रविवार, 13 नवंबर 2016

CHILDREN'S DAY

                                                         हम भी अगर बच्चे होते 

           काश हम फिर से बच्चे हो पाते। बच्चों का नानी ,दादी बन गये पर अपना बचपन भुला नहीं पाते। आज बाल दिवस पर अपना बचपन बहुत याद आरहा है। क्या जमाना था ना तो पढ़ाई का ज्यादा बोझ ,ना घर में अकेला पन। दादा -दादी का गोद ,मेले का झूला ,ट्रक में बाबा का डिपार्टमेंट का पिकनिक, क्या जमाना था।एकदम ईजी और सिम्पल लाईफ। 
   अब तो बच्चों को देख कर दया भी आता है। कॉम्पीटीसन के दौर से बच्चे गुजर रहें हैं। बच्चों का बच्चपना ही कहीं पीछे छूट गया है। कितना इलेक्ट्रॉनिक्स मनोरंजन का साधन होने के बाबजूद भी बच्चे बोर होते हैं और अकेलापन महसुस करते हैं। बस पढ़ाई ,पढ़ाई और पढ़ाई।
     जरूरी नहीं की बच्चों को ये सब अटपटा लगता होगा। वे अपना लाईफ खुब एन्जॉय करते होंगे, पर हम अपने बचपन को याद करके  तुलना करके खुद हैरान परेशान होते हैं। क्या करे यही ह्यूमन नेचर है।





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