गुरुवार, 18 जुलाई 2019

HOLY BASIL

               तुलसी पौधा

     हिन्दू धर्म में तुलसी को लक्ष्मी का रूप मानकर घर के आंगन में पूजनीय स्थान दिया जाता है। हजारों साल से हमारे पूर्वजों को तुलसी का गुण  पता था इसलिए इसे पूजनीय बना कर रोज पूजा किया जाता था। वैसे तुलसी एक औषधीय पौधा है, एलोपैथी ,यूनानी ,होमियोपैथी और आर्युवेद सबों में दवाई बनाने के लिये उपयोग किया जाता है। बहुत सारी बीमारियों में इसका उपयोग होता है। इसका पौधा झाड़ी नुमा 1 -3 फ़ीट हाइट का होता है। इसकी पत्तियाँ  हरा -बैगनी रंग की होती है। वर्षा काल में नए पौधा लगाने पर शीतकाल में फूलते है। पुष्प मंजरी बहुरंगी छटा वाली होती है। करीब 3 साल बाद पौधा बदल देना चाहिए ,क्योंकि 3 साल बाद पौधा का  वृद्धा अवस्था हो जाता है तब कम फूलता फलता है।
     तुलसी की बहुत सारी प्रजाति होती है-------
1 -राम तुलसी -राम तुलसी का पत्ता हरा होता है और फूल वैगनी रंग का होता है। इसका खुशबु और स्वाद हल्का लॉन्ग जैसा होता है।
2 -कृष्णा तुलसी -इसे श्यामा तुलसी भी बोला जाता है और पत्ती ,फूल मंजरी सब वैगनी रंग का होता है।
3 - विष्णु तुलसी- इसे श्वेत तुलसी के नाम से भी जाना जाता है।इसकी पत्ती हल्का हरे रंग का और फूल सफ़ेद रंग का होता है।
४-नीम्बू तुलसी -इसे वाना तुलसी के नाम से भी जाना जाता है। इसका  पत्ताका ऊपरी भाग  हल्का हरा और पत्ते का नीचला हिस्सा डार्क हरा होता है। इसकी खुशबू और स्वाद हल्का नीम्बू जैसा होता है।
5 -वन तुलसी -ये जंगलो में पाया जाता है,और झाड़ीनुमा होता है।
पाँचो तुलसी का अर्क मिला कर दवाई बनता है जो की बहुत सारी बीमारीयों में उपोयग किया जाता है।
  तुलसी के पत्ते को चाय में तो डाला ही जाता है।इसके 108 मनके के माला से जाप भी किया जाता है।
    तुलसी के मंजरी के बीज से नया पौधा तैयार किया जाता है। एक बार बीज लगाने पर महीना तो लग ही जाता है पौधा निकलने में फिर पौधा तैयार होने पर इसे रोपा जाता है।ये सब तो सभी कोइ जानते ही है।  पर जब तक कुन्नूर नहीं आये थे तब तक पता ही नहीं था की तुलसी के पौधे को कटिंग से भी लगाया जाता है। इसके डंठल को काट कर मंजरी और पत्ते को निकाल कर  पानी वाले पात्र  में छोड़ देने से 8 -10 दिन बाद ही जड़ निकलना शुरू हो जाता है। और फिर कुछ दिनों बाद पौधा रोपने लायक तैयार हो जाता है।कुन्नूर में पाया जाने वाला तुलसी का पत्ता हल्का हरा थोड़ा मोटा और फूल सफ़ेद होता है और इसका स्वाद भी थोड़ा कडुआ होता है।शायद पहाड़ी पौधा होने के कारन ऐसा होता होगा। पर वैसे भी तुलसी के पत्ते को नाख़ून से खोटना नही चाहिए और ना तो दांत से चबाना चाहिए बहुत ही स्ट्रॉग होता है इसे निगल लेना चाहिए।





    

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