गुरुवार, 17 सितंबर 2015

VISHWAKARMA JAYANTI

FRI,18 SEP
                                                       विश्वकर्मा  जयन्ती 

      त्यौहारो में  बच्चों को बड़ों से अधिक मजा आता है ,चाहे कोई भी अवसर हो मजा करने का मौका ढूंढ ही लेते है। टाटा में वोभी टेल्को कॉलोनी में तीन पूजा का हम सब बच्चों को इन्तजार रहता था।
    दुर्गा पूजा -नया कपडा पहन कर पंडालों में घूमना लकड़ी का झूला झूलना वगैरा।
 सरस्वती पूजा -माँ का साडी पहन कर घूमना चाहे कितनी भी छोटी लड़की हो संभाल पाये या न पर हर जगह साड़ी में ही लड़कियाँ दिखेंगी। 
 विश्ववकर्मा पूजा का भी मजा कम नहीं था। सुबह से ही पुरे परिवार के साथ सब टेल्को कम्पनी के गेट में पहुँच जाते और हर  डिपार्टमेंट का पूजा देखते और प्रसाद लेते आगे बढ़ते जाते न कोई जाँच पड़ताल न कोई दिखावा। लास्ट में बाबा का डिपार्टमेंट जाते टेबल कुर्सी लगा रहता प्लेट सजा रहता नास्ता पानी कर ढेर सारा प्रसाद लेकर दोपहर बाद सब कोई अपने -अपने घर जाते। वैसे तो उस दिन स्कूल में छुटी नहीं रहता था पर हर क्लास में 2 -3 बच्चे ही होते थे इसलिए छूटी करना ही पड़ताथा। 
  अब जमाना बदल गया बच्चे तो बच्चे बड़ों का भी सोच बदल गया सिर्फ दिखावा रह गया सिम्पल लाईफ नहीं रहा। आतंकवाद अलग अब तो कंपनी के गेट के अंदर कोई नहीं जा सकता गेट के बाहर खुब बड़ा पार्किंग बना हे टेल्को बस खड़ा रहता है ऑफिस टाइम में भी सबों को बस से ही अपने डिपार्टमेंट में जाना होता है। हमलोग अपना बचपन अपने ज़माने के तरीके से जीलीये और खूब मजा कर लिये अब तो बच्चे जानेंगे भी नहीं और मानेगे भी नहीं। विश्वकर्मा पूजा के दिन बरबस सब याद गया।





  

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