कोजागरी लक्ष्मी पूजा
शरद पूर्णिमा
अश्विन मास के शुक्ल पक्छ की पूर्णिमा को बंगाली समुदाय के लोग माँ लक्ष्मी की पूजा करते है। जिसे कोजागिरी लक्ष्मी पूजा कहा जाता है। मान्यता ये है की मथुरा के राजा को सपने में धर्म देव ने कोजागरी लक्ष्मी पूजा करने का आदेश दिए थे। जिससे उन्हें धन -धान्य एवं सुख समृधी प्राप्त हो। उस समय राजा आर्थिक संकट में थे,राजा ने ये पूजा किया तब से ही ये पूजा होने लगा।
बंगाली महिलाएं इस दिन व्रत रहती है ,और घर अच्छी तरह साफ -सफाई करके अल्पना बनाती है। फिर शाम को पुरे विधि -विधान से पूजा अर्चना करती है। शंख बजाये जाते है और महिलाये उल्लू ध्वनी निकालती है। लक्ष्मी जी की सवारी उल्लू होने के कारण हर शुभ काम के समय बंगाल में महिलाएं उल्लू ध्वनि मुहं से करती है। फिर माँ का आवाहन गीत गाते हुए करती है। माँ से प्रार्थना किया जाता है की माँ आप के लिये सुगंधित धुप दीप जल रहा है ,आसन बिछा हुआ है ,माँ आओ मेरे घर में आसन ग्रहण करो। नाना प्रकार के व्यंजन का प्रसाद का भोग करो,माँ मेरे घर आओ ,इस दिन ग्यारह प्रकार का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
पूजा के बाद पाठ कर आरती करने के बाद महिलाएं अपना व्रत तोड़ती है,और प्रसाद ग्रहण करती है।और दूसरों को भी प्रसाद देती है।बाकी सबलोग दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा करते है। सारे दुर्गा पूजा पंडाल में दुर्गा विसर्जन के बाद पूर्णिमा में लक्ष्मी पूजा और फिर अमावस्या के दिन काली पूजा करते है जब की सब जगह अमावस्या के दिन लक्ष्मी पूजा होता है।बचपन में हमलोग दुर्गा पूजा की तरह लक्ष्मी पूजा का भी इंतजार करते थे। वैसे इस पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजा के अलावा शरद पूर्णिमा मनाने का चलन है। मान्यता ये है की इस दिन अमृत बरसता है ,इसलिए ओस में खीर रखा जाता है और खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।चाहे जिस रूप में मनाये अश्विन मास का पूर्णिमा का इसलिए इतना महत्व है।
शरद पूर्णिमा
अश्विन मास के शुक्ल पक्छ की पूर्णिमा को बंगाली समुदाय के लोग माँ लक्ष्मी की पूजा करते है। जिसे कोजागिरी लक्ष्मी पूजा कहा जाता है। मान्यता ये है की मथुरा के राजा को सपने में धर्म देव ने कोजागरी लक्ष्मी पूजा करने का आदेश दिए थे। जिससे उन्हें धन -धान्य एवं सुख समृधी प्राप्त हो। उस समय राजा आर्थिक संकट में थे,राजा ने ये पूजा किया तब से ही ये पूजा होने लगा।
बंगाली महिलाएं इस दिन व्रत रहती है ,और घर अच्छी तरह साफ -सफाई करके अल्पना बनाती है। फिर शाम को पुरे विधि -विधान से पूजा अर्चना करती है। शंख बजाये जाते है और महिलाये उल्लू ध्वनी निकालती है। लक्ष्मी जी की सवारी उल्लू होने के कारण हर शुभ काम के समय बंगाल में महिलाएं उल्लू ध्वनि मुहं से करती है। फिर माँ का आवाहन गीत गाते हुए करती है। माँ से प्रार्थना किया जाता है की माँ आप के लिये सुगंधित धुप दीप जल रहा है ,आसन बिछा हुआ है ,माँ आओ मेरे घर में आसन ग्रहण करो। नाना प्रकार के व्यंजन का प्रसाद का भोग करो,माँ मेरे घर आओ ,इस दिन ग्यारह प्रकार का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
पूजा के बाद पाठ कर आरती करने के बाद महिलाएं अपना व्रत तोड़ती है,और प्रसाद ग्रहण करती है।और दूसरों को भी प्रसाद देती है।बाकी सबलोग दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा करते है। सारे दुर्गा पूजा पंडाल में दुर्गा विसर्जन के बाद पूर्णिमा में लक्ष्मी पूजा और फिर अमावस्या के दिन काली पूजा करते है जब की सब जगह अमावस्या के दिन लक्ष्मी पूजा होता है।बचपन में हमलोग दुर्गा पूजा की तरह लक्ष्मी पूजा का भी इंतजार करते थे। वैसे इस पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजा के अलावा शरद पूर्णिमा मनाने का चलन है। मान्यता ये है की इस दिन अमृत बरसता है ,इसलिए ओस में खीर रखा जाता है और खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।चाहे जिस रूप में मनाये अश्विन मास का पूर्णिमा का इसलिए इतना महत्व है।
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