अमरनाथ यात्रा
हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थलों में से एक अमरनाथ भी है। श्रीनगर से सैकड़ों मीटर दूर पहाड़ में बर्फ से प्राकतिक रूप में हिम खंड निर्मित हो जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा से सावन पूर्णिमा तक एक महीना चन्द्रमा के घटने बढ़ने के साथ ही हिम खंड घटता बढ़ता है और शिवलींग का रूप ले लेता है। शिवलींग के अगल -बगल थोड़ा छोटा दो और हिमखंड बनता है जिसे पार्वती और गणेश के रूप में जाना जाता है।
मान्यता ये है की एकबार भगवान शिव ने देवी पार्वती को इसी गुफा में अमरत्व का कहानी सुनाया था। गुफा में दो सफ़ेद कबूतर भी थे और वे आवाज निकाल रहे थे ,माता पार्वती तो सो गयी थी और दोनों कबूतर कहानी सुन कर अमर हो गए।अब सच जो हो मजे की बात तो ये है की गुफा के चारो तरफ नरम कच्ची बर्फ रहता है और गुफा के अंदर का हिम लिंग ठोस होता है।
वैसे तो अमरनाथ जाने का दो रास्ता है, एक पहलगावं होकर जिसमे ज्यादा दिन लगता है। दूसरा बालटाल हो कर . बालटाल से थोड़ा ज्यादा चढ़ाई होने के कारन लोग बाग पहलगावं से घूमते हुए जाते है। हमलोग तीन परिवार हमेशा तीर्थयात्रा साथ ही करते है कठिन से कठिन रास्ता हो एक दूसरे को उत्साह बढ़ाते हुए बढ़ते जाते है। आज से करीब दस साल हुआ ,हमलोग लेह -लद्दाक घूमने गए थे वहां से कारगिल -द्रास होते हुए बालटाल पहुँच गए बालटाल से सुबह 6 बजे घोड़े से ऊपर कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए ऊपर पवित्र गुफा पहुंचे। अच्छे से दर्शन भी हुआ और सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा भी पवित्र गुफा में देखने मिला। रास्ते भर लंगर का मजा लेकर शाम 6 बजे नीचे बालटाल बेस कैंप पहुँच गए। यहाँ रात्री विश्राम कर के सुबह सोनमर्ग होते हुए श्रीनगर पहुँच गए।
प्रभु इच्छा से ही हमलोगो को पूरा हिम शिवलींग का दर्शन भी हुआ ,मौसम भी साथ दिया ,रास्ते में कोई कठीनाई भी नहीं हुआ। अब तो जब टीवी देखो तो कभी मौसम के कारन कभी आतंक के कारन तीर्थयात्री को आगे का यात्रा के लिये रुकना पड़ता है। अब तो देख कर ही डर लगता है और सोंचना पड़ता है की हमलोग इतना कठिन तीर्थ कैसे कर लिये। प्रभु की इच्छा के वगैर कुछ नहीं हो सकता है।
आज फ्रेंडशिप डे पर अपना तीनो परिवार की दोस्ती को याद करके ,सारे तीर्थ को याद करे ,उनलोगो के कारन ही सब हो पाया।
हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थलों में से एक अमरनाथ भी है। श्रीनगर से सैकड़ों मीटर दूर पहाड़ में बर्फ से प्राकतिक रूप में हिम खंड निर्मित हो जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा से सावन पूर्णिमा तक एक महीना चन्द्रमा के घटने बढ़ने के साथ ही हिम खंड घटता बढ़ता है और शिवलींग का रूप ले लेता है। शिवलींग के अगल -बगल थोड़ा छोटा दो और हिमखंड बनता है जिसे पार्वती और गणेश के रूप में जाना जाता है।
मान्यता ये है की एकबार भगवान शिव ने देवी पार्वती को इसी गुफा में अमरत्व का कहानी सुनाया था। गुफा में दो सफ़ेद कबूतर भी थे और वे आवाज निकाल रहे थे ,माता पार्वती तो सो गयी थी और दोनों कबूतर कहानी सुन कर अमर हो गए।अब सच जो हो मजे की बात तो ये है की गुफा के चारो तरफ नरम कच्ची बर्फ रहता है और गुफा के अंदर का हिम लिंग ठोस होता है।
वैसे तो अमरनाथ जाने का दो रास्ता है, एक पहलगावं होकर जिसमे ज्यादा दिन लगता है। दूसरा बालटाल हो कर . बालटाल से थोड़ा ज्यादा चढ़ाई होने के कारन लोग बाग पहलगावं से घूमते हुए जाते है। हमलोग तीन परिवार हमेशा तीर्थयात्रा साथ ही करते है कठिन से कठिन रास्ता हो एक दूसरे को उत्साह बढ़ाते हुए बढ़ते जाते है। आज से करीब दस साल हुआ ,हमलोग लेह -लद्दाक घूमने गए थे वहां से कारगिल -द्रास होते हुए बालटाल पहुँच गए बालटाल से सुबह 6 बजे घोड़े से ऊपर कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए ऊपर पवित्र गुफा पहुंचे। अच्छे से दर्शन भी हुआ और सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा भी पवित्र गुफा में देखने मिला। रास्ते भर लंगर का मजा लेकर शाम 6 बजे नीचे बालटाल बेस कैंप पहुँच गए। यहाँ रात्री विश्राम कर के सुबह सोनमर्ग होते हुए श्रीनगर पहुँच गए।
प्रभु इच्छा से ही हमलोगो को पूरा हिम शिवलींग का दर्शन भी हुआ ,मौसम भी साथ दिया ,रास्ते में कोई कठीनाई भी नहीं हुआ। अब तो जब टीवी देखो तो कभी मौसम के कारन कभी आतंक के कारन तीर्थयात्री को आगे का यात्रा के लिये रुकना पड़ता है। अब तो देख कर ही डर लगता है और सोंचना पड़ता है की हमलोग इतना कठिन तीर्थ कैसे कर लिये। प्रभु की इच्छा के वगैर कुछ नहीं हो सकता है।
आज फ्रेंडशिप डे पर अपना तीनो परिवार की दोस्ती को याद करके ,सारे तीर्थ को याद करे ,उनलोगो के कारन ही सब हो पाया।
At a height of more than 3800m above sea level and 145 km from Srinagar, Sri Amarnath Cave is a holy shrine for Hindus in the Himalayas.
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