अलग लाईन होने के कारण हमलोगों को बहुत ही जल्द दर्शन हो गया,और कोइ शुल्क भी नहीं लगा।वर्षों की ख्वाईश भी पूरा हो गया।






       

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