रविवार, 18 अगस्त 2019

TEA GARDEN

                         चाय बागान की सैर





           बहुत दिनों बाद रविवार को जरा मौसम खुला। धुप भी खिला -खिला था। बस क्या था दादी पोता चाय बागान की सैर पर चल पड़े। चाय बागान घूमते -घूमते बाबा का बताया हुआ चाय पत्ती  की कहानी याद आगया। वैसे तो कुन्नूर में जहाँ नजर दौड़ाओ चाय बागान ही दिखेगा पर रविवार को घूमते हुए कहानी याद होना अच्छा लगा।
       बात बहुत ही प्राचीन है, करीब हजारों साल पहले की बात है। एक साधु बाबा तपस्या में रात -दिन लीन थे ,अचानक उनको नींद आया और उनका पलक झपक गया और उनका तपस्या भंग हो गया उनको बहुत गुस्सा आया। उन्होंने अपने पलक को काट कर फेक दिया।कुछ महीने बाद वहाँ कुछ पौधा उगा। साधु ने पत्ते को श्राप दिया की जो कोई इस पत्ते का उपयोग करेगा उसे नींद नहीं आएगा।फिर क्या था साधु बाबा के शिष्य लोगों को जब भी जाप करते नींद आता था वे कुछ पत्ती तोड़ कर चबा लेते थे। उन्हें नींद नहीं आती थी।अब कहानी तो कहानी है पर आज भी लोग -बाग पढ़ते हुए या थकावट दूर करने के लिये चाय का सेवन करते है।
    वैसे भारत से जहाँ -जहाँ बुद्धिस्ट गए है,चीन ,जापान ,श्रीलंका  और अग्रेजों के राज्यों में पहाड़ों में चाय बागान देखने मिलता है।और अब तो पूरी दुनिया में ही लोग बाग चाय का इस्तेमाल करते है। 
    

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