MON,23 NOV
उज्जैन
मध्यप्रदेश के क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन नगर बसा है। जिसे इंद्रपुर ,अमरावती या अवंती भी बोला जाता था। सम्राट विक्रमादित्य का यहाँ राजधानी था ,और कवि कालीदास ने अपनी कविता मेघदूत की रचना यहीं करी थी। हर 12 साल में यहाँ कुम्भ मेला भी लगता है। अगले साल अप्रैल -मई में एक मास कुम्भ मेला क्षिप्रा तट पर लगने वाला है जिसकी तैयारी जोरों से चल रही है।
क्षिप्रा नदी के तट पर दक्षिण मुखी शिव लिंग वाले महाकालेश्वर जी का मन्दिर है। दक्षिण मुखी होने के कारन तांत्रिक महत्त्व है इसलिए सुबह 4 से 6 बजे भस्म आरती होता है। पहले तो श्मशान से भस्म लाकर आरती होता था पर अब कंडे के राख से भस्म आरती होता है ,और उसके बाद ही दर्शन के लिये पट खोला जाता है। बड़े -बड़े टीवी स्क्रीन में आरती का अदभुत नजारा का दर्शन कर सकते हैं। हमलोग भी सुबह 4 बजे से 6 बजे वाली आरती का दर्शन लाभ किये उसके बाद मंदिर के अंदर जा कर महाकालेश्वर जी पर दूध से अभिषेक करे।
उज्जैन में गणेश जी ,नवग्रह ,मंगल ग्रह का मंदिर के आलावा यहाँ संदीपनी जी का आश्रम जहाँ कृष्ण ,बलराम और सुदामा ने गुरु जी से पढाई की थी वह भी देखने योग्य है। उस आश्रम में साढ़े 6 हजार साल पुराना शिव लिंग संदीपनी जी द्वारा स्थापित है जिसमे अभी भी पूजा होता है।
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग
उज्जैन आने पर ओम्कारेश्वर भी जाते है जो की ओम के आकर के नर्मदा नदी का तट पर है और ये भी 12 में से एक ज्योतिर्लिंग है।शिवलिंग के नीचे से नर्मदा नदी बहती रहती है। नाव से उसपार जा कर दर्शन करते है।
माहेश्वर
ओम्कारेश्वर से कुछ दूरी में ही माहेश्वर है जिसे महिष्मती भी कहते है। यहाँ कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है ,पर नर्मदा नदी के किनारे होल्कर रानी अहिल्या बाई का महल है जो की अब संग्राहलय है। अहिल्या बाई शिव भक्त थी और सिर्फ अपने प्रजा का ही सोचती थी। उनका शिव मन्दिर भी है जिसमे अभी भी पूजा होता है। माहेश्वर में बुनकरों द्वारा महेशवरी साड़ी बनता है और मिलता है।
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