बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

KALI PUJA

                                               काली पूजा

                              काली पूजा एक हिन्दू त्योहार है ,जो देवी काली को समर्पित है। दिवाली उत्सव के दौरान अमावस्या तिथि के दिन मध्य रात्री को काली पूजा का विधान है। वैसे तो दिवाली के दिन जहाँ सब जगह सब लोग लक्ष्मी पूजा करते है वहीं बंगाल ,ओडीशा और आसाम में काली पूजा किया जाता है।शरद पूर्णिमा के दिन इन जगहों में लक्ष्मी पूजा हो जाता है।
      जिस प्रकार बालगंगाधर तिलक जी ने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के रूप में गणेश पूजा धूम धाम से शुरू करवाए थें। उसी प्रकार नवद्वीप के राजा कृष्ण चंद्र ने 18 वीं सदी में काली पूजा कार्तिक अमावस्या के रात्री में शुरू करवाया था।
       मान्यता ये है की शम्भु -अशंभु नामक असुर ब्रम्हांड में एकदम उथल पुथल मचा दिया था। तब देवताओं ने दुर्गा जी की आराधना की तो काली जी की उत्पति हुई। काली जी के हाँथ में खड़ग था। वे असुरों का वध कर रक्त पीकर मुंड माल धारण करते जा रही थी। रास्ते में जो भी मिलता उसीका वध करते जा रही थी रुकने का नाम ही नहीं था। शिवजी ने उनको रोकने के लिये उनके रास्ते में लेट गए। काली जी का पैर जैसे ही शिवजी के छाती में पड़ा तो आश्चर्ज से वही रुक गयी और जीभ बहार निकला रह गया। बस तब से ही काली जी का इसी रूप में पूजा होना शुरू हो गया।
     काली पूजा तांत्रिक लोग तंत्र मन्त्र से अर्धरात्री में सिद्धी के लिये अमावस्या के काली रात को करते है और बलि  भी देते है। अब तो बलि  में एक बड़ा सा रखिया  कुम्हड़ा ही से बलि  किया जाता है, और प्रसाद भी सुबह दिया जाता है। टाटा और बंगाल में तो दुर्गा पूजा के बाद उसी पंडाल में शरद पूर्णिमा में लक्ष्मी पूजा और फिर कार्तिक अमावस्या को काली पूजा किया जाता है और उसके बाद ही पंडाल हटाया जाता है। टेल्को में तो 22 फ़ीट की काली जी की प्रतिमा बना कर हर साल पूजा करते है और फिर उसका विसर्जन किया जाता है। 1976 से 22 फ़ीट वाला काली पूजा टेल्को कॉलोनी में होता है। और बाकी सारे पूजा पंडाल में सामान्य मूर्ती का  पूजा होता है।








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