दूधाधारी मठ
पाँच सौ साल पहले सन 1610 में राजा रघुराव भोंसले ने दूधाधारी मठ का निर्माण किया था।यहाँ के महंत स्वामी बलभद्र दास हनुमान भक्त थे। वे रोज हनुमान जी का दुग्ध स्नान कर के उस दुग्ध का पान करते थे वे अन्नाहार नहीं लेते थे। इसलिए मठ का नाम दूधाधारी पड़ा। रामानन्दी संप्रदाय का मंदिर होने के कारन राम का मंदिर है। साथ ही महंत हनुमान भक्त थे इसलिए हनुमान और संकट मोचन का भी मंदिर इस प्रांगन में है। मराठा राजा के द्वारा मंदिर का निर्माण हुआ और ओड़ीसा के कारीगरों ने बनाया था इसलिए मंदिर का वास्तु शास्त्र ओड़ीसा शैली और अलंकरण मराठा शैली में तथा पेंटिंग भी मराठा शैली में है
राम मंदिर होने के कारन मंदिर के दीवारों में पुरा रामायण का चित्रण पेंटिंग के जरिये किया गया था ,जो आज भी सुरक्छित है। मंदिर के प्रांगण में विष्णु जीऔर लक्ष्मी जी का भी मंदिर है जिसे बाला जी मंदिर बोला जाता है। यहाँ के राम मंदिर में राम -सीता जी के साथ चारों भाईयों का भी मूर्ती है। मंदिर बहुत बड़े प्रांगण में होने के कारन गौशाला ,अतिथीशाला ,सीता रसोईं बहुत कुछ है। उस ज़माने में बहुत दूर दूर से संत आते थे और यहाँ विश्राम करते थे फिर आगे की यात्रा में निकल जाते थे। इसलिए राजा लोग पुरे गावं को मंदिर के लिये दान कर देते थे और इतना बड़ा -बड़ा मठ बनाते थे। जिससे साधु संतों को खाने पीने और रात्रि विश्राम के लिये कुछ असुविधा ना हो। आज भी बहुत साधु संत मठ में भ्रमण के दौरान भोजन और विश्राम इस मठ में करते है।
मंदिर के प्रांगण में एक नीम का पेड़ भी काफी पुराना है और उसका आकर भी दतवन और जीभी जैसा है। मान्यता है की महंतनीम का दतवन कर के यहीं फेकते थे इसलिए इस आकर में पेड़ हो गया। अब सच जो हो पुराना पेड़ किसी भी बहाने से सुरक्छित है यही बहुत बड़ी बात है। चालीस साल पहले इस मठ को देखने के बाद अब जा कर फिर से देखने का हमको मौका मिला।दूधाधारी मठ देख कर बहुत ही अच्छा लगा एकदम साफ सुथरा स्वच्छ वातावरण था। किरण को बहुत -बहुत धन्यबाद जिसके कहने पर ही हमलोग फिर से मठ जा कर दर्शन कर पाए।
पाँच सौ साल पहले सन 1610 में राजा रघुराव भोंसले ने दूधाधारी मठ का निर्माण किया था।यहाँ के महंत स्वामी बलभद्र दास हनुमान भक्त थे। वे रोज हनुमान जी का दुग्ध स्नान कर के उस दुग्ध का पान करते थे वे अन्नाहार नहीं लेते थे। इसलिए मठ का नाम दूधाधारी पड़ा। रामानन्दी संप्रदाय का मंदिर होने के कारन राम का मंदिर है। साथ ही महंत हनुमान भक्त थे इसलिए हनुमान और संकट मोचन का भी मंदिर इस प्रांगन में है। मराठा राजा के द्वारा मंदिर का निर्माण हुआ और ओड़ीसा के कारीगरों ने बनाया था इसलिए मंदिर का वास्तु शास्त्र ओड़ीसा शैली और अलंकरण मराठा शैली में तथा पेंटिंग भी मराठा शैली में है
राम मंदिर होने के कारन मंदिर के दीवारों में पुरा रामायण का चित्रण पेंटिंग के जरिये किया गया था ,जो आज भी सुरक्छित है। मंदिर के प्रांगण में विष्णु जीऔर लक्ष्मी जी का भी मंदिर है जिसे बाला जी मंदिर बोला जाता है। यहाँ के राम मंदिर में राम -सीता जी के साथ चारों भाईयों का भी मूर्ती है। मंदिर बहुत बड़े प्रांगण में होने के कारन गौशाला ,अतिथीशाला ,सीता रसोईं बहुत कुछ है। उस ज़माने में बहुत दूर दूर से संत आते थे और यहाँ विश्राम करते थे फिर आगे की यात्रा में निकल जाते थे। इसलिए राजा लोग पुरे गावं को मंदिर के लिये दान कर देते थे और इतना बड़ा -बड़ा मठ बनाते थे। जिससे साधु संतों को खाने पीने और रात्रि विश्राम के लिये कुछ असुविधा ना हो। आज भी बहुत साधु संत मठ में भ्रमण के दौरान भोजन और विश्राम इस मठ में करते है।
मंदिर के प्रांगण में एक नीम का पेड़ भी काफी पुराना है और उसका आकर भी दतवन और जीभी जैसा है। मान्यता है की महंतनीम का दतवन कर के यहीं फेकते थे इसलिए इस आकर में पेड़ हो गया। अब सच जो हो पुराना पेड़ किसी भी बहाने से सुरक्छित है यही बहुत बड़ी बात है। चालीस साल पहले इस मठ को देखने के बाद अब जा कर फिर से देखने का हमको मौका मिला।दूधाधारी मठ देख कर बहुत ही अच्छा लगा एकदम साफ सुथरा स्वच्छ वातावरण था। किरण को बहुत -बहुत धन्यबाद जिसके कहने पर ही हमलोग फिर से मठ जा कर दर्शन कर पाए।
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