शुक्रवार, 29 मार्च 2019

JAMSHEDPUR KA NAMKARAN

                 
                       
                           जमशेदपुर का नामकरण

       
        कहा जाता है की नाम में क्या रखा है ,पर नाम तो नाम ही है।  सैकड़ों साल पहले जब जमशेदपुर में लोहे का कारखाना नहीं बना था ,तब स्टेशन का नाम कालीमाटी और शहर का नाम साकची था। 1907 में स्टील प्लांट बना उसके बाद दो जनवरी 1919 में भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल वायसराय लार्ड चैम्सफोर्ड यहाँ आये थे। टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा के सम्मान में उनके सपनो का इस्पात नगर साकची का नाम जमशेदपुर और कालीमाटी रेलवे स्टेशन का नाम टाटानगर रख दिया।
      इस शहर का नाम साकची ,पहाड़ जिसकी तराई में शहर है उस पहाड़ का नाम दलमा पहाड़ ,और जिस नदी के तट पर शहर बसा है उसका नामकरण का कहानी भी बहुत मजेदार है जो की ज्यादातर लोंगो को पता ही नहीं है।
 दलमा पहाड़ --ऐसी मान्यता है की जब बादशाह अकबर छोटानागपुर -संथालपरगना (अब झारखण्ड राज्य )के आदिवासीयों को युद्ध में हराकर अपने साम्यराज में मिला ना सका तो उन्होंने अपने सेनापती राजा मान सिंह को इस छेत्र पर विजय पाने के लिये भेजा। जब वे भी असफल रहें तो वापस लौटने के पहले एक तरकीब से काम लिया। रात  में दलमा पहाड़ की चोटी पर एक विजय पताका फहरा दिया ,और अपनी पूरी फौज को रात के अँधेरे में दलमा के जंगल में छिपा दिया। सबेरे जब आदिवासीयों ने मान सिंह का पताका लहराते हुए देखा तो उनलोगों ने समझ लिया की मान सिंह की विजय हो गयी है। वे उनके सामने आत्मसमर्पण कर दिए । अपनी सेना दल का नाम अमर रखने के लिये उस पहाड़ का नाम दलमा रख दिया (सैन्य दल वालों का )आसपास के छेत्र में जहाँ उनकी फौज का दल इकट्ठा हुआ था उसका नाम दाल भूमि जिसका अपभ्रंश होकर धालभूम कहलाया और शेर जैसा काम किये इसलिए सिंघभूम जिला हो गया। ये तो बहुत पुरानी बात है। अब तो दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचरी होगया है। साल भर टूरिस्ट आते है। यहाँ हांथी बहुत ज्यादा है। पहाड़ के ऊपर शिव मंदिर भी है जहाँ शिव रात्री में बहुत लोग आते है। घूमते है पिकनिक मनाते है। वैसे अब तो गाड़ी ऊपर तक जाता है और वहां गेस्ट हॉउस भी है। ये तो दलमा की बात हुई ,अब जरा साकची की भी कहानी हो जाये।
    साकची -- पहले राजा महाराजा जब कहीं लड़ाई जीतते या कुछ अच्छा काम करते थे तो उसके बाद यज्ञ करते थे। राजा मान सिंह भी जब दलमा में विजय हासिल किये तो पहाड़ से लगभग 10 किलोमीटर दूर जुगसलाई गावँ में एक विजय यज्ञ  भी हुआ था। जिसमे साकची गावँ के लोग साक्छी (गवाह )बने थे इसलिए उस गावँ का नाम साक्छी रखा गया जिसका अपभ्रंश हो गया साकची। उस ज़माने में जो भी नाम रहा होगा अब तो यही नाम है और गावं से एक बड़ा शहर और जमशेदपुर का मेन  सेण्टर हो गया है।
स्वर्ण रेखा नदी --अब बात नदी की जिसके किनारे जमशेदपुर सिटी और कारखाना है। जमशेदपुर के पश्चिम में खरकाई नदी है जो जमशेदपुर के सोनारी मुहल्ले में स्वर्णरेखा नदी से मिलती है। उस स्थान को दो मुहानी कहते है। स्वर्णरेखा नदी रांची से निकल कर जमशेदपुर होते हुए ओडीसा के समुन्द्र में मिल जाती है। यह नदी एक सोने के खदान के ऊपर से बहती थी। इसलिए पुराने ज़माने में नदी  के बालू में  सोने के कण बड़ी मात्रा में पाया जाता था। दिन में सूर्य किरण बालू पर पड़ने से पूरा नदी एक सोने (स्वर्ण )की लकीर जैसी दिखती थी। इसलिए आदिकाल से ही इस नदी का नाम स्वर्णरेखा नदी कहलाया। खदान खाली हो गया इसलिए अब स्वर्ण कण नहीं मिलते है। दो मुहानी के पास की बस्ती के लोग बालू से सोना निकल कर यहाँ के सोनारों को बेच देते थे ,इसलिए दो मुहानी के पास की बस्ती को सोनारी कहा जाने लगा। अब तो गिने  चुने सोनार रह गए है बस्ती एक बड़ा मोहल्ला बन गया है सूंदर बड़ा -बड़ा बिल्डींग आ गया है। हमलोग बचपन में संक्रान्त ,टुसु पर्व और छठ पूजा में स्वर्णरेखा नदी किनारे बहुत जाते थे,और दुमोहनी में पिकनिक भी करते थे।  अब तो बाबा सोनारी में रहते है और नदी में 2-3 पुल भी बन गया है। नदी के किनारे लाइट से सजा रोड बन गया है जिसे मरीन ड्राईव बोला जाता है।सोनारी से साकची आना जाना भी होता है और पुल तथा नदी का दृश्य भी देख लेते है।मरीन ड्राईव से लगा जमशेदपुर का फेमस मैनेजमेंट कॉलेज X LR भी दीखता है जिसका मेन  एंट्रेंस जुबली पार्क से है।








   

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