सारनाथ स्तूप
धमेख स्तूप सारनाथ
उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 13 किलोमीटर की दूरी में सारनाथ है। ऐसा माना जाता है की धमेख स्तूप ही वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था।जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन नाम दिया जाता है। सारनाथ में सम्राट अशोक ने कई स्तूप बनवाये थे।धमेख स्तूप अशोक काल में बना था। स्तूप ठोस गोलाकार बुर्ज है। स्तूप का व्यास 93 फ़ीट,ऊंचाई 143 फ़ीट और घेरा करीब 11 मीटर है। मोहम्द गोरी ने सारनाथ के पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया था।स्तूप के आकर के कारन इसके अंदर खजाना है ये धारणा के कारन ही तोड़ फोड़ हुआ था। पर गुम्बंद नुमा बुर्ज (स्तूप )ध्यान करने के लिये बना था। इसके अंदर कुछ भी नहीं है।श्री लंका के अलावा सारी दुनिया के बुद्ध धर्म के अनुयाई सारनाथ दर्शन करने आते है।
सारनाथ में स्तूप के अलावा भगवान बुद्ध का मंदिर ,संग्रहालय ,विहार इत्यादी भी है।
धमेख स्तूप सारनाथ
उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 13 किलोमीटर की दूरी में सारनाथ है। ऐसा माना जाता है की धमेख स्तूप ही वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था।जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन नाम दिया जाता है। सारनाथ में सम्राट अशोक ने कई स्तूप बनवाये थे।धमेख स्तूप अशोक काल में बना था। स्तूप ठोस गोलाकार बुर्ज है। स्तूप का व्यास 93 फ़ीट,ऊंचाई 143 फ़ीट और घेरा करीब 11 मीटर है। मोहम्द गोरी ने सारनाथ के पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया था।स्तूप के आकर के कारन इसके अंदर खजाना है ये धारणा के कारन ही तोड़ फोड़ हुआ था। पर गुम्बंद नुमा बुर्ज (स्तूप )ध्यान करने के लिये बना था। इसके अंदर कुछ भी नहीं है।श्री लंका के अलावा सारी दुनिया के बुद्ध धर्म के अनुयाई सारनाथ दर्शन करने आते है।
सारनाथ में स्तूप के अलावा भगवान बुद्ध का मंदिर ,संग्रहालय ,विहार इत्यादी भी है।
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