जगद्धात्री पूजा
रामकृष्ण परमहंस की पत्नी माँ शारदा देवी को पूर्ण जन्म में विश्वास था। उनका मानना था की देवी दुर्गा फिर से धरती में अवतरित होकर दुष्टों का नाश करेंगीऔर खुशियाँ देंगी।
दुर्गा पूजा की तरह ही दुर्गा पूजा के बाद कार्तिक मास में जगद्धात्री पूजा बंगाल और ओडीशा में पुरे विधि विधान से की जाती है।देवी माँ का जैसा नाम है जगद्धात्री उसी से पता चलता है की जग की रक्छा करने वाली देवी।।बात बहुत पुरानी है बंगाल के चन्दन नगर ,पुराने दिनों में काफी सम्पन और समृद्ध था। वहाँ के लोग व्यापर करते थे। एक व्यापारी इन्द्रनारायण चौधरी सन 1750 में धूम -धाम से जगद्धात्री देवी की पूजाअपने आवास में की थी। तब से पुरे देश में ये पूजा मनाया जाने लगा।
नई पीढ़ी को तो पता ही नहीं है की कार्तिक मास के अष्टमी ,नवमी और दशमी में ये पूजा किया जाता है।इस बार 27 से 30 अक्टूबर को जगद्धात्री पूजा मनाया जा रहा है । हमलोगों का बचपन बंगाल के बॉर्डर टाटानगर में बंगालियों के साथ गुजरा ,इसलिए बंगाली पूजा का पता रहता है और हमलोग भी सभी बंगाली त्योहार खुशी -खुशी मनाते थे। जगद्धात्री देवी का मूर्ती भी दुर्गा जी जैसा ही होता है और शेर की सवारी। शायद शारदा माँ के विश्वास के कारण ही दुर्गा माँ का फिर से अवतार हुआ हो। अब जो हो इसी बहाने पूजा का मौहाल बन जाता है लोग बाग इकठा होते है .मिलकर सब तैयारी करते है। देश और समाज का कल्याण ही होता है।
रामकृष्ण परमहंस की पत्नी माँ शारदा देवी को पूर्ण जन्म में विश्वास था। उनका मानना था की देवी दुर्गा फिर से धरती में अवतरित होकर दुष्टों का नाश करेंगीऔर खुशियाँ देंगी।
दुर्गा पूजा की तरह ही दुर्गा पूजा के बाद कार्तिक मास में जगद्धात्री पूजा बंगाल और ओडीशा में पुरे विधि विधान से की जाती है।देवी माँ का जैसा नाम है जगद्धात्री उसी से पता चलता है की जग की रक्छा करने वाली देवी।।बात बहुत पुरानी है बंगाल के चन्दन नगर ,पुराने दिनों में काफी सम्पन और समृद्ध था। वहाँ के लोग व्यापर करते थे। एक व्यापारी इन्द्रनारायण चौधरी सन 1750 में धूम -धाम से जगद्धात्री देवी की पूजाअपने आवास में की थी। तब से पुरे देश में ये पूजा मनाया जाने लगा।
नई पीढ़ी को तो पता ही नहीं है की कार्तिक मास के अष्टमी ,नवमी और दशमी में ये पूजा किया जाता है।इस बार 27 से 30 अक्टूबर को जगद्धात्री पूजा मनाया जा रहा है । हमलोगों का बचपन बंगाल के बॉर्डर टाटानगर में बंगालियों के साथ गुजरा ,इसलिए बंगाली पूजा का पता रहता है और हमलोग भी सभी बंगाली त्योहार खुशी -खुशी मनाते थे। जगद्धात्री देवी का मूर्ती भी दुर्गा जी जैसा ही होता है और शेर की सवारी। शायद शारदा माँ के विश्वास के कारण ही दुर्गा माँ का फिर से अवतार हुआ हो। अब जो हो इसी बहाने पूजा का मौहाल बन जाता है लोग बाग इकठा होते है .मिलकर सब तैयारी करते है। देश और समाज का कल्याण ही होता है।
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