गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

KOJAGIRI LAKSHMI PUJA

                                                       कोजागरी लक्छमी पूजा

     अश्विन मास के शुक्ल पक्छ की पूर्णिमा को बंगाली समुदाय के लोग माँ लक्छमी की पूजा करते है। जिसे कोजागरी लोक्खी पूजा कहा जाता है। मान्यता ये है की मथुरा के राजा को सपने में धर्म देव ने कोजागरी लक्छमी पूजा करने का आदेश दीये थे। जिससे धन धान्य व् सुख समृधि प्राप्त हो। उस समय राजा आर्थिक संकट में थे। तब से ही ये पूजा होने लगा।
    बंगाली महिलाएं इस दिन व्रत रहती है ,और घर अच्छी तरह साफ सफाई करके अल्पना बनती है। फिर शाम को पूरे  विधि- विधान से पूजा- अर्चना करती है। शंख  बजाये जाते है और महिलाये उल्लू ध्वनी निकालती है। लक्छमी जी की सवारी उल्लू होने के कारण हर शुभ काम के समय बंगाल में महिलाएं उल्लू ध्वनि मुँह से करती है। फिर माँ का आवाहन गीत गाते हुए करती है। माँ से प्रार्थना किया जाता है की माँ आप के लिए सुगंधित  धूप दीप जल रहा है, आसन बिछा हुआ है ,माँ आओ मेरे घर मेंआसान ग्रहण करो।  ,नाना प्रकार का व्यंजन का प्रसाद का भोग करो। माँ मेरे घर आओ इस दिन ग्यारह प्रकार का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
   पूजा के बाद पाठ कर ,आरती करने के बाद महिलाएं अपना व्रत तोड़ती है और प्रसाद ग्रहण करती है और  दूसरों को भी प्रसाद देती है। बाकी सब जगह दीवाली के दिन लक्छमी पूजा होता है पर बंगाल में ही इस दिन लक्ष्मी पूजा होता है। बाकी सबलोग दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा करते है। इस पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मानते है और खीर ओस में रखा जाता है और मान्यता है की इस दिन अमृत बरसता है। जो हो अश्विन मास के पूर्णिमा का महत्व तो है ही।



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