बड़े हनुमान जी
इलाहाबाद में संगम के निकट आराम की मुद्रा में हनुमान जी का विशाल मूर्ती वाला मंदिर है। प्रतिदिन सैकड़ों भक्त गण मंदिर दर्शन के लिये आते है। मूर्ती का सर उत्तर दिशा में और पैर दक्षीण दिशा में है। माना जाता है की राम जी वनवास के समय गंगा पार करके यहीं से गुजरेंगे ,इसलिए हनुमान जी भगवान जी के इंतजार में यहाँ लेटे थे , इसलिए मंदिर का मूर्ती भी लेटे हुए है।
एक मान्यता ये भी है की एक हनुमान भक्त व्यपारी हनुमान जी का एक बड़ा सा प्रतीमा नाव से लेकर गंगा जी में जा रहा था। व्यापारी रात्री में नौका में सो गया सुबह देखा की नाव तो गंगा जी में डूब गया है। बहुत कोशिश के बाद भी हनुमान जी को लेकर नहीं जा पाया। वह मूर्ती वहीं पर छोड़ कर चले गया।बहुत सालों बाद एक सन्यासी ने गंगा किनारे हनुमान जी का मूर्ती देखा ,बहुत कोशिश के बाद भी कोइ मूर्ती नहीं उठा पाया। तो उसी लेटे हुए मुद्रा में वहाँ मंदिर बना। मंदिर करीब 600 -700 बर्ष प्राचीन है। मुगलों ने भी बहुत कोशिश किया पर वहाँ से हनुमान जी की मूर्ती नहीं उठा पाए। अकबर का किला भी मंदिर के पास थोड़ा घुमा हुआ है।
प्राचीन होने के अलावा लोगों की मनोकामना भी पूर्ण होती है इसलिए जो भी संगम स्न्नान को आता है वो बड़े हनुमान जी का दर्शन जरूर करता है। हर साल बरसात में बाढ़ आने पर मंदिर के प्रांगण में पानी भर जाता है। माना ये भी जाता है की हर साल बरसात में जमुना जी का जल हनुमान जी का चरण स्पर्श कर के जाती है।अब सच जो हो। पर मंदिर छोटा ही सही मूर्ती विशाल है। पहले नीचे तक जाने दिया जाता था पर अब भीड़ को कंट्रोल करने के लिये नीचे के बदले ऊपर से ही दर्शन कर सकते है।
इलाहाबाद में संगम के निकट आराम की मुद्रा में हनुमान जी का विशाल मूर्ती वाला मंदिर है। प्रतिदिन सैकड़ों भक्त गण मंदिर दर्शन के लिये आते है। मूर्ती का सर उत्तर दिशा में और पैर दक्षीण दिशा में है। माना जाता है की राम जी वनवास के समय गंगा पार करके यहीं से गुजरेंगे ,इसलिए हनुमान जी भगवान जी के इंतजार में यहाँ लेटे थे , इसलिए मंदिर का मूर्ती भी लेटे हुए है।
एक मान्यता ये भी है की एक हनुमान भक्त व्यपारी हनुमान जी का एक बड़ा सा प्रतीमा नाव से लेकर गंगा जी में जा रहा था। व्यापारी रात्री में नौका में सो गया सुबह देखा की नाव तो गंगा जी में डूब गया है। बहुत कोशिश के बाद भी हनुमान जी को लेकर नहीं जा पाया। वह मूर्ती वहीं पर छोड़ कर चले गया।बहुत सालों बाद एक सन्यासी ने गंगा किनारे हनुमान जी का मूर्ती देखा ,बहुत कोशिश के बाद भी कोइ मूर्ती नहीं उठा पाया। तो उसी लेटे हुए मुद्रा में वहाँ मंदिर बना। मंदिर करीब 600 -700 बर्ष प्राचीन है। मुगलों ने भी बहुत कोशिश किया पर वहाँ से हनुमान जी की मूर्ती नहीं उठा पाए। अकबर का किला भी मंदिर के पास थोड़ा घुमा हुआ है।
प्राचीन होने के अलावा लोगों की मनोकामना भी पूर्ण होती है इसलिए जो भी संगम स्न्नान को आता है वो बड़े हनुमान जी का दर्शन जरूर करता है। हर साल बरसात में बाढ़ आने पर मंदिर के प्रांगण में पानी भर जाता है। माना ये भी जाता है की हर साल बरसात में जमुना जी का जल हनुमान जी का चरण स्पर्श कर के जाती है।अब सच जो हो। पर मंदिर छोटा ही सही मूर्ती विशाल है। पहले नीचे तक जाने दिया जाता था पर अब भीड़ को कंट्रोल करने के लिये नीचे के बदले ऊपर से ही दर्शन कर सकते है।
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